Manav Netra Ki Sanrachna: – मानव नेत्र की संरचना या मनुष्य की आंख की संरचना और मनुष्य के कान की संरचना को समझना मनोविज्ञान के विषय में एक महत्वपूर्ण पाठ्यक्रम हैं क्योकि यह दृश्य संवेदना के लिए महत्वपूर्ण हैं
आंख की संरचना का चित्र व कान की संरचना का चित्र देखकर आप कान और आंख की संरचना का वर्णन कर सकतें हैं मतलब स्टूडेंट अगर चित्र को अच्छे से याद कर लेते हैं तब वह इसके पुरे कार्य को अच्छे से समझा सकते हैं
कान की संरचना और कार्य को तीन भागों में समझा जा सकता हैं जिससे हमे कान की जानकारी व कान के कार्य पता चलते हैं
यही कारण है कि आंख की संरचना और कार्य व मानव कान की संरचना और कार्य को इस लेख में अच्छे से समझाया गया हैं चलिए अब हम यह जान लेते हैं कि मानव नेत्र क्या हैं? ( Manav Netra Kya Hai ).
नोट – मनोविज्ञान के विषय को पढने वाले स्टूडेंट्स के लिए यह महत्वपूर्ण हैं क्योकि यह संवेदना के आर्टिकल का दुसरा भाग हैं कुमाऊँ यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम में संवेदना के साथ आँख और कान की संरचना को समझने के लिए दिया है
Manav Netra Ki Sanrachna? ( मानव नेत्र की संरचना ) – Human Eye Diagram in Hindi? – Aankh Ki Sanrachna
आँख की बनावट फोटो खीचने वाले कैमरे के समान होती हैं इसके तीन आवरण होते हैं
- श्वेत पटल ( Selerotic )
- मध्य पटल ( Choroid )
- अंत: पटल ( Retina )
श्वेत पटल ( Selerotic )
यह आँख की सबसे बाहरी परत होती हैं जो आँख को चारों ओर से घेरे रहता हैं जिसका रंग वाइट होता हैं और यह एक अपारदर्शी परत होती हैं परन्तु इसके सामने का भाग पारदर्शी होता है जिसको कॉर्निया ( Cornea ) कहते है
श्वेत पटल का मुख्य कार्य आँख को आकार और सुरक्षा प्रदान करना होता हैं
मध्य पटल ( Choroid )
यह आँख की दुसरी परत होती हैं जिसका रंग काला या भूरा होता है इसके आगे का भाग उपतारा ( Iris ) कहलाता है इस उपतारा का कार्य प्रकाश को ग्रहण करके लेंस में भेज देना होता हैं
किसी भी वस्तु को स्पष्ट रूप से देखने के लिए हमारी आँखों में प्रकाश की एक उचित मात्रा आवश्यक होती है जब प्रकाश उस उचित मात्रा ( आवश्यक ) से कम या अधिक होता हैं तब हम वस्तुओं को स्पष्ट रूप से देख नहीं पाते हैं
इसीलिए वस्तुओं को स्पष्ट रूप से देखने के लिए यह जरुरी होता हैं कि हमारी आँखों में प्रकाश की एक उचित मात्रा ही प्रवेश करे आँख में प्रकाश को उचित मात्रा में भेजने का कार्य उपतारा ( Iris ) के द्वारा किया जाता हैं
जब प्रकाश तीव्र ( तेज ) होता है तो उपतारा सिकुड़ जाता हैं उपतारा के बीच में एक छिद्र होता है जिसको पुतली कहा जाता हैं तेज प्रकाश में जब उपतारा सिकुड़ जाता हैं तब पुतली छोटी हो जाती हैं और प्रकाश कम मात्रा में हमारी आँख में प्रवेश करता हैं
जब प्रकाश कम मात्रा में होता हैं उस समय उपतारा फ़ैल जाता हैं जिसके कारण पुतली बड़ी हो जाती हैं और अधिक मात्रा में प्रकाश हमारी आँख में प्रवेश करता हैं पुतली के पीछे लेंस होता हैं जो प्रकाश को उचित स्थान पर स्थापित कर देता हैं
लेंस पर जो प्रतिबिम्ब बनाता है वह लेंस विभिन्न वस्तुओं के प्रतिबिम्ब को अंत: पटल पर स्थापित करता हैं लेकिन यह प्रतिबिम्ब उल्टा बनता हैं लेकिन वस्तु हमे सीधी और अपने वास्तविक रूप में दिखाई पड़ती हैं
अंत: पटल के ठीक पीछे द्रष्टि स्नायु ( Optic Nerves ) होते हैं यह द्रष्टि स्नायु मस्तिष्क तक विभिन्न वस्तुओं ( जिनको हमने देखा हैं ) उनकी सूचना लेकर जाते हैं और तब हमे पता लगता है कि हमने कौनसी वस्तु देखी हैं
द्रष्टि संवेदना भी दो प्रकार की होती हैं
- रंगहीन संवेदना ( Achromatic Sensation )
- रंगों की संवेदना ( Chromatic Sensation )
रंगहीन संवेदना ( Achromatic Sensation ) – रंगहीन संवेदना में काले, भूरे और सफ़ेद रंग की संवेदना होती हैं वास्तव में यह रंग नहीं होते हैं क्योकि विद्वानों ने इनको रंग नहीं माना हैं यह दंड ( Rods ) के द्वारा होती हैं
रंगों की संवेदना ( Chromatic Sensation ) – रंगों की संवेदना में लाल, हरा, नीला, पीला रंग की संवेदना होती हैं क्योकि यह चार रंग मुख्य रंग होते है इसके आलावा अन्य सभी रंग इन मुख्य रंगों के मिश्रण से बनाये जाते है इनकी संवेदना शंकु ( Cones ) के द्वारा होती हैं
अंत: पटल ( Retina )
यह आँख का सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है क्योकि इसमें द्रष्टि संवेदना के ग्राहक होते हैं यह द्रष्टि संवेदना के ग्राहक दो प्रकार के होते है
- दंड ( Rods ) – दंड के द्वारा काले, भूरे और सफ़ेद रंग की संवेदना होती हैं
- शंकु ( Cones ) – शंकु के द्वारा विभिन्न प्रकार के रंगों की संवेदना होती है लाल, पीले, नीला, हरा आदि
अंत: पटल ( Retina ) में दंड और शंकु पाए जाते हैं जिससे वस्तुओं के रंग हम देख पाते हैं इसी अंत: पटल में दो बिंदु पाए जाते हैं
- फोविया/पीतबिंदु ( Yellow Spot )
- अंधबिंदु ( Blind Spot )
फोविया/पीतबिंदु ( Yellow Spot ) – जब प्रकाश इस पीतबिंदु पर पड़ता है तब वस्तुएं सबसे ज्यादा रंगीन और स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती हैं जिसका कारण यह होता है कि पीतबिंदु पर शंकु ( Cones ) की संख्या सबसे अधिक होती हैं
अंधबिंदु ( Blind Spot ) – जब प्रकाश इस अंधबिंदु पर पड़ता है तब वस्तुएं बिल्कुल रंगहीन दिखाई पड़ती हैं क्योकि अंधबिंदु पर शंकु की संख्या बिल्कुल नहीं होती है यहाँ पर केवल दंड ( Rods ) पाए जाते है
श्रवण संवेदना किसे कहते हैं? ( Auditory Sensation )
जिस प्रकार से द्रष्टि संवेदना का सम्बन्ध एक दिशा से होता है उसी प्रकार श्रवण संवेदनाका सम्बन्ध चारों दिशाओं से होता हैं यही कारण है कि श्रवण संवेदना हमारे लिए मुख्य संवेदना होती हैं
हम सब जानते है कि धवनि अंत: कर्ण में पहुंचकर श्रवण तंत्रिकाओं को उत्तेजित करके मस्तिष्क के उस केंद्र में पहुँचती हैं जहाँ पर श्रवण संवेदना का अनुभव होता है और उस धवनि का अर्थघटन ( मतलब अर्थ निकालना ) किया जाता है
जिस धवनि का चक्र 20 से लेकर 20000 प्रति सेकंड होता है वही धवनि कान में संवेदना उत्पन्न कर सकती हैं
कान के कितने भाग होते हैं? ( Human Ear Structure )
Eye Structure in Hindi? – श्रवण संवेदना
कान की बनावट को समझने से पहले हम यह जान लेते है कि कान कितने भागो में बटा हुआ होता हैं? यह तीन भागों में बटा होता हैं
- वाह्य कर्ण ( External Ear ) – वाह्य कर्ण में कर्ण पिन्ना, कान की नली और कान का पर्दा आते हैं
- मध्य कर्ण ( Middle Ear ) – मध्य कर्ण में तीन छोटी छोटी हड्डियाँ ( हथौड़ा, निहाई, रकाब ), अंडाकार खिड़की और यूस्टेशियन ट्यूब आते हैं
- अंत: कर्ण ( Internal Ear ) – अंत: कर्ण में अर्द्ध चक्राकार नलियाँ और कॉकलिया आते हैं
कर्ण पिन्ना – कर्ण पिन्ना कान का वह हिस्सा होता है जोकि चेहरे के दोनों तरफ हमे दिखाई पड़ता हैं यह सूप के आकार का होता हैं और यह उपास्थी ( Cartilage ) का बना होता है जिसका कार्य ध्वनी तरंगों को कान की दिशा में मोड़ देना होता हैं
कान की नली – कर्ण पिन्ना से लगे हुए हिस्से को कान की नली कहा जाता है इस कान की नली की लम्बाई 25 मिलीमीटर और व्यास 7 मिलीमीटर होता हैं कान की नली में एक कड़वा चिपचिपा पदार्थ पाया जाता हैं जिसको ईयरवैक्स (सेरुमेन) कहा जाता हैं
यह ईयरवैक्स (सेरुमेन) या कड़वा चिपचिपा पदार्थ कान को हानि पहुंचाने वाले शुष्क जीवाणुओं, कीड़े मकोड़ों और धुल से कान की रक्षा करता है कान की नली अंत में जाकर कान का पर्दा ( कर्णढोल ) से मिलती हैं
कान का पर्दा ( कर्णढोल ) – इस कान के पर्दा का कार्य मध्य कान से बाह्य कान को अलग करना होता हैं और दुसरा काम यह होता है कि जो ध्वनी तरंगें कान की नली से मध्य कान में जाने के लिए आती हैं वह सबसे पहले इस कान के पर्द से टकराती हैं
जिसके कारण इस कान के पर्द में कंपन ( Vibration ) होता हैं उसकी वजह से उन ध्वनी तरंगों की तीव्रता कई गुना बढ़ जाती हैं और कंपन के साथ वह ध्वनी तरंगों मध्य कान में प्रवेश करती हैं
मध्यकान में कान का पर्दा ( कर्णढोल ) से लगी हुए तीन छोटी छोटी हड्डियाँ होती हैं जिन्हें हथौड़ा, निहाई, रकाब कहा जाता हैं यह तीन हड्डियाँ एक दुसरे से जुडी हुई होती हैं जिसकी वजह से कान का पर्दा मे जो कंपन होता है
वह हथौड़ा मे भी होने लगता है क्योकि हथौड़ा कान का पर्दा से सटा हुआ होता हैं और बाकि दोनों हड्डियां ( निहाई, रकाब ) भी हथौड़ा से जुडी हुई होती है इसीलिए इनमे भी कंपन होने लगता हैं
इस कंपन के कारण ध्वनी तरंगें आगे की तरफ बढ़ती हैं और आगे अंडाकार खिड़की होती हैं जिसमे से यह दबाब के कारण अंत: कर्ण में प्रवेश कर जाती हैं मध्य कर्ण का एक हिस्सा यूस्टेशियन ट्यूब ( कंठ कर्ण नाली ) कहलाता हैं
यह नली गले को कान से जोड़ने का कार्य करती हैं कुछ लोगो को यह पता होगा कि जब भी हम कोई दवा कान, नाक में डालते हैं तो वह हमे गले में महसूस होती हैं क्योकि नाक, कान गले से जुड़े हुए होते हैं
इस यूस्टेशियन ट्यूब मे हवा भरी होती हैं जोकि कान के पर्दे के ऊपर ध्वनी तरंग के दबाब से कान के पर्दे को नुकसान पहुँचने की संभावना होती है उस हानि से कान के पर्दे की रक्षा यूस्टेशियन ट्यूब करती हैं
अब ध्वनी तरंग जब हमारे आंतरिक कान में पहुँचती हैं तो आंतरिक कान में दो हिस्से होते हैं
- अर्द्ध चक्राकार नलियाँ – यह वास्तव में हमारे शरीर को बैलेंस करने का कार्य करती है क्योकि ध्वनी तरंगे बहुत तीव्रता के साथ आती हैं जिससे हमारे शरीर का संतुलन बिगड़ने की संभावना होती हैं इसीलिए अर्द्ध चक्राकार नलियाँ उस संतुलन को बनाये रखने का काम करती हैं
- कॉकलिया – यह कॉकलिया अंत: कर्ण ( आन्तरिक कान ) का बहुत महत्वपूर्ण भाग होता है इसकी संरचना घुंघे के सामान होती हैं और इसमें एक तरल पदार्थ भरा हुआ होता हैं उस तरल पदार्थ में एक झिल्ली होती है जिसको बैस्लर झिल्ली कहते हैं और इसी में केश कोष पाए जाते हैं इन केश कोष में संवेदना होती हैं
जब ध्वनी तरंग आंतरिक कान में प्रवेश करती हैं तब कॉकलिया में स्थित तरल पदार्थ में कंपन होने लगता हैं जिसकी वजह से आंतरिक कान में केश कोष खड़े हो जाते हैं और उनमे संवेदना उत्पन्न होती हैं ओर इस संवेदना की सूचना श्रवण स्नायु ( auditory nerve ) के द्वारा मस्तिष्क तक जाती हैं
मस्तिष्क में श्रवण स्नायु के द्वारा जो संवेदना की सूचना जाती है वह उसका विश्लेषण करता है जिसके बाद हमे यह पता लगता है कि हमने कौन सी ध्वनी सुनी हैं?
श्रवण के सिद्धांत ( Theories Of Audition )
श्रवण के सिद्धांत में दो सिद्धांत विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण हैं जिनके बारे में यहाँ समझाया गया हैं
- Place Theory ( स्थान सिद्धांत )
- Frequency Theory ( आवृत्ति सिद्धांत )
Place Theory ( स्थान सिद्धांत ) – यह सिद्धांत हमे यह बताता है कि हम हम ऊंची पिच वाली आवाज़ें कैसे सुनते हैं? विभिन्न पिचें कोक्लीअ की बेसिलर झिल्ली पर अलग-अलग स्थानों को सक्रिय करती हैं
मतलब हमे जो धवनि सुनाई देती है वह कोटाई में हेयर सेल्स की लोकेशन पर निर्भर करती हैं यह माना जाता है कि हम अलग-अलग स्वर सुनते हैं क्योंकि विभिन्न ध्वनि तरंगें कोक्लीअ बेसिलर झिल्ली के साथ विभिन्न स्थानों पर गतिविधि को सक्रिय करती हैं
इस प्रकार, मस्तिष्क उस विशिष्ट स्थान (झिल्ली पर) को पहचान कर ध्वनि की पिच निर्धारित करता है जो तंत्रिका संकेत उत्पन्न कर रहा है जॉर्ज वॉन बेकेसी (1957) ने प्रस्तावित ( Update ) किया कि ध्वनि की आवृत्ति कोक्लीअ के साथ उस स्थान से संकेतित होती है
जहाँ तंत्रिका फायरिंग सबसे अधिक होती है। बेसिलर झिल्ली के साथ प्रत्येक स्थान के साथ बाल को
Frequency Theory ( आवृत्ति सिद्धांत ) – यह सिद्धांत हमे यह बताता है कि हम कम पिच वाली आवाज़ें कैसे सुनते हैं? पूरी बेसिलर झिल्ली ध्वनि की आवृत्ति पर कंपन करती है मतलब जितनी तेज धवनि की आवृत्ति होगी उतना तेज कम्पन होगा
मस्तिष्क श्रवण तंत्रिका तक यात्रा करने वाले तंत्रिका आवेगों की आवृत्ति की निगरानी करके पिच को पढ़ता है पूरी बेसिलर झिल्ली आने वाली ध्वनि तरंग के साथ कंपन करती है, जिससे ध्वनि तरंग के समान दर पर मस्तिष्क में तंत्रिका आवेगों को ट्रिगर किया जाता है।
यदि ध्वनि तरंग की आवृत्ति 100 तरंग प्रति सेकंड है, तो 100 स्पंदन प्रति सेकंड श्रवण तंत्रिका तक यात्रा करते हैं चूंकि एक न्यूरॉन प्रति सेकंड 100 तरंगें नहीं चला सकता है,
इसलिए वॉली सिद्धांत ( Valley Principal ) सुझाव देता है कि जैसे सैनिक बारी-बारी से फायरिंग करते हैं ताकि कुछ गोली चला सकें जबकि अन्य फिर से लोड कर सकें, तंत्रिका कोशिकाएं बारी-बारी से फायरिंग कर सकती हैं
Read More –
- स्मृति का अर्थ, तत्व, परिभाषाएं, विशेषताएं
- अधिगम का अर्थ? प्रयास एंव त्रुटी सिद्धांत
- अधिगम के सिद्धांत – सूझ एंव अनुबंधन का सिद्धांत
- ध्यान क्या है? प्रकार, विशेषताएं, निर्धारक
- संवेदना का अर्थ और प्रत्यक्षीकरण क्या है?
- तंत्रिका तंत्र किसे कहते हैं?
- जैविक, मनोगतिक, व्यवहारवादी और संज्ञानात्मक दृष्टिकोण
- अवलोकन क्या है? प्रयोगात्मक विधि और अवलोकन विधि,
- मनोविज्ञान का पाठ्यक्रम ( BA )
- मनोविज्ञान क्या है? विकास, अर्थ, क्षेत्र एंव प्रकृति
निष्कर्ष
इस लेख में हमने मुख्य रूप से संवेदना के पाठ्यक्रम के अनुसार आँख और कान की संरचना को समझाया हैं क्योकि बीए ( ग्रेजुएशन ) में मनोविज्ञान पढने के दौरान स्टूडेंट्स के लिए यह एक महत्वपूर्ण लेख हैं
मैं यह उम्मीद करता हूँ कि कंटेंट में दी गई इनफार्मेशन आपको पसंद आई होगी अपनी प्रतिक्रिया को कमेंट का उपयोग करके शेयर करने में संकोच ना करें अपने फ्रिड्स को यह लेख अधिक से अधिक शेयर करें
लेखक – नितिन सोनी
नमस्ते! मैं एनएस न्यूज़ ब्लॉग पर एक राइटर के रूप में शुरू से काम कर रहा हूँ वर्तमान समय में मुझे पॉलिटिक्स, मनोविज्ञान, न्यूज़ आर्टिकल, एजुकेशन, रिलेशनशिप, एंटरटेनमेंट जैसे अनेक विषयों की अच्छी जानकारी हैं जिसको मैं यहाँ स्वतंत्र रूप से शेयर करता रहता हूं मेरा लेख पढने के लिए धन्यवाद! प्रिय दुबारा जरुर आयें