Meaning Of Emotions in Hindi: – भावनाएं का अर्थ? हर मनुष्य में इमोशन होते हैं मनोविज्ञान के क्षेत्र में इमोशन विषय को समझना महत्त्वपूर्ण हैं क्योकि इमोशन एक मानसिक क्रिया हैं जो प्राणी के मस्तिष्क में होती हैं
कुछ स्टूडेंट ग्रेजुएशन की पढाई के दौरान इमोशन मीनिंग इन हिंदी को समझने के लिए पुरे इन्टरनेट को खोजना शुरू कर देते हैं परन्तु इमोशन का मतलब ( Emotion Ka Matlab ) कही नहीं समझाया जाता हैं
संवेग के कारण मनुष्य उत्तेजित हो जाता है मतलब अगर किसी मनुष्य को क्रोध आ जाए तो ऐसी स्थिति में उसके अंदर क्रोध महसूस होगा परन्तु वह उत्तेजित होकर बाहय अनुक्रिया करेगा
क्रोध में मनुष्य गलत शब्दों को बोलना, लड़ाई झगडा करना, मार पीट करना जैसे अनेक क्रियाएं करता हैं स्टूडेंट्स के एग्जाम में इमोशन से सम्बंधित प्रश्न कुछ इस तरह से पूछ लिया जाता है कि इमोशन किसे कहतें हैं?
यही कारण है कि इस लेख में इमोशन ( संवेग ) के विषय पर समझाने के उद्देश्य को पूरा करने के लिए साधारण भाषा में इनफार्मेशन दिया हैं चलिए अब हम यह जान लेते है कि संवेग किसे कहते हैं? ( Samveg Kya Hai ).
Emotions Meaning in Hindi? ( Emotion Meaning in Hindi ) इमोशन क्या है? भावनाएं का अर्थ? संवेग का अर्थ?
संवेग शब्द अंग्रेजी भाषा के Emotion ( इमोशन ) शब्द का हिंदी रूपांतरण है जिसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘Emovere‘ से हुई हैं जिसका अर्थ उत्तेजित करना होता हैं
Emovere का शाब्दिक अर्थ ‘हिला देना, क्रियाशील बना देना, उत्तेजित कर देना
इमोशन व्यक्ति की एक विशेष मानसिक स्थिति हैं जो उसे न केवल उत्तेजित करती है बल्कि क्रियाशील भी बनाती हैं ‘संवेग आंतरिक भावों का वाहय प्रदर्शन हैं मतलब संवेग का अनुभव हम अपने मस्तिष्क में महसूस करते हैं
परन्तु, इनका प्रदर्शन वाहय होता है उदहारण के लिए, क्रोध एक संवेग हैं जिसको हम अपने अंदर महसूस करते हैं
लेकिन हम जब उसका प्रदर्शन करते है जिसमे चिल्लाना, मार-पीट करना, गाली गलोज करना, आदि यह सब प्रदर्शन वाहय रूप में दिखाई देते हैं
इमोशन एक जटिल अवस्था हैं जो मनुष्य की उत्तेजित दशा को दर्शाती हैं मानव के जीवन में इमोशन का विशेष महत्व हैं क्रोध, भय, प्रेम, ख़ुशी हमारे जीवन के प्रमुख इमोशन हैं संवेग की उत्पत्ति मनोवैज्ञानिक कारणों से होती हैं
मतलब इमोशन का कारण व्यक्ति के मस्तिष्क में मौजूद होता है यही कारण होता है कि किसी रोते हुए बच्चे को देखकर एक व्यक्ति को दया आ सकती है परन्तु, इस स्थिति में दुसरे व्यक्ति को क्रोध आ सकता हैं
इंगलिश और इंगलिश – ने कहा कि संवेग एक जटिल भावात्मक अवस्था है जिसमे कुछ विशेष शारीरिक तथा ग्रंथीय क्रियाएँ होती है
वुडवर्थ – ने कहा कि संवेग एक अनुभूति हैं तथा साथ ही प्रत्येक संवेग उसी समय एक गत्यात्मक तत्परता होता हैं
P.T यंग – ने कहा कि संवेग सम्पूर्ण व्यक्ति का तीव्र उपद्रव हैं जिसकी उत्पत्ति मनोवैज्ञानिक कारणों से होती हैं तथा जिसके अंतर्गत चेतन अनुभूति तथा जाठरिक क्रियाएं होती हैं
वैलेंटाइन – ने कहा कि अनुभूति की गहनता को संवेग कहते हैं
रास – ने कहा कि संवेगात्मक दशाओं के वह रूप जिनका सम्बन्ध भावना से रहता हैं, संवेग कहलाता हैं
ड्रेवर – ने कहा कि संवेग प्राणी की एक जटिल दशा हैं जिसमे शारीरिक परिवर्तन प्रबल भावना के कारण उत्तेजित दशा और एक निश्चित प्रकार का व्यवहार करने की प्रवृत्ति निहित रहती है
जारसील्ड – ने कहा कि किसी भी प्रकार के आवेश आने, भड़क उठने आता उत्तेजित हो जाने की अवस्था को संवेग कहते हैं
संवेग की प्रक्रिया में
- पहला – विशेष परिस्थिति उत्पन्न होती हैं ( संवेग को उत्पन्न करने वाली परिस्थिति )
- दुसरा – उन परिस्थिति का मानव द्वारा प्रत्यक्षीकरण होता है
- तीसरा – जिसके कारण उसमे एक उत्तेजना का जन्म होता है
- चौथा – इस उत्तेजना का जब प्राणी चेतन रूप से अनुभव करता हैं
- पांचवा – तब उसमे विभिन्न प्रकार के संवेगात्मक व्यवहार देखने को मिलते हैं
संवेग की विशेषताएं ( Characteristics Of Emotion )
इमोशन के भाव ( Expression ) को छिपाया जा सकता हैं उदहारण के लिए, जब कोई मनुष्य अधिक दुखी होता है तब वह दूसरों के सामने अपने दुःख के भाव को दिखा नहीं पाता हैं परन्तु वह अंदर से बहुत दुःख में होते हैं
दूसरा उदहारण, ऊपर से कोई मनुष्य हँसकर बोलता हैं लेकिन वह अंदर से क्रोधित होता हैं
इन कठिनाईयों को ध्यान में रखकर मनोविज्ञानिकों ने इमोशन के कुछ ऐसे गुणों का वर्णन किया है जिसके आधार पर सभी तरह के संवेगों को समझा जा सकता हैं सिल्भरमैंन ( मनोवैज्ञानिक ) ने संवेग की चार विशेषताएँ बताई हैं
पहली – संवेग विकीर्ण होता हैं ( Emotion is Diffused ) – संवेगिक उद्दीपक पुरे शरीर की क्रियाओं में एक तरह का परिवर्तन या तनाव लाता हैं क्योकि संवेग की स्थिति में शरीर के अंदर अंगों की क्रियाओं में थोड़ी देर के लिए परिवर्तन हो जाता है
जिसका प्रभाव स्वभावतः पुरे शरीर में होता हैं इमोशन कई तरह के होते है और प्रत्येक इमोशन में इस तरह के विकीर्ण का स्वरूप अलग अलग होता हैं एक ही संवेग में भिन्न भिन्न व्यक्तियों में तनाव का विकीर्ण अलग अलग होता हैं
उदहारण के लिए, कोई मनुष्य क्रोधित होने पर काफी उत्तेजित हो जाता हैं उसके होंठ, पैर, हाथ आदि कॉपने लगते हैं, परन्तु किसी मनुष्य के क्रोधित होने पर उसको सिर्फ जोर से बोलने की आदत होती हैं
दुसरी संवेग सतत् ( निरंतर ) होता है ( Emotion is Persistent ) – संवेग में निरंतरता का गुण होता है जब भी कोई संवेग उत्पन्न होता हैं, उद्दीपक के हट जाने के बाद भी कुछ देर तक मनुष्य में संवेग बना रहता हैं यह सभी संवेगों में होती हैं
उदहारण के लिए, जब किसी मनुष्य के सामने अचानक साँप आ जाता है जिसको देखकर स्वभावतः उसमे डर का संवेग उत्पन्न हो जाएगा इस दौरान, उस साँप के चले जाने के कुछ समय बाद तक डर का संवेग उस मनुष्य में बना रहेगा
तीसरी संवेग संचयी ( संचार ) होता है ( Emotion is Cumulative ) – संवेग में संचयी का गुण होता हैं कोई संवेग एक बार जब उत्पन्न हो जाता है तो थोड़ी देर के लिए वह अपने आप ही बढ़ते चला जाता हैं
क्योकि संवेग व्यक्ति में एक ख़ास प्रकार की मानसिक तत्परता उत्पन्न कर देता हैं जिससे व्यक्ति उसी दिशा में प्रतिक्रिया और भी अधिक करना चाहता हैं
चौथी संवेग का स्वरूप अभिप्रेरणात्मक होता हैं ( Emotions are motivational in nature ) – संवेग की इस विशेषता पर विटेकर एंव मार्गन किंग तथा रॉबिन्सन ने अधिक बल दिया हैं जब व्यक्ति में तीव्र इमोशन उत्पन्न होता हैं
तो उसका व्यवहार किसी ख़ास लक्ष्य की ओर तेजी से अग्रसित होता है उदहारण के लिए, यदि कोई व्यक्ति किसी परिस्थिति में काफी डर गया है तो डर पैदा करने वाले उद्दीपक से दूर जाना चाहेगा
नोट – एग्जाम में आप संवेग की विशेषताएं नीचे बताये पॉइंट्स के अनुसार लिख सकते है
- इमोशन की उत्पत्ति मनोवैज्ञानिक कारणों से होती हैं क्योकि संवेग हमारे मस्तिष्क में उत्पन्न होता हैं अथार्थ संवेग का कारण हमारे मस्तिष्क में होता है यही कारण है कि किसी एक परिस्थिति से किसी एक मनुष्य को भय लग सकता है
परन्तु, दुसरे व्यक्ति को भय नहीं लग सकता है क्योकि भय का कारण हमारे मस्तिष्क में होता हैं
- संवेग में वैयक्तिकता होती हैं मतलब किसी व्यक्ति में संवेग अधिक मात्रा में होता है परन्तु किसी व्यक्ति में संवेग कम मात्रा में होता हैं, उदहारण के लिए, कोई व्यक्ति किसी घटना से अधिक दुखी होता है परन्तु किसी व्यक्ति को कम दुःख होता हैं
- संवेग सविभौमिक होता हैं क्योकि ये प्रत्येक व्यक्ति एंव समुदाय में पाए जाते हैं मतलब संवेग दुनिया के हर व्यक्ति में पाया जाता हैं हाँ, किसी मनुष्य में संवेग की मात्रा अधिक होती है,
किसी मनुष्य में संवेग की मात्रा कम होती हैं, लोगो के संवेग को प्रदर्शित करने के तरीके अलग अलग हो सकते है
- संवेग में स्थानान्तरण होता हैं मतलब संवेग एक व्यक्ति से दुसरे व्यक्ति में स्थानान्तरण हो सकता हैं उदहारण के लिए, अगर कोई मनुष्य किसी बात पर गुस्सा हो रहा है तो उस समय कोई दुसरा व्यक्ति उसे समझाने के लिए आ जाए
तो पहला व्यक्ति उस समझाने वाले व्यक्ति के ऊपर क्रोधित होने लगता है ऐसी स्थिति में उस पहले व्यक्ति के क्रोध का स्थानान्तरण हो गया
- संवेग की अवस्था में विभिन्न प्रकार के शारीरिक परिवर्तन होते है यह शारीरिक परिवर्तन दो प्रकार के होते हैं आन्तरिक शारीरिक परिवर्तन और बाहय शारीरिक परिवर्तन |
- संवेग की अवस्था में व्यक्ति में विचार शक्ति का लोप हो जाता हैं मतलब उसके सोचने समझने की क्षमता लुप्त ( कम ) हो जाती हैं और कभी कभी समाप्त भी हो जाती है क्योकि व्यक्ति संवेग की अवस्था में ऐसे ऐसे कार्य कर जाता है
जो वह सामान्य अवस्था में नहीं कर सकता है उदहारण के लिए, अधिक क्रोध होने पर व्यक्ति किसी का मर्डर भी कर सकता हैं जबकि सामान्य अवस्था में व्यक्ति ऐसा कार्य करने के बारे में सोचता भी नहीं हैं
- संवेग की अवस्था में व्यक्ति कुछ न कुछ कार्य करने के लिए तत्पर रहता हैं या वह उस कार्य को करने के लिए विवर्श होता हैं यह इसकी क्रियात्मक प्रवृत्ति होती हैं
- संवेग में सुख या दुःख का भावनिहित होता हैं कुछ संवेग ऐसे होते है जिनमे दुःख का भाव निहित होता हैं और कुछ संवेग ऐसे होते है जिनमे सुख का भाव निहित होता हैं
- संवेग अस्थिर एव परिवर्तनशील होता हैं मतलब हम किसी संवेग का अनुभव करते है तो वह स्थायी रूप से हमारे साथ नहीं रहता हैं संवेग अस्थिर होता है और कुछ समय बाद हम उस संवेग का अनुभव करना बंद कर देते है
और किसी अन्य इमोशन का अनुभव करने लगते है उदहारण के लिए, एक व्यक्ति आज किसी बात पर क्रोधित है तो हो सकता हैं कि वह कुछ दिनों बाद हर्ष के संवेग का अनुभव करने लगें
- संवेग द्वारा व्यक्ति को क्रिया करने की प्रेरणा मिलती हैं उदहारण, किसी मनुष्य का अच्छा मन ( भाव ) हैं जिसके कारण, उसको अच्छा काम करने के लिए प्रेरणा ( मोटिवेशन ) मिलेगा
- संवेग का जन्म बाहरी उद्दीपक द्वारा किया जाता हैं उदहारण, किसी व्यक्ति या वस्तु ने मेरा दिल दुखाया
संवेग के प्रकार ( संवेगो का वर्गीकरण ) Types Of Emotions in Hindi?
संवेगों का वर्गीकरण अलग अलग मनोवैज्ञानिकों द्वारा अलग अलग प्रकार से किया गया है परन्तु हम गेट्स, गिल्फोर्ड, मैकडूगल का वर्गीकरण समझेंगे
गेट्स का वर्गीकरण
गेट्स ने पांच प्रकार के संवेग बताये हैं
- क्रोध
- भय
- प्रेम
- दया
- कामुकता
गिल्फोर्ड का वर्गीकरण
गिल्फोर्ड ने संवेगों को तीन भागो में बाटा है –
प्राथमिक संवेग – प्राथमिक संवेग वह संवेग होते है जोकि बहुत ज्यादा शक्तिशाली और तीव्र होते हैं उदहारण, क्रोध, भय |
द्वितीयक संवेग – द्वितीयक संवेग वह संवेग होते है जोकि प्राथमिक संवेगों से कम तीव्र होते हैं और इनकी उत्पत्ति धीमी गति से होती हैं उदहारण, भूख |
कृत्रिम संवेग – इस संवेग में गिल्फोर्ड ने पांच प्रकार बताये हैं
- आत्म-केन्द्रित संवेग – जोकि अपने आप को सुरक्षित रखने की भावना से सम्बंधित होता हैं मतलब जब व्यक्ति अपनी जीवन रक्षा करना चाहता है तो उस समय यह संवेग काम करता हैं
- परार्थी संवेग – यह दुसरे लोगो से सम्बंधित हैं अन्य लोगो के प्रति दया, प्रेम, घृणा आदि का जो भाव होता हैं वह परार्थी संवेग के अंदर आता हैं
- बौद्धिक संवेग – किसी पुस्तक का अध्ययन करके अपने मस्तिष्क को शांति प्रदान करना
- सौंदर्यात्मक संवेग – प्रकृति की सुंदरता का आनंद लेना
- नैतिक संवेग – धार्मिक और नैतिक बातों को सुनकर संतोष की प्राप्ति करना
मैकडूगल का वर्गीकरण
मैकडूगल का वर्गीकरण अन्य वर्गीकरण से बहुत अधिक महत्वपूर्ण हैं मतलब संवेग के सभी वर्गीकरण में मैकडूगल का वर्गीकरण बहुत महत्वपूर्ण है मैकडूगल ने 14 संवेग बताएं हैं और प्रत्येक संवेग को उन्होंने एक एक मूलप्रवृत्ति से सम्बंधित माना है
क्रम संख्या | मूलप्रवृत्ति | संवेग |
1 | पलायन | भय |
2 | युयुत्सा ( लड़ना ) | क्रोध |
3 | निवृत्ति ( दूर हटना ) | घृणा |
4 | पुत्र-कामना ( पुत्र की कामना करना ) | वात्सल्य ( बच्चे के प्रति ममता ) |
5 | शरणागत | करुणा |
6 | काम प्रवृत्ति | कामुकता |
7 | जिज्ञासा | आश्चर्य |
8 | दैल्य | आत्महीनता ( खुद को कम समझना ) |
9 | आत्म गौरव ( खुद पर गर्व महसूस करना ) | आत्म-अभिमान ( खुद पर अभिमान करना ) |
10 | सामूहिकता ( समूह में रहना ) | एकाकीपन ( अकेलापन ) |
11 | भोजन अन्वेषण ( भोजन की तलाश करना ) | भूख |
12 | संग्रह प्रवृत्ति | स्वामित्व भाव ( अधिकार रखने की भावना ) |
13 | रचना प्रवृत्ति | कृति भाव ( किसी वस्तु की रचना करना ) |
14 | हास ( हँसी मजा ) | आमोद ( प्रसन्नता ) |
सरल व जटिल संवेग
सभी संवेगों को सरल और जटिल संवेगों में विभाजित किया गया हैं
सरल संवेग – सरल संवेग वह संवेग होते हैं जिनकी अभिव्यक्ति सरल होती हैं और इनमे केवल एक ही संवेग होता हैं उदहारण के लिए, क्रोध, भय, शोक, हर्ष, आश्चर्य |
जटिल संवेग – जटिल संवेग वह संवेग होते हैं जिनमे एक से अधिक संवेग मिश्रित होते है और इनकी अभिव्यक्ति जटिल होती हैं उदहारण के लिए, प्रेम, घृणा |
क्रोध – क्रोध एक अर्जित संवेग हैं मैकडूगल ने इसे युयुत्सा ( लड़ने की प्रवृत्ति ) से सम्बंधित माना हैं
उत्पत्ति – जब किसी प्राणी के किसी भी कार्य में बाधा उत्पन्न होती हैं या उसके किसी काम में असफलता प्राप्त होती है तब क्रोध की उत्पत्ति होती हैं
अभिव्यक्ति ( शारीरिक परिवर्तन ) – मुट्ठी बांधना, दांत पीसना, भौहें चढ़ाना, गरजना, कांपना, आक्रमण करना, ठोकर मरना, गाली गलौज करना आदि व्यवहार दिखाई पड़ते हैं
क्रोध एक ऐसा संवेग है जिसमे व्यक्ति के सोचने समझने की क्षमता समाप्त हो जाती है मतलब उसको यह नहीं पता होता है कि क्या सही हैं और क्या गलत हैं जिससे व्यक्ति ऐसे काम भी कर जाता है जिसका परिणाम बहुत भयानक होता हैं
भय – मैकडूगल ने इसे पलायन मूलप्रवृत्ति से सम्बंधित माना हैं भय के कारण प्राणी भय वाली परिस्थिति से पलायन कर जाता हैं मतलब व्यक्ति उस स्थिति से भाग जाता हैं
उत्पत्ति – भय उस समय उत्पन्न होता है जब कोई खतरनाक स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिससे प्राणी को अपने अस्तित्व का खतरा होता हैं
अभिव्यक्ति ( शारीरिक परिवर्तन ) – ह्रदय की धड़कन व रक्तचाप का बढ़ जाना, भागना, कांपना, पसीना आना, चीखना आदि दिखाई पड़ते हैं और अधिक भयभीत होने पर मल-मूत्र त्याग भी हो सकता हैं
शोक – ये वियोग या हानि से जुड़ा हुआ संवेग हैं
उत्पत्ति – किसी इच्छित वस्तु या प्रियजन की हानि से शोक की उत्पत्ति होती हैं उदहारण के लिए, यदि किसी व्यक्ति के प्रिय मित्र की मृत्यु हो जाये तो उसे शोक होगा
अभिव्यक्ति ( शारीरिक परिवर्तन ) – चेहरा उतर जाना, छाती सिकुड़ जाना, आँखों में आंसू आना, गला रुंध जाना, रोना-पीटना, विलाप करना, मुर्छित होना आदि
हर्ष – हर्ष का संवेग शोक के विपरीत होता हैं
उत्पत्ति – जब व्यक्ति की किसी इच्छा या आवश्यकता की पूर्ति होती हैं या कठिन परिश्रम के बाद जब सफलता मिलती हैं तब हर्ष की उत्पत्ति होती हैं
अभिव्यक्ति ( शारीरिक परिवर्तन ) – चेहरा खिल उठना, चेहरे पर मुस्कान आ जाना, हास्य का भाव, आँखों में चमक, ताली बजाना, नाचना-गाना, उछलना-कूदना आदि
आश्चर्य – मैकडूगल ने आश्चर्य को जिज्ञासा मूलप्रवृत्ति से जोड़ा है
उत्पत्ति – आश्चर्य की उत्पत्ति उस समय होती है जब कोई ऐसी वस्तु सामने आ जाती हैं या कोई ऐसी घटना घट जाती है जिसकी उसने कल्पना भी न कि हो | उदहारण के लिए, दो सिर वाला बच्चे को देखना |
अभिव्यक्ति ( शारीरिक परिवर्तन ) – चौक जाना, आँखे फ़ैल जाना, साँस रुक जाना, काँपना, मुँह खुला रह जाना आदि
Physiological Changes in Emotion? ( भावनाओं में शारीरिक परिवर्तन )
जब हम संवेग की अवस्था में होते हैं तो हमारे शरीर में विभिन्न प्रकार के शारीरिक परिवर्तन होते हैं यह शारीरिक परिवर्तन दो प्रकार के होते हैं
- वाहय शारीरिक परिवर्तन
- आंतरिक शारीरिक परिवर्तन
वाहय शारीरिक परिवर्तन – ऐसे परिवर्तन जिनको हम बाहर से देख सकते हैं मतलब कोई भी मनुष्य इन परिवर्तनों को देखकर आसानी से यह अंदाजा लगा सकता है कि व्यक्ति किस प्रकार के संवेगों का अनुभव कर रहा है
आंतरिक शारीरिक परिवर्तन – ऐसे परिवर्तन जो शरीर के अंदर होते हैं इनको बाहर से नहीं देखा जा सकता हैं इन शारीरिक परिवर्तनों को केवल कुछ ख़ास मशीन ( उपकरणों ) के माध्यम से ही जाना जा सकता है
वाहय शारीरिक परिवर्तन
वाहय शारीरिक परिवर्तन को तीन भागों में बाटा जा सकता हैं
मुखमण्डलीय अभिव्यक्ति में परिवर्तन – कहते है कि चेहरा मन का आईना होता हैं हम अपने अंदर जिस भी संवेग का अनुभव करते हैं वह संवेग हमारे चेहरे पर साफ़ साफ़ दिखाई ( अभिव्यक्त ) देता हैं
चेहरा संवेग का सबसे सशक्त और महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति मानी जाती हैं जब व्यक्ति प्रसन्न होता हैं तब उसको अपना चेहरा खिला हुआ दिखाई देता हैं, जब व्यक्ति दुःख में होता हैं तब उसका चेहरा दुःख के कारण लटक जाता हैं,
जब व्यक्ति गुस्से ( क्रोध ) में होता है तब उसकी आँखे लाल, होठ कांपने, और व्यक्ति दांत पिसने लगता हैं इसी प्रकार से विभिन्न प्रकार के भिन्न भिन्न प्रकार के संवेगों में भिन्न भिन्न प्रकार के चेहरे की अभिव्यक्तियाँ देखने में आती हैं
स्वर की अभिव्यक्ति में परिवर्तन – जब व्यक्ति संवेग की अवस्था में होता हैं तो उसके स्वर में परिवर्तन आ जाता हैं जब हम प्रेम संवेग का अनुभव करते है तब हमारा स्वर मीठा ( मधुर ) हो जाता हैं, क्रोध की अवस्था में स्वर भारी हो जाता हैं
भय के संवेग में व्यक्ति की आवाज नहीं निकलती हैं उसका स्वर कांपने लगता हैं, इसी प्रकार से विभिन्न संवेगों में स्वर में परिवर्तन देखा जाता हैं
आसनिक अभिव्यक्ति में परिवर्तन – जब हम संवेग की अवस्था में होते हैं तो हमारे पुरे शरीर की स्थिति में परिवर्तन दिखाई देता हैं हमारे बैठने, खड़े होने के तरीके में अंतर आ जाता हैं
उदहारण के लिए, जब हम क्रोध की अवस्था में होते है तब हम एक जगह स्थिर नहीं रहते है बल्कि इधर उधर घूमते हैं, गली गलोज करते है, प्रहार करते हैं, दांत पिसते हैं, जब हम हर्ष का अनुभव करते हैं तो हम हर्ष की अवस्था में उछालते है, नाचते है, गले लगाते है, ताली बजाते हैं
आंतरिक शारीरिक परिवर्तन
ह्रदय की गति में परिवर्तन – जब हम किसी भी इमोशन का अनुभव करते है तो हमारी ह्रदय गति में बदलाव ( परिवर्तन ) आ जाते हैं और हमारे ह्रदय की गति या तो बढ़ जाती है या धीमी हो जाती हैं
जब हम क्रोध की अवस्था में होते हैं तो हमारे ह्रदय कीज गति बढ़ जाती हैं, जब हम शोक की अवस्था में होते है तो हमारा ह्रदय धीमी गति से काम करता है ह्रदय की गति का मापन ( ECG ) इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ यंत्र के द्वारा किया जाता हैं
रक्तचाप में परिवर्तन – रक्तचाप को मापने के लिए प्लेथिसोग्राफ ( Plethysmograph ) यंत्र का उपयोग किया जाता हैं किसी विशेष संवेग में व्यक्ति का रक्तचाप बढ़ सकता है उदहारण के लिए, क्रोध की अवस्था में रक्तचाप बढ़ जाता हैं,
शोक की अवस्था में रक्तचाप घट जाता है लेकिन रक्तचाप के घटने बढ़ने के द्वारा मनुष्य झूठ बोल रहा है या नहीं इसका अध्ययन किया जा सकता है जो आपराधि को पकड़ने के लिए लाई डिटेक्टर टेस्ट का उपयोग किया जाता है
उसमे रक्तचाप के द्वारा ही मनुष्य झूठ बोल रहा है या नहीं इसका पता लगाया जाता हैं लेकिन कुछ लोगों में झूठ बोलने की इतनी अधिक आदत होती हैं कि उनके रक्तचाप में कोई परिवर्तन नहीं आता हैं
ऐसी अवस्था में चालक आपराधि का पता लगाना मुश्किल काम हो जाता हैं
रक्त रसायन में परिवर्तन – हमारे रक्त में उपस्थित रसायन को यंत्रों के द्वारा मापकर संवेगों का पता लगाया जा सकता हैं क्योकि जब भी व्यक्ति किसी इमोशन का अनुभव करता हैं तो उसके रक्त रसायन में परिवर्तन आता हैं
रसपरिपाक में परिवर्तन – जब भी हम भोजन करते हैं तो हमारे शरीर में भोजन के पाचन के लिए कुछ रस निकलते हैं तो जब व्यक्ति इमोशन का अनुभव करता हैं तो ऐसे में भोजन का पाचन कुछ समय के लिए बंद हो जाता हैं
क्योकि हमें अतिरिक्त त्वरित ऊर्जा की जरुरत होती है जिससे हम इमोशन में अपनी शारीरिक क्रियाओं को कर सकें ऐसे में भोजन का पाचन कुछ समय के लिए बंद हो जाता है
उदहारण के लिए, अगर मनुष्य क्रोध की अवस्था में हैं तो वह आक्रमण, गाली गलोज, वार करने के लिए विभिन्न प्रकार की ऊर्जा की जरुरत होती है वह हमें प्राप्त हो सकें इसीलिए भोजन का पाचन उस समय बंद हो जाता हैं
साँस की गति में परिवर्तन – जब भी संवेग की स्थिति होती हैं तो साँस की गति में निश्चित रूप से परिवर्तन होता है जब व्यक्ति क्रोध का संवेग अनुभव करता हैं तो उसके ह्रदय की गति बढ़ जाती हैं, आश्चर्य के संवेग में,
भय और दुःख के संवेग में ह्रदय की गति कम हो जाती हैं तो उसकी वजह से हमारी साँस की गति भी कम हो जाती है मतलब भय, आश्चर्य और दुःख के संवेग में साँस की गति कम हो जाती है
या कुछ समय के लिए रुक जाती है और क्रोध के संवेग में साँस की गति बढ़ जाती है साँस की गति को मापने के लिए न्यूमोग्राफ ( Pneumograph ) यंत्र का उपयोग किया जाता हैं
वैधुत त्वक् अनुक्रिया में परिवर्तन – जब भी हम इमोशन का अनुभव करते हैं तो हमारी त्वचा में एक तरह का रुमांच पैदा होता हैं हमारे रोंगटे खड़े हो जातें हैं या फिर जो पसीने की ग्रंथियाँ होती हैं उनमे परिवर्तन दिखाई पड़ता हैं
इसका मापन साइकोगैल्वनोमीटर ( Psychogalvanometer ) के द्वारा किया जाता हैं उदहारण के लिए, जब हम क्रोध की अवस्था में होते है तो हमारी स्किन में गुस्से के कारण पसीना आ जाता हैं
मस्तिष्क तरंगों में परिवर्तन – जब हम संवेग की अवस्था में होते हैं तो हमारे मस्तिष्क की तरंगो में परिवर्तन देखा जाता है जिसको ( E.E.G ) इलेक्ट्रोइन्सेफलोग्राम के द्वारा मापा जाता हैं
मस्तिष्क की तरंगो संवेग की अवस्था में ऊँची या नीची बनती हैं तो इनके द्वारा भी विभिन्न प्रकार के संवेगों को मापा जा सकता हैं
जेम्स-लैंग सिद्धांत ( James-Lange Theory )
सन 1884 में प्रसिद्ध अमेरिकी मनोवैज्ञानिक विलियम जेम्स ने संवेग का अपना एक सिद्धांत प्रकाशित किया और सन 1885 में डेनमार्क के दैहिक मनोवैज्ञानिक कार्ल लैंग ने स्वतंत्र रूप से अपना एक सिद्धांत प्रस्तुत किया
इन दोनों ही मनोवैज्ञानिकों के सिद्धांत में इतनी ज्यादा एकरूपता थी जिसके कारण इन दोनों के सिद्धांत को संयुक्त रूप से जेम्स-लैंग सिद्धांत ( James-Lange Theory ) का नाम दिया गया
यह सिद्धांत संवेग का सबसे पुराना सिद्धांत है इस सिद्धांत से पहले ये विश्वाश किया जाता था कि पहले संवेगात्मक अनुभूति होती हैं तब संवेगात्मक व्यवहार होता हैं मतलब हम पहले अनुभूति महसूस करते है उसके बाद हम व्यवहार करते है
यानी पहले हमें दुःख की अनुभूति ( अनुभव ) होता हैं तब हम रोने का व्यवहार करते हैं लेकिन विलियम जेम्स ( William James ) और कार्ल लैंग ( Carl Lange ) ने इस विचार को नहीं माना
उन्होंने कहा कि संवेगात्मक व्यवहार पहले होता है और संवेगात्मक अनुभूति बाद में | यानी पहले हम रोने का व्यवहार करते हैं उसके बाद हमे दुःख की अनुभूति ( अनुभव ) होता हैं उनके अनुसार जब कोई संवेगात्मक परिस्थिति उत्पन्न होती हैं
तो व्यक्ति के शरीर में कई शारीरिक परिवर्तन होते हैं और जब इन शारीरिक परिवर्तनों की सूचना व्यक्ति को होती हैं मतलब व्यक्ति शारीरिक परिवर्तनों का प्रत्याक्षीकरण करता हैं तब उसे संवेगात्मक अनुभूति होती हैं
मनुष्य के शरीर में स्थित ज्ञानेंद्रियों के सामने कोई संवेगात्मक परिस्थिति या उद्दीपक आता हैं तो हमारी ज्ञानेंद्रियों में स्नायु प्रवाह उत्पन्न होता हैं जोकि कॉटेक्स में जाता हैं तब उस व्यक्ति को संवेगात्मक परिस्थिति ( जिसके कारण संवेग उत्पन्न होगा )
उसका पता चलता हैं कॉटेक्स इस संवेगात्मक उद्दीपक की सूचना मांसपेशियों और आंतरिक अंग ( ग्रंथियों ) में भेजता हैं जिसके कारण हमारी मांसपेशियों और आंतरिक अंग ( ग्रंथियों ) में शारीरिक परिवर्तन होने लगते हैं
जब इन शारीरिक परिवर्तनों की सूचना कॉटेक्स में पहुँचती हैं तब हमें संवेग का अनुभव होता हैं सरल भाषा में इस सिद्धांत के अनुसार पहले संवेगात्मक परिस्थिति का प्रत्याक्षीकरण होता है
उसके बाद संवेगात्मक व्यवहार होता है और फिर संवेग की अनुभूति होती हैं जेम्स-लैंग ने अपने सिद्धांत के लिए क्या कहा
अपने सिद्धांत की पुष्टि में जेम्स ने लिखा है कि हम दुःख का अनुभव करते है क्योकि हम रोते हैं, क्रोधित होते हैं क्योकि हम मारते हैं, हम डरते हैं क्योकि हम कांपते हैं ऐसी बात नहीं है कि हम रोते, मारते या कांपते हैं,
क्योकि हम दुःख, क्रोध या डर का अनुभव करते हैं मेरा सिद्धांत यह है कि किसी उत्तेजनात्मक वस्तु को देखकर हमारे शरीर में परिवर्तन होते हैं और इन परिवर्तनों की जो अनुभूति होती हैं वही संवेग हैं
जेम्स द्वारा अपने सिद्धांत के पक्ष में तर्क या प्रमाण
पहला प्रमाण – यदि संवेगात्मक व्यवहार न हो तो संवेगात्मक अनुभूति भी नहीं होगी मतलब हमारे विभिन्न अंगों में व्यवहार न हो तो हम संवेग का अनुभव नहीं करेंगे उदहारण के लिए, भालू को अगर हम जंगल में देखते हैं तब हमे भय का अनुभव होता हैं
लेकिन अगर उसी भालू को सर्कस में देखते हैं तब हमे भय का अनुभव नहीं होता हैं ऐसा इसीलिए होता है क्योकि जंगल में भालू को देखकर हम भागने का व्यवहार करते हैं जबकि जब हम सर्कस में भालू को देखते हैं तब हम भागते नहीं हैं ऐसे में,
जब हम जंगल में भालू को देखकर भागने जैसी शारीरिक क्रियाएं ( व्यवहार ) करते हैं तब हमे भय का अनुभव होता हैं लेकिन जब हम सर्कस में भालू को देखते हैं तब भागते या कॉपते नहीं नहीं हैं जिसके कारण हमे भय के संवेग का अनुभव नहीं होता है
दुसरा प्रमाण – यदि हम अंधेरे में अचानक कोई वस्तु देखते है तो उसके देखने से ही हमारी ह्रदय एंव सांस की गति कुछ समय के लिए रुक जाती हैं या मंद पड़ जाती हैं तो इसके रुकने के पूर्व हमें भय की अनुभव नहीं होता हैं बल्कि,
जब ह्रदय एंव सांस की गति कुछ समय के लिए रुक जाती हैं या मंद पड़ जाती हैं तब हमे उसके बाद संवेग का अनुभव होता हैं
तीसरा प्रमाण – मद्य पदार्थ ( जैसे शराब ) अथवा अन्य उत्तेजक पदार्थो के सेवन से व्यक्ति के शरीर में कुछ शारीरिक परिवर्तन होते है जिससे स्वत: ही विभिन्न प्रकार के संवेग जैसे आमोद साहस आदि के संवेग उत्पन्न होते हैं
चौथा प्रमाण – यकृत के रोग के कारण व्यक्ति में अवसाद व चिडचिडापन उत्पन्न होता हैं, स्नायुविक रोग निराशा एंव भय उत्तपन करते हैं
पांचवा प्रमाण – कृत्रिम या बनावटी ढंग से जब शारीरिक अंगों की अभिव्यक्ति प्रदर्शित की जाती है तो उससे संवेग उत्पन्न होता हैं जैसे जो फिल्म और नाटक में अभिनय करने के दौरान कलाकार कृत्रिम हाव-भाव का प्रदर्शन करते हैं
तब उन्हें उसी से सम्बंधित संवेगों का अनुभव होता हैं यह बनावटी व्यवहार उनमे संवेग को जाग्रत कर देते हैं जिससे उनका अभिनय बिल्कुल रियल हो जाता हैं
जेम्स-लैंग सिद्धांत की आलोचना
शेरिंगटन – ने इस सिद्धांत की आलोचना करते हुए कहा कि संवेगात्मक व्यवहार वास्तव में संवेगात्मक अनुभूति का आधार नहीं हैं
इसके लिए उन्होंने एक प्रयोग किया जिसमे एक कुत्ते की गर्दन के पास के कुछ ऐसे नर्वस को काट दिया जिससे शारीरिक उपद्रव की सूचना कॉटैक्स में जाना बंद हो जाए इसके बावजूद भी कुत्ते में भय, क्रोध आदि संवेग देखे गए
कैनन – ने भी इस सिद्धांत को स्वीकार नहीं किया उन्होंने बिल्ली पर प्रयोग करके सिद्ध किया कि संवेगात्मक अनुभव के लिए संवेगात्मक व्यवहार का ज्ञान आवश्यक नहीं हैं इसको सिद्ध करने के लिए कैनन ने अपने प्रयोग में,
बिल्ली की सहानुभूतिक स्नायु ( Sympathetic Nerve ) को काट दिया जिसके कारण शारीरिक उपद्रव का ज्ञान बिल्ली को होना संभव नहीं था अगर जेम्स लैंग सिद्धांत सही होता तो उसके अनुसार,
बिल्ली को किसी प्रकार के संवेग का अनुभव नहीं होना चाहिए था लेकिन बिल्ली में पहले की तरह सभी संवेग देखे गए
डॉक्टर डाना – के अध्ययन से भी यह सिद्धांत गलत सिद्धांत था उन्होंने एक ऐसी स्त्री का अध्ययन किया जो घोड़े पर से गिर गई थी जिसके कारण उसका सहानुभूतिक स्नायु नष्ट हो गया था जिसकी वजह से शारीरिक परिवर्तनों की सूचना कॉटैक्स तक जाना,
संभव नहीं था जेम्स-लैंग सिद्धांत के अनुसार उस स्त्री को किसी भी तरह के संवेगों का अनुभव नहीं होना चाहिए था क्योकि उसे किसी भी तरह के शारीरिक परिवर्तन की सुचना नहीं मिल पा रही थी परन्तु, उसको सभी प्रकार के संवेगों का अनुभव हो रहा था
शैशटर – ने अपने प्रयोग में प्रयोज्य को एड्र्नीन का इंजेक्शन दिया जिसकी वजह से उस प्रयोज्य में शारीरिक उपद्रव उत्पन्न किया लेकिन प्रयोज्य को किसी भी इमोशन का अनुभव नहीं हुआ
यदि शारीरिक उपद्रव ही संवेगात्मक अनुभूति का आधार होता तो उसे संवेग का अनुभव होना चाहिए था जबकि ऐसा नहीं हुआ
आर्चर – ने अभिनेता अभिनेत्रियों का अध्ययन किया और पाया कि उन्हें उसी तरह के संवेगों का अनुभव नहीं होता जिस तरह के व्यवहार का वे अभिनय करते हैं
उदहारण के लिए, वह रोने का अभिनय जरुर करते हैं लेकिन उनको दुःख के इमोशन का अनुभव नहीं होता हैं
इन सभी आलोचना के द्वारा यह स्पष्ट है कि इस सिद्धांत में अनेक दोष हैं लेकिन फिर भी विलियम जेम्स पहले मनोवैज्ञानिक थे,
जिन्होंने संवेग में शारीरिक परिवर्तन के महत्त्व का व्यवस्थित अध्ययन किया और इमोशन का यह प्राथमिक सिद्धांत है जो आज भी जीवित हैं और कल भी जीवित रहेगा
संवेग का कैनन – बार्ड सिद्धांत ( Cannon-Bard Theory Of Emotion )
यह सिद्धांत वाल्टर कैनन ( Walter Cannon ) और फिलिप बार्ड ( Philip Bard ) के द्वारा दिया गया था यह दोनों अमरिकन मनोवैज्ञानिक थें परन्तु इस सिद्धांत का प्रतिपादक मूल रूप से वाल्टर कैनन ( Walter Cannon ) के द्वारा किया गया था
लेकिन फिलिप बार्ड ( Philip Bard ) ने अपनी रिसर्च और अध्ययन में इस सिद्धांत का पूरा समर्थन किया जिसके कारण इनको भी इस सिद्धांत का नाम दिया गया इसीलिए इन दोनों के नाम पर इस सिद्धांत का नाम रखा गया हैं
सिद्धांत के अन्य नाम – हाइपोथैलेमिक सिद्धांत ( Hypothalamic Theory ), केन्द्रीय सिद्धांत ( Central Theory ), आकस्मिक सिद्धांत ( Emergency Theory )
हाइपोथैलेमिक सिद्धांत- इस सिद्धांत को हाइपोथैलेमिक सिद्धांत इसीलिए कहते है क्योकि इसमें हाइपोथैलेमस को बहुत महत्वपूर्ण स्थान दिया गया हैं मतलब कैनन का यह मानना है कि संवेगों में हाइपोथैलेमस का रोल बहुत इम्पोर्टेन्ट है
हाइपोथैलेमस – मस्तिष्क का एक छोटा सा भाग होता है
केन्द्रीय सिद्धांत – इस सिद्धांत कोकेन्द्रीय सिद्धांत इसीलिए कहते है क्योकि हाइपोथैलेमस केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र ( CNS ) का एक भाग होता हैं
आकस्मिक सिद्धांत – इस सिद्धांत को आकस्मिक सिद्धांत इसीलिए कहते है क्योकि हाइपोथैलेमस अग्र मस्तिष्क का एक भाग होता है जोकि पियूष ग्रंथि को नियंत्रण करने का काम करता है और पियूष ग्रंथि हमारे शरीर में सभी,
अंतःस्रावी ग्रंथियों पर नियंत्रण करने का काम करती है और यह सभी अंतःस्रावी ग्रंथियां इमरजेंसी की स्थिति में विभिन्न प्रकार का हार्मोन स्राव करती हैं इस हार्मोन के कारण हम विभिन्न प्रकार के संवेगात्मक स्थिति का सामना कर पाते हैं
कैनन-बार्ड का सिद्धांत जेम्स-लैंग सिद्धांत के विरोध में प्रस्तुत की गया था क्योकि जेम्स-लैंग सिद्धांत के अनुसार संवेगों का अनुभव शारीरिक परिवर्तनों पर निर्भर हैं मतलब पहले शारीरिक परिवर्तन होते है
उन शारीरिक परिवर्तनों के आधार पर ही हमें संवेगों का अनुभव ( महसूस ) होता हैं, जेम्स-लैंग की इस विचारधारा को कैनन-बार्ड ने अपने सिद्धांत के द्वारा गलत सिद्धं किया कैनन-बार्ड सिद्धांत क्या हैं?
कैनन-बार्ड सिद्धांत के अनुसार संवेगात्मक व्यवहार ( संवेग की स्थिति में जो हमारे शरीर में शारीरिक परिवर्तन होते है ) और संवेगात्मक अनुभूति ( संवेगों का अनुभव ) दोनों की उत्पत्ति एक साथ स्वतंत्र रूप से होती हैं
इन दोनों की उत्पत्ति में ही महत्वपूर्ण भूमिका हाइपोथैलेमस निभाता हैं इसीलिए इस सिद्धांत को हाइपोथैलेमिक सिद्धांत कहा जाता हैं
ज्ञानेंद्रियों के सामने जब कोई संवेगात्मक उद्दीपक ( संवेग उत्पन्न होने वाला उद्दीपक ) आता है तब हमारी ज्ञानेंद्रियों में नर्व इम्पल्स ( स्नायु प्रवाह ) उत्पन्न होता हैं जोकि ज्ञानवाही स्नायु के द्वारा मार्ग नंबर एक से कॉटेक्स में जाते हैं
परन्तु कॉटेक्स में जाने से पहले यह हाइपोथैलेमस में पहुँचते हैं लेकिन स्नायु प्रवाह के हाइपोथैलेमस में पहुँचने पर किसी भी प्रकार की क्रिया प्रारंभ नहीं होती हैं ऐसा इसीलिए होता है क्योकि हाइपोथैलेमस पर कॉटेक्स का पूरा नियंत्रण होता हैं
जब कॉटेक्स में ज्ञानवाही स्नायु संवेगात्मक उद्दीपक की सूचना लेकर पहुँचते हैं तो उस समय कॉटेक्स एक आदेश रिलीज करता है जोकि मार्ग नंबर तीन से हाइपोथैलेमस में पहुँचता हैं जिससे कि हाइपोथैलेमस पर कॉटेक्स का नियंत्रण ( अवरोध ) हट जाता है
उसके बाद हाइपोथैलेमस दो प्रकार की सूचनाएं ( आदेश ) रिलीज करता हैं यह दोनों सूचनाएं दो विभिन्न दिशाओं में जाती है एक तरफ यह मार्ग नंबर दो से नीचे की तरफ आती हैं मतलब हमारे आंतरिक अंगों में आती है
उसी समय यह मार्ग नंबर दो से हमारी मांसपेशियों में पहुँचती हैं जब यह सुचना मार्ग नंबर दो से हमारी मांसपेशियों और आंतरिक अंगों में पहुँचती हैं तो हमारे आंतरिक अंगों में विभिन्न प्रकार के परिवर्तन होते हैं
मतलब हमारी ग्रंथियों से हार्मोन रिलीज होने लगते है और मांसपेशियों में परिवर्तन होते है जिससे कुछ शारीरिक परिवर्तन बाहय रूप से होने लगते हैं उदहारण के लिए, भय की परिस्थिति में व्यक्ति भागने का व्यवहार करता हैं
तो यह भागना मांसपेशियों के द्वारा होता हैं और ठीक इसी समय जो कॉटेक्स में सूचना जाती हैं उसके द्वारा संवेगों का अनुभव होता है मतलब मांसपेशियों और आन्तरिक अंगों में परिवर्तन और संवेगों की अनुभूति यह दोनों क्रियाएं एक साथ होती हैं
चित्र में सबसे पहले उद्दीपक हैं जो एक गुर्राता कुत्ता है जो बहुत खूंखार लग रहा है अब यहाँ हमारी ज्ञानेंद्रियाँ ( चित्र के अनुसार आँखे और कान ) इस उद्दीपक की सूचना हमारे मस्तिष्क में पहुँचती हैं
मस्तिष्क का हाइपोथैलेमस सक्रिय हो जाता हैं ( हाइपोथैलेमस को इमोशन का केंद्र कहा जाता है ) यहाँ हाइपोथैलेमस दो सूचना रिलीज करता है जिसमे से एक सूचना हमारे शारीरिक अंगो में जाती है जिससे आंतरिक और बाहय शारीरिक परिवर्तन होते हैं
और उसी समय दुसरी सुचना हमारे मस्तिष्क में जाती है जो संवेग का अनुभव उत्पन्न करती हैं मतलब एक तरफ हमे भय का अनुभव होता है और दुसरी तरफ उस भय से सम्बंधित शारीरिक परिवर्तन होती हैं
मैं कांप ( शारीरिक परिवर्तन ) रहा हूँ और एक ही समय में डर ( संवेग का अनुभव ) महसूस कर रहा हूँ
कैनन-बार्ड सिद्धांत के गुण
- कैनन-बार्ड सिद्धांत के द्वारा पूर्व ( पहले ) में प्रतिपादित सिद्धांत ( जेम्स-लैंग सिद्धांत ) की भ्रांत धारणाओं को सुधारने का प्रयास किया गया
- ये सिद्धांत इस बात की व्याख्या करने में सफल हैं कि आंतरिक अंगों और कॉटेक्स के बीच सम्बन्ध समाप्त कर देने पर भी संवेगों का अनुभव क्यों होता हैं
कैनन-बार्ड सिद्धांत के दोष
- कैनन-बार्ड का सिद्धांत सिर्फ हाइपोथैलेमस को महत्त्व देता हैं, जबकि संवेगों की उत्पत्ति में हाइपोथैलेमस के अलावा तंत्रिका तंत्र ( Nervous System ) के अन्य भाग भी उत्तरदायी होते है
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निष्कर्ष
यह लेख इमोशन ( भावना ) का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ, प्रकार, भावनाओं में शारीरिक परिवर्तन और संवेग ( इमोशन ) के महत्वपूर्ण सिद्धांतों के विषय पर चर्चा किया हैं
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लेखक – नितिन सोनी
नमस्ते! मैं एनएस न्यूज़ ब्लॉग पर एक राइटर के रूप में शुरू से काम कर रहा हूँ वर्तमान समय में मुझे पॉलिटिक्स, मनोविज्ञान, न्यूज़ आर्टिकल, एजुकेशन, रिलेशनशिप, एंटरटेनमेंट जैसे अनेक विषयों की अच्छी जानकारी हैं जिसको मैं यहाँ स्वतंत्र रूप से शेयर करता रहता हूं मेरा लेख पढने के लिए धन्यवाद! प्रिय दुबारा जरुर आयें