प्रक्रियात्मक और विमर्शी लोकतंत्र क्या हैं? ( लोकतंत्र के प्रकार ) Part 3 ( 2024 )

प्रक्रियात्मक और विमर्शी लोकतंत्र क्या हैं? ( लोकतंत्र के प्रकार ) Part 3 ( 2024 )

Procedural Democracy in Hindi: – विमर्शी लोकतंत्र क्या हैं? जब हम लोकतंत्र को राजनीतिक विज्ञान में समझाने का प्रयास करते है तो हमें पता चलता है कि लोकतंत्र ( प्रजातंत्र ) के दो प्रकार होतें हैं

प्रक्रियात्मक और विमर्शी लोकतंत्र, परन्तु वर्तमान समय में लोकतंत्र का केवल पहला रूप प्रक्रियात्मक लोकतंत्र ( Procedural Democracy ) देखने को मिलता है विमर्शी लोकतंत्र दुनिया में किसी देश के अंदर नहीं हैं

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ऐसे सवाल बहुत अधिक सर्च किये जाते हैं परन्तु यह लेख लोकतंत्र का तीसरा भाग है जिसमे विशेष रूप से केवल विमर्शी लोकतंत्र और प्रक्रियात्मक लोकतंत्र के ऊपर चर्चा किया गया हैं बीए में एग्जाम के दौरान इसमें से सवाल पूछ लिया जाता हैं

लोकतंत्र के प्रकार

Table of Contents

  1. प्रक्रियात्मक लोकतंत्र
  2. विमर्शी लोकतंत्र

प्रक्रियात्मक लोकतंत्र की परिभाषा दीजिए? ( Procedural Democracy in Hindi ) – प्रक्रियात्मक लोकतंत्र की परिभाषा?

लोकतंत्र में किसी देश के अंदर जनता का शासन होता हैं जिसे चलाने के लिए देश में चुनाव के माध्यम से वोटिंग होती है और अनेक राजनीतिक दलों में कम्पटीशन होता हैं जिसमे देश के सभी नागरिक अपने पसंदीदा प्रतिनिधि को वोट देते है

जिसके बाद लोगो के द्वारा चुना गया प्रतिनिधि उस देश को संविधान के अनुसार चलाने का काम करते हैं इस पुरी प्रक्रिया को हम प्रक्रियात्मक प्रजातंत्र कहते हैं

प्राचीन समय अवधि के दौरान प्लेटो, अरस्तु, होब्स, जॉन लॉक के समय में लोकतंत्र के अंदर उदारवादी सिस्टम बहुत अधिक चलता था उस समय प्रजातंत्र ( लोकतंत्र ) में लोगो ( जनता ) को बीच में रखकर लागू किया गया 

मतलब लोकतंत्र का एक ऐसा सिद्धांत जिसमे जनता के द्वारा वोटिंग किया जाता है बिना किसी भेदभाव के एक मनुष्य केवल एक वोट देंता था उस दौरान राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना था कि देश को चलाने के लिए एक सिस्टम होना चाहिए जिसको लोकतंत्र का नाम दिया गया

प्राचीन उदारवादी विचार – का कहना था कि व्यक्ति एक विवेकशील ( बुद्धिमान ) प्राणी हैं और वह राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने का इच्छुक तथा योग्य हैं 

परन्तु दुसरे वर्ल्ड वॉर के बीच में कुछ ऐसी सहायक परिस्थितियाँ बन गई जिससे लोकतंत्र का मतलब बदल गया

उदहारण के लिए, जर्मनी में नाजीवाद, इटली में फांसीवाद,

यहाँ लोकतंत्र के नाम पर तनाहशाही शुरू हो गई जिसके कारण लोगो को नेतृत्व का महत्त्व समझ आया क्योकि अगर किसी देश का प्रतिनिधि अच्छा होगा तभी देश का विकास अच्छे से होगा

उस दौरान राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना था कि अब बहुसंख्यक भाग ( जनसंख्या का वह भाग जो उदासीन है ) आ गया है ऐसे लोगो को देश की सरकार से कोई मतलब नहीं होता है उनको केवल अपनी जरुरत पूरा करना है

इसीलिए निर्णय को समझने में लोग असमर्थ थे इस दौरान विशेषज्ञों का कहना था कि नेताओं को लोगो के प्रति उत्तरदायी बनाने के लिए हमें व्यवस्था संरक्षण करना होगा जिससे नेता जनता को जवाब दे सकें

यहाँ राजनीतिक विशिष्ट वर्ग का सिद्धांत शुम्पीटर के द्वारा दिया गया था जिसका समर्थन पेरेटो और मिचल मोसका ने किया राजनीतिक विशिष्ट वर्ग ( सिद्धांत ) लोकतंत्र का एक प्रकार है जिसमे राजनीतिक दलों के बीच कम्पटीशन होता है, जिस दल के पास सही योग्यता होती है आम लोग उसको वोट देते हैं इसे विशिष्ट वर्गीय प्रजातांत्रिक सिद्धांत कहा जाता है

यही सिस्टम सबसे पहले इंग्लैंड ने अपनाया जिसको व्यस्क मताधिकार कहा गया उसके बाद जोसेफ शुम्पीटर ने अपनी बुक ( पूंजीवाद, समाजवाद और लोकतंत्र ) में बताया कि विशिष्ट वर्गीय सिद्धांत प्रक्रियात्मक प्रजातंत्र है

इस सिद्धांत में शुम्पीटर ने प्रक्रियात्मक प्रजातंत्र का मतलब समझाया कि

  • राजनीतिक भागीदारी अधिक होनी चाहिए
  • राजनीतिक रूप से सभी समान है
  • सरकार जवाबदेही होनी चाहिए
  • बहुमत का शासन होना चाहिए

नोटजोसेफ शुम्पीटर ने कहा कि लोग साध्य नहीं बल्कि चुनाव के द्वारा प्रतिनिधि बनाने का साधन है 

यहाँ कहाँ जा सकता है कि प्रजातंत्र को चलाने के लिए इलेक्शन ( चुनाव ) होना जरुरी होता है जिसको पूरा करने के लिए लोगो का वोट देना जरुरी होता है परन्तु, शुम्पीटर ने लोगो को दो भागो में बाट दिया

  1. शासक वर्ग
  2. आम जनता

शासक वर्ग – जिसमे राज्य को चलाने वाले लोग शामिल थे इसीलिए शासक वर्ग को राजनेता कहा गया

आम जनता – जिसमे राज्य के आम लोग शामिल थे जिन्होंने चुनाव के द्वारा लोगो को शासक बनाता है इसीलिए लोग चुनाव के द्वारा राजनेता को नियंत्रण करने का साधन हैं

शुम्पीटर ने अच्छा उदहारण दिया, शुम्पीटर ने कहा कि राजनेता, विक्रेता और जनता, उपभोक्ता के समान होता है क्योकि जिस तरह विक्रेता, उपभोक्ता को पागल बनाता है ठीक उसी तरह एक राजनेता, जनता को पागल बनाते हैं

क्योकि यहाँ श्रम का विभाजन और सूचनाओ में असमानता है जिसके कारण राजनेता और जनता के काम को अलग कर दिया गया है और एक राजनेता को जनता की तुलना में राजनीतिक का अच्छा ज्ञान होता है

ऐसे में राजनेता के द्वारा जनता को आसानी से पागल बनाया जा सकता है एक वोटर ( जनता ), वोट देने से पहले प्रतिनिधि को जांच सकता है परन्तु, अगर जनता चाहे तो राजनेता सेवा करने के लिए मजबूर हो सकते है

प्रक्रियात्मक प्रजातंत्र की विशेषताएं? ( लोकतंत्र की विशेषताएं? ) लोकतंत्र की विशेषताएं बताइए? – प्रक्रियात्मक लोकतंत्र की विशेषताएं?

  1. राज्य में बिल्कुल निष्पक्ष चुनाव होने चाहिए
  2. चुनाव के लिए ऐसी संस्था होनी चाहिए जो पुरी तरह से काम करने के लिए स्वतंत्र हो, इसमें किसी का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए
  3. विधानमंडल ( कानून बनाने ), कार्यपालिका ( कानून लागू करने ), न्यायपालिका ( कानून की जाँच करने ) का काम करते हैं
  4. राज्य ( देश ) में स्वतंत्र मीडिया होनी चाहिए और वहां प्रतिस्पर्धात्मक चुनाव होने चाहिए
  5. क्रियात्मक प्रजातंत्र एक अनुभववादी है क्योकि इसमें आदर्शवाद की बात नहीं होती हैं इसमें लोकतंत्र में क्या करना चाहिए? और जो है वह बेहतर कैसे हो? इसके ऊपर बात होती हैं
  6. समूहों में संगठित होकर लोग कानून व्यवस्था के माध्यम से सरकार के ऊपर दबाब बनाते हैं

हटिंगटन = का कहना है कि सरकार के तीन स्रोत है जो लोकतंत्र में सबको पता होना चाहिए

  • सरकार की सत्ता का स्त्रोत क्या हैं
  • सरकार के द्वारा पुरे किये जाने वाले उद्देश्य क्या है
  • निर्माण करने की प्रक्रिया क्या है

डाहल ( Dahl ) – का कहना है कि प्रजातंत्र का अर्थ है कि सामूहिक तथा बाध्यकारी निर्णय लेने के लिए आत्मनिर्णय की स्वतंत्रता जहाँ नागरिक राजनीती समानता के आधार पर वे कानून तथा नियम बनाने में हिस्सा ले सकते है जिसके अंतर्गत वे एक नागरिक के रूप में रहना चाहते हैं

प्रजातंत्र के दो आधार है 

  1. बहुसंख्यक दृष्टिकोण
  2. बहुलवादी मॉडल

बहुसंख्यक दृष्टिकोण – इसका कहना है कि एक देश में बहुत का शासन होना चाहिए उदारवादी लोकतंत्र का सिद्धांत यह भी कहता है

बहुलवादी मॉडल – इसका कहना है कि जो प्रतिस्पर्धी हित समूह ( इंटरेस्ट ग्रुप ) के द्वारा शासन चलाया जाना चाहिए क्योकि यह लोग राजनीतिक रूप से एक्टिव होते हैं

प्रक्रियात्मक प्रजातंत्र के दो आधार हैं 

  1. राजनीतिक सहभागिता ( Political Participation )
  2. राजनीतिक प्रतिस्पर्धा ( Political Competition )

राजनीतिक सहभागिता ( Political Participation ) – प्राचीनकाल अरस्तु के समय में यूनान के एथेंस में प्रजातंत्र का प्रत्यक्ष रूप ( डायरेक्ट लोकतंत्र ) था क्योकि उस समय अधिक जनसंख्या नहीं थी जिसके कारण,

लोग एक जगह बैठकर निर्णय लिया करते थे यह स्थिति 18वी शताब्दी तक दिखाई देती है परन्तु, जनसंख्या के बढ़ने के बाद ऐसा करना असंभव था इसीलिए यहाँ चुनाव प्रक्रिया को शुरू किया गया पहले यह यूरोप में शुरू हुआ जिसके बाद पुरी दुनिया में फैला

राजनीतिक प्रतिस्पर्धा – यहाँ राजनीतिक दलों के बीच कम्पटीशन होना चाहिए मतलब राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में प्रतिनिधियों का चुनाव होगा इसमें बहुमत का सिद्धांत ( जिसको अधिक वोट मिलेगा वो जीत जाएगा ) का उपयोग होगा

एक मनुष्य के पास एक वोट का अधिकार होगा परन्तु राज्य के हर नागरिक के वोट का मोल ( वैल्यू ) सामान होगा यहाँ प्रतिस्पर्धात्मक संघर्ष होगा राबर्ट डाहल के अनुसार अल्पसंख्यक लोगो का भी विशेष ध्यान रखा जाता है

प्रक्रियात्मक प्रजातंत्र को अनुभववादी मॉडल क्यों कहा जाता हैं?

क्योकि प्रक्रियात्मक प्रजातंत्र का अर्थ स्वतंत्र ( मुक्त ) प्रतिस्पर्धा के माध्यम से, लोगो की सहभागिता से क़ानूनी व्यवस्था के अंतर्गत लोगो को राजनीतिक अधिकार मिलना और इलेक्शन का होना होता है

प्रजातंत्र की सीमा 

  • राजनीतिक निर्णय निर्मताओ की सीमा
  • प्रतिस्पर्धा की सीमायें
  • राजनीतिक सहभागिता की सीमा
  • राजनीतिक संस्थाओं में सीमा

प्रक्रियात्मक प्रजातंत्र का औचित्य

शुम्पीटर ने अपनी बुक में कहा कि प्रक्रियात्मक प्रजातंत्र क्लासिकी से बेहतर है क्योकि क्लासिकल में अल्पसंख्यक समूह पर ध्यान नहीं दिया गया है लेकिन प्रक्रियात्मक प्रजातंत्र में दिया गया हैं

सार्वजानिक हित में सभी मनुष्यों को अपनी समान्य इच्छा नहीं होती हैं लोग यह नहीं जानते है कि जनता की इच्छा क्या है इसीलिए हटिंगटन का कहना है कि प्रक्रियात्मक प्रजातंत्र की आलोचना

इस आधार पर होती है कि अकुशल सरकार, भ्रष्ट, फ़र्जी सरकार इस आधार पर सत्ता में आ जाती है क्योकि लोगो को समान्य इच्छा का ज्ञान नहीं होता हैं ऐसे में सरकार को वोट मिलता हैं वह जीतकर भ्रष्टाचार करना शुरू कर देते हैं

प्रक्रियात्मक प्रजातंत्र की आलोचना

  • प्रक्रियात्मक प्रजातंत्र में बहुमत का सिद्धांत होता है परन्तु ऐसे में बहुमत की तानाहशाही भी हो जाती हैं जिसके कारण अल्पसंख्यक को महत्त्व नहीं मिलता है
  • यह प्रक्रिया शुद्ध नहीं है क्योकि भ्रष्ट, फ़र्जी सरकार, अकुशल सरकार जनता को अपनी बातों में फसाकर उनसे वोट लेती हैं
  • प्रक्रियात्मक प्रजातंत्र में कई बार न्यायधीश सिस्टम भी राजनेता के चमचे बन जाते है
  • संस्थागत आवश्यकताओं की सूची बन जाती है
  • ब्राड रोथ के अनुसार, हमे जबाबदेही को सुनिश्चित करना होगा क्योकि कह दिया जाता है कि नेता जबाबदेही है परन्तु इस बात को कोई नहीं समझता हैं
  • दूरगामी उद्देश्यों को धुंधला कर दिया जाता है क्योकि हमारे उद्देश्यों ( जिनके राजनेता जीतने से पहले प्रॉमिस करते हैं ) उनको पूरा नहीं किया जाता है
  • जोन हार्ट इली ने प्रजातान्त्रिक समाज का विचार में कहा कि समाज को सबसे पहले प्रजातान्त्रिक तरह से बनाना होगा
  • एडवर्ड रुबिन ने कहा कि प्रजातंत्र का सिद्धांत आदर्शवादी के रूप में होना चाहिए

विमर्शी लोकतंत्र की परिभाषा क्या है? विमर्शी लोकतंत्र क्या हैं? ( Deliberative Democracy in Hindi )

यह एक उदारवादी के द्वारा दिया गया विचार हैं जोसेफ एम. बेसट ने वर्ष 1981 में, शुम्पीटर के प्रक्रियात्मक सिद्धांत की आलोचना करते हुई विमर्शी प्रजातंत्र का सिद्धांत दिया

जिसका समर्थन हैबरमास, डेविड हेल्ड, जॉन रॉल्स ने किया क्योकि अगर किसी ठोस नीति का निर्माण करना है तो उसके लिए केवल प्रक्रियात्मक प्रजातंत्र काफी नहीं हैं इसीलिए अगर हम वोटिंग को केंद्र बिंदु मानकर चलते है तो जनता तो वोट कर देगी

परन्तु राज्य ( देश ) में जो कानून बन रहे है यह जरुरी नहीं है कि वह जनता के अनुसार बन रहे है इसीलिए विमर्शी प्रजातंत्र का सिद्धांत आया जिसमे वैध कानून बनाने के लिए बहुआयामी द्रष्टिकोण ( जनता से विमर्श ) करना होगा

इसीलिए सार्वजानिक विचार विमर्श होने चाहिए क्योकि यह जनता को सूचना प्रदान करता हैं परन्तु कुछ लोगो का यह कहना है कि विमर्शी प्रजातंत्र वामपंथी राजनीति हैं क्योकि इसमें सीधे राजनीति में जनता के भाग लेने की बात कही |

हाँ, अगर हम किसी विषय पर विचार विमर्श करना चाहते है तो हमे उसके बारे में पता होना चाहिए मतलब विमर्शी प्रजातंत्र में जनता को व्यापक प्रलेखन ( रिसर्च ) करना होगा यह विमर्शी प्रजातंत्र प्रक्रिया के साथ साथ प्रक्रिया के परिणाम पर भी जोर देता हैं

परन्तु प्रक्रियात्मक प्रजातंत्र केवल प्रक्रिया के ऊपर जोर देता है

विमर्शी प्रजातंत्र का उद्देश्य

  • विमर्शी प्रजातंत्र लोकतंत्र को उदारवाद के साथ जोड़कर चालना चाहता है जिसमे यह लोकतंत्र को अधिक मजबूत बनाना चाहता है
  • इसका उद्देश्य है कि विवेक ( बुद्धि ) के द्वारा कानून का निर्माण होना चाहिए जिससे लोग उसको वैधता दें या उस कानून को माने

1990 के दशक में विमर्शी लोकतंत्र सबसे अधिक तेजी के साथ फैलना शुरू हुआ इस दौरान अधिकतर देशो ने इसके ऊपर चर्चा करना शुरू कर दिया था परन्तु, आजतक यह किसी भी देश में लागू नहीं हो पाया है

रॉल्स, हैबरमास, क्रोहेन ने विमर्शी लोकतंत्र को प्रमोट करने में अपनी अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है क्योकि यह विमर्शी लोकतंत्र को नैतिक रूप से सही मानते थे मतलब विमर्श होने से बना कानून सही बनेगा

क्योकि उसको जनता के विमर्श से बनाया गया है यह कानून जनता के ऊपर ही लागू किया जाएगा इसीलिए जनता अपने कानून को ख़राब नहीं बनायेगी

क्रोहेन का कहना है कि सार्वजानिक विचार जिसके अंदर विवेक के द्वारा कानून बनाया गया है वह गलत नहीं होगा क्योकि हैबरमास का कहना है कि विमर्शी लोकतंत्र एक ऐसा स्कोप पैदा कर देगा जहाँ किसी का उत्पीडन नहीं होगा क्योकि यहाँ जनता खुद शासन बना रही हैं

रॉल्स का कहना है कि अगर हम निष्पक्षता और फेयरनेस के साथ विमर्शी लोकतंत्र को लागू करे तो यह विमर्शी लोकतंत्र सफल और अच्छा है

विमर्शी लोकतंत्र को दो भागो में बाटा गया हैं

  • रॉल्स और क्रोहेन
  • हैबरमास और बैनहबिब

रॉल्स और क्रोहेन – इन दोनों ने प्रजातंत्र को उदारवाद से जोड़ने के लिए कहा है क्योकि ऐसा करने से प्रजातंत्र का वास्तविक ( रियल ) रूप जनता के सामने आयेगा जिससे लोग इसको लागू करने में अपना पूरा सहयोग देंगे

रॉल्स का कथन हैं कि अगर स्वतंत्रता और समानता की स्थापना करनी हैं तो हमें उदारवाद के अनुसार प्रजातंत्र की स्थापना करनी होगी

जॉन लॉक – का कहना था कि मनुष्य के नेचुरल अधिकार ( स्वतंत्रता, जीवन और संपति ) प्रजातंत्र में सुरक्षित हो सकते हैं

हैबरमास और बैनहबिब 

हैबरमास ने अपनी बुक ( तथ्यों और नर्मो के बीच ) में कहा कि नेचुरल रूप से लोगो को जो अधिकार है वह मिलने चाहिए और लौकिक प्रभुसत्ता मिलनी चाहिए मतलब लोगो के द्वारा बनाये गए कानून और नियम पर किसी का अधिकार नहीं होना चाहिए लोग दबाब में नहीं होने चाहिए

क्रोहेन का कहना है कि आधुनिक समाज के अंदर स्वतंत्रता होनी चाहिए और स्वतंत्रता को समानता के साथ जोड़ना चाहिए यह उदारवाद के विचार हैं

बैनहबिब – का कहना है कि सामूहिक निर्माण और इच्छा का निर्माण लोगो के मिलने से होता हैं

रॉल्स का कहना है कि न्याय के रास्ते पर चलकर हम लोकतंत्र को मजबूत कर सकते हैं क्योकि इसमें संवैधानिक अनिवार्यता होती हैं

हैबरमास – का कहना है कि प्रक्रियात्मक द्रष्टिकोण के अंदर जब लोग आपस में विमर्श करेंगे तब एक ऐसा स्ट्रक्चर का निर्माण होगा जिसमे जनता आपस में जुड़ेगी ऐसा करने से प्रक्रियात्मक लोकतंत्र को अधिक मजबूती मिलेगी

बैनहबिब – का कहना है कि विमर्शी लोकतंत्र के कुछ फायदे बताये हैं

  • समानता और समतलता लाई जा सकती हैं
  • एक निश्चित विषय पर चर्चा ( विचार – विमर्श ) होते हैं जिससे लोगो को उससे जागरूक होने का अवसर मिलता हैं
  • विमर्श करने से जनता को कानून के असली मतलब के बारे में पता चलता हैं

रॉल्स का कहना है कि लोकतंत्र और उदारवाद का केंद्रीभुत मुद्दा न्याय हैं जिससे सुव्यवस्थित व्यवस्था से समाज चलता है

हैबरमास – का कहना है कि किसी कानून के लागू होने की संभावना इस बात पर निर्भर करती है कि उसको कितने लोगो का समर्थन मिल रहा हैं क्योकि स्थायी तथा सुचारू प्रजातंत्र चलाने के लिए लोगो का समर्थन में होना महत्वपूर्ण हैं, निष्पक्ष प्रतिनिधि चुने जायेंगे और सामूहिक विचार विमर्श के द्वारा कानून बनाया जाएगा

गटमान तथा थॉमसन – ने अपनी बुक ( लोकतंत्र और असहमति ) में कहा कि अगर विमर्शी लोकतंत्र के दौरान विचार विमर्श होते है तो ऐसा करने से,

  • ज्ञान प्रोत्साहित होगा जिससे अधिक लोगो तक यह पहुंचेगा
  • सूचनाओ का आदान प्रदान करेगा
  • समझौते संभव हो सके इसके लिए आपस में सिचुएशन क्रिएट करेगा
  • यह प्रक्रियात्मक होता है क्योकि यह एक प्रक्रिया के अनुसार होता हैं
  • यह तात्विक होता हैं क्योकि इसमें सभी लोगो को अपने विचार रखने के अवसर प्रदान करता है

विमर्शी लोकतंत्र की विशेषताएं? ( लोकतंत्र की प्रमुख विशेषताएं? ) लोकतंत्र की विशेषताओं का वर्णन कीजिए?

  • विमर्शी लोकतंत्र में लोग केवल वोट डालने तक सीमित नहीं रहेंगे वह कानून बनाने के दौरान जब विमर्श होगा तब अपनी राय रख सकते है
  • कानून बनाने के दौरान विमर्श होने से लोगो को फैक्ट्स के बारे में पता चलेगा
  • विचार विमर्श के दौरान जितने लोग उसमे भाग ले रहे हैं उनको एक समान मिलेगा इसीलिए यहाँ गलत और सही कहने वाले सभी लोगो की बात को सूना जाता हैं
  • मनुष्य अपनी बात को विमर्श के दौरान रखने के लिए पुरी तरह स्वतंत्र होता है उसके ऊपर अन्तरिक या बाहरी रूप से कोई दबाब नहीं होता हैं
  • लोकतंत्र के अर्थ जनता के द्वारा बनाया गया कानून से होता है और विमर्शी लोकतंत्र में कानून लोगो के विचार विमर्श से ही बनाया जाता हैं
  • विमर्शी लोकतंत्र में होने वाले विचार विमर्श के दौरान सभी मनुष्य स्वतंत्रता और समानता के साथ भाग ले सकते हैं
  • जब विमर्श के दौरान चर्चा होती हैं तो लोगो को वह सीखने के लिए मिलता है जिसके बारे में उनको पता नहीं हैं
  • विमर्श के दौरान सुचना का आदान प्रदान होता हैं

जोशुआ क्रोहन – ने अपनी बुक ( द गुड पॉलिटी ) में बताया कि क्यो विमर्श लोकतंत्र बेहतर हैं

  • जब हम विमर्श के दौरान अपने विचार देते हैं तो उसके निष्कर्ष के पीछे की शर्त सभी लोग स्वीकार करते हैं क्योकि सभी लोगो के विचार मिलने के बाद निष्कर्ष निकलता है
  • विमर्श के दौरान जब निर्णय लिया जाता है तो उसमे जनता से उसके सही होने या ना होने के बारे में पूछा जाता हैं
  • विमर्श में लॉजिक के साथ काम होता है मतलब इसमें फैक्ट्स शामिल होते हैं
  • विचार विमर्श के दौरान जनता को कानून के बारे में सवाल पूछने, अपने विचार रखने, उसको जानने का पूरा अधिकार होता है और यहाँ लोग किसी मुद्दे से बंधे नहीं होते हैं वह स्वतंत्र हैं
  • विवेकपूर्ण सहमति को स्वीकार करने के लिए यह बेहतर है

विमर्शी लोकतंत्र की आलोचना

क्रोलीन फैरिल्ली – ने कहा कि विमर्शी लोकतंत्र अधिक बड़े स्तर ( व्यापक स्तर ) पर नहीं फ़ैल पाया है

यह विनाशकारी हैं क्योकि जो मामलें देश के राष्टीय हित के साथ जुड़ा है जिसको विमर्श के लिए देश की सुरक्षा के कारण नहीं रखा जा सकता है

यह काल्पनिक है क्योकि वर्तमान समय में हर देश में जनसंख्या करोडो में हैं ऐसी स्थिति में जनता का भागीदारी करना एक कल्पना हैं यह असंभव हैं करोडो लोगो के विचार को समझना, सुनना और साथ बैठकर विचार विमर्श करना लगभग असंभव हैं

Charies Blatberg ( चाल्स व्लैटबर्ग ) – ने विमर्शी लोकतंत्र की आलोचना किया कि

  • विमर्शी लोकतंत्र में कानून बनाने के लिए जनता के साथ विचार विमर्श करना झूठ है क्योकि उसमे हस्तक्षेप अधिक होगा
  • उदारवाद और गणतंत्र को विमर्शी लोकतंत्र अधिक प्रमोट करता है इसका वास्तविक प्रजातंत्र से कोई लेना देना नहीं हैं
  • विमर्शी लोकतंत्र में लोग आत्म स्वार्थी बन जायेंगे क्योकि लोगो को लगेगा कि मेरा बिना निर्णय के कानून नहीं बनेगा समाज में अमीर लोगो का दबदबा बन जाएगा
  • जब विचार विमर्श होंगे उस दौरान कोई ऐसी स्थिति बन जायेगी जो हमारे देश की एकता को ख़तम करने का काम करेगी

विमर्शी लोकतंत्र असफल क्यों हो सकता है?

सार्वजानिक नीति निर्माण के लिए विचार विमर्श करना

विमर्शी लोकतंत्र सफल क्यों हो सकता है?

  • यह समाज को शिक्षित करता हैं
  • यह लोकतांत्रिक रूप से वार्तालाप करवाता हैं
  • नागरिकों तथा सरकार के बीच संबंध स्थापित करता हैं

लोकतंत्र का पहला भाग – उदारवादी लोकतंत्र का विकास, विशेषताएं

लोकतंत्र का दुसरा भाग – लोकतंत्र क्या है? विकास

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निष्कर्ष

इस भाग में हमने मुख्य रूप से विमर्शी लोकतंत्र और प्रक्रियात्मक लोकतंत्र के विषय पर सम्पूर्ण चर्चा किया हैं जिसके बाद लोकतंत्र का विषय सम्पूर्ण होता हैं सभी स्टूडेंट्स के लिए तीनो भाग पढ़ना जरुरी हैं क्योकि एग्जाम के लिए इसका अच्छा से समझना महत्वपूर्ण हैं

मैं यह उम्मीद करता हूँ कि कंटेंट में दी गई इनफार्मेशन आपको पसंद आई होगी अपनी प्रतिक्रिया को कमेंट का उपयोग करके शेयर करने में संकोच ना करें अपने फ्रिड्स को यह लेख अधिक से अधिक शेयर करें

लेखक – नितिन सोनी 

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2 thoughts on “प्रक्रियात्मक और विमर्शी लोकतंत्र क्या हैं? ( लोकतंत्र के प्रकार ) Part 3 ( 2024 )”

    1. पॉलिटिक्स के विषय पर अनेक लेख आपको यहाँ पढने के लिए मिलेगे जो आपकी पढाई में बहुत मदद करेंगे

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