संप्रभुता का अर्थ, संप्रभुता क्या है? ऑस्टिन का संप्रभुता सिद्धांत 1 क्लिक में समझें

संप्रभुता का अर्थ, संप्रभुता क्या है? ऑस्टिन का संप्रभुता सिद्धांत 1 क्लिक में समझें

Samprabhuta Ka Arth: – संप्रभुता क्या है? संप्रभुता का अर्थ समझने के लिए राजनीतिक विज्ञान पढने वाले यूजर इन्टरनेट पर जगह जगह घूमते रहतें हैं परन्तु, सरल भाषा में इसके बारे में कुछ पता नहीं चलता हैं

कुछ पढने वाले स्टूडेंट यह जानते होंगे कि राज्य बिना संप्रभुता के राज्य नहीं बन सकता हैं क्योकि संप्रभुता राज्य उन चार तत्वों में से एक तत्व हैं जो किसी राज्य को राज्य बनाने के लिए महत्वपूर्ण होतें हैं जब राज्य को संप्रभुता मिलती हैं तो,

वह राज्य सर्वोच्च शक्ति प्राप्त कर लेता है जिसके बाद वह आन्तरिक और बाहरी दोनों स्थितियों में स्वतंत्र रूप से राज्य के हित में काम करने के काबिल हो जाता हैं ग्रेजुएशन के दौरान संप्रभुता का सिद्धांत समझना बहुत जरुरी होता हैं

संप्रभुता का अर्थ, संप्रभुता क्या है? ऑस्टिन का संप्रभुता सिद्धांत 1 क्लिक में समझें

जिसमें ऑस्टिन का संप्रभुता सिद्धांत एग्जाम के उद्देश्य से अधिक महत्वपूर्ण होता हैं क्योकि बीए प्रथम वर्ष के एग्जाम में अधिकतर इस क्वेश्चन को पूछ लिया जाता हैं कि संप्रभुता की परिभाषा सहित ऑस्टिन का संप्रभुता सिद्धांत बताएं?

अब हम इस लेख को शुरू करते हुए सबसे पहले यह समझ लेतें हैं कि संप्रभुता किसे कहते है?

संप्रभुता क्या है? संप्रभुता का अर्थ एवं परिभाषा ( Samprabhuta Meaning in Hindi? )

संप्रभुता ( Sovereignty ) शब्द लैटिन भाषा के Superanus शब्द से मिलकर बना हैं जिसमें Super का अर्थ सर्वोच्च और Anus का अर्थ शक्ति होता है अथार्थ जिस राज्य के पास संप्रभुता होती हैं वह सर्वोच्च शक्तिशाली राज्य होता हैं

हम सब जानतें है कि संप्रभुता का नाम राज्य के प्राण तत्व में गिना जाता हैं क्योकि किसी राज्य को बनाने के लिए उसके पास चार तत्व होने बहुत महत्वपूर्ण होते है इन चार तत्व में भूमि भाग, संप्रभुता, जनसंख्या और सरकार का नाम शामिल हैं

अगर किसी राज्य के पास संप्रभुता नहीं हैं तो ऐसी स्थिति में हम उसको राज्य नहीं कह सकतें हैं क्योकि संप्रभुता किसी राज्य को सर्वोच्च शक्ति प्रदान करती हैं जिससे राज्य समाज के अंदर अपने नागरिकों के संबंधो का नियमन करता है और,

समाज के बाहर इंटरनेशनल संबंधों का संचालन या बाहरी आक्रमण से हमारी रक्षा करने का काम करता हैं संप्रभुता का उपयोग किसी राज्य में सरकार के द्वारा किया जाता हैं क्योकि राज्य एक ऐसे कल्पना हैं जो दिखाई नहीं देती हैं

परन्तु, सरकार राज्य में राज्य की शक्तियों का उपयोग करती हैं जब राज्य के पास संप्रभुता होती हैं तो वह स्वतंत्रता रूप से बिना किसी दबाब के अपना काम करता हैं

संप्रभुता का विकास कैसे हुआ?

संप्रभुता का विचार आधुनिक युग में पैदा हुआ था परन्तु प्राचीनकाल में अरस्तु ने राज्य को सर्वोच्च सस्था कहकर, राज्य की संप्रभुता का संकेत दिया था उसके बाद मध्यकाल में राज्य की तुलना में चर्च का अधिक बोलबाला था

उस समय सेंट एक्विनास और मार्सिलियो ऑफ पाडुवा ने लोकप्रिय संप्रभुता का समर्थन किया जिसके बाद आधुनिक युग मे

जीन वोंदा – ने अपनों बुक सिक्स बुक्स ऑन रिपब्लिक ( 1576 ) में, सबसे पहले संप्रभुता शब्द का उपयोग करते हुए कहा कि संप्रभुता नागरिक व प्रशासन के ऊपर राज्य की वह सर्वोच्च शक्ति होती हैं जिसके ऊपर कानून का कोई प्रतिबंध न हो,

ग्रेसियस – संप्रभुता उस व्यक्ति की सर्वोच्च शक्ति है जो पुरी तरह से स्वतंत्र हैं उसके काम किसी पर आश्रित नहीं होते हैं उसकी इच्छा का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है

नोट – ग्रेसियस को अंतर्राष्ट्रीय कानून का जनक कहा जाता हैं 

थॉमस हॉब्स – ने अपनी बुक लेविथान ( 1651 ) में वैधानिक संप्रभुता का समर्थन करते हुए कहा कि संप्रभु सर्वोच्च और निरंकुश हैं और जीन वोंदा के संप्रभुता पर लगे प्रतिबंध को भी हटा दिया

जॉन लॉक – ने अपनी बुक टू ट्रीटीज़ ऑफ़ गवर्नमेंट ( 1689 ) में राजनैतिक संप्रभुता का प्रतिपादन करते हुए वैधानिक राजतंत्र का समर्थन करते हुए कहा कि प्रत्येक सरकार का आधार जनसहमति है

नोट – जॉन लॉक को उदारवाद की आत्म कहा जाता है 

रूसो – ने अपनी बुक सोशल कॉन्ट्रैक्ट ( 1762 ) में जन संप्रभुता का प्रतिपादन करते हुए कहा कि राज्य का आधार सामान्य इच्छा हैं 

जॉन ऑस्टिन – ने अपनी बुक लेक्चर्स ऑन जुरिस्प्रूडेंस ( 1832 ) में कहा कि संप्रभुता एक निश्चयात्मक मानव श्रेष्ठ या समूह में मिलती हैं और संप्रभु के आदेश कानून होतें हैं

संप्रभुता दो प्रकार की होती है

  1. आंतरिक संप्रभुता
  2. बाहरी संप्रभुता

आंतरिक संप्रभुता – इसमें राज्य के अंदर, राज्य से अधिक शक्तिशाली कोई नहीं होना चाहिए और राज्य के अंदर सम्पूर्ण जनता, समुदाय, प्रशासन राज्य के आदेश का पालन करने के बाध्य होने चाहिए ह राज्य आंतरिक रूप से संप्रभु होता हैं

मतलब अगर कोई राज्य, राज्य के सम्पूर्ण जनता, समुदाय, प्रशासन को आदेश देता हैं और कोई आदेश प्राप्त नहीं करता हैं वह राज्य आंतरिक संप्रभुता वाला राज्य कहलाता हैं

बाहरी संप्रभुता – इसमें एक राज्य के ऊपर, किसी अन्य बाहरी राज्य का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए वह राज्य अपनी इच्छा के अनुसार स्वतंत्र होकर निर्णय ले सकें वह राज्य बाहरी रूप से संप्रभु होता हैं

क्योकि जो राज्य अपनी निजी इच्छा से, राज्य के लिए निर्णय स्वतंत्र होकर लेता हैं उसके बीच में किसी अन्य राज्य ( देश ) का हस्तक्षेप नहीं होता है वह राज्य बाहरी संप्रभुता वाला राज्य कहलाता हैं

संप्रभुता के लक्षण और विशेषताएँ ( संप्रभुता की विशेषता )

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निरंकुशता – संप्रभुता वाला राज्य एक निरंकुश और असीम राज्य होता हैं क्योकि राज्य अपनी इच्छा के अनुसार स्वतंत्र रूप से काम करता हैं राज्य सर्वोच्च शक्तिशाली हैं और उसके ऊपर कोई क़ानूनी प्रतिबंध नहीं होता हैं

लेकिन कई विचारकों का कहना है कि संप्रभुता पूर्ण रूप से निरंकुश नहीं होता हैं क्योकि लोकतांत्रिक राज्यों में जनता की भागीदारी होती हैं जिसके कारण, उस राज्य की प्रभुसत्ता ( संप्रभु ) पर जनता का दबाब बना रहता हैं

इसीलिए ऐसे राज्य कोई ऐसा निर्णय नहीं ले सकतें हैं जिसमें जनता का हित ना हो

स्थायीत्व – जिस तरह से एक राज्य ( देश ) स्थायी होता है ठीक उसी प्रकार एक संप्रभुता स्थायी होती हैं क्योकि अगर किसी राज्य में संप्रभुता का अंत कर दिया जाए तो उस राज्य का अंत हो जाएगा

अविभाज्यता ( एकता ) – संप्रभुता को विभाजित नहीं किया जा सकता है क्योकि एक राज्य में दो संप्रभु नहीं हो सकते हैं

सर्वव्यापकता – पुरे राज्य में ऐसा कोई मनुष्य नहीं होता हैं जो उस राज्य के आदेशो को मानने से मना कर सकें मतलब किसी राज्य में रहने वाला हर मनुष्य उस राज्य के आदेश का पालन करता हैं

अदेयता – जब तक राष्ट्र है तब तक संप्रभुता किसी को नहीं दी जा सकती हैं अथार्थ किसी राज्य के लिए अपनी प्रभुसत्ता किसी अन्य राज्य को देना असंभव हैं जब तक वह राज्य खुद का अंत न करें

  • गार्डनर – का कहना है कि किसी राज्य के लिए अपनी प्रभुसत्ता का त्याग करना, आत्महत्या के सामान होता है

मौलिकता – एक राज्य को यह पूरा अधिकार होता है कि वह संप्रभु हो क्योकि यह राज्य का मौलिक अधिकार हैं, इसीलिए राज्य संप्रभुता को किसी अन्य राज्य से प्राप्त नहीं करता हैं

 संप्रभुता के प्रकार? ( Types Of Sovereignty in Hindi )

संप्रभुता के चार प्रकार महत्वपूर्ण है

संप्रभुता का अर्थ, संप्रभुता क्या है? ऑस्टिन का संप्रभुता सिद्धांत 1 क्लिक में समझें

  1. नाम मात्र की संप्रभुता
  2. वैधानिक व वास्तविक प्रभुसत्ता
  3. क़ानूनी तथा राजनीतिक प्रभुसत्ता
  4. लोक प्रभुसत्ता

नाम मात्र की संप्रभुता

अधिकतम सवैधानिक व्यवस्था वाले राज्यों में, अध्यक्ष के पास अधिकार या संप्रभुता नाममात्र होती हैं जिसकी वजह से उस अध्यक्ष का केवल नाम चलता है परन्तु, इस स्थिति में अधिकारों पर वास्तविक नियंत्रण किसी अन्य मनुष्य का होता हैं

उदहारण के लिए, भारत के राष्ट्रपति के पास ना मात्र संप्रभुता हैं

वैधानिक व वास्तविक प्रभुसत्ता

वैधानिक संप्रभुता – वह संप्रभुता जिसे राज्य का सविधान किसी एक विशेष व्यक्ति को सर्वोच्च शक्ति के रूप में प्रदान करता हैं, परन्तु, राज्य में सभी कानून उसके नाम से लागु होते हैं

उदहारण के लिए, भारत में कोई योजना प्रधानमंत्री के द्वारा लाई जाती हैं परन्तु इसमें नाम राष्ट्रपति का होता हैं

वास्तविक संप्रभुता – यह संप्रभुता, उस मनुष्य के पास होती हैं जिसे क़ानूनी रूप से संप्रभुता मिलने का कोई अधिकार नहीं होता हैं परन्तु, राज्य की सम्पूर्ण व्यवस्था पर उसका नियंत्रण होता हैं अथार्थ जब किसी मनुष्य के पास केवल वास्तविक रूप से अधिकार होते है तो उसे वास्तविक सम्प्रभुता प्राप्त हैं

उदहारण के लिए, भारत के प्रधानमंत्री के पास वास्तविक संप्रभुता हैं

क़ानूनी तथा राजनीतिक प्रभुसत्ता

क़ानूनी संप्रभुता – यह राजनीतिक संप्रभुता की एक ऐसी व्यवस्था होती हैं जो किसी व्यक्ति या समूह को क़ानूनी के द्वारा अधिकार के रूप में दी गई हो, सवैधानिक राज्यों में सविधान के आधार पर, किसी व्यक्ति या समूह को क़ानूनी रूप से कुछ अधिकार मिलते है जो क़ानूनी संप्रभुता होती है क्योकि यह उस राज्य के क़ानूनी रूप से स्वतंत्र होती हैं

उदहारण के लिए, ब्रिटेन में सम्राट और संसद दोनों क़ानूनी संप्रभु हैं क्योकि केवल संसद क़ानूनी रूप से कानून बनाने का अधिकार नहीं रखती हैं

राजनीतिक प्रभुसत्ता – एक सम्पूर्ण राज्य में, राजनीतिक प्रणाली को हम राजनीतिक प्रभुसत्ता कहते हैं

लोक प्रभुसत्ता

लोक प्रभुसत्ता ( लोकतंत्रात्मक संप्रभुता ) – इस संप्रभुता में राज्य के सविधान की सम्पूर्ण शक्ति जनता के पास होती हैं जिसमे जनता अपने मताधिकार के माध्यम से सविधान को निश्चित करके अपनी शासन व्यवस्था को सुनिश्चित ( चुनती ) करती है

जिसके साथ – साथ संसद पर शासन करने वाली सरकार पर अपना नियंत्रण रखती हैं उदहारण के लिए, भारत में सम्पूर्ण शक्ति जनता के पास हैं

ऑस्टिन का संप्रभुता सिद्धांत? ( Austin’s Sovereignty Theory )

जॉन ऑस्टिन एक आधुनिक युग के एक क़ानूनी संप्रभुता के विचारक (( राजनीतिक विचारक ) थे जो इंग्लैंड से थे

जॉन ऑस्टिन – प्रत्येक कानून पूर्णतः उचित अर्थ में एक व्यक्ति या व्यक्ति समूह की एक स्वतंत्र राजनीतिक समाज के सदस्य या सदस्यों को दी हुई आज्ञा हैं जिसमें वह व्यक्ति या व्यक्ति समूह संप्रभु हैं

सरल शब्दों में समाज में कोई ऐसा व्यक्ति हो, जो पूर्ण रूप से सर्वोच्च शक्तिशाली ( संप्रभु ) या उच्च विचारों का हो, जिसके आदेशो का पालन करने के लिए जनता स्वभाविक रूप से तैयार रहें

मतलब जनता पर आदेश का पालन करने के लिए कोई दबाब न डाला जाए, परन्तु वह व्यक्ति किसी के आदेशों का पालन न करे

ऑस्टिन के संप्रभुता सिद्धांत की विशेषता

  1. हर राज्य ( देश ) के राजनीतिक समाज में संप्रभुता एक महत्वपूर्ण तत्व हैं जिसके बिना राज्य का निर्माण नहीं हो सकता हैं
  2. संप्रभुता एक व्यक्ति या व्यक्ति के समहू में निहित हो सकती हैं परन्तु, जनता संप्रभु नहीं हो सकती हैं
  3. संप्रभुता आंतरिक और बाहरी नियंत्रण से स्वतंत्र ( मुक्त ) होती हैं
  4. किसी व्यक्ति या व्यक्ति के समूह के पास संप्रभुता होने पर, वह जो आज्ञा देता हैं वह कानून बन जाता है
  5. किसी राज्य में मनुष्य को संप्रभुता मिलने पर उसे किसी अन्य मनुष्य में विभाजित नहीं किया जा सकता हैं
  6. राज्य में जिस मनुष्य के पास संप्रभुता हैं उसकी आज्ञा का प्लान राज्य के सभी लोग स्वभाव से करते हो
  7. इस तरह के राज्यों में शासक वर्ग ( वह वर्ग जो राज्य पर शासक करता हैं ) और शासित वर्ग ( वह वर्ग जिसके ऊपर शासक वर्ग शासक करता हैं ) होतें हैं

ऑस्टिन के संप्रभुता सिद्धांत की आलोचना

  1. ऑस्टिन का सिद्धांत पूर्ण रूप से भावनात्मक और क़ानूनी हैं इसीलिए वर्तमान समय में संप्रभुता के लिए ऐसा कोई सिद्धांत लागु नहीं हो सकता हैं
  2. कानून संप्रभु व्यक्ति या समूह ( संसद ) के मात्र कहने से क़ानूनी नहीं होतें हैं इसके साथ साथ कुछ ऐसे पक्षों होते हैं जिनका समर्थन किसी आदेश को कानून बनाने के लिए जरुरी है
  3. ऑस्टिन ने कानून का आधार केवल शक्ति को बताया हैं परन्तु, केवल शक्ति संप्रभुता का माध्यम नहीं हो सकती हैं
  4. ऑस्टिन का सिद्धांत लोक संप्रभुता के विरुद्ध है क्योकि इन्होने कहा कि जनता प्रभुसत्ताधारी नहीं हो सकती हैं
  5. संप्रभुता असीमित नहीं होती हैं क्योकि संप्रभुता के असीमित होने से वह निरंकुश शासन का रूप बन जाती हैं

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निष्कर्ष

इस लेख में संप्रभुता का अर्थ एवं परिभाषा, संप्रभुता का विकास, संप्रभुता के प्रकार, ऑस्टिन का संप्रभुता सिद्धांत, विशेषताएँ और आलोचना पर मुख्य रूप से सरल इनफार्मेशन शेयर किया गया हैं जिसका उपयोग करके,

बीए प्रथम सेमेस्टर के स्टूडेंट अपनी परीक्षा में संप्रभुता से सम्बंधित पर क्वेश्चन का उत्तर लिखने में सक्षम बनते हैं

मैं यह उम्मीद करता हूँ कि कंटेंट में दी गई इनफार्मेशन आपको पसंद आई होगी अपनी प्रतिक्रिया को कमेंट का उपयोग करके शेयर करने में संकोच ना करें अपने फ्रिड्स को यह लेख अधिक से अधिक शेयर करें

लेखक – नितिन सोनी 

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