Justice Meaning in Hindi: – जब हम ग्रेजुएशन की पढाई कर रहे होते हैं तो इस दौरान राजनीतिक विज्ञान के अंदर न्याय का एक महत्वपूर्ण विषय हमें पढना होता हैं जिसमें हम राजनीतिक विज्ञान के अंदर न्याय को समझने का प्रयास करते हैं
इस दौरान लोगो का सवाल यह होता है कि न्याय से आप क्या समझते हैं? कुछ स्टूडेंट्स न्याय ( Justice ) और समानता ( Equality ) दोनों को जोड़कर देखते है परन्तु, ऐसा नहीं है क्योकि यह दोनों अलग हैं
क्योकि जब हम सभी लोगो को एकसमान समझते हुए यह कहते हैं कि पर्याप्त संसाधन सभी लोगो में समान रूप से बाट दिए जाए तो यहाँ हम समानता को परिभाषित करते हैं परन्तु इस स्थिति को न्याय नहीं कहा जा सकता हैं
किसी मनुष्य के साथ ऐसा व्यवहार करना जो उसके लिए बेहतर हैं न्याय कहलाता हैं पॉलिटिकल साइंस में न्याय के कुछ सिद्धांत हैं जिनको हम इस लेख को पढ़कर समझने का प्रयास करने वाले हैं
नोट – पॉलिटिकल साइंस में चीजो को परिभाषित करने वाले लोगो को पॉलिटिकल थिंकर्स या राजनीतिक विचारक कहते हैं क्योकि इनके विचारों को हम सिद्धांत के रूप में पढ़ते हैं
न्याय को हिंदी में अच्छे से समझने के लिए लोग न्याय का क्या अर्थ है? सवाल सर्च इंजन में खोजने लगते हैं परन्तु यह स्टूडेंट कठिन हिंदी के कारण इस Justice in Hindi टॉपिक को अच्छे से समझ नहीं पाते हैं
चलिए अब हम यह समझ लेते है कि न्याय किसे कहते हैं?
न्याय क्या है? ( Justice Meaning in Hindi )
राजनीतिक सिद्धांतों के इतिहास में न्याय एक प्रचीन विचार हैं लेकिन न्याय तब होता है जब किसी मनुष्य को वह दिया जाए जो उसके लिए बेहतर हो, मतलब जो मनुष्य जिसके योग्य ( गुण ) है उसको वह मिलना न्याय होता हैं
न्याय ( Justice ) शब्द लैटिन के Jus ( जस ) शब्द से बना हैं जिसका अर्थ बौंड होता है मतलब सोसाइटी में सभी लोगो एक दुसरे से बंधे हुए हैं अगर किसी मनुष्य के साथ कोई अन्याय होगा तो उसका कारण कोई दूसरा मनुष्य होगा
मध्यकाल में न्याय को धर्म से जोड़कर देखा जाता था इस दौरान लोगो को अंधकार में रखा गया था इसीलिए, मध्यकाल को हम डार्क ऐज ( अंधकार युग ) के नाम से भी जानतें हैं मध्यकाल के बाद आधुनिक काल शुरू होने पर लोगो के बीच पुर्नजागरण किया जाता हैं
इस दौरान लोगो में जागरूकता लाने के लिए थिंकर्स ने बुक्स और पंटिंग के माध्यम से लोगो में गया बाटना शुरू किया जिससे समाज में लोगो की बुद्धि का विकास होने लगा आधुनिक युग में लोगो ने स्वतंत्रता, समानता की डिमांड होने लगी
राजनीतिक थिंकर्स के द्वारा न्याय की परिभाषाएं ( न्याय की परिभाषा )
Salmond ( एलेक्स सैल्मंड ) – जिस मनुष्य जो हक़ हैं उसको वह देना न्याय कहलाता है
प्लेटो और अरस्तु – का कहना है कि न्याय “आनुपातिक न्याय” हैं अथार्थ जो मनुष्य जिसके योग्य हैं उसको वह दो और जो मनुष्य जिसके योग्य नहीं हैं उसको वह मत दो इसे हम कह सकते हैं कि समान मनुष्य के साथ समान और असमान मनुष्य के साथ असमान व्यवहार करना
प्लेटो – परन्तु, मनुष्य के योग्य होने पर उसको वह मिलने में कोई बांधा उत्तपन होना, मनुष्य के साथ अन्याय होना कहलाता हैं एक मनुष्य में मुख्य रूप से चार गुण होने चाहिए – बुद्धि, धर्य, साहस और न्याय
जो सोसाइटी न्याय पर आधारित होती हैं वह एक अच्छी सोसाइटी कहलाती हैं मतलब, राजा और राज्य दोनों न्याय पर आधारित होने चाहिए क्योकि प्लेटो न्याय को सबसे अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं
उदारवादी न्याय की अवधारणा
- न्याय को स्वतंत्रता और अधिकार से जोड़कर देखना शुरू किया
- राज्य के द्वारा किसी भी व्यक्ति से उसका अधिकार नहीं छीना जाएगा क्योकि स्टेट लोग से स्वतंत्रता और समानता का अधिकार छीनता हैं इसीलिए स्टेट का काम न्यूनतम होगा लोग अधिकतम काम खुद कर लेंगे
मार्क्सवादी न्याय की अवधारणा
- समाज में जब समानता होगी तभी समाज न्याय पर आधारित होगा परन्तु ऐसा नहीं होने पर समाज न्याय पर आधारित नहीं होगा
- समाजवादी और तात्विक न्याय पर अधिक ध्यान देते हैं न केवल ध्यान देते है इसके साथ साथ यह अन्य तरह के न्याय के लिए प्राथमिक और आवश्यक समझते है
- मार्क्सवादी न्याय उत्पादन प्रणाली पर आधारित होता है अथार्थ इनका कहना है कि जब समाज के अंदर वर्ग और शोषण की समाप्ति होगी तभी समाज के अंदर समानता आयेगी
वितरण को आधार समझते हुए न्याय को दो भागो में रखा गया है
प्रक्रियात्मक ( अनौपचारिक ) न्याय – इसमें उदारवादी लोग राज्य में बनाये गए कानून के द्वारा मनुष्य को क्या मिल रहा हैं? केवल यह देखे अथार्थ उस कानून का परिणाम ( रिजल्ट ) हमें नहीं देखना है
तात्विक न्याय – यह मार्क्सवाद लोग हर एक तत्व को मनुष्य के पास पहुचने की बात कहते हैं इनका कहना है कि राज्य में बनाये गए कानून के द्वारा मनुष्य को क्या मिल रहा हैं? यह देखना सही है
परन्तु जो मनुष्य को मिला उससे रिजल्ट ( परिणाम ) क्या निकला यह देखना भी जरुरी होता हैं
प्रयोग के आधार पर न्याय के दो भाग हैं
लीगल न्याय – राज्य में सभी कानून, राज्य में रहने वाले मनुष्य को न्याय मिलने के लिए बनाये जाते हैं परन्तु, सभी कानून ऐसे नहीं होते हैं जिससे कुछ लोगो को न्याय मिले उदहारण के लिए, कोई राज्य जो धर्म पर निर्भर नहीं हैं,
वह अपने राज्य के सभी लोगो को देखकर कानून बनाता हैं परन्तु इस कानून को किसी ऐसे राज्य में लागू किया जाए जो राज्य धर्म पर निर्भर हैं तो उस राज्य में वह कानून सही से लागु नहीं हो पायेगा क्योकि उस राज्य के अंदर वह कानून अन्याय होगा
सोशल ( समाजिक ) न्याय – संसाधनों को उस प्रकार से बाटना जिससे जो मनुष्य जिसके योग्य हैं उसको वह मिल सकें अथार्थ समान लोगो के साथ समान और असमान लोगो के साथ असमान व्यवहार करना
अरस्तु – का कहना है कि न्याय तभी होगा जब राज्य से मिलने वाले लाभ सोसाइटी के सभी लोगो के पास मिले और राज्य – राज्य के लोगो का संबंध सही होना चाहिए इन्होने न्याय को मुख्य रूप से दो भागो में बाट दिया हैं
यूनिवर्सल न्याय – न्याय का ऐसा थ्योरी होना चाहिए जो सभी मनुष्य पर लागु हो
पर्टिकुलर न्याय – इसमें न्याय को दो भागो में बाटा गया हैं
Distributive Justice ( वितरणात्मक न्याय ) – इसमें यह देखकर बाटने की बात कहते हैं कि हर मनुष्य के साथ एकसमान व्यवहार करते हुए उसे उसका हक़ मिलना चाहिए
अथार्थ यहाँ Income, Wealth और Opportunities को एक व्यक्ति, व्यक्तियो का समूह और क्लासेज में समाज में सभी मनुष्य में इस तरह से बाट दिया जाए जिसमें जो जिसका हक़ ( योग्य ) हैं उसको वह मिले
- अलग अलग लोगो ने संसाधनों को बाटने पर अपनी बात कही हैं
- समानता के रूप में ( Amartya सेन के द्वारा कहा गया )
- योग्यता को देखकर ( अरस्तु के द्वारा कहा गया )
- मार्किट में मुफ्त Transaction होना ( नौजिक के द्वारा कहा गया )
महत्वपूर्ण प्रशन – जॉन रॉल्स के न्याय सिद्धांत
जॉन रॉल्स ने अपनी बुक ( A Theory of Justice ) 1971 में इनका कहना है कि सोसाइटी में न्याय को तीन चीजो के होने से परिभाषित किया हैं क्योकि जब मनुष्य अज्ञानता का आवरण स्थिति में था
तब उसे इन सभी चीजो की जरुरत नहीं थी परन्तु पुर्नजागरण होने के बाद लोगो को न्याय मिलने के लिए कुछ अधिकार चाहिए होते हैं इनको हम राल्स के न्याय सिद्धांत कहते हैं
Principal Of Liberty ( स्वतंत्रता का सिद्धांत ) : – समाज में रहने वाले सभी लोगो को स्वतंत्रता मिलनी चाहिए
Equal Opportunity To All ( एमसमान अवसर ) : – बिना किसी भेदभाव के सभी लोगो को एकसमान अवसर मिले अथार्थ किसी मनुष्य को कोई विशेष अधिकार न मिले
Reallocation Of Income ( आय का पुनः आबंटन ) : – संसाधनों को उन लोगो में अधिक बाटना चाहिए जो गरीब लोगो में सबसे गरीब हैं और जिन अमीर लोगो के पास अधिक संसाधन हैं
उनसे टैक्स के रूप में पैसा लेकर गरीबो में बाट देना चाहिए परन्तु, अमीर लोगो के ऊपर अधिक टैक्स न लगाया जाए
जॉन रॉल्स के न्याय सिद्धांत ( आलोचना )
ब्रयान बैरी ने आलोचना करते हुए कहा कि जो कम सुविधा ( गरीबो में अधिक गरीब लोग ) वाला समूह है उसकी पहेचान कैसे होगी
नॉर्मल बैरी ने आलोचना करते हुए कहा कि रॉल्स का यह सिद्धांत केवल उदारवादी और पूंजीवादी लोगो के लिए हैं क्योकि यह अमीरों के सुख और गरीबो के दुःख की क्षतिपूर्ति नहीं कर सकता हैं
क्योकि इसमें रॉल्स ने कहा कि अमीरों पर अधिक टैक्स न लगाया जाए जिससे अमीरों की शक्ति घटे
मैकफर्सन ने आलोचना करते हुए कहा कि रॉल्स सोसाइटी मे रॉल्स ने अपने सिद्धांत में जिस तरह वर्ग का विभाजन किया है इससे असमानता को बढ़ने की बात हो रही हैं
नौजिक ने आलोचना करते हुए कहा कि रॉल्स यहाँ लोगो में भेदभाव कर रहे हैं
माईकल वालजर पर सेंडल दोनों ने आलोचना करते हुए कहा कि इस सिद्धांत में रॉल्स हमें परम्पराओ और आकांक्षाओ से अलग कर देता है
सूसन ओकिन ( नारीवादी ) ने आलोचना करते हुए कहा कि रॉल्स ने इसमें पितृसत्ता ( जिसमें नारी को महत्त्व ( अधिकार ) नहीं मिलते ) पर ध्यान नहीं दिया हैं
न्याय के अधिकारिकता का सिद्धांत ( रोबर्ट नौजिक )
रोबर्ट नौजिक ने अपनी बुक एनाकी स्टेट एंड यूरोपिया में, न्याय के अधिकारिकता का सिद्धांत में कहा कि
- जो मनुष्य जिस चीज का हक़ ( अधिकारिक ) रखता है उसको वह मिलना चाहिए
- मनुष्य में उत्पादन के स्तर पर असमानता रहेगी इसको बदलने का प्रयास घातक होगा
- अधिकार को लक्ष्य के अनुसार राज्य ( स्टेट ) के द्वारा निर्धारित करने से मनुष्य की स्वतंत्रता खतरे में आ जायेगी जिससे मनुष्य का न्याय खतरे में होगा
इन सिद्धांत को देने के बाद नौजिक ने कहा कि स्टेट कम से कम ( न्यूनतम ) काम करेगा अथार्थ स्टेट केवल लोगो को सुरक्षा देने का काम करेगा बाकि मनुष्य खुद काम कर लेगा
रोबर्ट नौजिक – ने न्याय को परिभाषित करने के लिए उसको दो जगह बाट दिया
- Historical Theory ( एतिहासिक सिद्धांत ) – इसमें रोबर्ट नौजिक का कहना था कि जिस मनुष्य ने अपने इतिहास में मेहनत किया हैं पैसा कमाया हैं उसको आज में सिक्योर ( सुरक्षित ) करना न्याय कहलायेगा क्योकि उसको उस मनुष्य ने बहुत मेहनत से कमाया हैं
- Accumulative Theory ( साध्य्मुलक सिद्धांत ) – राज्य के द्वारा कोई ऐसा कानून बनना जिसको मानने के लिए मनुष्य पर उस काम को थोपना न्याय नहीं होता हैं क्योकि इसमें राज्य का हस्तक्षेप होगा
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निष्कर्ष
इस आर्टिकल में हमने न्याय क्या है?, न्याय के ऊपर थिंकर्स के विचार, न्याय के प्रकार जिसमें प्रक्रियात्मक, तात्विक लीगल और सोशल न्याय शामिल थे, मध्य और आधुनिक काल में न्याय की भूमिका और जॉन रॉल्स के न्याय सिद्धांत को अच्छे से समझा है
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लेखक – नितिन सोनी
नमस्ते! मैं एनएस न्यूज़ ब्लॉग पर एक राइटर के रूप में शुरू से काम कर रहा हूँ वर्तमान समय में मुझे पॉलिटिक्स, मनोविज्ञान, न्यूज़ आर्टिकल, एजुकेशन, रिलेशनशिप, एंटरटेनमेंट जैसे अनेक विषयों की अच्छी जानकारी हैं जिसको मैं यहाँ स्वतंत्र रूप से शेयर करता रहता हूं मेरा लेख पढने के लिए धन्यवाद! प्रिय दुबारा जरुर आयें
main llb karna chahti hu aapka yah article mujhe bhaut accha lagaa hain
Thank You