अवलोकन क्या है? प्रयोगात्मक विधि और अवलोकन विधि, गुण, दोष ( 2024 )

अवलोकन क्या है? प्रयोगात्मक विधि और अवलोकन विधि, गुण, दोष ( 2024 )

Hindi Meaning of Observation: – अवलोकन क्या है? किसी मनुष्य के बारे में जानने का सबसे अच्छा तरिका यह होता है कि हम उससे बात करके, जो हमे जानना है, वह सवाल के रूप में पूछे

उदहारण के लिए, अगर आप एक टीचर हैं और आपको किसी स्टूडेंट के बारे में जानना है तो इस स्थिति में आप उस स्टूडेंट को अपने पास बुलाकर उससे वह सवाल पूछेंगे जिसके बारे में आपका जानना है

लेकिन कई बार हम मनुष्य से सीधे जाकर बात नहीं कर सकते हैं परन्तु, ऐसे में हम वह इनफार्मेशन कैसे प्राप्त करेंगे जिसके बारे में हमे जानना है इस दौरान, एक अन्य तरिका अवलोकन विधि या प्रेक्षण विधि ( Observation Method ) सामने आता हैं

क्योकि यहाँ इसका उपयोग करके हम उस मनुष्य की स्थिति को देखकर निरीक्षण ( Observe ) कर सकते है यही कारण है कि मनोविज्ञान में अवलोकन का महत्व बहुत अधिक हैं इसीलिए यहाँ अवलोकन के उदाहरण देकर समझाया गया है

अवलोकन क्या है? प्रयोगात्मक विधि और अवलोकन विधि, गुण, दोष ( 2024 )

इन्टरनेट पर हजारों की संख्या में स्टूडेंट इस टॉपिक को पढने के लिए खोजते रहते है क्योकि एग्जाम में इससे सम्बंधित कुछ प्रश्न पूछ लिए जाते हैं कि निरीक्षण का अर्थ और परिभाषा, प्रेक्षण विधि क्या है, Experimental Meaning in Hindi, 

चलिए अब हम यह समझ लेते है कि अवलोकन किसे कहते हैं? 

अवलोकन क्या है? अवलोकन विधि क्या है? प्रेक्षण विधि क्या हैं? ( निरीक्षण विधि क्या है? ) Observation in Hindi

वर्ष 1913 में जॉन ब्रॉडस वॉटसन ( अमेरिकन मनोवैज्ञानिक ) ने जब व्यवहारवाद की स्थापना करने के दौरान कहा कि मानव व्यवहार का आत्मनिरीक्षण विधि के माध्यम से अध्ययन नहीं किया जा सकता है,

मानव व्यवहार का अध्ययन प्रेक्षण विधि ( Observation Method ) का उपयोग करके किया जा सकता हैं यही कारण है कि प्रेक्षण विधि का जनक जॉन ब्रॉडस वॉटसन को कहा जाता हैं

नोट – प्रेक्षण विधि को अवलोकन विधि, निरीक्षण विधि के नाम से भी जाना जाता हैं 

प्रेक्षण विधि में निष्पक्ष भाव से प्राणी या जीव के व्यवहार का अध्ययन किया जाता हैं क्योकि इसमें निष्पक्ष रूप से निरीक्षण ( Observe ) किया जाता है इसीलिए इसकी वैज्ञानिकता कायम रहती हैं

किसी मनुष्य के द्वारा किसी चीज को आँखों से देखना, उसके बारे में सोचना, समझना और जानना प्रेक्षण होता है मतलब जब हम किसी मनुष्य को देखकर उसके व्यवहार का अध्ययन करते हैं उसे अवलोकन या प्रेक्षण ( Observation ) कहा जाता है

सी.ए. मोजर- ठोस अर्थ में अवलोकन का अर्थ कानो तथा वाणी की अपेक्षा आँख का अधिक प्रयोग है

जब प्रेक्षण विधि का उपयोग मनुष्य या प्राणी के व्यवहार के अध्ययन के लिए किया जाता है तो यह हमेशा उद्देश्यपूर्ण होता हैं मतलब इसमें हर तरह से अध्ययन किया जाता है जिससे वास्तविकता बनी रहती हैं

प्रेक्षण विधि के प्रकार? ( अवलोकन के प्रकार? ) Methods Of Observation? ( Observation Method in Hindi? )

प्रेक्षण विधि दो प्रकार की होती हैं

सहभागी प्रेक्षण ( Participant Observation ) – जब हम किसी टीम के साथ मिलकर निरीक्षण ( Observe ) करते है उसे सहभागी प्रेक्षण ( Participant Observation ) कहते हैं

मतलब इसमें हमे जिस समूह के लोगो का अध्ययन करना होता है हम उसमे शामिल होकर, उनके व्यवहार का अध्ययन करते है

पहला – उदहारण के लिए, किसी कंपनी में काम करके वहां सभी मनुष्यों को निरीक्षण ( Observe ) करना

दुसरा – उदहारण के लिए, मैं किसी एक क्लास का स्टूडेंट हूँ और मैं उस क्लास के सभी स्टूडेंट्स के व्यवहार का अध्ययन, उनके समूह में शामिल होकर करता हूँ 

असहभागी प्रेक्षण ( Non – Participant Observation ) – जब हम बिना किसी टीम के साथ मिलकर, मनुष्य के व्यवहार का अध्ययन करते हैं उसको असहभागी प्रेक्षण ( Non – Participant Observation ) कहते हैं

मतलब जहाँ हम मनुष्य के व्यवहार का अध्ययन बिना किसी समूह में शामिल हुए करते हैं

पहला – उदहारण के लिए, मैं एक टीचर हूँ और मैंने दूर खड़े होकर अपने स्टूडेंट का अध्ययन किया जिससे मुझे यह पता चला कि मेरा स्टूडेंट राम पढने के लिए बहुत इच्छुक हैं

स्वभाविक प्रेक्षण ( Natural Observation ) – जब हम किसी प्राणी या जीव की प्राकृतिक स्थिति पर निरीक्षण ( Observe ) करते है उसे स्वभाविक प्रेक्षण ( Natural Observation ) कहते है यह मुख्य रूप से Animals के लिए होता है

प्रेक्षण विधि के गुण बताएं? ( अवलोकन के लाभ और विशेषताएं )

  • यह Valid ( वैध ) होता हैं क्योकि इसमें आत्मनिष्ठता का पूरा ध्यान रखा जाता है
  • यह विधि अन्य विधियों की तुलना में सरल और उपयोगी होती हैं
  • इसमें मानव इन्द्रियों का उपयोग किया जाता है सबसे अधिक मुख्य रूप से आँखों का उपयोग किया जाता है
  • इस विधि के माध्यम से लगभग सभी पर अध्ययन किया जा सकता हैं उदहारण के लिए, बच्चे, बूढ़े, जवान, दिमाग से कमजोर मनुष्य
  • इसमें एक बार कई लोगो का अध्ययन किया जा सकता है
  • अवलोकन पुरी तरह से व्यवहारिकता ( अनुभव ) पर आधारित होता हैं
  • इसमें प्राप्त आकड़ों का सांख्यिकीय विश्लेषण ( Statistical Analysis ) के माध्यम से अध्ययन किया जाता है
  • अवलोकन करने के लिए हम घटना के कारण और परिणाम के सम्बन्ध का पता लगाते हैं
  • क्योकि इसमें कई लोगो का अध्ययन और सांख्यिकीय विश्लेषण होता है इसीलिए उसका सामान्यीकरण भी किया जा सकता हैं मतलब समान रिजल्ट प्राप्त होने पर हम दुसरे लोगो पर उसको Apply कर सकते हैं
  • इसमें हम जहाँ हमे प्रेक्षण करना हैं वहां जाकर उसकी प्राथमिक सामग्री को इकट्टा किया जाता हैं

प्रेक्षण के दोष बताएं? ( अवलोकन की हानि )

  • मानसिक प्रक्रिया/व्यवहारों का किया गया निरीक्षण ( Observe ) हमेशा सहीं नहीं होता हैं उदहारण के लिए,

अगर कोई मनुष्य सोशल मीडिया पर कॉमेडी विडियो बनाता है तो ऐसे में उसको देखकर निरीक्षण ( Observe ) करने पर यह जरुरी नहीं होता है कि वह सही हो क्योकि हो सकता है कि वह मनुष्य केवल विडियो क्रिएट करने के लिए ऐसा करता हो

  • अध्ययन से पूर्व रूपरेखा न बनाने के कारण यह विधि जटिल हो जाती हैं
  • प्रेक्षण स्वभाविक या अनियंत्रित परिस्थियों में होने के कारण प्राप्त निष्कर्ष की व्याख्या उचित कारण – परिणाम के बारे में नहीं बताया जा सकता है
  • प्रतिभा, भाव कल्पना आदि से सम्बंधित समस्याए शीघ्रता से निस्तारित नहीं होती क्योकि ये सभी तत्व परिवर्तनशील होते है
  • प्राणियों के कुछ व्यवहार ऐसे होते हैं जिनका निरीक्षण ( Observe ) करना संभव नहीं होता है

Prayogatmak Vidhi Kya Hai? प्रयोगात्मक विधि ( Experimental Method )

हम सब जानते है कि मनोविज्ञान में जॉन ब्रॉडस वॉटसन ने सबसे पहले व्यवहार शब्द का उपयोग किया था उससे पहले मनोविज्ञान को दर्शनशाश्त्र के रूप में देखा जाता था अब मनोविज्ञान में इस व्यवहार को मापना होगा इसीलिए,

वर्ष 1879 में विल्हेम मैक्समिलियन वुण्ट ( Wilhelm Maximilian Wundt ) ने पहली प्रयोगशाला का निर्माण जर्मनी के लिपशिग में किया था उसके बाद मनोविज्ञान में प्रयोगात्मक विधि का प्रारंभ किया

मनोविज्ञान की अध्ययन पद्दतियों में प्रयोगात्मक विधि सबसे महत्वपूर्ण हैं इस विधि का आधार प्रयोग होता हैं मतलब नियंत्रित अवस्था में किया गया अध्ययन प्रयोग कहलाता है या 

किसी व्यवहार एंव मानसिक प्रक्रिया को किसी नियंत्रित अवस्था में क्रमबद्ध अध्ययन या प्रेक्षण करना प्रयोग होता है मनोविज्ञान में व्यवहारों का अध्ययन चरों के माध्यम से किया जाता हैं

सरल शब्दों में अगर मैंने अवस्थायों को नियंत्रित करते हुए अध्ययन किया तब यह प्रयोग बन जाएगा परन्तु अगर मैंने अवस्थायों को नियंत्रित न करते अध्ययन किया तब यह अवलोकन बन जाएगा 

प्रयोगात्मक विधि में सर्वप्रथम कोई समस्या उत्पन्न होती हैं उस समस्या के समाधान के लिए प्रयोगकर्ता एक उपकल्पना तैयार करता हैं उपकल्पना समस्या का सम्भावित समाधान होता हैं इसी उपकल्पना को प्रयोग के माध्यम से सत्य या असत्य सिद्ध किया जाता हैं

दुसरे शब्दों में – नियंत्रित परिस्थितियों में किया गया निरीक्षण ही प्रयोग हैं

जहोदा – प्रयोग, परिकल्पना के परीक्षण की एक विधि हैं

जे सी टाउनशेंड – नियंत्रित दशाओं में किये गए निरीक्षण को प्रयोग कहा जाता हैं

प्रयोगात्मक विधि के चरण ( स्टेप्स )

1. समस्या ( Problem ) – किसी भी प्रयोग को करने से पहले यह जरुरी होता है कि कोई समस्या हो, समस्या एक प्रश्नवाचक वाक्य है जिसका उत्तर प्राप्त करने के लिए प्रयोग किया जाता हैं

उदहारण – सीखने पर पुररुकार का क्या प्रभाव पड़ता है?

2. परिकल्पना/उपकल्पना ( Hypothesis ) का निर्माण – समस्या के निर्धारण के बाद परिकल्पना बनायी जाती हैं परिकल्पना समस्या का सम्भावित उत्तर होता हैं

उदहारण – पुररुकार से सीखने की मात्रा में वृद्धि होती हैं?

मैग्युगन – ने कहा कि एक परिकल्पना परीक्षण में किसी समस्या का हल हो सकती है 

3. प्रयोज्य ( Subject ) – उपकल्पना निर्धारण के बाद प्रयोज्यों का चयन किया जाता हैं प्रयोज्य से अभिप्राय उन लोगो से है जिन पर प्रयोग किया जाना हैं इनकी संख्या एक भी हो सकती हैं और अधिक भी, कई प्रयोगों में प्रयोज्यों को समूहों में बाटकर अध्ययन किया जाता है

उदहारण – इस प्रयोग में हम नर्सरी के 5 – 5 बच्चों के दो समूहों को प्रयोज्य के रूप में लेंगे ये बच्चे शारीरिक व मानसिक योग्यताओं में समान होने चाहिए

4. चरों/परिवर्ती ( Variable ) का निर्धारण – किसी घटना, परिस्थिति या व्यक्ति का वह गुण चर कहलाता हैं  जिसे मापा जा सकता है और जो परिवर्तित होता हैं जैसे उम्र, थकान, प्रकाश, ताप, शोर  आदि

किसी परिस्थिति में चर तीन प्रकार के होते हैं –

स्वतंत्र चर ( Independent Variable ) – स्वतंत्र चर वह चर होता है जिसे प्रयोगकर्ता अपनी जरुरत के अनुसार, घटाता – बढाता हैं मतलब इसका नियंत्रण प्रयोगकर्ता के हाथ में होता हैं वह स्वतंत्र चर हैं

उदहारण, ऊपर दिए प्रयोग में पुरस्कार एक स्वतंत्र चर हैं क्योकि पुरस्कार देने या न देने के लिए प्रयोगकर्ता स्वतंत्र हैं

आश्रित चर ( Dependent Variable ) – आश्रित चर वह चर होता हैं जो स्वतंत्र चर पर आश्रित होता हैं आश्रित चर, स्वतंत्र चर को प्रस्तुत करने पर प्रकट होता है, स्वतंत्र चर को घटाने – बढाने पर घटता – बढ़ता है

और स्वतंत्र चर को हटा देने पर अद्रश्य हो जाता हैं मतलब जिसको हम घटा – बढ़ा सकते हैं वह स्वतंत्र चर होता है परन्तु उस घटाने – बढाने का प्रभाव जिस पर पड़ता है उसे आश्रित चर कहते है

पहला उदहारण, ऊपर दिए प्रयोग में सीखना एक आश्रित चर हैं जो पुरस्कार ( स्वतंत्र चर ) पर आश्रित हैं पुरस्कार देने पर सीखने की क्रिया होगी, पुरस्कार की मात्रा पर घटाने – बढाने पर सीखने की मात्रा घटेगी – बढ़ेगी, और पुरस्कार देना बंद कर देने पर सीखना बंद हो जाएगा

दुसरा उदहारण, मान लेते है कि इस समय बाहर बारिश हो रही है और हवा चल रही हैं आप सभी स्टूडेंट्स क्लास में बैठे हैं और क्लास में पंखे पुरी स्पीड में चल रहे है मैं आपको पढ़ा रहा हूँ परन्तु इस दौरान, क्लास के आधे स्टूडेंट ने कहा सर, ठंड लग रही हैं

पंखे बंद कर दें लेकिन यहाँ क्लास के अन्य आधे स्टूडेंट ने कहा सर, नहीं हमे गर्मी लग रही है पंखा बंद न करवाएं अब मैंने यहाँ एक स्टूडेंट से कहा कि रेगुलेटर 5 पर फुल हैं, आप उसको 3 पर कर दो, यहाँ मैं उस रेगुलेटर को बदलने के लिए स्वतंत्र हूँ

इसीलिए वह रेगुलेटर मेरा स्वतंत्र चर हैं जिसके ऊपर पंखे की गति निर्भर करेगी और यहाँ पंखे की गति आश्रित चर बन जाएगा

मध्यवर्ती चर/नियंत्रित चर ( Intervening/Controlled Variable ) – मध्यवर्ती चर वह चर हैं जो इस दोनों चरों ( स्वतंत्र चर और आश्रित चर ) को प्रभावित करते हैं इनके शुद्ध संबंधों के अध्ययन में बाधक होते है

इसीलिए इनको नियंत्रित ( Control ) करना जरुरी होता हैं इसको बाहय चर ( Extreneous Variable ) कहते हैं

पहला उदहारण – ऊपर दिए प्रयोग में बुद्धि, आयु मध्यवर्ती चर हो सकते हैं जो सीखने पर प्रभाव डाल सकते हैं तो इन्हें नियंत्रित करना जरुरी होगा इसीलिए हम अपने प्रयोग में समान बुद्धि, आयु वाले बच्चो को लेंगे

दुसरा उदहारण – मैं एक प्रयोग करना चाहता हूँ कि आप कोई पाठ ( Lesson ) पढ़ रहे है उसकी लम्बाई ( Length ) का आपके सीखने ( Learn ) करने पर क्या प्रभाव पड़ता हैं

मतलब सीधी बात है कि अगर पाठ छोटा होगा तब आप उसको जल्द सीख या याद कर लेंगे परन्तु अगर बड़ा ( लंबा ) पाठ होगा तो आपको उसे याद करने में अधिक समय लगेगा

क्योकि मैं आपका टीचर हूँ इसीलिए मैं उस पाठ की लम्बाई को बदलने के लिए स्वतंत्र हूँ इसीलिए पाठ की लम्बाई स्वतंत्र चर हैं यहाँ आपका सीखना पाठ की लम्बाई पर निर्भर करता हैं इसीलिए आपका सीखना एक आश्रित चर हैं 

नोट – यहाँ ध्यान देना है कि जब आप पाठ को याद करेंगे तो क्या यहाँ आपको केवल पाठ की लम्बाई प्रभावित करेगी? 

नहीं, भाई यहाँ कुछ अन्य चीजे भी आ सकती है जो आपको वह पाठ याद करने के लिए प्रभावित करे उदहारण के लिए, बाहर का शोर, बच्चे की IQ, टीचर के पढ़ाने का तरीका, बच्चे की उम्र, पाठ की कठनाई आदि

मुझे केवल सीखने का प्रभाव देखना था लेकिन यह सभी प्रभावित करने वाले फैक्टर ( चर ) अपना प्रभाव सीखने पर डाल रहे है ऐसे चरों को हम बाहय चर या मध्यवर्ती चर/नियंत्रित चर कहते हैं

5. प्रयोगात्मक अभिकल्प ( Experimental Design )

इसमें प्रयोगकर्ता प्रयोग की पुरी योजना बनाता है और प्रयोगकर्ता प्रयोग में जिन उपकरण और सामग्री ( Apparatus & Material ) का उपयोग करता है उनका विवरण देता हैं

उदहारण के लिए, ऊपर दिए प्रयोग के अनुसार पुरस्कार में सिक्के/टॉफी, सीखने के लिए सामग्री आदि

6. परिस्थितियों का नियंत्रण ( Control Of Situations ) 

किसी भी मनोवैज्ञानिक प्रयोग में ऐसे कई कारक होते है जो अध्ययन को प्रभावित कर सकते है ये कारक प्रयोज्य, वातावरण, प्रयोगकर्ता, उपकरण आदि से सम्बंधित हो सकती है

उदहारण, ऊपर दिए प्रयोग में प्रयोज्यों की आयु, बुद्धि

6. प्रयोगविधि ( Procedure ) 

इसमें प्रयोगकर्ता प्रयोगात्मक अभिकल्प ( Experimental Design ) की योजना के अनुसार प्रयोग करता हैं जिसको हम प्रयोगविधि ( Procedure ) कहते हैं

उदहारण – इस प्रयोग में नर्सरी के बच्चो के 2 समूहों में बाटा गया

  1. प्रयोगात्मक समूह – जिसको स्वतंत्र चर दिया जाता हैं
  2. नियंत्रित समूह – जिसको स्वतंत्र चर नहीं दिया जाता है

दोनों समूहों को सीखने के लिए सामग्री दी जाती हैं परन्तु, एक समूह को पुरस्कार ( स्वतंत्र चर ) दिया जाता है और दुसरे समूह को पुरस्कार ( स्वतंत्र चर )  नहीं दिया जाता हैं

7. परिणामों का विश्लेषण ( Analysis Of Result ) 

प्रयोग द्वारा प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण किया जाता हैं परिणामों के विश्लेषण के लिए सांख्यिकीय विधियों का उपयोग भी किया जाता हैं

उदहारण – इस प्रयोग में पाया गया कि जिसद समूह को पुरस्कार दिया गया उसके सीखने की गति व मात्रा उस समूह से अधिक थी जिसे पुरस्कार नहीं दिया गया

8. उपकल्पना की जांच 

प्रयोग से प्राप्त परिणामों की तुलना उपकल्पना से की जाती हैं यदि परिणाम उपकल्पना के पक्ष में होते है तो उपकल्पना सिद्ध मान ली जाती हैं और यदि परिणाम विपरीत होते है तो उपकल्पना गलत मान कर रद्द कर दी जाती है

उदाहरण – ऊपर दिए प्रयोग में हमारी उपकल्पना “पुरस्कार से सीखने की मात्रा में वृद्धि होती है” सत्य सिद्ध होती हैं

9. समान्यीकरण ( Generalization ) 

समान्यीकरण में यह देखा जाता है कि प्रयोग से प्राप्त परिणाम सामान्य जनसंख्या पर कहाँ तक लागू होते हैं

प्रयोगात्मक विधि के उद्देश्य

  • स्वतंत्र चर और आश्रित चर के बीच सम्बन्ध का पता लगाना
  • किसी सिद्धांत या शोध द्वारा किए गए पूर्वकथन की जांच करना
  • नए सिद्धांत के प्रतिपादन के लिए महत्वपूर्ण आंकड़े प्रदान करना

प्रयोगात्मक विधि के गुण ( लाभ )

  • इस विधि कार्य कारण संबंधो का शुद्ध अध्ययन किया जा सकता हैं
  • प्रयोगात्मक विधि एक वैज्ञानिक विधि हैं क्योकि मनोविज्ञान को इस विधि के कारण विज्ञान का दर्जा प्राप्त है
  • वैज्ञानिक अध्ययन से तुलनात्मक अध्ययन संभव हैं
  • प्रयोगात्मक विधि में नियंत्रित परिस्थितियों में अध्ययन मतलब परिस्थितियों को नियंत्रित करके अध्ययन किया जाता है जिसके बाद, प्राप्त परिणाम अत्यधिक शुद्ध होते हैं
  • क्योकि परिस्थितियों ( घटना ) को नियंत्रित करके अध्ययन किया जाता है इसीलिए उन घटना को दोहराना संभव होता है
  • इया विधि से हमे जो परिणाम प्राप्त होते है वह वस्तुनिष्ठ, वैध, विश्वसनीय और सार्वभौमिक होते हैं
  • प्रयोगात्मक विधि से समय की बचत होती हैं
  • मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जा सकता हैं

प्रयोगात्मक विधि के दोष ( हानि )

  • इसमें प्रयोग की कृत्रिम परिस्थिति होती हैं कृत्रिम परिस्थिति में प्रयोज्यों का व्यवहार स्वभाविक नहीं होता है
  • इसमें प्रयोज्यों का अस्वाभाविक व्यवहार हो जाता है क्योकि जब उनको यह पता चलता है कि उनके ऊपर प्रयोग किया जा रहा है तो वह दिखावटी ( बनावटी ) व्यवहार करना शुरू कर देते हैं जिसके कारण प्राप्त परिणाम शुद्धं नहीं हो सकते हैं
  • मन से प्रयोग नहीं करते हैं जिसके कारण प्रयोज्यों के असहयोग की समस्या उत्त्पन्न होती है ऐसे में प्राप्त परिणाम शुद्धं नहीं होते हैं
  • सभी चरों के प्रहस्तन ( घटाने – बढाने ) में कठिनाई आती है
  • कई बार मध्यवर्ती चरों का नियंत्रण संभव नहीं होता है यह चर स्वतंत्र और आश्रित चरो के संबंधो को प्रभावित करते है
  • कुछ घटनाओं का प्रयोगशाला में अध्ययन कठिन संभव नहीं होता है ऐसे में प्रयोगात्मक विधि का क्षेत्र सीमित हो जाता है
  • इसमें अधिक धन की जरुरत पड़ती हैं
  • प्रयोगात्मक विधि में आंकड़ों को संग्रहण करना आसान नहीं होता है

इन दोषों के बावजूद प्रयोगात्मक विधि के महत्त्व को कम नहीं कहा जा सकता है क्योकि प्रयोग ही मनोविज्ञान का केन्द्रीय आधार होता है इस विधि के कारण ही मनोविज्ञान एक शुद्ध विज्ञान बन सका है

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निष्कर्ष

यहाँ हमने प्रयोगात्मक विधि और अवलोकन विधि को अच्छे से समझाते हुए उनके गुण ( लाभ ), और दोष ( हानि ) को बताया हैं जिसको अच्छे से समझकर आप अपने एग्जाम में आने वाले सवाल का उत्तर अच्छे से लिख सकते हैं

मैं यह उम्मीद करता हूँ कि कंटेंट में दी गई इनफार्मेशन आपको पसंद आई होगी अपनी प्रतिक्रिया को कमेंट का उपयोग करके शेयर करने में संकोच ना करें अपने फ्रिड्स को यह लेख अधिक से अधिक शेयर करें

लेखक – नितिन सोनी 

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