Determinants of Personality in Hindi: – व्यक्तित्व के निर्धारक को समझने के लिए यह लेख बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योकि अक्सर अपनी कम्युनिकेशन स्किल को बेहतर बनाना हो या मनोविज्ञान में,
व्यक्तित्व के निर्धारक को समझना दोनों उद्देश्यों से जरुरी हो जाता हैं क्योकि यह निर्धारक व्यक्तित्व के विकास या व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करते हैं मतलब जैविक निर्धारक ( Biological Determinants ) और,
पर्यावरणीय निर्धारक ( Environmental Determinants ) यह दोनों निर्धारक किसी मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास में अहम् भूमिका निभाते हैं परन्तु यह सच्चाई है कि जैविक निर्धारक को बदलना हमारे लिए संभव नहीं होता हैं
लेकिन पर्यावरणीय या वातावरण निर्धारक को बेहतर बनाकर कोई मनुष्य अपने व्यक्तित्व को बेहतर बना सकता हैं चलिए अब हम व्यक्तित्व के निर्धारक को अच्छे से समझ लेते है?
व्यक्तित्व के निर्धारक या कारक ( Determinants of Personality in Hindi )
व्यक्तिव को प्रभावित करते वाले मुख्य रूप से दो कारक या निर्धारक होतें हैं किसी भी व्यक्ति का व्यक्तित्व इन दोनों कारकों से मिलकर बनता हैं मतलब कुछ प्रतिशत जैविक कारक और कुछ प्रतिशत पर्यावरणीय कारक होते हैं
इसीलिए ऑलपोर्ट ने व्यक्तित्व को मनोशारीरिक कहा हैं मतलब व्यक्तित्व मानसिक और शारीरिक दोनों शीलगुणों का योग होता हैं
- जैविक निर्धारक ( Biological Determinants )
- पर्यावरणीय निर्धारक ( Environmental Determinants )
जैविक निर्धारक ( Biological Determinants ) – आनुवंशिक कारक ( Hereditary Factors )
इनको हम आनुवंशिक कारक ( Hereditary Factors ) भी कहते हैं क्योकि यह वंशानुक्रम से प्राप्त होते हैं मतलब यह मनुष्य को माता-पिता या अपने पूर्वजों के द्वारा प्राप्त होते हैं
- शरीर रचना या शारीरिक गठन ( Physique )
- स्वास्थ्य ( Health )
- अंत: स्रावी ग्रन्थियाँ ( Endocrine Glands )
- स्नायु संस्थान ( Nervous System )
- बुद्धि ( Intelligence )
शरीर रचना या शारीरिक गठन ( Physique )
शरीर रचना से तात्पर्य व्यक्ति के रंग, रूप, मुखाकृति, लम्बाई, लिंग ( स्त्री या पुरुष ), शारीरिक गठन ( मोटा, पतला, सुडौल ) आदि से हैं व्यक्तित्व विकास में शरीर रचना का बहुत प्रभाव पड़ता हैं
क्योकि हम सबसे पहले किसी व्यक्ति के शारीरिक गुणों से ही प्रभावित होते है मतलब व्यक्ति अगर सामने आता है तब वह अपने शरीर के साथ ही सामने आता हैं शरीर रचना से सम्बंधित सभी शीलगुण आनुवंशिक/ वंशानुगत होते हैं
सरल शब्दों में कहा जाए, यह गुण हमे अपने माता पिता से प्राप्त होते हैं सामान्यत: यह होता है कि गोर माता-पिता के बच्चे गौरे और सांवले माता-पिता के बच्चे सांवले होते हैं इसी तरह से लम्बे माता-पिता के बच्चे लम्बे और नाटे माता-पिता के बच्चे नाटे होते है
नोट – ऐसा नहीं है कि हर बार ऐसा होता है क्योकि कई बार गोरे माता पिता के बच्चे भी सांवले होते हैं क्योकि वंशानुक्रम में माता पिता के अलावा कई बार ऐसा होता है कि हमारे पूर्वजों से भी यह गुण प्राप्त हो जाते हैं
शारीरिक गुणों का प्रभाव मानसिक गुणों के विकास पर भी पड़ता है जो बच्चे या व्यक्ति गोरे, लम्बे, आकर्षक होते हैं उनके माता-पिता, मित्र, पड़ोसी, रिश्तेदार उनके साथ काफी अनुकूल व्यवहार करते हैं मतलब हमेशा उनको पॉजिटिव व्यवहार मिलता है
सभी स्तरों पर उनकी प्रशंसा की जाती हैं ऐसे बच्चे व व्यक्ति बहिर्मुखी होते हैं और उनमे आत्मविश्वास. श्रेष्ठता की भावना, सामाजिकता आदि गुणों का विकास होता है
दुसरी और नाटे, मोटे, काले, अपंग या विकृत शारीरिक रचना वाले व्यक्ति या बच्चों के प्रति लोग अपेक्षित व्यवहार करते है ऐसे बच्चे या व्यक्ति अंतर्मुखी हो जाते है और उनमे आत्म-हीनता की भावना, संकोच, एकाकीपन आदि गुण विकसित हो जाते है
ऐसे बच्चे आगे चलकर क्ष्रतिपूर्ति के रूप में जीवन के किसी क्षेत्र में अपूर्व उपलब्धि प्राप्त करते हैं या बाल अपराधी भी बन सकते हैं मतलब यह स्थिति पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों रूप में हो सकती है
स्वास्थ्य ( Health )
व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का उसके व्यक्तित्व पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता हैं जो व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होते है वह व्यक्ति जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफल होते हैं
क्योकि विभिन्न कार्यों को करने के लिए व्यक्ति का शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होना जरुरी होता हैं शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति अपने जीवन के विभिन्न क्षेत्रो के कामो को बहुत अच्छी तरह से कर पाते हैं
परन्तु शारीरिक और मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति होता है तो वह अपने दैनिक जीवन के विभिन्न कार्यों को भी ठीक प्रकार से नहीं कर पाता हैं
अंत: स्रावी ग्रन्थियाँ ( Endocrine Glands )
अंत: स्रावी ग्रंथियां मनुष्य के व्यक्तित्व पर बहुत अधिक प्रभाव डालती हैं अंत: स्रावी ग्रंथियों से निकलने वाले स्राव को हार्मोन्स कहा जाता हैं यह व्यक्ति के व्यक्तित्व को विभिन्न प्रकार से प्रभावित करते हैं
- पीयूष ग्रंथि ( Pituitary Gland )
- थायराइड ग्रंथि ( Thyroid Gland )
- पैराथायराइड ग्रंथि ( Parathyroid Gland )
- एड्रिनल ग्रंथि ( Adrenal Gland )
- पैंक्रियाज ( Pancreas )
- जनन ग्रंथिया ( Gonads )
पीयूष ग्रंथि ( Pituitary Gland ) – यह ग्रंथि मस्तिष्क में स्थित होती हैं और इससे ग्रोथ हार्मोन निकलता हैं जो हमारे शरीर के विकास को प्रभावित करता हैं
इस ग्रंथि में जब अधिक सक्रियता होती है तब पीयूष ग्रंथि की अधिक सक्रियता के कारण शरीर के आकर में असामन्य वृद्धि होती हैं मतलब व्यक्ति लंबा हो जाता हैं और अधिक सक्रियता के कारण,
व्यक्ति आक्रामक व झगड़ालू व्यवहार वाला होता हैं इसके विपरीत अगर यह ग्रंथि कम सक्रिय होती हैं तब इसकी कम सक्रियता के कारण व्यक्ति में बौनापन दिखाई देता हैं मतलब उसकी शारीरिक वृद्धि रुक जाती हैं और व्यक्ति का शारीरिक गठन कुरूप होता हैं
मतलब शरीर के विभिन्न अंगों में संतुलन नहीं होता हैं इसके साथ ही व्यक्ति मंदबुद्धि, डरपोक और कायर हो जाता है
थायराइड ग्रंथि ( Thyroid Gland ) – यह ग्रंथि गले में स्थित होती हैं और इस ग्रंथि की कम सक्रियता के कारण मनुष्य में बौनापन देता हैं और व्यक्ति मानसिक रूप से दुर्बल हो जाता हैं अगर बचपन में ही थायराइड ग्रंथि कम सक्रिय हो
तब उस बच्चे की लम्बाई नहीं बढ़ती हैं, व्यक्ति की स्मृति ( Memory ) पावरफुल नहीं होती हैं वह कमजोर होती हैं ऐसा मनुष्य चीजों पर ध्यान नहीं दे पाता है और न ही वह चिंतन कर पाता हैं परन्तु, व्यक्ति में इस ग्रंथि के अधिक सक्रियता के कारण,
मनुष्य की लम्बाई काफी बढ़ जाती है लेकिन ऐसा व्यक्ति चिडचिडा, चिंतित और तनावग्रस्त रहता हैं थायरोक्सिन ( थायराइड ग्रंथि से निकलने वाला हार्मोन ) उसकी अधिकता के कारण प्राणी काफी जोशीला व सक्रिय रहता हैं
पैराथायराइड ग्रंथि ( Parathyroid Gland ) – यह ग्रंथि थायराइड ग्रंथि के पास स्थित होती है इसकी अधिक क्रियाशीलता के कारण व्यक्ति शांत तथा मंद स्वभाव का होता है और जब यह ग्रंथि कम क्रियाशील होती है तब उसके कारण व्यक्ति अधिक उत्तेजित हो जाता हैं
एड्रिनल ग्रंथि ( Adrenal Gland ) – यह ग्रंथि किडनी के ऊपर स्थित होती हैं और इस ग्रन्थि के दो भाग होते है
- बाह्य भाग
- आंतरिक भाग
बाह्य भाग – बाह्य भाग कम सक्रिय होता हैं तब व्यक्ति में चिडचिडा दिखाई देता है वह उदास और कमजोर रहना हैं परन्तु अगर यह भाग अधिक सक्रिय होता हैं तब इसकी अधिक सक्रियता के कारण स्त्रियों में दाढ़ी मूंछ का निकलना जैसे लक्षण दिखते हैं
आंतरिक भाग – आंतरिक भाग से निकलने वाला हार्मोन अगर कम हो मतलब ग्रंथि की सक्रियता कम हो तब उसकी वजह से संवेगात्मक परिस्थिति से प्राणी ( व्यक्ति ) समायोजन नहीं कर पाता हैं और यह ग्रंथि अगर अधिक सक्रिय होती हैं
तब प्राणी ( व्यक्ति ) अधिक उत्तेजित और सक्रिय ( एक्टिव ) रहता हैं
पैंक्रियाज ( Pancreas ) – यह ग्रंथि आमाशय के नीचे स्थित होती है और इससे इंसुलिन नामक हार्मोन निकलता है जोकि हमारे रक्त ( ब्लड ) में चीनी की मात्रा को नियंत्रित ( कण्ट्रोल ) करता है अब अगर इंसुलिन की मात्रा जब ज्यादा ( अधिक ) होती हैं
तब शरीर में चीनी की मात्रा कम हो जाती है और चीनी ही हमे ऊर्जा देती हैं परन्तु, शरीर में इसकी मात्रा कम होने के कारण व्यक्ति थका-थका रहता है इंसुलिन की मात्रा कम होने पर शरीर में शक्कर ( चीनी ) की मात्रा बढ़ जाती है जिससे व्यक्ति मधुमेह का रोगी हो जाता हैं
जनन ग्रंथिया ( Gonads ) – यह ग्रंथिया स्त्रियों में स्त्रियोचित और पुरुषो में पुरुषोचित गुणों का विकास करती हैं अगर यह ग्रंथियां ठीक से काम न करे तो स्त्री-पुरुषों में विभिन्न प्रकार की यौन सम्बन्धी समस्याएँ उत्पन्न हो जाती है जिनका उनके व्यक्तित्व पर बहुत प्रभाव पड़ता हैं
स्नायु संस्थान ( Nervous System )
जिस व्यक्ति का स्नायु संस्थान जितना अधिक विकसित और जटिल होगा उसकी मानसिक क्रियाएं उतनी ही अधिक विकसित होगी क्योकि स्नायु संस्थान के कारण मनुष्य अपनी विभिन्न शारीरिक और मानसिक क्रियाओं को करता हैं
ऐसे व्यक्ति की बुद्धि व समायोजन क्षमता अधिक होती हैं बुद्धि अधिक होने से ज्ञानार्जंन अधिक होगा और व्यक्ति अपने जीवन के विभिन्न कार्यों को अच्छी तरीके से संपन्न कर पाएगा साथ ही अपनी बात प्रभावशाली ढंग से रख पायेगा
समायोजन क्षमता होने पर व्यक्ति अपने जीवन की विभिन्न परिस्थितयों में समायोजन कर सकता हैं और निश्चित रूप से जो व्यक्ति समायोजन करता हैं वह सफल होता हैं
बुद्धि ( Intelligence )
बुद्धि निश्चित रूप से व्यक्ति के व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण तत्व हैं जो लोग बुद्धिमान होते हैं उनकी मानसिक शक्तियां विकसित होती हैं और वह विभिन्न कार्यों को उत्तम तरीके से कर सकते हैं साथ ही वह जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करते हैं
उन्हें समाज में काफी प्रतिष्ठा प्राप्त होती है इसके विपरीत मंदबुद्धि या बुद्धिहीन व्यक्ति अपनी बातों को दूसरों के सामने उत्तम तरीके से नहीं रख पाते हैं और ना ही विभिन्न कार्यों को ठीक प्रकार से कर सकते है
उनकी मानसिक शक्तियां विकसित नहीं होती है जिससे वह जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में असफलता प्राप्त करते हैं
पर्यावरणीय निर्धारक ( Environmental Determinants )
- भौगोलिक कारक
- सामाजिक कारक
- सांस्कृतिक कारक
भौगोलिक कारक या भौगोलिक पर्यावरण
व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास पर भौगोलिक पर्यावरण का बहुत प्रभाव पड़ता है जिस जगह की जलवायु ठंडी होती हैं वहां के लोग गोरे, स्वस्थ, परिश्रमी होते है इसके विपरीत जिस जगह की जलवायु आवश्यकता से अधिक गर्म होती है वहा के लोग काले अस्वस्थ व आलसी होते हैं
सामाजिक कारक
सामाजिक कारकों में परिवार, विद्यालय और समाज शामिल हैं
- परिवार
- विद्यालय
- समाज
परिवार
किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व पर परिवार का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है ये प्रभाव जन्म से लेकर जीवनपर्यन्त रहता हैं परिवार के प्रभाव का अध्ययन हम निम्न कारकों के अंतर्गत कर सकते हैं
- माता-पिता का व्यक्तित्व
- माता-पिता का व्यवहार
- बालक का जन्म-क्रम
- पारिवारिक रचना
- परिवार की आर्थिक स्थिति
माता-पिता का व्यक्तित्व
माता-पिता के व्यक्तित्व का प्रभाव बच्चों पर बहुत अधिक पड़ता है किसी भी परिवार में प्राय: लड़के पिता को और लडकियां माता को एक आदर्श रूप में देखती है बच्चों के हाव भाव, रहन सहन, तौर-तरीके माता पिता जैसे होते है
माता-पिता का व्यवहार
किसी भी बच्चे का सबसे अधिक घनिष्ठ सम्बन्ध अपने माता-पिता से होता हैं माता-पिता का व्यवहार बच्चे के प्रति कैसा है इसका प्रभाव बालक के व्यक्तित्व पर पड़ता हैं माता पिता का व्यवहार कई प्रकार का होता हैं
- सामान्य माता पिता
- अति सतर्क माता पिता
- अति स्नेही माता पिता
- तिरस्कार करने वाले माता पिता
- कठोर माता पिता
- पक्षपाती माता पिता
सामान्य माता पिता – अगर माता-पिता बालक के साथ आवश्यकतानुसार नर्मी तथा कठोरता का व्यवहार करते है, सभी बच्चों को समान रूप से स्नेह देते है, बच्चों के बीच पक्षपात नहीं करते,
प्रशंसा-निंदा और पुरस्कार-दंड में हमेशा बीच का रास्ता अपनाते है और बच्चों पर मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से नजर रखते है, ऐसे बच्चो के व्यक्तित्व समुचित रूप से विकसित होता है
अति सतर्क माता पिता – कुछ माता पिता बच्चों के साथ बहुत सतर्कता का व्यवहार करते हैं मतलब ऐसे माता पिता बालक की बहुत ज्यादा चिंता करते है जिससे बच्चा पराधीन और दब्बू बन जाता हैं
अति स्नेही माता पिता – ऐसे माता पिता बच्चे को जरुरत से ज्यादा ही स्नेह करते है यहाँ तक कि उसकी गलतियों पर भी उसे डांटने के बजाय उसे दुलारते है ऐसे बच्चे जिद्दी, उद्दंड, आत्म-केंद्रित और पराधीन हो जाते है
तिरस्कार करने वाले माता पिता – ऐसे माता पिता बालक का तिरस्कार करते हैं छोटी-छोटी बातों में उसे डांटते फटकारते रहते हैं ऐसे में बच्चे के अंदर आत्महीनता और असुरक्षा की भावना आ जाती है
कठोर माता पिता – ऐसे माता पिता बच्चों पर हर समय कड़ा नियंत्रण और कठोर अनुशासन रखते है इस तरह के बच्चों का शारीरिक मानसिक व सामाजिक विकास अवरुद्ध हो जाता हैं और उनका व्यक्तित्व कुंठित हो जाता हैं
पक्षपाती माता पिता – यह माता पिता अपने बच्चो के बीच में पक्षपात करते हैं जिससे बच्चों में ईर्ष्या, हीनता और विद्रोह की भावना जन्म लेती हैं
बालक का जन्म-क्रम
जन्म क्रम से मतलब यह होता है कि बच्चा किस क्रम के पैदा हुआ है? बच्चा पहला पैदा हुआ हैं, दुसरा पैदा हुआ हैं तो अलग अलग जन्म-क्रम वाले बच्चो के व्यवहार में पर्याप्त अंतर पाया जाता हैं
- प्रथम जन्म-क्रम – प्रथम जन्म-क्रमवाले बच्चे शांत, अंतर्मुखी और एकांत-प्रिय होते हैं
- मध्य जन्म-क्रम – मध्य जन्म-क्रम वाले बच्चे आत्मविश्वासी, बहिर्मुखी और आत्मनिर्भर होते हैं
- अंतिम जन्म-क्रम – अंतिम जन्म-क्रम वाले बच्चे सामाजिक तथा बहिर्मुखी होते है लेकिन उनमे आत्म निर्भरता की कमी पायी जाती हैं
- इकलौता बच्चा – इकलौते बच्चे में स्वार्थ, निर्भरता व आत्म-केंद्रिता का गुण विकसित होता हैं
पारिवारिक रचना
पारिवारिक रचना से तात्पर्य यह है कि परिवार में कितने सदस्य हैं, परिवार छोटा हैं या बड़ा, परिवार में कौन कौन लोग हैं और आपस में उनके सम्बन्ध कैसे है? रचना के अनुसार परिवार कई प्रकार के होते है जिनमे सुसमायोजित परिवार सर्वोतम माना जाता हैं
- सुसमायोजित परिवार
- विघटित परिवार
- अपराधी परिवार
- बड़ा परिवार
- इकलौता बालक परिवार
सुसमायोजित परिवार – ऐसे परिवार जिसमे परिवार के सदस्य शिक्षित, सभ्य आचरण वाले होते है और परिवार के सदस्यों में स्नेह व समाजोयन होता हैं ऐसे परिवार में बालक के व्यक्तित्व का समुचित विकास होता हैं
विघटित परिवार – विघटित परिवार वे होते है जिनमे माता-पिता में से किसी एक कि मृत्यु हो गयी हो, या उनमे तलाक हो गया हो या घर में कलह का वातावरण हो माता-पिता में से किसी एक की मृत्यु हो जाने या तलाक हो जाने पर,
बालक की देखभाल का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व ( जिम्मेदारी ) किसी एक पर आ जाता हैं ऐसे में बालक का पालन-पोषण ठीक तरह से नहीं हो पाता हैं और उसका व्यक्तित्व विघटित हो जाता हैं
यदि माता-पिता के बीच कलह होती है तो घर का वातावरण दूषित होता है ऐसे में बालक का व्यक्तित्व कुंठित और विकृत होता है शोध बताती हैं कि ज्यादातर अपराधी ऐसे ही विघटित परिवार से आते है
अपराधी परिवार – ऐसे परिवार जिनमे माता-पिता या परिवार के अन्य सदस्य अपराधी प्रवृत्ति के हैं चोरी नशा आदि करते हैं ऐसे वातावरण में पले बच्चों में अपराध प्रवृत्तियाँ विकसित हो जाती है
बड़ा परिवार – जिस परिवार में बच्चों की संख्या ज्यादा होती है वहाँ बच्चे अपेक्षित होते है उनकी देखभाल सही से नहीं हो पाती हैं उनकी आवश्यकताएं पूरी नहीं हो पाती हैं, इससे बच्चों में ईर्ष्या व हीनता की भावना विकसित होती है
इकलौता बालक परिवार – ऐसे परिवार में बच्चे को आवश्यकता से अधिक स्नेह और लाड़ प्यार उसको दिया जाता है उसकी सभी आवश्यकताएं पूरी होती है चाहे उसकी जरुरत नहीं हो परन्तु फिर भी आवश्यकता पुरी होती हैं
ऐसी स्थिति में बच्चा जिद्दी, स्वार्थी, आत्म केंद्रित व अपनी आवश्यकता के लिए दूसरों पर निर्भर हो जाता हैं
परिवार की आर्थिक स्थिति
व्यक्तित्व के निर्माण और विकास पर आर्थिक कारकों का बहुत प्रभाव पड़ता हैं निर्धन परिवार के बच्चों को ना तो पौष्टिक भोजन मिल पाता हैं और ना ही शिक्षा व अन्य सुविधाएं पुरी हो पाती हैं वह समाज में निम्न कोटि के समझे जाते है
जिससे उनका शारीरिक, मानसिक, सामाजिक विकास नहीं हो पाता हैं और उनमे हीनता की भावना आ जाती है उन्हें अपनी छोटी से छोटी इच्छाओं का भी दमन करना पड़ता हैं जिससे उनका व्यक्तित्व संकुचित हो जाता हैं
इसके विपरीत संपन्न परिवार के बच्चों की समस्त आवश्यकताएं पूरी होती हैं उन्हें शिक्षा व अन्य सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं जिससे उनमे सुरक्षा, आत्मविश्वास व जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण उत्पन्न होता है
लेकिन अत्यधिक धनी परिवार के बालक प्राय: जिद्दी, घमंडी, आलसी, आराम पसंद व फिजूलखर्च करने वाले होते हैं
विद्यालय
बालक के व्यक्तित्व विकास पर विद्यालय का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है बालक के व्यक्तित्व पर विद्यालय के वातावरण, शिक्षकों, सहपाठियों और उसकी मित्रों का बहुत प्रभाव पड़ता हैं
विद्यालय का वातावरण – विद्यालय का वातावरण परिवार के वातावरण से अलग होता हैं प्रत्येक विद्यालय में अनुशासन के लिए कुछ नियम होते हैं जिनका पालन प्रत्येक बालक को करना होता है ऐसे में बालक विद्यालय में जाकर अनुशासन सीखता हैं
शिक्षक का प्रभाव – विद्यार्थी शिक्षक को आदर्श के रूप में देखते हैं अध्यापक के चरित्र, व्यवहार और व्यक्तित्व का विद्यार्थियों पर बहुत गहरा पभाव पड़ता हैं अगर शिक्षक विद्यार्थियों के प्रति स्नेह, सहानुभूति पूर्ण और मधुर व्यवहार करते है
तो इससे विद्यार्थियों का सर्वागींण विकास होता है इसके विपरीत यदि शिक्षक कठोर, रुखा व बुरा व्यवहार करते है तो बालक के व्यक्तित्व का विकास अरुद्ध होता हैं और ऐसे शिक्षक के प्रति बच्चे तिरस्कार व असम्मान की भावना रखते हैं
सहपाठियों का प्रभाव – विद्यालय में विभिन्न सामाजिक, धार्मिक व आर्थिक पृष्ठभूमि के बच्चे आते है और वह अपने साथ विभिन्न प्रकार की बातें, आदतें साथ लेकर आते हैं तब सहपाठियों के संपर्क में आकर बालक अनेक अच्छी-बुरी आदतों को सीखता हैं
जहाँ एक ओर मित्रता, सहयोग, नेतृत्व, साहस, सहानुभूति, अनुशासन सीखता हैं वही दुसरी ओर चौरी करना, झूठ बोलना, ईर्ष्या आदि गलत आदतें भी सीख सकता हैं
मित्रों का प्रभाव – सहपाठियों के अतिरिक्त कक्षा में कुछ ऐसे भी बच्चे होते हैं जो बालक के मित्र होते हैं बच्चे के मित्र जैसे आचरण वाले होंगे बालक में भी वही गुण विकसित होंगे
यदि उसके मित्र अच्छे गुण वाले होंगे तो उसमे भी अच्छे गुण विकसित होंगे और यदि बुरे गुण वाले मित्र होंगे तो बालक में भी बुरे गुण विकसित होंगे
समाज
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है परिवार और विद्यालय के बाद बालक पर समाज का व्यापक प्रभाव पड़ता है समाज के नियम और मान्यताएं व्यक्ति के व्यक्तित्व पर विशेष रूप से प्रभाव डालते है
प्रत्येक समाज में व्यक्तियों के व्यवहार और विचार में अंतर देखा जा सकता हैं भारतीय समाज में जाति व्यवस्था का भी व्यक्ति के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ता हैं
पास-पड़ोस – बालक के व्यक्तित्व पर पास-पड़ोस का भी प्रभाव पड़ता है यदि पास पड़ोस में लोग सभ्य, शिक्षित व अच्छे आचरण वाले होते हैं तो बालक में अच्छे गुणों का विकास होता है इसके विपरीत पास-पड़ोस में झगड़ालू,
असभ्य, अपराधी या अन्य बुरे गुणों वाले व्यक्ति रहते है तो बालक में बुरे गुण विकसित होने लगते है
सांस्कृतिक कारक या संस्कृति
प्रत्येक समाज की एक विशेष संस्कृति होती है जिसका संबंध रीति-रिवाजों, आदतों, परम्पराओं, रहन-सहन और तौर-तरीकों से होता है हर देश और राज्य की संस्कृति अलग होती है प्रत्येक संस्कृति के अपने विशिष्ट नियम व आदर्श होते हैं
किसी संस्कृति में जो कार्य अच्छे माने जाते हैं वही कार्य अन्य संस्कृति में बुरे हो सकता है उदहारण के लिए, विदेशी संस्कृति में जो अच्छी चीजे होती हैं उनको भारतीय संस्कृति में अच्छा नहीं समझा जा सकता है
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निष्कर्ष
यह लेख मुख्य रूप से व्यक्तित्व के विकास को प्रभावित करके वाले कारक या निर्धारक को समझाने के लिए लिखा गया हैं नई शिक्षा नीति से पढने वाले स्टूडेंट के लिए यह लेख कम्युनिकेशन स्किल के पपेर के लिए भी उपयोगी है
मैं यह उम्मीद करता हूँ कि कंटेंट में दी गई इनफार्मेशन आपको पसंद आई होगी अपनी प्रतिक्रिया को कमेंट का उपयोग करके शेयर करने में संकोच ना करें अपने फ्रिड्स को यह लेख अधिक से अधिक शेयर करें
नमस्ते! मैं एनएस न्यूज़ ब्लॉग पर एक राइटर के रूप में शुरू से काम कर रहा हूँ वर्तमान समय में मुझे पॉलिटिक्स, मनोविज्ञान, न्यूज़ आर्टिकल, एजुकेशन, रिलेशनशिप, एंटरटेनमेंट जैसे अनेक विषयों की अच्छी जानकारी हैं जिसको मैं यहाँ स्वतंत्र रूप से शेयर करता रहता हूं मेरा लेख पढने के लिए धन्यवाद! प्रिय दुबारा जरुर आयें