Vyaktitva Ko Paribhashit Kijiye: – व्यक्तित्व क्या है? हर मनुष्य अपने पर्सनालिटी को बेहतर बनाने के ऊपर विचार करता हैं ग्रेजुएशन में नई शिक्षा नीति के अनुसार पढने वाले बच्चों के लिए व्यक्तिव को पढ़ना जरुरी हैं
क्योकि यह उनके कम्युनिकेशन स्किल के पाठ्यक्रम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए हर कोई मनुष्य कुछ टिप्स को ढूढता हैं लेकिन उससे पहले आपको व्यक्तित्व क्या है? यह गहराई से समझना जरुरी हैं
एग्जाम में ऐसे सवालों को उत्तर लिखने के लिए दिया जा सकता है कि व्यक्तित्व को परिभाषित कीजिए? ( Vyaktitva Ko Paribhashit Kijiye ), व्यक्तित्व का क्या अर्थ है? ( Vyaktitva Meaning in Hindi ),
इसीलिए यह लेख पर्सनालिटी ( व्यक्तित्व ) को समझने के लिए पूरा पढ़ना जरुरी हैं चलिए अब हम यह समाज लेते हैं कि व्यक्तित्व किसे कहते है? ( Vyaktitva Kise Kahate Hai ).
पर्सनालिटी क्या है? ( Understanding Personality )
सामान्य रूप में व्यक्ति के व्यक्तित्व का मतलब व्यक्ति के रूप, रंग, लम्बाई, कौशल, शारीरिक संरचना, व्यवहार, मीठा बोलने आदि से लगाया जाता हैं मतलब व्यक्तित्व को व्यक्ति के आचरण, व्यवहार, चाल-चलन और उसमे सम्बंधित अन्य सभी चीजों से जाना जाता हैं
परन्तु वास्तव में व्यक्तित्व केवल जीवन के विभिन्न पक्षों का सम्मिश्रण नहीं हैं मतलब पर्सनालिटी में एक व्यक्ति के शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक पहलू शामिल होते है क्योकि व्यक्तित्व अनेक कारकों या व्यवहारों का सम्मिश्रण होता हैं
यह उन तरीकों का कुल योग हैं जिनमे एक व्यक्ति दुसरो के साथ प्रतिक्रिया करता हैं और बातचीत करता हैं यह एक मनो-सामाजिक घटना है, जो समाज में व्यक्ति की संज्ञानात्मक विशेषताओं और प्रस्तुति का विश्लेषण करती है
व्यक्तित्व किसी व्यक्ति के गुण को प्रदर्शित करता है जो दिखाई देता है और दूसरों को प्रभावित या परेशान करता हैं पर्सनालिटी कोई स्थिर अवस्था नहीं बल्कि एक गतिशील समग्रता है जो पर्यावरण के साथ संबंध के कारण लगातार बदलती रहती हैं
व्यक्तित्व की परिभाषा में ऑलपोर्ट की परिभाषा को एक महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है
क्योकि उनके अनुसार व्यक्तित्व व्यक्ति के भीतर उन मनोदैहिक ( मानसिक और शारीरिक ) शीलगुणों का गत्यात्मक संगठन ( अस्थिर ) हैं जो वातावरण के प्रति उसके अपूर्व अभियोजन को निर्धारित करता हैं
व्यक्तित्व क्या है? व्यक्तित्व का अर्थ एवं परिभाषा ( Personality Definition in Hindi )
व्यक्तित्व शब्द अंग्रेजी भाषा के Personality शब्द का हिंदी रूपान्तर हैं पर्सनालिटी शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के Persona से हुई हैं जिसका अर्थ नकाब ( Mask ) या मुखौटा होता हैं यूनान में रंगमंच पर अभिनय करने वाले कलाकार मुखौटा पहनकर,
अपना असली रूप छिपा कर, किसी अन्य व्यक्ति की नक़ल करते थें उसी मुखौटे को Persona कहा जाता था बाद में उन कलाकारों को Persona कहा जाने लगा और इस प्रकार Persona व्यक्तित्व का पर्यायवाची बन गया
व्यक्तित्व का अर्थ को कई दृष्टिकोण से परिभाषित किया गया है
सामान्य दृष्टिकोण – सामान्य दृष्टिकोण का मतलब पर्सनालिटी के बारे में आम जनता क्या सोचती हैं? सामान्य दृष्टिकोण यह कहता है कि जैसा व्यक्ति दिखाई देता हैं वही उसका व्यक्तित्व हैं मतलब शरीर की बनावट, चेहरा, रंग-रूप, पहनावा आदि |
उदहारण के लिए, अगर किसी व्यक्ति का चेहरा आकर्षक हैं, उसका रूप रंग अच्छा है, उसके शरीर की बनावट अच्छी हैं, उसने अच्छे कपड़ें पहने हैं तब ऐसी स्थिति में यह माना जाता है कि उसका व्यक्तित्व उत्तम कोटि का हैं
परन्तु अगर किसी व्यक्ति के शरीर की बनावट सही नहीं हैं, उसका चेहरा आकर्षक नहीं है, और उसने अच्छे कपडें नहीं पहने हैं तब ऐसी स्थिति में ऐसा माना जाता है कि व्यक्ति का व्यक्तित्व उत्तम कोटि का नहीं हैं
दार्शनिक दृष्टिकोण – दार्शनिक दृष्टिकोण में दार्शनिक ने आत्मतत्व की बात कही है मतलब व्यक्ति के आन्तरिक गुण | व्यक्ति का आन्तरिक रूप व्यक्तित्व है ऐसा दार्शनिकों का कहना है
सामाजिकशास्त्रीय दृष्टिकोण – सामाजिकशास्त्रीयों के अनुसार, व्यक्तित्व व्यक्ति के सामाजिक गुणों का संगठित रूप हैं मतलब व्यक्ति में जितने भी सामाजिक गुण होते है वह उसके व्यक्तित्व का निर्माण करता है
कोई व्यक्ति समाज में जितनी अच्छे छवि रखता है उसका व्यक्तित्व अच्छा माना जाता हैं
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण – मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार व्यक्तित्व में वंशानुक्रम ( Heredity ) और वातावरण ( Environment ) से प्राप्त समस्त गुण शामिल होते हैं अथार्थ व्यक्तित्व, वंशानुक्रम तथा वातावरण का योग हैं
- वंशानुक्रम मतलब जन्मजात गुण ( ऐसे गुण जो पीढी दर पीढी हमारे पूर्वजों से हमे प्राप्त होते हैं )
- वातावरण मतलब अर्जित गुण ( ऐसे गुण जो मनुष्य वातावरण से अर्जित करता हैं )
वंशानुक्रम और वातावरण से प्राप्त गुण दो प्रकार के होते हैं
- बाह्य गुण
- आंतरिक गुण
बाह्य गुण – इसमें शारीरिक गठन, रूप-रंग, मुखाकृति, पहनावा आदि शामिल हैं
आंतरिक गुण – इसमें बुद्धि, रूचि, आदतें, चरित्र, योग्यता, संवेगात्मक स्वरूप अदि शामिल हैं
व्यक्तित्व की परिभाषा ( मनोवैज्ञानिकों के द्वारा )
गिल्फोर्ड – का कहना है कि व्यक्तित्व गुणों का समन्वित रूप है
वुडवर्थ – का कहना है कि व्यक्तित्व व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यवहार की विशेषता हैं, जिसका प्रदर्शन उसके विचारों को व्यक्त करता हैं
मार्टन – का कहना है कि व्यक्तित्व समस्त शारीरिक जन्मजात तथा अर्जित प्रवृत्तियों का योग हैं
वैलेंटाइन – का कहना है कि व्यक्तित्व जन्मजात तथा अर्जित प्रवृत्तियों का योग हैं
स्टीफन.पी. रॉबिन्स – का मानना हैं कि व्यक्तित्व उन तरीकों का कुल योग हैं जिसमे एक व्यक्ति प्रतिक्रिया करता है और दूसरों के साथ बातचीत करता है
आलपोर्ट ( सबसे महत्वपूर्ण ) – का कहना है कि व्यक्तित्व व्यक्ति के भीतर उन मनोदैहिक ( मानसिक और शारीरिक ) शीलगुणों का गत्यात्मक संगठन ( अस्थिर ) हैं जो वातावरण के प्रति उसके अपूर्व अभियोजन को निर्धारित करता हैं
व्यक्तित्व के शीलगुण ( Traits Of Personality )
इनको तीन भागों में बाटा गया हैं
- मानसिक गुण ( Mental Traits )
- शारीरिक गुण ( Physical Traits )
- सामाजिकता ( Sociality )
मानसिक गुण ( Mental Traits )
मानसिक गुण अर्थात व्यक्ति के आंतरिक गुण | मतलब व्यक्ति के अंदर पाए जाते हैं और इन गुणों या तत्वों को प्रत्यक्ष रूप से नहीं देखा जा सकता है, लेकिन यह व्यक्ति व्यवहार में प्रकट हो जाते हैं
- बुद्धि व ज्ञान
- स्वभाव
- चरित्र
बुद्धि व ज्ञान – व्यक्तित्व निर्माण में बुद्धि और ज्ञान का विशेष योगदान होता है क्योकि जो उच्च बौद्धिक स्तर वाले व्यक्ति होते हैं उनका व्यक्तित्व निश्चित रूप से प्रभावशाली होता है और जो सामान्य बौद्धिक स्तर वाले व्यक्ति होते हैं
उनका व्यक्तित्व भी सामान्य श्रेणी का होता हैं और जो मंदबुद्धि व्यक्ति होते हैं उनका व्यक्तित्व निम्न स्तर का होता हैं और बिल्कुल भी प्रभावशाली नहीं होता है
स्वभाव – व्यक्तित्व के शील गुणों में स्वभाव का महत्वपूर्ण स्थान हैं जैसा व्यक्ति का स्वभाव होता हैं वैसा ही उसका व्यक्तित्व भी बनता हैं स्वभाव के आधार पर व्यक्तित्व कई प्रकार के होते हैं आशावादी, निराशावादी, चिडचिडे स्वभाव वाले, मिलनसार, संकोची आदि |
सामान्यत: आशावादी तथा मिलनसार स्वभाव वाले व्यक्तियों के व्यक्तित्व को अच्छा माना जाता हैं
चरित्र – चरित्र व्यक्तित्व का एक मुख्य तत्व हैं उच्च चरित्र तथा दृढ संकल्प शक्ति वाले शक्ति का व्यक्तित्व उत्तम कोटि का होता है तथा निम्न चरित्र और दुर्बल संकल्प शक्ति वाले व्यक्ति का व्यक्तित्व निम्न कोटि का होता है
शारीरिक गुण या तत्व ( Physical Traits )
शारीरिक गुण या तत्व व्यक्ति के व्यक्तित्व के बाहरी पक्ष का निर्माण करते हैं मतलब जिनको हम बाहर से देख सकते हैं इसके अंतर्गत शरीर की आकृति, लम्बाई, शारीरिक गठन, वाणी, भाव-भंगिमा और मुखाकृति आदि आती हैं
इसके अतिरिक्त वेशभूषा और शरीर को सजाने संवारने का ढंग भी आता हैं वास्तव में शारीरिक रूप से जो व्यक्ति आकर्षक होता है वह पहली नजर में तो आकर्षक प्रतीत होता है,
लेकिन यदि उसके मानसिक गुण अनुकूल ना हो मतलब उत्तम कोटि के न हो तो ऐसे व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रभावहीन हो जाता हैं
सामाजिकता ( Sociality )
प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण और विकास सामाजिक पर्यावरण में होता है जो लोग सामाजिक होते हैं मतलब दुसरे लोगो के साथ घुलते मिलते हैं अच्छा व्यवहार करते है
उनके व्यक्तित्व का विकास अलग तरीके से होता हैं और जो लोग असामाजिक होते है उनका व्यक्तित्व अलग तरह से विकास होता है
व्यक्तित्व की प्रकृति ( Nature Of Personality )
ह्यूबर्ट बोनर ने पर्सनालिटी की प्रकृति को स्पष्ट करने छह प्रस्तावों को बताया हैं
- अधिनियमों की समग्रता
- व्यक्तित्व और पर्यावरण
- व्यक्तित्व निरंतरता को दर्शाता हैं
- व्यक्तित्व लक्ष्य-उन्मुख व्यवहार हैं
- समय एकीकृत संरचना
- व्यक्तित्व संरचना
अधिनियमों की समग्रता – एक संगठन में मनुष्य का व्यवहार परिणति का बिंदु हैं जो कई कृत्यों से पहले होता हैं यह प्रतिक्रियात्मक व्यवहार के रूप में इन कृत्यों की समग्रता है जो व्यक्ति और संगठन दोनों के लिए प्रासंगिक हैं
व्यक्तित्व में व्यक्ति का प्रथक मनोवैज्ञानिक या शारीरिक पहलू प्रशासनिक निर्णय लेने के लिए किसी काम का नहीं होता है
व्यक्तित्व और पर्यावरण – व्यक्तित्व और पर्यावरण मानव व्यवहार के दो अन्योंयाश्रित चार हैं परिवेश के अनुसार व्यक्तित्व ढलता हैं, यह भी एक सच्चाई है कि वातावरण ही व्यक्तित्व को क्रिया के लिए प्रेरित करता है
समय एकीकृत संरचना – व्यक्तित्व पूर्वव्यापी और संभावना का एक संश्लेषण प्रदान करता है क्योकि भविष्य अतीत से उतना ही सम्बंधित है जितना कि अतीत भविष्य से है
व्यक्तित्व संरचना – व्यक्तित्व संरचना में तीन आयाम होते है – निर्धारक, चरण और लक्षण |
व्यक्तित्व निरंतरता को दर्शाता हैं – अपने आस पास की पर्यावरणीय सेटिंग के कारण सामान्य व्यक्तित्व गतिशील होता है एक अलग पर्यावरणीय सेटिंग में एकरूपता के बिंदु पर व्यक्तित्व लचीला हो सकता हैं
व्यक्तित्व लक्ष्य-उन्मुख व्यवहार हैं – प्रत्येक व्यक्ति अपने पर्सनालिटी के माध्यम से वांछित लक्ष्य को प्राप्त करना चाहता हैं लक्ष्य चयन की प्रक्रिया अपने आप में व्यक्तित्व का एक गतिशील गुण हैं
व्यक्तित्व की विशेषताएं ( Characteristics Of Personality )
मतलब एक अच्छे व्यक्तित्व या एक संतुलित व्यक्तित्व के लिए क्या विशेषताएँ होनी चाहिए यह समझ लेते है
सामाजिकता ( मतलब समाज में घुलना-मिलना ) – सामाजिकता व्यक्ति के व्यक्तित्व की एक प्रमुख विशेषता हैं मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और वह समाज में रहना ही पसंद करता हैं
व्यक्ति समाज के बीच रहकर अपने सारे क्रिया-कलाप करता है जो व्यक्ति सामाजिक हो और सब के साथ घुल मिल कर रहे ऐसे व्यक्ति का व्यक्तित्व अच्छा माना जाता हैं
समायोजन ( Adjustment ) – समायोजन मतलब स्वयं को परिवेश के अनुसार ढालना या परिवेश के अनुकूल बनाना | प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ता हैं
ऐसी बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार खुद को बदलना ही समायोजन ( Adjustment ) कहलाता हैं जो व्यक्ति समायोजन ( Adjustment ) कर लेता है उसका व्यक्तित्व अच्छा माना जाता हैं
क्योकि जब व्यक्ति समायोजन ( Adjustment ) कर लेता है तभी व्यक्ति का विकास संभव हो पाता हैं अन्यथा व्यक्ति का विकास होना संभव नहीं होता हैं यहाँ समायोजन ( Adjustment ) से तात्पर्य मनुष्य के व्यक्तिगत जीवन,
सामाजिक जीवन, परिवारिक जीवन, व्यावसायिक जीवन से हैं
शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य – व्यक्तित्व एक मनोशारीरिक अवधारणा हैं मतलब मनुष्य में मानसिक गुणों के साथ, शारीरिक गुण भी शामिल होते है इसीलिए व्यक्ति का शारीरिक तथा मानसिक रूप से स्वस्थ होना आवश्यक चाहिए
क्योकि व्यक्ति जब शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होगा तभी व्यक्ति के सभी गुणों का विकास हो सकता है अगर व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं हैं तब वह अपने अन्य गुणों के साथ बैलेंस नहीं बैठा पायेगा
अनवरत विकास – विकास जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया हैं और किसी भी व्यक्ति के लिए यह बहुत आवश्यक हैं कि हमेशा उसका विकास होता रहे विकास समय, आयु और परिवेश के अनुसार,
जब गुणों में निरंतर विकास होना तब यह एक अच्छे व्यक्तित्व की विशेषता होती हैं
दृढ इच्छा शक्ति – व्यक्ति को अपने जीवन में कई निर्णय लेने पड़ते है और लक्ष्य प्राप्त करने के लिए संघर्ष करने पड़ते हैं सही निर्णय लेने के लिए और संघर्षों में सफलता प्राप्त करने के लिए दृढ इच्छा शक्ति का होना आवश्यक हैं
दृढ इच्छा शक्ति के कारण व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्ति के लिए पूरा प्रयास करता हैं और बाधाओं को जीतकर लक्ष्य को प्राप्त करता हैं
उदहारण के लिए, एक ऐसा व्यक्ति जिसकी इच्छा शक्ति दृढ नहीं है उसका व्यक्तित्व कभी भी उत्तम नहीं माना जाता है क्योकि व्यक्ति ने अभी एक संकल्प किया हैं कि मैं पुरे दिन पढाई करके अच्छे नंबर लाऊंगा
परन्तु थोड़ी देर के बाद वह व्यक्ति अपने संकल्प से पीछे हट जाता हैं तो ऐसा व्यक्ति निश्चित रूप से एक अच्छे व्यक्तित्व का मालिक नहीं कहा जाएगा
संवेगात्मक संतुलन – संवेगात्मक संतुलन से तात्पर्य हैं कि व्यक्ति अपने संवेगों की अभिव्यक्ति उचित समय पर, उचित स्थान पर और उचित मात्रा में करे मतलब जहाँ जितने संवेग की जरुरत हैं वहां उतना प्रदर्शन किया जाए
उदहारण के लिए, अगर किसी मनुष्य के लिए लिए केवल मुस्कुराने की बात है, वहां कोई मनुष्य जोर जोर से हँसने लगे या जहाँ हँसने की बात हो, वहां व्यक्ति उदास बैठा रहे
इसके साथ ही संवेगों का प्रदर्शन सामान्य रूप ( बैलेंस ) से हो, प्रबलता से नहीं और न ही व्यक्ति संवेग शून्य हो |
उदहारण के लिए, अगर किसी बात पर व्यक्ति को क्रोध ( गुस्सा ) आये तब व्यक्ति उतना अधिक प्रबल क्रोध में न भर जाए कि व्यक्ति किसी का विनाश ही कर दें ऐसी दोनों स्थितियां संतुलित नहीं कहलाती हैं
एकीकरण मतलब गुणों में संगठन – व्यक्ति में मौजूदा गुणों ( शारीरिक और मानसिक ) में संगठन होना अनिवार्य है गुणों में विरोध या टकराव नहीं होना चाहिए, क्योकि ऐसा होने पर व्यक्तित्व में बिखराव आ जाता है और,
ऐसा बिखरा हुआ व्यक्तित्व असंतुष्ट व दुखी जीवन की ओर संकेत करता हैं क्योकि ऐसा व्यक्ति जो कि खुद असन्तुष्ट हो, दुखी हो और जिसका व्यक्तित्व बिखरा हुआ हो वह व्यक्ति कभी भी समायोजन ( Adjustment ) नहीं कर सकता है
लेकिन समायोजन एक अच्छे व्यक्तित्व की पहचान होती है
संतोष – व्यक्ति के जीवन में संतोष का होना बहुत आवश्यक हैं व्यक्ति अपने पारिवारिक, व्यावसायिक, सामाजिक, व्यक्तिगत जीवन से सन्तुष्ट हो, यह बहुत जरुरी हैं क्योकि संतोष सुख का आधार हैं जो व्यक्ति सन्तुष्ट हैं वह निश्चित रूप से सुखी होगा
लेकिन संतोष का अर्थ यह नहीं कि व्यक्ति के पास जितना है कि केवल इसमें संतोष करके बैठ जाए मतलब उच्च लक्ष्य न बनायें या आकांक्षाएं न रखे उच्च आकांक्षाएं या उच्च लक्ष्य बनना प्रगति का घोतक हैं
तो निश्चित रूप से व्यक्ति को उच्च आकांक्षाएं तो बनानी चाहिए और उनको प्राप्त करने के लिए या सफलता के लिए बेहतरीन प्रयास करना चाहिए लेकिन व्यक्ति को असफलता के लिए भी खुद को तैयार रखना चाहिए
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निष्कर्ष
यह लेख मुख्य रूप से पर्सनालिटी की परिभाषा, उसके अर्थ और महत्त्व को समझाने के लिए शेयर किया गया हैं क्योकि यह विषय ग्रेजुएशन में कम्युनिकेशन स्किल और मनोविज्ञान के एग्जाम के लिए अधिक उपयोगी हैं
मैं यह उम्मीद करता हूँ कि कंटेंट में दी गई इनफार्मेशन आपको पसंद आई होगी अपनी प्रतिक्रिया को कमेंट का उपयोग करके शेयर करने में संकोच ना करें अपने फ्रिड्स को यह लेख अधिक से अधिक शेयर करें
नमस्ते! मैं एनएस न्यूज़ ब्लॉग पर एक राइटर के रूप में शुरू से काम कर रहा हूँ वर्तमान समय में मुझे पॉलिटिक्स, मनोविज्ञान, न्यूज़ आर्टिकल, एजुकेशन, रिलेशनशिप, एंटरटेनमेंट जैसे अनेक विषयों की अच्छी जानकारी हैं जिसको मैं यहाँ स्वतंत्र रूप से शेयर करता रहता हूं मेरा लेख पढने के लिए धन्यवाद! प्रिय दुबारा जरुर आयें