औद्योगिक समाजशास्त्र क्या हैं? विकास, विशेषताएँ, क्षेत्र ( Industrial Sociology ) 2024

औद्योगिक समाजशास्त्र क्या हैं? विकास, विशेषताएँ, क्षेत्र ( Industrial Sociology ) 2024

Industrial Sociology in Hindi: – हमारे समाज में उद्योग, उद्योगवाद और औद्योगीकरण के कारण नए – नए कारखानों, उत्पादन केन्द्रों, उत्पादन संस्थान व संगठन की स्थाना होती गई जिसके कारण, समाज में अधिक बड़े पैमाने पर परिवर्तन संभव हुआ

जिससे हम एक नए समाज के निर्माण को देख रहे हैं इसी वजह से, समाजशास्त्र की उद्योग में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका हैं पाठ्क्रम के अनुसार इसके अध्ययन के लिए समाजशास्त्र की अलग उपशाखा औद्योगिक समाजशास्त्र हैं

अक्सर इन्टरनेट पर हजारों की संख्या में स्टूडेंट्स यह लिखकर सर्च करते हैं कि औद्योगिक समाजशास्त्र नोट्स, औद्योगिक समाजशास्त्र के जनक कौन है, औद्योगिक समाजशास्त्र की परिभाषा, इंडस्ट्रियल सोशियोलॉजी क्या है,

औद्योगिक समाजशास्त्र क्या हैं? विकास, विशेषताएँ, क्षेत्र ( Industrial Sociology ) 2024

औद्योगिक समाजशास्त्र किसे कहते हैं, औद्योगिक समाजशास्त्र की परिभाषा एवं विशेषताएं, औद्योगिक समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए, औद्योगिक समाजशास्त्र की परिभाषा क्या है,

यही कारण हैं कि इस लेख में हमने औद्योगिक समाजशास्त्र के विकास के साथ साथ महत्त्व को भी अच्छे से समझाया है चलिए अब हम औद्योगिक समाजशास्त्र का विकास जान लेते है

औद्योगिक समाजशास्त्र का विकास

18वी शताब्दी के अंत में, जब इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति हुई थी उसके बाद से औद्योगिक समाजशास्त्र का अध्ययन होना शरू हो गया औद्योगिक समाजशास्त्र, समाजशास्त्र की एक विशिष्ट शाखा ( अंग ) हैं

परन्तु औद्योगिक समाजशास्त्र को समझने से पहले हमे छ: अवधारणा को समझना बहुत जरुरी है 

  • औद्योगिक या उद्योग ( Industry )
  • औद्योगिक क्रांति या औद्योगिकरण 
  • कार्ल मार्क्स का वर्ग-संघर्ष सिद्धांत
  • इमाईल दुर्खीम का श्रम विभाजन 
  • मैक्स वेबर का नौकरशाही 
  • औद्योगिक समाज 

उद्योग ( Industry ) –  औद्योगिक शब्द ‘उद्योग’ से सम्बंधित होता हैं उद्योग ( Industry ) शब्द लैटिन भाषा के शब्द Industria से बना हैं जिसका अर्थ कुशलता/स्किल होता हैं प्राय: उद्योग का सम्बन्ध मानव जीवन के आर्थिक पक्ष से लिया जाता हैं

जिसमे अन्य आवश्यकताओ की पूर्ति होती हैं मतलब उद्योग लाभ कमाने के उद्देश्य से किसी वस्तु का उत्पादन करने की प्रक्रिया है,

P. Gisberg – के अनुसार उद्योग को आर्थिक वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिए जटिल और परिष्कृत तरीकों के अनुप्रयोग के रूप में परिभाषित किया जा सकता है

औद्योगिक क्रांति ( Industrial Revolution) – औद्योगिक क्रांति से मतलब उन वैज्ञानिक खोजो तथा विकसित तकनीकों से हैं जिनके द्वारा 18वी शताब्दी के दौरान इंग्लैंड में, परंपरागत ( लधु और कुटीर उद्योग ) का स्थान विकसित या विशाल कारखानों ने लिया 

मतलब औद्योगिक क्रांति वह क्रान्ति थी जिसमे परंपरागत ( लधु और कुटीर उद्योग ) का स्थान विकसित या विशाल कारखानों ने और दस्तकारों ( हाथ से वस्तु बनाने के कलाकार ) का स्थान, मशीनों ने लिया 

जिसके कारण बड़ी मात्रा में ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगो ( जनसंख्या ) का स्थानान्तरण नगरीय शहरों में हो गया, इस दौरान ब्रिटिश समाज, ग्रामीण समाज से बदलकर नगरों वाला देश बना इस दौरान इंग्लैंड में एक पूंजीपति वर्ग उभारकर समाने आया

क्योकि पूंजीपति वर्ग के पास अधिक मात्रा में धन था जिसके कारण इस वर्ग का नियंत्रण उद्योग और मशीनों पर था 

औद्योगिक क्रांति के कारण – इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति होने के कुछ विशेष कारण बताये जा सकते है कि 

  • इंग्लैंड की भौगोलिक दशा के कारण, क्योकि इंग्लैंड चारों तरफ से समुद्र से घिरा था जिसके कारण इंग्लैंड ने कई बंदरगाहों का निर्माण किया जिनका उपयोग करके इंग्लैंड को वस्तुओं के आयत – निर्यात में सहायता प्राप्त हुई
  • इंग्लैंड की जलवायु इतनी अच्छी थी कि कपडा उद्योग के लिए सभी जरुरी कच्चे माल के लिए वह जलवायु अनुकूल थी
  • किसी भी उद्योग की स्थापना के बाद उसका मूल आधार ( सहायक तत्व ) कोयला और लोहा होते हैं जिस स्थान पर कोयले और लोहे की आपूर्ति बेहतर तरीके से होगी वह स्थान कारखानों के लिए एक उचित अनुकूल दशा उत्पन्न करेगा

हाँ, इंग्लैंड की अपेक्षा फ़्रांस में कोयले और लोहे की उपलब्धता अधिक थी परन्तु, इंग्लैंड में तकनीकी कुशलता के कारण, वहां के व्यक्तियों ने अपनी कुशलता के कारण कोयले और लोहे का उपयोग किया और कारखानों के लिए उसको आधार बनाया गया

  • इस दौरान कोयले को निकालने के लिए, इंग्लैंड में बहुत खर्चा होता था परन्तु इसी समय इंग्लैंड में जेम्स वॉट और मैथ्यू बोल्टन ने भाप इंजन का आविष्कार किया जिससे कोयला बाहर निकालने में बहुत मदद मिली
  • इस दौरान इंग्लैंड में लोहे को गलाने के लिए लड़कियों को जलाकर अधिक खर्चा होता था परन्तु, फिर इंग्लैंड में अब्राहम डर्बी के द्वारा आग की भट्टी का आविष्कार किया गया जिससे लोहे को गलाकर उसको मनचाहे रूप में बदलना आसान हो गया
  • इंग्लैंड में इस दौरान कृषि क्रांति हुई, मतलब इंग्लैंड की जागरूक जनता ने कृषि के क्षेत्र में कुछ आविष्कार किये उदहारण के लिए, जेथ्रो टुल्ल (Jethro Tull ) के द्वारा ड्रिल मशीन का आविष्कार |

जिसके कारण इंग्लैंड के ग्रामीण क्षेत्रों में नवीन कृषि तकनीक के कारण बहुत मजदुर बेरोजगार हो गए, यह लोग रोजगार की तालाश में ग्रामीण जगह से नगर में आया इस स्थिति में यह लोग उद्योगों में मजदुर के रूप में कार्य करने लगे

  • इंग्लैंड में क्रांति के बाद, जनसंख्या वृद्धि तेजी से होना शुरू हो गयी जिससे लोगो अपने परिवार के पालन पोषण को पूरा करने के लिए आपूर्ति के साधन को ढूंडना शुरू हो गया इस दौरान आपूर्ति के साधन के रूप में उद्योगों में कदम अधिक लोगो ने बढ़ाया

हम समझ सकते है कि इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति के दौरान औद्योगिकरण हुआ कुछ स्टूडेंट्स को औद्योगिकरण का मतलब अच्छे से समझना चाहिए क्योकि ऐसा करने से आपको इंग्लैंड क्रांति अच्छे से समझ आ जायेगी 

नोट – औद्योगिकरण और इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति का अर्थ एक हैं परन्तु आपको अच्छे से औद्योगिक समाजशास्त्र का विकास समझाने के लिए औद्योगिकरण का मतलब भी समझाया गया है 

औद्योगिकरण ( Industrialization ) – औद्योगिकरण का मतलब अधिक से अधिक उद्योग स्थापित होने की प्रक्रिया होता हैं औद्योगिकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे ग्रामीण समाज औद्योगिक समाज में परिवर्तित होता हैं,

इसमें ग्रामीण समाज में जो हाथ से बनी वस्तुएं हैं या जो उत्पादन की आवश्यक वस्तुएं हैं उन वस्तुओं का उत्पादन औद्योगिकरण में मशीनों के द्वारा किया जाता हैं

मतलब व्यक्ति के जीवन में आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वस्तुओं के निर्माण में अधिक से अधिक मशीनों के प्रयोग होने की प्रक्रिया को औद्योगिकरण कहा जाता है साधारण शब्दों में यह कहा जा सकता है कि 

औद्योगिकरण परिवर्तन की एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे उत्पादन की एक विशाल इकाइयों की स्थापना होती चली जाती हैं औद्योगिकरण के दो आवशयक तत्व होते है 

  • नवीन उद्योगों की स्थापना करना
  • प्राचीन और छोटे उद्योगों को बड़े पैमाने के उद्योगों में परिवर्तित करना

औद्योगिकरण आधुनिक समय की महत्वपूर्ण अवधारणा हैं औद्योगिकरण शब्द की उत्पत्ति उद्योग से हुई हैं इस प्रकार औद्योगिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बड़े पैमाने पर नवीन उद्योगों को प्रारंभ किया जाता हैं और साथ ही छोटे उद्योगों को विशाल उद्योगों में बदला जाता हैं 

विश्व में सबसे पहले इंग्लैंड में औद्योगिकरण का आरंभ हुआ, औद्योगिकरण से पहले समाज एक ग्रामीण समाज था परन्तु, 18वी शताब्दी के अंत में इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के दौरान, औद्योगिकरण हुआ जिसके बाद ब्रिटिश समाज,

ग्रामीण समाज से बदलकर नगरों वाला देश बन गया परन्तु भारत में ब्रिटिश के औद्योगिकरण का उल्टा असर पड़ा क्योकि इस दौरान भारत में उद्योगों का पतन हुआ जिसका कारण यह था कि भारत में लधु और कुटीर उद्योग थे 

जिनमे हाथो से वस्तुओं का निर्माण किया जाता था उस दौरान हाथो से निर्माण होने वाली वस्तुएं, मशीनों से निर्माण होने वाली वस्तुओं के साथ कम्पटीशन नहीं कर पाती थी क्योकि हाथो से निर्मित वस्तुएं मांगी, कम संख्या में तैयार होती थी

जबकि मशीनों से निर्मित वस्तुएं अच्छी, और कम लगत में तैयार हो जाती थी इसी कारण ब्रिटिश औद्योगिकरण में, ब्रिटिश में माल तैयार करके, उसको भारत में सप्लाई किया जाने लगा जिसके कारण भारत के लधु और कुटीर उद्योग चोपट हो गए 

कार्ल मार्क्स ने वर्ग – संघर्ष का सिद्धांत दिया जिसमे कहा कि आज तक के सम्पूर्ण समाज का इतिहास वर्ग-संघर्ष का इतिहास रहा हैं

मार्क्स ने इतिहास के आर्थिक व्याख्या या आर्थिक नियतिवाद के सिद्धांत में इस धारणा का प्रतिपादन किया कि समाज में सदैव, विरोधी वर्गों का अस्तित्व रहा है, एक वर्ग वह हैं,

जिसके पास उत्पादन के साधनों का स्वामित्व हैं और दूसरा वर्ग वह हैं जो केवल शारीरिक श्रम करता है पहला वर्ग सदैव दुसरे वर्ग का शोषण करता है और ये समाज के शोषण वर्ग सदा ही आपस में संघर्षरत रहे हैं

इमाईल दुर्खीम ने अपनी बुक The Division of Labor in Society ( 1893 ) में श्रम विभाजन का प्रकार्यवादी सिद्धांत दिया जिसमे इमाईल दुर्खीम ने व्यवसायों में विभेदीकरण को श्रम विभाजन माना हैं

इमाईल दुर्खीम ने श्रम विभाजन के दो कारण बताये हैं

  1. जनसंख्या के भौतिक घनत्व में वृद्धि 
  2. जनसंख्या के नैतिक घनत्व में वृद्धि 

जनसंख्या के भौतिक घनत्व में वृद्धि – इसमें जनसंख्या जब कम होती है तब उनकी आवश्यकताएँ भी कम होती है और सभी लोग मिलकर उन आवश्यकताओं को पूरा कर लेते है तो विशेष श्रम विभाजन की जरूरत नहीं होती हैं

परन्तु, जब जनसंख्या बढ़ती हैं  तब मनुष्य की आवश्यकताएँ बढ़ती है तो कार्य बढ़ जाते है ऐसी स्थिति में उन सभी कार्यों के बटवारे के लिए हमे श्रम विभाजन की आवश्यकता महसूस होती हैं 

जनसंख्या के नैतिक घनत्व में वृद्धि – जब मनुष्य की आवश्यकता बढ़ती हैं तो समाज का यह नैतिक दायित्व बनता है कि वह समाज के सभी लोगो की आवश्यकताओं को पूरा करें इसीलिए समाज कार्यों का बटवारा करता है

ऐसी स्थिति में जो मनुष्य जिस कार्य के अनुकूल होता है उसको वह कार्य दिया जाता हैं

नोट – श्रम विभाजन का सर्वप्रथम वर्णन एडम स्मिथ ने अपनी बुक “द वेल्थ ऑफ़ नेशन्स’ में किया था इमाईल दुर्खीम का यह सिद्धांत प्लेटो से प्रभावित हैं 

मैक्स वेबर ने अपनी बुक The Theory of Economic and Social Organizations में आधुनिक समाजों की कार्यप्रणाली एंव सत्ता संरचना को समझने के लिए और तार्किक-विधिक सत्ता के आदर्श प्रारूप के रूप में नौकरशाही प्रस्तुत किया 

नौकरशाही का अर्थ Bureau ( कार्यालय ) + cracy ( शासन ) होता हैं मतलब कार्यालय का तंत्र या शासन |

नौकरशाही की परिभाषा – किसी भी संस्था में जब किसी कार्यालय का संचालन अधिकारियों के द्वारा किया जाता हैं तो उस व्यवस्था को नौकरशाही कहा जाता हैं 

नोट नौकरशाही शब्द का सर्वप्रथम उपयोग डी. गोर्ने ने किया था और मैक्स वेबर का नौकरशाही सिद्धांत युक्तिसंगत सिद्धांत पर आधारित हैं 

औद्योगिक समाज – जिस समाज में उद्योग को कृषि की अपेक्षा उद्योग को अधिक प्राथमिकता दिया जाता हैं इस समाज को मुख्य रूप से विकसित समाज को कहा जाता हैं यह एक जटिल समाज होता हैं

भारत में सन् 1850 में जब बम्बई ( महाराष्ट्र ) में सूती कपड़े की पहली मिल लगाई तब औद्योगिक समाज की शुरुआत हुई थी इस समाज में टेक्नोलॉजी, मशीने, और उद्योग धंधे बहुत अधिक होते हैं

प्रिंसटन ने अपनी बुक “Industrial Sociology (औद्योगिक समाजशास्त्र )” में औद्योगिक समाज की परिभाषा देते हुए कहा कि जहाँ मशीन मनुष्य की स्थानापन्न प्रतिनिधि बन जाती हैं

था समाज की संगठनात्मक एंव नियंत्रणात्मक व्यवस्था औपचारिक हो जाती हैं वह समाज नि:संदेह औद्योगिक समाज होगा” 

नोट – सेंट साइमन ( सोशियोलॉजी के पिता ) ऑगस्टे कॉम्टे के गुरु जी थें 

औद्योगिक समाज शब्द की रचना सेंट साइमन ( सोशियोलॉजी के पिता ) के द्वारा ऐसें समाजों के लिए की गई थी, जिनमें उत्पादन के विभिन्न रूपों में मशीनों एंव उद्योग का प्रयोग किया प्राचीनकाल में, 

जब फ्रांस या रूस की क्रांति हुई थी तब वहां बहुत अधिक सामाजिक बदलाव हो रहा था ऐसी स्थिति में सेंट साइमन ने सोचा कि मैं एक ऐसे विषय को तैयार करूंगा जो इन सभी परिवर्तन को एक विषय वस्तु के रूप में अध्ययन कर सकें

मतलब समाजशास्त्र का विचार सर्वप्रथम सेंट साइमन ( सोशियोलॉजी के पिता ) के द्वारा आया था परन्तु, सेंट साइमन ने केवल विचार दिया था इनके विचारों को व्यवहारिक रूप देने का कार्य ऑगस्टे कॉम्टे ( सेंट साइमन के शिष्य ) ने किया था

पूर्व औद्योगिक समाज का कांसेप्ट ( अवधारणा ) सेंट साइमन ( सोशियोलॉजी के पिता ) ने दिया था सेंट साइमन ने यह बताया कि औद्योगिक समाज “पिरामिड के आकार का होता है

पूंजीपति वर्ग 

मध्यम वर्ग 

श्रमिक वर्ग 

मार्क्स का अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत के अनुसार, पूंजीपति व्यक्तियों का उत्पादन के साधनों मतलब उत्पादन या मशीनों के ऊपर नियंत्रण होता है, जिसके कारण वह श्रमिक व्यक्तियों का शोषण करते हैं 

औद्योगिक समाज में पूंजीपति वर्ग मशीन या उद्योग के मालिक ( स्वामी ) होते हैं, इसके नीचे मध्यम वर्ग आता हैं लेकिन मध्यम वर्ग थोड़ा सा श्रमिक वर्ग से अच्छी स्थिति में होता हैं,

उसके बाद श्रमिक वर्ग को रखा जाता हैं डगलस तथा गोल्डनर ने मध्यवर्ग को Neo Class कहा हैं

नोट – यहाँ तक आप सभी औद्योगिक समाजशास्त्र के विकास में महत्वपूर्ण चीजों को समझ चुके हैं परन्तु अब हम औद्योगिक समाजशास्त्र के विकास को स्टेप बाई स्टेप चार लहरों के रूप में समझ लेते हैं 

पहली लहर – इतिहास में इस लहर को ( 1770 – 1820 ) तक समझा जा सकता है क्योकि इस समय के दौरान इंग्लैंड का यह मानना था कि वह नयी टेक्नोलॉजी ( तकनीक ) ज्ञान को केवल अपने तक ही सीमित रखेगा

परन्तु इस दौरान अमेरिका, फ्रांस और स्विट्रलैण्ड देशों ने भी इन नयी तकनीकों को हासिल कर लिया जिसके बाद इन देशो में औद्योगिकरण या औद्योगिक क्रान्ति हुई 

दुसरी लहर – इतिहास में यह लहर लगभग ( 1821 – 1860 ) तक देखी जा सकती है जब यूरोप के लगभग सभी देशों ( रूस, फ्रांस, जर्मनी, स्वीडन, बेलिज्यम ) में औद्योगिकरण या औद्योगिक क्रान्ति हुई 

तीसरी लहर – इतिहास में इस लहर के दौरान कनाडा और जापान में औद्योगिकरण या औद्योगिक क्रान्ति हुई यह लगभग ( 1861 – 1890 ) तक का समय रहा जिसके दौरान यूरोप के अन्य सभी देशों ( नीदरलैण्ड, ग्रीक, डेनमार्क, इटली ) में भी औद्योगिकरण का विस्तार हो रहा था 

चौथी लहर – ( 1891 के बाद ) का समय चौथी लहर में देखा जा सकता है जिसमे औद्योगिकरण का प्रारंभ न्यूजीलैण्ड, भारत, अर्जेंन्टाइना, मैक्सिकों, ऑस्ट्रेलिया, में औद्योगिकरण हुआ 

इसी प्रकार, दुनिया में औद्योगिक क्रान्ति या औद्योगिकरण के कारण औद्योगिक अर्थव्यवस्था का जन्म हो गया जिसने दुनिया के सभी देशों के विकास में अहम् भूमिका निभाई और समाज को एक नया रूप दिया 

परन्तु इसके कारण समाज में प्रगति के साथ साथ कुछ समस्या उत्पन्न हुई ऐसी स्थिति में समाज में हो रहे औद्योगिक परिवर्तन और समस्या के अध्ययन के लिए एक औद्योगिक समाजशास्त्र ( विशिष्ट विज्ञान ) का निर्माण हुआ 

इस दौरान औद्योगिक समाजशास्त्र के विकास में कई विद्वानों ने अमूल्य कार्य करके अहम् भूमिका निभाई परन्तु, जार्ज एल्टन मेयो ( मनोवैज्ञानिक ) का योगदान औद्योगिक समाजशास्त्र में सबसे मुख्य समझा जाता हैं

इसीलिए औद्योगिक समाजशास्त्र का जनक जार्ज एल्टन मेयो को कहा जाता हैं

औद्योगिक समाजशास्त्र क्या है? ( Definition Of Industrial Sociology ) – Meaning Of Industrial Sociology?

औद्योगिक समाजशास्त्र, श्रम या कार्य-संगठनों का समाजशास्त्र अथवा सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था का समाजशास्त्र हैं मतलब समाज की आर्थिक व्यवस्था का अध्ययन औद्योगिक समाजशास्त्र में किया जाता है

औद्योगिक समाजशास्त्र का उद्देश्य, सामाजशास्त्रीय दृष्टिकोण के अनुसार, आर्थिक संरचनाओं और उनसे सम्बंधित परिवर्तनों, मूल्यों एंव परमपराओं का विशेष रूप से अध्ययन करना हैं

अध्ययनों का स्तर – औद्योगिक समाजशास्त्र मुख्य रूप से तीन स्तर से अध्ययन करता हैं

  1. समाज 
  2. समुदाय
  3. श्रमिक 

इनके साथ साथ उद्योगों में उत्पन्न होने वाकी दैनिक समस्याओं जैसे – श्रमिकों की अनुपस्थिति, हड़ताल, तालाबंदी, कारखानों या संगठन सम्बंधित समस्या, औद्योगिक संबंध, मजदुर – मालिक सम्बन्ध, श्रम यूनियन आदि का अध्ययन भी,

औद्योगिक समाजशास्त्र में किया जाता है इसीलिए औद्योगिक समाजशास्त्र का अध्ययन क्षेत्र बहुत व्यापक है

विलबर्ट ई. मूर ( Wilbert Ellis Moore ) ने अपनी पुस्तक Industrial Relations and the Social Order में औद्योगिक समाजशास्त्र की परिभाषा देते हुए कहा कि हमारा उद्देश्य उस वैज्ञानिक ज्ञान का संक्षिप्तीकरण करना है

जिसका प्रयोग उद्योग के सामाजिक पहलू को समझने में किया जाता है औद्योगिक समाजशास्त्र में औद्योगिक तंत्र अथवा व्यवस्था का सामाजिक संगठन और जीवन शैली के रूप में विश्लेषण करने का प्रयास किया जाता हैं यह औद्योगिक व्यवस्था का सामाजिक विश्लेषण हैं 

D.C Miller और W.H Form ने अपनी पुस्तक “industrial sociology” में कहा कि औद्योगिक समाजशास्त्र, अर्थ का समाजशास्त्र हैं 

जे.एच. स्मिथ ( J. H. Smith ) ने अपनी पुस्तक “industrial sociology” में कहा कि औद्योगिक समाजशास्त्र उद्योग से सम्बंधित हैं जो एक सामाजिक व्यवस्था माना जाता हो और जिसमे वह कारक ( तकनीकी, आर्थिक और राजनीतिक )

सम्मिलित हैं, जोकि उस व्यवस्था की संरचना, कार्य और परिवर्तन को प्रभावित करते है 

ऊपर पढी गई परिभाषाओं के आधार पर हम यह कह सकते है कि औद्योगिक समाजशास्त्र, समाजशास्त्र की ही एक शाखा हैं जो औद्योगिक व्यवस्था के फलस्वरूप विकसित हुए सामाजिक संबंधों और उनके प्रभावों का अध्ययन करता हैं 

औद्योगिक समाजशास्त्र के लक्षण ( विशेषताएँ )

  • औद्योगिक समाजशास्त्र, सामान्य समाजशास्त्र की ही एक शाखा हैं
  • यह औद्योगिक संबंधों का समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से अध्ययन कराता हैं
  • अनेक औद्योगिक समाजशास्त्रीयों के अनुसार यह एक व्यवाहारिक विज्ञान हैं
  • अध्ययन की पद्धति वैज्ञानिक होने के कारण यह एक विज्ञान हैं लेकिन मानव से सम्बंधित होने के कारण यह एक समाज विज्ञान हैं
  • यह औद्योगिक व्यवस्थाओं से उत्पन्न समस्याओं का समाधान करने में सहायक होता हैं
  • इसको औद्योगिक संगठन का एक विशेष अध्ययन शास्त्र भी माना जाता है
  • औद्योगिक समाजशास्त्र में औद्योगिक प्रबंध, संचार तथा औद्योगिक मनोविज्ञान का भी अध्ययन किया जाता हैं
  • औद्योगिक समाजशास्त्र फैक्ट्री – व्यवस्था को एक सामाजिक व्यवस्था के रूप में स्वीकार करता हैं

औद्योगिक समाजशास्त्र का क्षेत्र ( Scope Of Industrial Sociology)

औद्योगिक समाजशास्त्र में औद्योगिक समाज का अध्ययन किया जाता है जिसमे सभी प्रकार के औद्योगिक सगठन सम्मिलित हैं जिसके विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया जाता हैं

मिलर और फॉर्म ने औद्योगिक समाजशास्त्र के तीन मुख्य क्षेत्र बताएं है

  1. कार्य समूह या कार्य करने के मुख्य विकसित होने वाले सम्बन्ध
  2. कार्य करने वाले व्यक्तियों के समूह में कर्मचारियों की भूमिका
  3. मशीन एंव यंत्र वाले समाज का सामाजिक संगठन

जे.एच. स्मिथ ( J. H. Smith ) ने औद्योगिक समाजशास्त्र के विषय क्षेत्र को स्पष्ट करते हुए अपनी पुस्तक “industrial sociology” में लिखा है कि औद्योगिक एंव संगठनात्मक परिप्रेक्ष्य में सामाजिक संबंधों का अध्ययन,

एंव यह अध्ययन की यह सम्बन्ध व्यापक समुदाय के संबंधों को किस प्रकार प्रभावित करते हैं, एंव उससे किस प्रकार प्रभावित होते हैं औद्योगिक समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र हैं 

नासो तथा फॉर्म औद्योगिक समाजशास्त्र के विषय क्षेत्र को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि व्यवसायिक समाज विज्ञान की यह एक उपशाखा हैं, इसका एक स्वतंत्र उपक्षेत्र हैं

इस दृष्टि से औद्योगिक समाजशास्त्र के क्षेत्र को व्यवसायिक समाज विज्ञान के रूप में इस तरह से हम देख सकते है कि 

  • कार्य की सामाजिक प्रकृति और उससे सम्बंधित घटनाओं का अध्ययन | उदहारण – बेरोजगारी, विश्राम का अवकाश |
  • व्यक्तिगत व्यवसायों का अध्ययन 
  • व्यवसायिक संरचना तथा व्यक्तिगत व्यवसाय की सामाजिक संरचना का अध्ययन 
  • व्यवसायिक संरचना का विश्लेषण 
  • एक विशेष व्यवसाय का सामाजिक सदस्य के रूप में अध्ययन 

बर्नस ने औद्योगिक समाजशास्त्र के क्षेत्र को पांच भागों विभाजित किया हैं

  • नौकरशाही पर आधारित श्रमिक की प्रवृति व व्यवहारों का अध्ययन 
  • कार्य का अध्ययन 
  • व्यवहार करने वाले समूहों का अध्ययन 
  • औद्योगिक संबंधों का विश्लेषण का अध्ययन 
  • व्यक्ति पर उद्योग के प्रभाव का अध्ययन 

औद्योगिक समाजशास्त्र का महत्त्व

वर्तमान में औद्योगिक समाजशास्त्र औद्योगिकरण की गति तीव्रता से बढ़ रही है सभी देशों में उद्योगों की स्थापना पर विशेष ध्यान देकर अर्थव्यवस्था के विकास के लिए विशेष प्रयास किये जा रहे हैं 

औद्योगिक क्रांति एंव औद्योगिकरण से अर्थव्यवस्था में परिवर्तन होने के साथ साथ नए नए रोजगार के क्षेत्रों का विकास भी हुआ हैं परन्तु, औद्योगिकरण के कारण, अनेक नई समस्याओं को जन्म भी दिया हैं औद्योगिक समाजशास्त्र का वर्तमान में बहुत अधिक महत्त्व हैं

क्योकि औद्योगिक और नगरीय समाजों में औद्योगिक समाजशास्त्र वर्तमान में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता हैं विकसित देशों में यह विज्ञान इतना विकसित हो गया हैं कि अनेक विश्वविद्यालयों में इसे एक प्रथक रूप से सामाजिक विज्ञान के रूप में स्वीकार किया जाने लगा हैं

  • औद्योगिक समाजशास्त्र, औद्योगिक समाज का वैज्ञानिक ज्ञान प्रदान करता है क्योकि औद्योगिकरण ने औद्योगिक समाज को जन्म दिया हैं इस औद्योगिक समाज का क्रमबद्ध अध्ययन औद्योगिक समाजशास्त्र में किया जाता हैं 
  • औद्योगिक समाजशास्त्र, ज्ञान की एक शाखा हैं तथा औद्योगिक समाजशास्त्र में मानव संबंधों का विशिष्ट रूप से अध्ययन किया जाता है ज्ञान की प्रत्येक शाखा का अपना महत्त्व होता हैं जो मानव ज्ञान में वृद्धि करती है
  • औद्योगिक समाजशास्त्र यह बताता है कि औद्योगिक परिस्थिति में व्यक्ति के व्यक्तित्व संचालन, समायोजन किस प्रकार हो, किस प्रकार व्यक्तियों को समुचित रूप से नियोजित किया जाए ताकि उद्योगों में कोई भी तनाव, विद्रोह की स्थिति उत्पन्न न हो
  • औद्योगिक समाजशास्त्र समस्याओं के लिए निवारण में भी सहायक है क्योकि औद्योगिक समाजशास्त्र यह बताता है कि औद्योगिक समस्याओं से सम्बंधित विभिन्न प्रकार की स्थितियों से कैसे निपटा जाए

औद्योगिक समाजशास्त्र की प्रकृति ( Nature Of Industrial Sociology )

एक विज्ञान के रूप में औद्योगिक समाजशास्त्र को समझा जा सकता है क्योकि जिस विषय का क्रमबद्ध अध्ययन वैज्ञानिक पद्धति के द्वारा किया जाता हैं मतलब उसमे वैज्ञानिक पद्धति के द्वारा विश्लेषण करके निष्कर्ष प्राप्त किये जाते हैं

हम सब यह अच्छे से समझ सकते है कि औद्योगिक समाजशास्त्र, समाजशास्त्र की एक उपशाखा हैं, जिस प्रकार समाजशास्त्र एक विज्ञान हैं ठीक उसी प्रकार, औद्योगिक समाजशास्त्र भी एक विज्ञान है क्योकि

  • औद्योगिक समाजशास्त्र में अवलोकन, प्रश्नावली, साक्षात्कार, अनुसूची जैसी वैज्ञानिक पद्धतियों का उपयोग किया जाता हैं
  • इस विषय में घटित घटना के कारण का पता लगाकर उसके परिणाम की व्याख्या भी करते है
  • औद्योगिक समाजशास्त्र के नियमों का उपयोग समाज में सभी जगह समान रूप से किया जा सकता हैं
  • इसके अध्ययन द्वारा भविष्य में उत्पन्न परिस्थितियों और उनके प्रभाव की भविष्यवाणी करना संभव हैं
  • औद्योगिक समाजशास्त्र में सिद्धांतों का परीक्षण और पुन: परीक्षण करना संभव हैं

औद्योगिक सामज की विशेषताएँ

  1. औद्योगिक समाज में प्रत्येक व्यक्ति का अलग अलग कार्य दे रखा होता हैं यह पुरी व्यवस्था श्रम विभाजन के आधार पर टिकी होती है मतलब इसमें जटिल श्रम विभाजन होता हैं
  2. यह व्यवसायिक प्रधान होता है मतलब औद्योगिक समाज में केवल बिज़नस ( उद्योग ) पर ध्यान दिया जाता हैं
  3. औद्योगिक समाज में औपचारिक सम्बन्ध पाए जाते हैं औपचारिक सम्बन्ध का मतलब एक ऐसा सम्बन्ध जो स्वार्थ के लिए बनाया जाता हैं
  4. इसमें व्यवसाय के आधार पर स्तरीकारण पाया जाता है मतलब किसी कंपनी में पहले मालिक होता है, उससे नीचे क्रमश: MD, मैनेजिंग डायरेक्टर, मैनिजर, सेक्रेटरी, लेबर |
  5. औद्योगिक समाज में विजातीयता ( भिन्नता ) पायी जाती हैं मतलब औद्योगिक समाज में समानता नहीं होती है
  6. इसमें द्वितीयक सम्बन्धों की प्रधानता होती है मतलब औद्योगिक समाज में रिलेशन ‘द्वितीयक सम्बन्ध‘ होते हैं द्वितीयक सम्बन्धों का अर्थ अपने काम से काम रखना होता हैं
  7. औद्योगिक समाज में गतिशीलता अधिक पाई जाती है मतलब औद्योगिक समाज में उतार चड़ाव अधिक पाए जाते हैं
  8. इसमें नियंत्रण के औपचारिक साधन होते हैं क्योकि औद्योगिक समाज के सभी मामलें दंड, कानून, पुलिसम न्याय के द्वारा नियंत्रण किये जाते हैं
  9. औद्योगिक समाज में बाजार अर्थव्यवस्था की प्रधानता होती हैं क्योकि इसमें फैक्ट्री में हुए उत्पादन को बाजार में लाया जाता हैं

पी. गिल्बर्ट ने अपनी बुक Fundamentals of Industrial Sociology में औद्योगिक समाज की कुछ विशेषताओं को बताया है

  • औद्योगिक समाज में पूंजी ( पैसा ) का महत्त्व होता है यहाँ प्यार, प्रेम से कोई मतलब नहीं होता हैं, पैसा आ जाये बस |
  • यहाँ श्रम की स्तरीकृत प्रतिष्ठा होती हैं मतलब जो व्यक्ति जितना अच्छा कार्य करता हैं, उसको उतनी अधिक वरीयता दी जाती हैं यहाँ मनुष्य के सुंदर, अच्छी पर्सनालिटी होने से कोई मतलब नहीं होता है बस अच्छा कार्य महत्वपूर्ण हैं
  • इसमें बुद्धि का श्रम की तुलना में अधिक महत्त्व हैं मतलब बुद्धि का उपयोग करके कम मेहनत में अधिक कार्य का महत्त्व हैं
  • औद्योगिक समाज में कड़ी प्रतिस्पर्धा होती हैं मतलब बहुत अधिक कम्पटीशन हैं, यहाँ एक दुसरे से आगे बढ़ने की होड़ मची रहती है
  • औद्योगिक समाज में औपचारिक सम्बन्ध पाए जाते हैं औपचारिक सम्बन्ध का मतलब एक ऐसा सम्बन्ध जो स्वार्थ के लिए बनाया जाता हैं
  • औद्योगिक समाज के कारण वर्ग व्यवस्था का उदय हो गया, क्योकि जिनका मशीनों ( उद्योग ) पर स्वामित्व ( मालिकाना हक़ ) था वह पूंजीपति वर्ग बना, और जिनका नहीं था वह श्रमिक वर्ग बना और थोड़े बहुत पढ़े लिखे व्यक्ति मध्यम वर्ग में आ गए
  • औद्योगिक समाज में सरकारी तंत्र की अधिक दखलंदाजी मतलब लालफीताशाही मनुष्य की प्रगति में बंधा होती है

उदहारण के लिए, मुझे कोई डेयरी फार्म खोलना हैं, परन्तु उसके लिए सरकार ने बहुत अधिक नियम बना रखे हैं यह नियम मनुष्य के आगे बढ़ने में कही न कही बाधक होते है इनको लालफीताशाही कहा जाता हैं

  • इससे नौकरशाही में वृद्धि होती है क्योकि जब समाज में उद्योग बढ़ते है तब बिज़नस में पोस्ट ( पद ) का स्थिति अलग अलग होगी मतलब कोई मनुष्य छोटी पोस्ट पर होगा कोई बड़ी |
  • औद्योगिक समाज के कारण विकसित तकनीकी में वृद्धि हुई मतलब पहले हम छोटी छोटी चीजों के लिए तकनीक पर निर्भर नहीं रहते थे परन्तु अब हम छोटी छोटी चीजों में तकनीक का उपयोग करते हैं
  • औद्योगिक समाज में मशीनीकरण अधिक हो गया मतलब हर मनुष्य मशीनों पर निर्भर हैं
  • औद्योगिक समाज में विशेषीकरण का महत्त्व अधिक हो गया मतलब जिस मनुष्य के अंदर विशेषता है उसका महत्त्व बढ़ा हैं उदहारण के लिए, कोई टीचर अच्छा पढाता हैं तो लोग उसके पास पढने के लिए आयेंगे
  • हर कंपनी के लिए प्रचार ( विज्ञापन ) का महत्त्व बहुत अधिक बढ़ गया हैं क्योकि ऐसा करने से उद्योग पर लोगो का ध्यान खींचा जाता है
  • जब मजदुर व्यक्ति को उसके पर्याप्त पालन पोषण के लिए उचित मजदूरी नहीं मिलती हैं तब ऐसी स्थिति में वह गरीब व्यक्ति झोपड़ी बनाकर उसमे रहता हैं ऐसी स्थिति में गंदी बस्तियों का उदय होता है
  • औद्योगिक समाज में मजदुर व्यक्तियों के हितों के लिए मजदुर संघ का उदय होता हैं
  • औद्योगिक समाज में कार्य करने की विशिष्ट दशाएं लगा रखी हैं मतलब किस समय काम पर आना है, कितना काम करना है, किस समय जाना है, अगर रात की ड्यूटी करनी है तो करनी पड़ती हैं

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निष्कर्ष

यह लेख हमे औद्योगिक समाजशास्त्र के महत्त्व, विकास, विशेषताओं, क्षेत्र, नेचर से सम्बंधित इनफार्मेशन देता हैं क्योकि एग्जाम के लिए यह विषय बहुत महत्वपूर्ण हैं

मैं यह उम्मीद करता हूँ कि कंटेंट में दी गई इनफार्मेशन आपको पसंद आई होगी अपनी प्रतिक्रिया को कमेंट का उपयोग करके शेयर करने में संकोच ना करें अपने फ्रिड्स को यह लेख अधिक से अधिक शेयर करें

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