स्मृति का अर्थ, तत्व, परिभाषाएं, विशेषताएं ( 2025 ) Smriti Meaning in Hindi Best Guide

स्मृति का अर्थ, तत्व, परिभाषाएं, विशेषताएं ( Smriti Meaning in Hindi ) 2024

Smriti Meaning in Hindi: – स्मृति के अर्थ को एक लाइन में समझाया जा सकता हैं कि किसी चीज को याद रखना स्मृति कहलाता हैं परन्तु, सीखना स्मृति का पूर्व शर्त होती हैं मतलब स्मृति से पहले किसी कार्य या विषय वस्तु को सीखना होता हैं

स्मृति का अर्थ एवं परिभाषा एग्जाम में लिखने के लिए पूछ ली जाती हैं इसीलिए सभी स्टूडेंट्स को यहाँ स्मृति को अच्छे से समझना होगा क्योकि अगर एक बार आप अच्छे से समझ जायेंगे तब आप एग्जाम में उत्तर लिख देंगे

कई बार एग्जाम में उत्तर लिखने के लिए यह प्रश्न दिया जाता है कि स्मृति किसे कहते है? ( Smriti Kise Kahate Hain ).

स्मृति के चरण को समझने से आप स्मृति की प्रक्रिया को अच्छे से समझ सकतें हैं क्योकि स्मृति के चार तत्व हैं सीखना, धारणा, पुन: स्मरण और पहचान |

स्मृति का अर्थ, तत्व, परिभाषाएं, विशेषताएं ( Smriti Meaning in Hindi ) 2024

चलिए अब हम यह जान लेते हैं कि स्मृति क्या है? ( Smriti Kya Hai ) – Meaning Of Smriti in Hindi.

नोट – स्मृति के प्रकार को समझने के लिए आप दुसरा भाग पढ़ सकते हैं जिसमे विस्मरण के साथ साथ स्मृति के प्रकार के बारे में बताया गया है 

स्मृति का अर्थ? स्मृति क्या है? ( Smriti Meaning in Hindi – Memory Meaning in Hindi ) – Smriti in Hindi?

Table of Contents

स्मृति वह मानसिक प्रक्रिया हैं जिसके द्वारा हम अपने भूतकालीन अनुभवों ( पूर्व अनुभवों ) को वर्तमान चेतना में लाते हैं स्मृति में हम केवल अपने पूर्व अनुभवों को याद ही नही करते

बल्कि अपने पूर्व अनुभवों ( Past Experiences ) को मस्तिष्क में इकट्ठा करके भी रखते हैं साधारण शब्दों में स्मृति का अर्थ ( मतलब ) किसी चीज को याद रखना होता है सीखना स्मृति का पूर्व शर्त होता हैं

वुडवर्थ – ने कहा कि विगत ( पुराने ) समय में सीखी हुई बातों को याद करना स्मृति है

मैकडूगल – ने कहा कि घटनाओं की उस रूप में कल्पना ( सोचना ) करना, जिस प्रकार भूतकाल में उनका अनुभव किया गया और उन्हें अपने ही अनुभव के रूप में पहचानना ही स्मृति हैं

स्टाउट – ने कहा कि स्मृति एक आदर्श पुनरावृत्ति हैं, जिसमे अनुभव की वस्तुएँ यथासंभव मूल घटना के क्रम और ढंग से पुनस्थापित होती हैं

रायबर्न – ने कहा कि अपने अनुभवों को संचित रखने और उनको प्राप्त करने के कुछ समय बाद चेतना के क्षेत्र में पुन: लाने की जो शक्ति हममे होती है उसी को स्मृति कहते हैं

हिलगार्ड और ऐटकिन्सन – ने कहा कि स्मृति का अर्थ है कि वर्तमान में उन अनुक्रियाओं या प्रतिक्रियाओं को प्रदर्शित करना जिनको हमने पहले सीखा था

स्मृति के तत्व ( अंग )/चरण

स्मृति के चार तत्व या अंग हैं

  1. सीखना ( Learning )
  2. धारणा ( Retention )
  3. प्रत्यास्मरण या पुन: स्मरण ( Recall )
  4. प्रत्यभिज्ञा या पहचान ( Recognition )

सीखना ( Learning )

सीखना स्मृति का सबसे पहला तत्व हैं क्योकि बिना सीखे स्मृति नहीं हो सती हैं मतलब सीखने के अभाव में स्मृति की प्रक्रिया नहीं हो सकती क्योकि जिन चीजों को हम पूर्व में सीखते है उन्ही अनुभवों या सीखी हुई बातों को वर्तमान में चेतना में लाना ही स्मृति हैं

अधिगम ( सीखना ) के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ या दशाएँ ( अधिगम ( सीखना ) को प्रभावित करे वाले कारक )

अधिगम ( सीखना )  को प्रभावित करने वाले कारकों को चार वेर्गों में विभाजित किया गया है

  1. शरीर संबंधी कारक
  2. सामाजिक कारक
  3. भौतिक कारक
  4. मनोवैज्ञानिक कारक
सीखने में सहायक शरीर संबंधी कारक

आयु तथा परिपक्कता – अधिगम का सीधा संबंध आयु तथा परिपक्कता से होता है किसी भी कार्य को सीखने तथा करने के लिए एक विशेष शारीरिक क्षमता की जरुरत होती है ये शारीरिक क्षमता हमे एक विषय आयु में परिपक्कता से प्राप्त होती हैं

मतलब प्रत्येक स्तर की परिपक्कता एक निश्चित आयु पर ही प्राप्त होती हैं ऐसे में समुचित परिपक्कता के अभाव में संबंधित कार्य को सीखना संभव नहीं होता हैं

उदहारण के लिए, अगर एक छ: महीने के बच्चे को साइकिल चलाना सीखा जाए तो वह बिल्कुल नहीं सीखेगा क्योकि अभी न उसकी आयु उतनी हैं और न ही वह इतना परिपक्क हैं कि उस काम को सीख सकें और कर सकें

शारीरिक स्वास्थ्य – शारीरिक स्वास्थ्य किसी भी कार्य को सीखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक होता हैं क्योकि जब एक व्यक्ति शारीरिक रूप से स्वास्थ्य होता है तब वह किसी भी कार्य को शीघ्र एंव अच्छी तरीके से कर लेता है

इसके विपरीत जब व्यक्ति अस्वस्थ होता हैं तब वह किसी कार्य को न कर पाता हैं और न ही सीख पाता हैं क्योकि उसे किसी भी काम को सीखने के प्रति रूचि नहीं होती हैं, उत्साह नहीं होता हैं तो ऐसे में किसी भी कार्य को सीखना कठिन हो जाता है

लिंग भेद – देखा जाता है कि भारी कार्य को पुरुष जल्द सीख लेते है जबकि महिलाएं वह सूक्ष्म एंव कलात्मक कार्य में अधिक रूचि लेती है और उन्हें शीघ्र सीख लेती है मतलब प्राय: देखा जाता है कि कठिन मेहनत वाले कार्यों को पुरुष शीघ्र सीख लेते है

परन्तु वे सूक्ष्म व कलात्मक कार्य में अधिक रूचि नहीं लेते इसके विपरीत महिलाएं सूक्ष्म एंव कलात्मक कार्य में अधिक रूचि लेती है और उन्हें शीघ्र सीख लेती है यधपि आधुनिक युग में लिंग भेद का कारक कमजोर होने लगा है

क्योकि अब माहिलाएं व पुरुष प्रत्येक क्षेत्र में अपनी कुशलता दिखाने लगे है

नशे की स्थिति – नशीले पदार्थों का जो लोग अधिक मात्रा में सेवन करते हैं उनके सीखने की क्षमता धीरे धीरे क्षीण ( कमजोर ) हो जाती है और वह किसी कार्य को सीख नहीं पाते है क्योकि उसमे नए कार्यों को सीखने की इच्छा नहीं होती

इसके विपरीत कुछ औषधियां ऐसी भी होती है जिनके सेवन से व्यक्तियों को विभिन्न कार्य या विषयों को सीखने की इच्छा और क्षमता बढ़ जाती है

संवेगों की प्रबलता – संवेगों की प्रबलता की स्थिति में शारीरिक संतुलन बिगड़ जाता है मतलब

जब हम किसी संवेग की स्थिति में होते है तो हमारे शरीर का संतुलन रह नहीं जाता है अथार्थ हमारा शरीर असंतुलित हो जाता है जिसके कारण किसी भी कार्य को सीखने या करने में व्यक्ति रूचि नहीं लेता हैं

सीखने में सहायक सामाजिक कारक

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं और सीखने की प्रक्रिया मे मनुष्य समाज में रहकर बहुत सारी चीजे सीखता है इसीलिए समाज का सीखने पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता हैं

अनुकरण – प्रत्येक व्यक्ति ( विशेष रूप से बालक ) अन्य व्यक्तियों को देखकर मतलब अनुकरण करके विभिन्न कार्य सीखते है इस प्रकार के सीखने को अनुकरण द्वारा सीखना कहा जाता है क्योकि किसी अन्य व्यक्ति को देखकर सीखना हैं

तो यह अनुकरण सामाजिक परिवेश में ही हो सकता है इसीलिए व्यक्ति एकांत में रहकर अनुकरण नहीं कर सकता हैं 

अत: सामाजिक परिवेश सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है मतलब व्यक्ति जैसा अनुकरण करता है या जिन व्यक्तियों का अनुकरण करता हैं उसी प्रकार की प्रक्रिया वह सीख जाता है

निर्देश – सीखने की प्रक्रिया में बच्चो को शिक्षक और अभिभावकों द्वारा दिए जाने वाले निर्देशों से बालक अनेक प्रकार के कार्य सीखते हैं बालकों के अतिरिक्त वयस्क व्यक्ति भी अनेक कार्य विषय विशेषज्ञों के निर्देशों का पालन करके सीखते हैं

प्रशंसा एंव निंदा – व्यक्ति के जिन कार्यों की समाज द्वारा प्रशंसा की जाती है उन कार्यों को अधिकांश व्यक्ति सीखना और करना चाहते है और उसके लिए अधिक प्रयास भी करते हैं इसके विपरीत ऐसे कार्य जिनकी समाज द्वारा निंदा की जाती है

उन कार्यों को व्यक्ति सीखना और करना नहीं चाहता ना ही उसके लिए प्रयास करता है इस प्रकार प्रशंसा अधिगम ( सीखने ) के लिए सहायक कारक है और निंदा अधिगम ( सीखने ) प्रक्रिया में बाधक कारक है

क्योकि प्रशंसा और निंदा समाज के लोगो के द्वारा की जाती है इसीलिए यह दो सामाजिक कारक है

सहयोग – सीखने की प्रक्रिया में सामाजिक कारक सहयोग भी हैं बहुत से कार्य केवल अन्य व्यक्तियों के सहयोग से ही सीखे जा सकते है उचित सहयोग मिल जाने पर कठिन कार्य भी शीघ्र सरलता से सीखा जा सकता हैं

प्रतियोगिता – प्रतियोगिता एक उल्लेखनीय सामाजिक कारक है बहुत से बच्चे विभिन्न कार्यों को प्रतियोगिता के कारण ही सीख जाते है स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना सीखने की प्रक्रिया को गति प्रदान करती है

सीखने में सहायक भौतिक कारक ( भौगोलिक कारक )

सीखने की प्रक्रिया किसी ना किसी भौगोलिक पर्यावरण या भौतिक परिवेश में संपन्न होती है जिसका प्रभाव सीखने की प्रक्रिया पर पड़ना स्वाभाविक है भौगौलिक पर्यावरण में मौसम, सर्दी गर्मी, हवा की तीव्रता, प्रदूषण आदि प्रमुख कारक है

पर्यावरण सम्बन्धी इन कारकों का सीखने की प्रक्रिया पर भिन्न भिन्न रूपों में प्रभाव पड़ता हैं उदहारण के लिए, अगर वातावरण प्रदूषण वाला है बहुत बहुत अधिक धुल, धुआ हैं तो ऐसी स्थिति में सीखने की क्रिया मंद पड़ जायेगी

दुसरा उदहारण, अगर बहुत अधिक गर्मी या सर्दी हैं तो ऐसी स्थिति में भी सीखने की प्रक्रिया कम हो जाती हैं

नोट – जब मौसम या भौगोलिक पर्यावरण के कारक संतुलित अवस्था में होते हैं तब सीखने की क्रिया तीव्र गति से होती हैं 

सीखने में सहायक मनोवैज्ञानिक कारक

सुगमता – यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि मनुष्य सरल व सुगम कार्यों के प्रति आकुष्ट होता हैं सरल कार्यों को व्यक्ति शीघ्रता से सीखता हैं इसके विपरीत कठिनाई से सीखे जाने वाले कार्यों से व्यक्ति बचने का प्रयास करता हैं

विरोध या बाधा – किसी कार्य को सीखते समय अगर किसी प्रकार की बाधा आ जाए तो सीखने की प्रक्रिया अवरुद्ध ( रुक ) हो जाती है या मंद पड़ जाती हैं इसके विपरीत कभी कभी ऐसा होता है कि बाधाओं के उत्त्पन्न होने पर भी व्यक्ति साहस जुटाकर,

परिश्रम के द्वारा उस विषय को सीखने के लिए तत्पर हो जाता हैं इस स्थिति में सीखने की प्रक्रिया तीव्र गति से होती है इस प्रकार बाधा सीखने की प्रक्रिया में अधिक अनुकूल और प्रतिकूल दोनों प्रभाव डालती हैं

विभिन्न क्रियाओं का संगठन – प्रत्येक कार्य में कुछ विभिन्न क्रियाएं सम्मिलित ( शामिल ) होती हैं जब इन क्रियाओं में व्यक्ति एक संगठन स्थापित कर लेता है तो सीखने की प्रक्रिया सुचारू रूप ( तीव्र गति ) से होती हैं

लेकिन अगर व्यक्ति संगठन स्थापित नहीं कर पाता है तब सीखने की प्रक्रिया मंद हो जाती है

सीखने की प्रक्रिया में सहायक शैक्षिक कारक

प्रेरणा – सामान्यत: प्रेरणा की स्थिति में सीखने की प्रक्रिया सुचारू रूप से चलती हैं जबकि प्रेरणा के अभाव में सीखने की प्रक्रिया मंद पड़ जाती हैं

विषय – वस्तु – सरल, सार्थक, ऐसे विषय सामग्री जो हमारे अनुभवों पर आधारित होती हैं और हमारे जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं उनका अधिगम ( सीखना ) शीघ्रता और सरलता से होता हैं

शिक्षण विधि – विषय सामग्री के अनुकूल जो भी उपयुक्त शिक्षण विधि होती है वह अधिगम को प्रभावी बनाती हैं मतलब हमारी विषय सामग्री के लिए जो भी शिक्षण विधि उपयुक्त होती है उसका प्रयोग करके हम किसी कार्य को सीखते है

तब हम आसानी से सीख जाते हैं इसके साथ ही अगर विभिन्न प्रकार की सहायक सामग्री ( द्रश्य श्रव्य सामग्री ) का प्रयोग करके सीखा जाता है तो यह अधिगम को सहज बनाता है इससे अधिगम की प्रक्रिया सरलता और शीघ्रता से होती हैं

अभ्यास – अभ्यास द्वारा अधिगम को सफल बनाया जा सकता है जब हम किसी कार्य को कई बार अभ्यास करते हैं तो उस काम को आसानी से सीख जाते है

लेकिन अभ्यास ना करने पर हम जिन कामो या विषयों को अच्छी तरह से सीखे होते हैं वह भी विस्मृत हो जाते हैं

रूचि – किसी भी विषय सामग्री के सीखने में रूचि महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है रुचिकर कार्य और जिन कार्यों में व्यक्ति की रूचि होती है उन्हें वह शीघ्रता और सरलता से सीखता हैं इसके विपरीत,

अरुचिकर विषय वस्तु और ऐसे कार्य जिनमे व्यक्ति की रूचि नहीं होती उन्हें व्यक्ति नहीं सीख पाता या कठिनाई से सीखता हैं

धारणा ( Retention )

सीखने के बाद धारणा की प्रक्रिया होती है जब हम किसी विषय को सीखते हैं तो इस दौरान, उस विषय के स्मृति चिन्ह हमारे मस्तिष्क में अंकित हो जाते हैं सीखे हुए विषयों का मस्तिष्क में संग्रहित ( अंकित )  रहना ही धारणा कहलाती हैं

जिस विषय की धारणा जितनी प्रबल होगी उसकी स्मृति उतनी अच्छी होगी सभी व्यक्तियों की धारणा क्षमता अलग अलग होती हैं कुछ लोगो में धारणा शक्ति ज्यादा होती हैं

उनकी स्मृति भी अच्छी होती हैं और जिन लोगो की धारणा शक्ति कम होती है उनकी स्मृति भी कमजोर होती हैं

धारणा के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ या दशाएँ ( धारणा को प्रभावित करे वाले कारक )

स्वास्थ – एक स्वस्थ व्यक्ति की धारणा शक्ति अधिक होती है और जब व्यक्ति अस्वस्थता होता है तब उस अस्वस्थता की स्थिति में उसकी धारणा शक्ति क्षीण ( कमजोर ) जाती हैं वह सीखने का प्रयास करता हैं

लेकिन जो कुछ भी वह सीखता है वह उसके मस्तिष्क में धारित नहीं हो पाता हैं मतलब वह मस्तिष्क में स्मृति चिन्हों के रूप में अंकित नहीं हो पाता है

मस्तिष्क की बनावट – अलग अलग व्यक्तियों में मस्तिष्क, कम विकसित या अधिक विकसित वाली स्थिति में होता है विकसित मस्तिष्क स्मृति चिन्हों को आसानी से ग्रहण कर लेता है जिससे धारणा प्रबल होती हैं,

इसके विपरीत अविकसित मस्तिष्क की धारणा कमजोर होती हैं

रूचि – ऐसे विषय जिसमे रूचि होती है ऐसे रुचिकर विषय की धारणा प्रबल होती हैं और अधिक दिन तक स्थाई बनी रहती है इसके विपरीत अरुचिकर विषय की धारणा कमजोर होती हैं

क्योकि इन विषयों को सीखने के लिए व्यक्ति मन लगाकर अधिगम ( सीखना ) नहीं करता हैं, और जिन विषयों में व्यक्ति की रूचि होती है उनकी धारणा प्रबल होती हैं क्योकि उनको मन लगाकर सीखा जाता हैं

इसके विपरीत जिन विषयों में सीखने वाले व्यक्ति की रूचि नहीं होती है उनको व्यक्ति मन लगाकर नहीं सीखता है जिसके कारण उनकी धारणा कमजोर होती है

संबंधित विषय ( उत्तेजना ) का स्वरूप – सार्थक, स्पष्ट. तीव्र एंव अधिक समय तक उपस्थित रहने वाली विषय सामग्री या उत्तेजनाओं की धारणा अधिक प्रबल होती हैं इसके विपरीत ऐसे विषय या उत्तेजनाएं जो निरर्थक,

अस्पष्ट, कम तीव्र और कम समय के लिए उपस्थित होती है ऐसी उत्तेजनाओं की धारणा कमजोर होती हैं

सीखने की विधि – अलग अलग प्रकार के विषय सामग्री को सीखने के लिए अलग अलग विधिया उपयोगी होती हैं विषय सामग्री के अनुकूल जब हम उत्तम और सही विधि का उपयोग सीखने के लिए करते हैं

इन उत्तम और सही विधि के द्वारा सीखे गए विषय की धारणा प्रबल होती है और अधिक दिनों तक हमारे मस्तिष्क में अंकित रहती है इसके विपरीत दोषपूर्ण विधि के द्वारा सीखे गए विषय की धारणा कमजोर होती हैं

धारणा शक्ति की सीमा – कुछ व्यक्तियों की धारणा शक्ति जन्म से ही प्रबल होती है और कुछ व्यक्तियों की धारणा शक्ति अपेक्षाकृत कमजोर होती है ऐसे में जिनकी धारणा शक्ति प्रबल होती है

निश्चित रूप से वह विषय सामग्री को अधिक समय तक धारित करके रखेंगे और जिन व्यक्तियों की धारणा शक्ति कमजोर होगी वह विभिन्न विषय सामग्री को जल्दी भूल जायेंगे

अनुभूति – सुखद अनुभव की धारणा अधिक मजबूत और दुखद अनुभवों की धारणा कमजोर होती है जो हमारे अच्छे अनुभव होते हैं उन अच्छे अनुभवों की यादे बहुत दिनों तक हमारे मस्तिष्क में रहती है जबकि बुरे अनुभवों की यादे हम जल्दी भूल जाते हैं

सीखने की मात्रा – जिन विषयों को हमारे द्वारा अधिक मात्रा में सीखा जाता है उनकी धारणा अधिक और जिन विषयों को कम सीखा जाता है उनकी धारणा कमजोर होती हैं

सामग्री की मात्रा – अधिक मात्रा वाली सामग्री को सीखने के लिए व्यक्ति को अधिक परिश्रम करना पड़ता है जिससे उसकी धारणा मजबूत होती हैं इसके विपरीत कम मात्रा वाली सामग्री ( छोटी विषय वस्तु ) को कम सीखा जाता है जिससे इसकी धारणा कमजोर होती है

निद्रा व विश्राम – हम किसी विषय सामग्री को याद करने के बाद अगर सो जाते हैं या विश्राम कर लेते है तो उसकी धारणा मजबूत होती हैं क्योकि निद्रा या विश्राम लेने पर उस विषय सामग्री को जिसको हमने सीखा हैं उसको मस्तिष्क में मजबूती से अंकित होने के लिए समय मिल जाता हैं

मानसिक तत्परता – जिस विषय सामग्री को सीखने के लिए हम मानसिक रूप से तत्पर होते है उन विषयों की धारणा अधिक होती है क्योकि हम उन विषयों को रूचि लेकर ध्यानपूर्वक सीखते हैं

इसके विपरीत जिस विषय सामग्री को हम बिना तत्परता ( तैयारी ) के सीखते है उनकी धारणा कम होती है क्योकि हम उन विषयों को न तो बहुत ध्यान से सीखते हैं और ही बहुत अधिक उसमे रूचि लेते है

सीखने की गति – सामान्य रूप से जो विषय तीव्र गति से सीखे जाते है उनकी धारणा अधिक प्रबल और स्थायी होती हैं और जो विषय धीमी गति से सीखे जाते हैं मतलब, मंद गति से सीखे गए विषय की धारणा से कमजोर होती हैं

उद्देश्य या प्रयोजन – उद्देश्य के साथ सीखी जाने वाली सामग्री की धारणा अधिक होती है क्योकि सीखने में हमारा एक लक्ष्य होता हैं उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हम सीखते है जो उद्देश्य के साथ विषय सामग्री सीखी जाती हैं उसकी धारणा अधिक होती हैं

इसके विपरीत जब निरूद्देश्य किसी विषय को सीखा जाता हैं तो उसकी धारणा कमजोर और अस्थायी होती है

प्रत्यास्मरण या पुन: स्मरण ( Recall )

पूर्व अनुभवों या पूर्व में सीखी बातों को पुन: स्मृति पटल पर लाना पुन:स्मरण या प्रत्यास्मरण कहलता है मतलब जो कुछ हमने पूर्व में सीखा है उसको हम उसी तरह से याद कर लेते हैं वह पुन:स्मरण कहलाता हैं

प्रत्यास्मरण या पुन: स्मरण को प्रभावित करने वाले कारक ( प्रत्यास्मरण या पुन: स्मरण के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ )

धारणा की प्रकृति – हम पुन:स्मरण उसी सामग्री का करेंगे जो हमारे मस्तिष्क में धारण किया गया हो,

 जिस विषय सामग्री की धारणा अच्छी एंव स्थायी होगी, उस विषय सामग्री के प्रत्यास्मरण ( पुन:स्मरण ) की संभावना भी अधिक होगी इसके विपरीत जिस विषय सामग्री की धारणा अच्छी नहीं होगी उस विषय सामग्री का पुन:स्मरण भी अच्छा नहीं हो पायेगा

शारीरिक अथवा मानसिक स्वास्थ्य – जो व्यक्ति शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति में होते है वह व्यक्ति पुन:स्मरण कर पाते हैं मतलब जो भी सीखी गई समाग्री होती है उसका पुन:स्मरण कर लेते है

इसके विपरीत अगर व्यक्ति शारीरिक अथवा मानसिक रूप से अस्वस्थ होता हैं वह धारणा होते हुए भी प्रत्यास्मरण ( पुन:स्मरण ) नहीं कर पाता हैं जब हम बीमार होते है तब हम बहुत सारी चीजों को याद होने पर भी उस समय,

हमारे मस्तिष्क में वह चीजे नहीं आ पाती हैं मतलब उनका पुन:स्मरण नहीं हो पाता है

संकेत – प्रत्यास्मरण ( पुन:स्मरण ) की प्रक्रिया में संकेत विशेष रूप से सहायक होते हैं यदि हमारे पास किसी विषय से संबंधित पर्याप्त संकेत उपस्थित हों तो उसके प्रत्यास्मरण की प्रक्रिया सरलता से हो जाती है

प्रसंग – अनेक बातें किसी विशेष प्रसंग से संबंधित होती है और जब वह अनुकूल प्रसंग के सामने आने पर उससे संबंधित घटनाएं स्मरण हो आती हैं उदहारण के लिए, कही कोई रेल दुर्घटना हुई हो, उस रेल दुर्घटना की खबर प्रसंग की तरह काम करती है

क्योकि उससे पहले जो कभी कोई रेल दुर्घटना हुई होगी वह मनुष्य को तुरंत स्मरण हो आती हैं

साहचर्य – साहचर्यों की प्रबलता प्रत्यास्मरण ( पुन:स्मरण ) के लिए अनुकूल दशा है मतलब जब हम पुन:स्मरण करते है तो उस दौरान विषय वस्तु से सम्बंधित अगर साहचर्य हमे याद आ जाता है तो वह साहचर्य एक उत्तेजक का कार्य करते है

उस उत्तेजक के कारण हमें बाकि सामग्री याद आ जाती है उदहारण के लिए, अगर किसी बच्चे ने कोई कविता याद की हैं और वह कविता उसको उस समय याद नहीं आ रही हैं जब उसको वह सुननी हैं

तब अगर उसको उस कविता का पहला शब्द या लाइन बता दिया जाए तब ऐसी स्थिति में उसको साहचर्य के कारण पुरी कविता याद आ जायेगी

प्रयास – किसी सीखी गयी विषय वस्तु के प्रत्यास्मरण ( पुन:स्मरण ) के लिए किया गया प्रयास विशेष सहायक होता है मतलब कई बार ऐसा होता है कि हमे उस समय वह चीज याद नहीं आ रही होती है लेकिन अगर हम अपने मस्तिष्क पर जोर डालते हैं

तब हमें वह बात याद आ जाती हैं अथार्थ मस्तिष्क पर जोर डालने पर अनेक बातें याद आ जाती हैं

संवेग – संवेग की अवस्था में संबंधित विषयों का प्रत्यास्मरण ( पुन:स्मरण ) सरलता से होता है उदहारण के लिए, किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर वहां पर उपस्थित लोगों का शोक के कारण अपने किसी प्रियजन की मृत्यु से संबंधित द्रश्य का प्रत्यास्मरण हो आता हैं

परन्तु, कभी कभी संवेग पुन:स्मरण में बाधा उत्पन्न करते है जब व्यक्ति किसी प्रबल संवेग ( शोक, क्रोध आदि ) का अनुभव करता हैं तब वह बहुत सारी बातें याद होते हुए भी उनका पुन:स्मरण नहीं कर पाता हैं

प्रत्यभिज्ञा या पहचान ( Recognition )

यह स्मृति का चौथा तत्व होता है जो कुछ भी हम पुन:स्मरण नहीं कर पाते हैं फिर भी हम उस सीखी हुई बात को पहचान लेते हैं इसीलिए सीखे हुए विषय को पहचानना ही प्रत्यभिज्ञा कहलाती हैं

प्रत्यभिज्ञा को प्रभावित करने वाले कारक ( प्रत्यभिज्ञा के अनुकूल परिस्थितियाँ )

आत्मविश्वाश – जो विषय सामग्री हम सीखते है अगर हमे आत्मविश्वाश हैं तो हम उसकी पहचान कर लेते हैं लेकिन अगर हमे आत्मविश्वाश नहीं होता है कि हम सही बता रहे है या गलत? तब हमे याद होते हुए भी हम सही से उसको पहचान नहीं पाते हैं

मानसिक झुकाव – जब हम किसी विषय के प्रति या किसी विषय को पहचानने के लिए मानसिक रूप से तैयार होते है तो हम उसको जल्दी पहचान लेते हैं लेकिन जब हम मानसिक रूप से तैयार नहीं होते हैं तो हम उस विषय को जल्दी पहचान नहीं पाते है

इसलिए जिस विषय के प्रति हमारा मानसिक झुकाव होता है हम उसे शीघ्र पहचान लेते है

अच्छी स्मृति की विशेषताएँ या लक्षण

तीव्र गति से सीखना – सीखना अथार्थ अधिगम स्मृति का पहला तत्व हैं यदि सीखने की प्रक्रिया सही ( तीव्र गति से ) होती हैं तो स्मृति भी उत्तम होती हैं एक अच्छी स्मृति वाला व्यक्ति किसी भी विषय सामग्री को बहुत शीघ्रता से सीखता हैं

स्थायी धारणा – अच्छी स्मृति के लिए प्रबल धारणा का होना आवश्यक हैं उत्तम स्मृति वाले व्यक्ति की धारणा शक्ति प्रबल और स्थायी होती हैं क्योकि ऐसे व्यक्ति जब किसी चीज को एक बार मस्तिष्क में धारित कर लेते हैं तब वह भूलते नहीं हैं

उत्पादकता या उपादेयता – आवश्यकता पड़ने पर सीखी हुई विषय सामग्री का याद आ जाना उत्पादकता हैं सीखी गयी विषय सामग्री सही समय पर याद ना आए तो उसे अच्छी स्मृति नहीं कहा जाएगा

यथावत पुन: स्मरण – यदि कोई व्यक्ति अपने पूर्व अनुभवों या सीखी हुई सामग्री को ज्यों का त्यों पुन: स्मरण कर लेता हैं तो उसकी स्मृति अच्छी कही जाएगी क्योकि यह अच्छी स्मृति का लक्षण हैं

स्पष्ट एंव शीघ्र पहचान – अच्छी स्मृति वही कही जाएगी जिसमे सीखी गई विषय सामग्री या पूर्व अनुभवों की स्पष्ट एंव शीघ्र पहचान हो सकें उदहारण, अगर हमने किसी व्यक्ति को पहले देखा हैं और वह व्यक्ति अगर हमारे सामने आ जाए तब हम उसको तुरंत पहचान लें ऐसे में हमारी स्मृति अच्छी हैं परन्तु, अगर हम ऐसा न कर पाए तब हमारी स्मृति अच्छी स्मृति नहीं कहलायेगी

व्यर्थ की बातों का विस्मरण – एक अच्छी स्मृति के लिए व्यर्थ की बातों का विस्मरण भी आवश्यक होता हैं अच्छी स्मृति के लिए आवश्यक हैं कि व्यर्थ की बातों को विस्मृत कर दिया जाए तथा केवल सार्थक एंव आवश्यक बातों को ही याद रखा जाए

स्मृति की विशेषताएँ

  1. स्मृति एक मानसिक प्रक्रिया है क्योकि मनुष्य सभी यादें अपने दिमाग में इकट्ठा करता हैं
  2. सीखना स्मृति की पूर्व शर्त होती है क्योकि जब मनुष्य किसी विषय या कार्य को सीखता है तभी वह उसको स्मृति के रूप में मस्तिष्क में याद रख सकता है
  3. यह वातावरण में अर्जित की जाने वाली प्रक्रिया है क्योकि कोई बच्चा जब जन्म लेता हैं तब उसके मस्तिष्क में कोई स्मृति नहीं होती हैं जब वह जन्म के बाद चीजो को सीखता है उसको स्मृति में रखता है
  4. स्मृति अभ्यास की अनुगामिनी होती है मतलब मनुष्य जितना अधिक अभ्यास करता हैं उसकी स्मृति में उतना अधिक वृद्धि होगी
  5. स्मृति किसी व्यक्ति के पुराने अनुभवों को मस्तिष्क में संरक्षित रखना और चेतना के केंद्र में लाने का काम करती है

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निष्कर्ष

स्मृति की प्रक्रिया को समझाने और उसके अर्थ को समझने के लिए यह लेख इन्टरनेट उपयोगकर्ताओं के लिए बहुत महतवपूर्ण हैं अच्छी स्मृति की विशेषताओं को पढ़कर आप स्मृति को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं

नोट – स्मृति के प्रकार और विस्मरण को समझने के लिए हमारे इस लेख का दुसरा भाग जरुर पढ़ें 

मैं यह उम्मीद करता हूँ कि कंटेंट में दी गई इनफार्मेशन आपको पसंद आई होगी अपनी प्रतिक्रिया को कमेंट का उपयोग करके शेयर करने में संकोच ना करें अपने फ्रिड्स को यह लेख अधिक से अधिक शेयर करें

लेखक – नितिन सोनी 

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