Samvidhan Ki Paribhasha: – संविधान क्या है? संविधानवाद का महत्व हर देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता हैं जिसको समझने के लिए स्टूडेंट्स को सबसे पहले संविधान को समझना होता हैं
इन्टरनेट पर हजारो की संख्या में लोग संविधान किसे कहते हैं? ढूढ़ते हैं क्योकि एग्जाम में अक्सर यह पूछ लिया जाता हैं कि संविधान से आप क्या समझते हैं? और संविधानवाद से आप क्या समझते हैं?
किसी देश का संविधान उस देश के नियम और कानून का लिखित दस्तावेज होता हैं परन्तु संविधानवाद का अर्थ ( Constitutionalism Meaning )
राज्य में बिना मनमानी किये, राज्य का संचालन उसके संविधान के अनुसार करना संविधानवाद कहा जाता हैं राज्य के अनुसार काम करने वाली सरकार को संवैधानिक सरकार कहा जाता हैं
जब स्टूडेंट्स के सामने यह प्रशन आता हैं कि संविधानवाद क्या हैं? ( Samvidhan Vad Kya Hai ).
तब स्टूडेंट्स इसे अच्छे से न समझने के कारण अधिक मुश्किल समझने लग जाते हैं लेकिन इस लेख में हमने ग्रेजुएशन के स्टूडेंट्स के लिए संविधान और संविधानवाद को अच्छे से एक्सप्लेन किया हैं
संविधान क्या है? संविधान की परिभाषा ( Samvidhan Kya Hai? )
किसी राज्य ( देश ) का संविधान उसके नियम और कानून का एक लिखित दस्तावेज होता हैं जिसके आधार पर उस राज्य में शासन व्यवस्था का संचालन होता है मतलब संविधान के बिना किसी राज्य का संचालन मुश्किल होता हैं
क्योकि हर राज्य के संविधान में उस राज्य के उन सभी नियमों और कानूनों को लिखाने के साथ साथ उस राज्य में सभी शासक के सभी अंगो के अधिकार, कर्तव्य को भी लिखा जाता हैं
इसीलिए हर राज्य में उसके संविधान के आधार पर उसकी शासन व्यवस्था संगठित होती हैं
जॉन ऑस्टिन – ने कहा कि जो नियम सर्वोच्च सरकार की रूपरेखा को निर्धारित करतें हैं उनको संविधान कहते हैं
हरमन फाइनर -ने कहा कि संविधान आधारभूत राजनैतिक संस्थाओ की व्याख्या हैं
लीकाक – ने कहा कि राज्य के ढाँचे को उस राज्य का संविधान कहा जाता हैं
अरस्तु – ने कहा कि संविधान उस जीवन पद्दति का प्रतीक हैं जो किसी राज्य के द्वारा अपने लिए बनाई जाती हैं
संवैधानिक सरकार क्या है? ( संवैधानिक सरकार किसे कहते हैं? )
किसी राज्य में संवैधानिक सरकार का अर्थ सीमित शासन से होता हैं किसी राज्य में केवल उसके संविधान के होने से वहां संवैधानिक सरकार हैं यह नहीं कहा जा सकता है क्योकि राज्य में सरकार तभी संवैधानिक बनती है
जब वह राज्य के संविधान के अनुसार काम करती हैं, राज्य के संविधान के अनुसार सीमित हो, संविधान के द्वारा नियंत्रित होती हैं इसीलिए संवैधानिक सरकार के द्वारा मनमानी ( इच्छा के अनुसार ) शासन नहीं किया जाता हैं
संविधानवाद क्या है? संविधानवाद किसे कहतें हैं? संविधानवाद का अर्थ एवं विशेषताएं ( Constitutionalism Meaning in Hindi )
जब किसी राज्य ( देश ) के शासन का संचालन बिना मनमानी किये, उस राज्य के लिखे हुए संविधान के नियम और सिद्धांत के आधार पर चलाया जाता है उसे संविधानवाद कहा जाता हैं मतलब संविधानवाद एक ऐसा सिद्धांत हैं
जो सरकार को राज्य में मनमानी करने से रोकने का काम करता हैं क्योकि यह सरकार को सीमित बना देता हैं यह सिद्धांत राज्य में सरकार के सर्वोच्च अंग न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका को सशक्त बनाता हैं
यह सिद्धांत मूल में कानून के शासन का सिद्धांत रखता हैं जिससे राज्य में कानून के शासन में राज्य के सभी नागरिको, अधिकारियों को सामान रूप से लाया जा सकें ऐसा इसीलिए होता है जिससे कोई मनुष्य या संस्था,
राज्य के अंदर किसी दुसरे मनुष्य के जीवन, संपति और स्वतंत्रता जैसे नेचुरल अधिकारों पर अपनी मनमानी न कर सकें
कोरी और अब्राहम – स्थापित संविधान के निर्देशों के अनुरूप शासन को संविधानवाद कहा जाता हैं
केनेथ कल्प डेविस – ने अपनी बुक विवेकाधीन न्याय ( 1969 ) में राज्य के अंदर सत्ता ( सरकार ) की शक्ति को सीमित करने के लिए तीन तरीको का उपयोग किया जा सकता हैं
- सीमित करना
- संरचना
- जांच करना
सीमित करना – सभी सरकारी अंगो ( डिपार्टमेंट ) की शक्तियों को सीमित कर देना
संरचना – शक्तियों का उपयोग करने का तरिका और प्रक्रियाओं को निर्धारित करना
जांच करना – जब कोई सरकारी डिपार्टमेंट अपनी शक्तियों का उपयोग कर रहा होता है तब ऐसी स्थिति में हमें किसी अन्य थर्ड पार्टी की जरुरत होती है जो यह जांच कर सकें कि क्या यह सरकारी डिपार्टमेंट अच्छे से काम कर रहा है
संविधानवाद की विशेषताएं? ( संविधानवाद की विशेषताएँ क्या हैं? )
संविधानवाद की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएँ हैं जिनके बिना किसी राज्य में संविधानवाद होना असंभव होता हैं
- संविधानवाद के लिए यह जरुरी होता हैं कि राज्य में स्थित न्यायपालिका निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से काम करें क्योकि ऐसा होने से संविधान का राज्य में उलंघन होने से न्यायपालिका उसको रोक देगी
- संविधानवाद में केवल एक मनुष्य या संस्था के पास शक्तियां नहीं होनी चाहिए बल्कि शक्तियों का विभाजन होना चाहिए
- केवल राज्य में संविधान की उपस्थिति से, संविधानवाद स्थापित नहीं हो जाता उसके लिए राज्य में संविधान के साथ-साथ संवैधानिक सरकार और संविधान के अनुसार शासन चलना महत्वपूर्ण हैं
- संविधानवाद में शक्तियों के केन्द्रीयकरण और निरंकुशता के लिए कोई जगह नहीं होती हैं
- संविधानवाद में किसी स्पेशल मनुष्य की मनमर्जी नहीं चलती है क्योकि संविधानवाद में कानून का शासन होता हैं इसीलिए कानून के अनुसार शासन करना महत्वपूर्ण होता हैं
- प्रजातांत्रिक और राजतंत्रात्मक दोनों तरह के शासन प्रणाली में संविधानवाद हो सकता है बस वहां संविधान होने के साथ साथ, संविधान के अनुसार शासन किया जाता हो
कार्टर और हर्ज – ने कहा है कि राज्य में स्वतंत्र न्यायपालिका और मूल अधिकार दोनों संविधानवाद की सामान्य और जरुरी विशेषता होती हैं –
कार्ल जे . फ्रेडरिक – संविधानवाद से अभिप्राय शक्ति विभाजन, सभ्य शासन अथवा सरकार का आधार होता हैं –
अच्छे संविधान की विशेषताएं ( अच्छे संविधान के लक्षण )
किसी राज्य के पास एक अच्छा संविधान होने की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं होती हैं जिनके बारे में नीचे बताया गया हैं
- संविधान हमेशा परिवर्तनशील होना चाहिए ऐसे संविधान में भविष्य के अंदर संशोधन किये जा सकतें हैं क्योकि किसी भी राज्य का संविधान ऐसा नहीं बनाया जा सकता हैं जो हर परिस्थियों में सही निकले
- संविधान ऐसा होना चाहिए जिसके शब्दों में ऐसे शब्दों का उपयोग न हो जिसका अर्थ एक से अधिक निकलतें हैं मतलब संविधान में भ्रम फैलाने वाले शब्दों का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए
- संविधान में उपयोग होने वाली भाषा सरल होनी चाहिए जिससे लोग उसको अच्छे से समझ सकें वह एक अच्छा संविधान होता है
- संविधान जितना छोटा होता हैं वह अच्छा होता हैं क्योकि संविधान अधिक बड़ा नहीं होना चाहिए
- जिस राज्य में न्यायपालिका स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से काम करती हैं वहां अच्छा संविधान होता हैं क्योकि ऐसा होने से उस राज्य में नागरिको के मौलिक अधिकार और राज्य का संविधान दोनों सुरक्षित रहेंगे
- संविधान ऐसा होना चाहिए जिसमें मनुष्य और राज्य के संबंधो को अच्छे से दर्शाया जाए
- जिस संविधान में राज्य के नागरिको के मौलिक अधिकारों का समावेश होता है वह संविधान अच्छा होता हैं उदहारण के लिए, भारत का संविधान
मैकाले – का कहना है कि क्रांति होने का एक सबसे बड़ा कारण यह होता है कि राष्ट्र आगे बढ़ता रहता हैं परन्तु राज्य का संविधान अपने पुराने स्थान पर बना रहता हैं
संविधान और संविधानवाद में अंतर बताएं? ( संविधान और संविधानवाद में अंतर? )
संविधान ( Constitution ) | संविधानवाद ( Constitutionalism ) |
संविधान एक संगठन का प्रतीक हैं | परन्तु संविधानवाद विचारधारा का प्रतीक हैं |
राज्य में संविधान नियम और सिद्धांत का संकलन है जिसके आधार पर उस राज्य में सरकार की शक्ति को सीमित कर दिया जाता हैं | परन्तु, संविधानवाद में समाज के मूल्यों, विश्वाश और राजनीतिक आदर्शो के मिलने से विचारधारा का निर्माण होता हैं |
राज्य में संविधान एक निश्चित समय में बनाये जातें हैं ( केवल ब्रिटेन के संविधान को छोड़कर ) | राज्य में संविधानवाद, समाज के मूल्यों और आदर्शों के विकास के साथ साथ बदलता रहता हैं |
हर देश का संविधान अलग होता हैं | लेकिन एक समावेश होने के कारण कई देशो का संविधानवाद एक हो सकता हैं |
संविधान में वैधता का आधार कानून होता हैं | परन्तु संविधानवाद में मूल्यों, आस्था और आदेश का प्रतिपादन केवल विचारधारा के आधार पर होता हैं |
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निष्कर्ष
यहाँ हमने संविधान और संविधानवाद में अंतर स्पष्ट करते हुए संविधानवाद को अच्छे से समझाया हैं यह जरुरी नहीं हैं कि अगर किसी देश में संविधान हैं तो वहां संविधानवाद भी होगा क्योकि जब उस देश की सरकार संविधान के नियम और कानून का पालन करके उस देश में शासन करके अपना काम करती हैं तो हम उसे संविधानवाद कहते हैं
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