अधिगम के सिद्धांत – सूझ एंव अनुबंधन का सिद्धांत ( Learning in Hindi ) 2024

अधिगम के सिद्धांत - सूझ एंव अनुबंधन का सिद्धांत ( Learning in Hindi ) 2024

Learning in Hindi: – अधिगम के सिद्धांत में सूझ और अनुबंधन का सिद्धांत महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं पढाई के दौरान अधिगम ( सीखने ) के सभी सिद्धांतों को समझना एक स्टूडेंट के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है

कोहलर का सिद्धांत सूझ का सिद्धांत हैं जिसमे कोहलर ( मनोवैज्ञानिक ) ने एक चिम्पैंजी पर प्रयोग किया था कोहलर ने एक भूखे चिम्पैंजी को एक ऐसे कमरे में बंद किया जिसकी छत पर कुछ केले लटके थें इस दौरान कोहलर ने,

उस चिम्पैंजी को भूख लगने पर उस छत से केले उतारना सिखाया जिसमे कोहलर के चिम्पैंजी ने अपनी सूझ का उपयोग किया था सीखने के सिद्धांत मतलब अनुबंधन सिद्धांत में स्किनर के द्वारा चूहे और पैवलव के द्वारा कुत्ते पर प्रयोग किया गया

अधिगम के सिद्धांत - सूझ एंव अनुबंधन का सिद्धांत ( Learning in Hindi ) 2024

नोट – अधिगम के सिद्धांत का वर्गीकरण मुख्य रूप से तीन रूप में किया गया है परन्तु अधिगम के तीन सिद्धांतों में से पहले सिद्धांत का संक्षेप में सीखने ( अधिगम ) के पहले भाग में वर्णन किया गया हैं 

चलिए अब हम सूझ के सिद्धांत को अच्छे से समझ लेते हैं

सूझ का सिद्धांत या अंतदृष्टि का सिद्धांत ( Insight Theory ) – सूझ का अर्थ ( Learning in Hindi ) – Learning Principles in Hindi?

Table of Contents

सूझ या अंतदृष्टि के सिद्धांत का प्रतिपादक कोहलर के द्वारा किया गया था यह जर्मनी के गेस्टाल्टवादी मनोवैज्ञानिक थें इन्होने इस सिद्धांत में प्रयोज्य के रूप में एक चिम्पैंजी को लिया था जिसका नाम सुलतान था

कोहलर के सिद्धांत के अनुसार, उच्चस्तरीय प्राणी तथा मनुष्य प्रयत्न एंव भूल द्वारा नहीं बल्कि अंतदृष्टि या सूझ-बुझ द्वारा सीखते है मतलब जब किसी मनुष्य के सामने कोई नयी परिस्थिति आती हैं तब उस नयी परिस्थिति में मनुष्य स्थिति को देखकर,

समझकर, सोचकर अनुक्रिया करता हैं प्राणी किसी न किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सीखता है और लक्ष्य प्राप्ति के लिए किए गए सभी प्रयास लक्ष्य-निर्देशित होते है मतलब प्राणी ऐसे प्रयास करता है

जिससे उसको उसका लक्ष्य प्राप्त हो जाए और अगर लक्ष्य प्राप्ति में बाधाएं उत्पन्न होने पर, मनुष्य अपनी सूझ का उपयोग करता हैं इसीलिए जब प्राणी के सामने कोई नई परिस्थिति आती है

तो वह उस परिस्थिति को समझकर उसके सभी अंगों में सम्बन्ध स्थापित करता हैं और उसी के अनुसार प्रतिक्रिया करता है इस प्रकार वह जो कुछ सीखता हैं उसे सूझ द्वारा सीखना कहते हैं इस प्रकार के सीखने को सूझ या अंतदृष्टि का सिद्धांत कहते है

कोहलर का चिम्पैंजी पर प्रयोग

कोहलर ने एक भूखे चिम्पैंजी को एक कमरे में बंद कर दिया था जिसमे तीन खाली संदूक रखे थे यह बॉक्स लकड़ी के थे उस कमरे की छत पर कुछ केले लटक रहे थे क्योकि चिम्पैंजी भूखा था इसीलिए चिम्पैंजी ने केले को उछल कूद करके लेने का प्रयास किया

परन्तु, केले इतनी ऊंचाई पर थें कि चिम्पैंजी उन तक नहीं पहुँच सकता था तब चिम्पैंजी ने कमरे में चारों तरफ नजर डाली हर चीज को ध्यान पूर्वक देखा उसने संदूकों का बहुत ध्यान से निरीक्षण किया

कुछ समय के बाद चिम्पैंजीने क्रम से उन बॉक्स को एक के ऊपर एक रखकर स्वयं उनके ऊपर चढ़ गया तथा उसने केले प्राप्त कर लिए चिम्पैंजी द्वारा केले प्राप्त करने के लिए सूझ अथवा अंतदृष्टि अपनाई गई थी

सूझ के सिद्धांत की विशेषताएं

  • सूझ के सिद्धांत का उपयोग केवल उच्च स्तरीय बौद्धिक जीवों ( प्राणी ) पर ही किया जा सकता हैं मतलब निम्न स्तर के प्राणी के लिए यह विधि उपयोगी नहीं हैं क्योकि सूझ केवल उच्च स्तरीय बौद्धिक जीवों ( प्राणी ) में ही होती है
  • इस विधि में शारीरिक योग्यता की अपेक्षा सुझबुझ अथवा समझ या बौद्धिक योग्यता का अधिक महत्त्व हैं उदहारण के लिए, थार्नडाइक ( अमेरिका मनोवैज्ञानिक ) के प्रयोग में बिल्ली हाथ पैर मारती थी मतलब शारीरिक योग्यता के आधार पर

उसने पिंजरे को खोलना सीखा परन्तु, कोहलर के प्रयोग में चिम्पैंजी ने अपनी बुद्धि का उपयोग करके ( बौद्धिक क्षमता ) केले प्राप्त करना सीखा था

  • सूझ के सिद्धांत में प्राणी का पूर्व अनुभव बहुत सहायता करते हैं क्योकि अपने पूर्व अनुभव से लाभ उठाकर व्यक्ति अपनी समस्याओ को बुद्धि के द्वारा हल कर सकता हैं
  • सूझ के फलस्वरूप संबंधित विषय – वस्तु के प्रत्यक्षीकरण में परिवर्तन आ जाता हैं सूझ विधि में पुरानी वस्तुओं को नवीन रूप में सगठित किया जाता हैं मतलब सूझ के सिद्धांत में वस्तुओं को देखने का हमारा नजरिया बदल जाता हैं अथार्थ हमारे प्रत्यक्षीकरण में अंतर आ जाता है

उदहारण के लिए, कोहलर के प्रयोग में चिम्पैंजी ने बॉक्स का उपयोग केले प्राप्त करने के लिए परन्तु बॉक्स का उपयोग मुख्य रूप से कोई समान रखने के लिए किया जाता है मतलब इस स्थिति में चिम्पैंजी के सोचने का नजरिया बदल गया

  • सूझ विधि में समस्या का हल एकाएक ( अचानक ) होता हैं उदहारण के लिए, कोहलर के प्रयोग में चिम्पैंजी ने केले प्राप्त करने के लिए जो तरिका अपनाया था वो तरिका उसे एकाएक ( अचानक ) सुझा था
  • जिस व्यक्ति या प्राणी की बौद्धिक स्तर जितना अधिक होता है वह उतनी ही अधिक सरलता से सूझ विधि को अपना सकता हैं
  • पशुओं की अपेक्षा मनुष्य इस विधि को अधिक अपनाते है क्योकि निम्न स्तर की बुद्धि वाले प्राणी की बुद्धि इतनी विकसित नहीं होती हैं इसीलिए वह इस विधि के द्वारा नहीं सीख सकते हैं
  • आयु के साथ साथ सूझ का भी विकास होता हैं क्योकि एक बच्चा में आयु बढ़ने के साथ साथ सूझ में विकास होता है इसीलिए छोटे बच्चे की अपेक्षा बड़े व्यक्ति में सूझ अधिक होती हैं
  • समय एंव अनुभव के साथ साथ सूझ में भी विकास होता हैं क्योकि कोई बच्चा जैसे जैसे बड़ा होता है उसके अनुभव का विकास होता हैं जिसके कारण उसमे सूझ का विकास होता हैं
  • जब किसी एक परिस्थिति में हम सूझ के द्वारा किसी समस्या का हल कर लेते हैं वैसी मिलती झूलती कोई समस्या जब हमारे सामने आती हैं तब हम उसका समाधान सूझ के द्वारा आसानी से कर लेते हैं

उदहारण के लिए, अगर स्टूडेंट गणित के किसी एक सवाल को सूत्र के माध्यम से हल कर लेता हैं तब हम उससे सम्बंधित गणित के अन्य प्रश्न को इस सूत्र का उपयोग करके हल कर लेते हैं

सूझ विधि द्वारा सीखने का शैक्षिक महत्त्व

प्राय: हम अपने दिन प्रतिदिन के जीवन में शिक्षा के क्षेत्र में सूझ विधि का उपयोग करते हैं –

  • सूझ विधि द्वारा सीखने पर समय की बचत होती हैं क्योकि सूझ विधि के प्रयोग में हम समस्या का हल सोच समझकर करते हैं जिससे हमारा समय बचता हैं
  • जब इस विधि को अपनाया जाता है तब व्यक्ति की बुद्धि, कल्पना – शक्ति, तर्क – शक्ति, समस्या – समाधान आदि मानसिक योग्यताओं का विकास होता हैं
  • शिक्षा के क्षेत्र में कठिन माने जाने वाले विषयों को समझने में यह विधि अधिक उपयोग होती है उदहारण के लिए गणित, विज्ञान आदि
  • व्यक्ति सूझ विधि द्वारा जीवन की अनेक जटिल समस्याओं का समाधान प्राप्त कर लेता हैं क्योकि सूझ का उपयोग करके मनुष्य अपने जीवन की जटिल समस्याओं को हल कर सकता हैं
  • विभिन्न परिस्थियों में हम उस परिस्थिति के विभिन्न अव्यवों ( अंगों ) को भलीभांति समझ लेते है जिसके बाद हम अपनी बुद्धि का उपयोग करके उनकी कड़ियों को जोड़कर अपनी समस्या का समाधान कर लेते है
  • जो नए – नए आविष्कार होते हैं उन अविष्कारों में भी सूझ विधि का विशेष योगदान होता हैं क्योकि इनमे सूझ विधि का प्रयोग किया जाता हैं

सूझ द्वारा सीखने की सीमाएं ( आलोचना )

कुछ वैज्ञानिकों ने इस विधि की आलोचना किया जिसमे कहा कि यह विधि केवल उच्च बुद्धि स्तर वाले प्राणी के लिए उपयोगी होती हैं मतलब कम बुद्धि स्तर वालें प्राणी के सीखने के लिए यह विधि उपयोगी नहीं होती हैं

क्योकि कम बुद्धि स्तर वालें प्राणी इस विधि का उपयोग करके नहीं सीख सकते हैं और इस विधि में समस्याओं का समाधान संयोगवश माना जाता है क्योकि इसमें कहा गया है कि समस्या का समाधान एकाएक होता हैं मतलब संयोगवश होता है 

प्रयास एंव त्रुटी विधि तथा सूझ विधि में अंतर 

प्रयास एंव त्रुटी विधि सूझ विधि
प्रयास एंव त्रुटी सिद्धांत का प्रयोग समान्यत: कोई भी कर सकता हैं चाहे उसकी बुद्धि उच्च स्तर हो या निम्न स्तर | लेकिन सूझ विधि का प्रयोग केवल उच्च बौद्धिक स्तर प्राणी के लिए उपयोगी होती हैं क्योकि उसका उपयोग केवल उच्च बुद्धि के प्राणी कर सकते हैं
प्रयास एंव त्रुटी विधि में शारीरिक कुशलता का अधिक महत्त्व होता है जबकि सूझ विधि में बौद्धिक क्षमता का महत्त्व अधिक होता हैं
प्रयास एंव त्रुटी विधि संवेदी-प्रेरक समायोजन पर आधारित हैं मतलब प्राणी के सेंस और संवेदी अंग का समायोजन पर यह सिद्धांत आधारित होता हैं परन्तु, सूझ विधि प्रत्यक्षीकरणं पर आधारित हैं मतलब हम अपनी आस पास की चीजों को किस तरह से देखते हैं
इस विधि में विभिन्न प्रयासों को बदल – बदल कर किया जाता हैं मतलब एक तरीके से हल नहीं हुआ तो दुसरी तरह से हल करना जबकि सूझ विशी में एक या दो बार में ही सफल प्रयास की चेष्टा की जाती है क्योकि इसमें बुद्धि का उपयोग किया जाता हैं
प्रयास एंव त्रुटी विधि के द्वारा पर्याप्त प्रयास के बाद सफलता मिलती है परन्तु सूझ विधि के द्वारा एक या दो प्रयास में एकाएक ( अचानक ) सफलता मिल जाती है
जब भी नवीन परिस्थिति आती हैं तब प्राणी को दुबारा प्रयास करने पड़ते है मतलब प्रत्येक नई समस्या के लिए नए सिरे से प्रयास करना पड़ता हैं लेकिन सूझ विधि के द्वारा किसी समस्या का हल प्राप्त कर लेने के बाद अन्य समरूप समस्याओं के हल में भी सहायता मिलती है इसीलिए इसमें नए सिरे से समाधान करने की जरुरत नहीं होती है

 

अनुबंधन का अर्थ? अनुबंधन का सिद्धांत ( Principles Of Learning in Hindi )

अनुबंधन वह प्रक्रिया हैं जिसमें एक प्रभावहीन उत्तेजना इतनी ज्यादा प्रभावशाली हो जाती हैं कि वो वांछित प्रत्युत्तर प्रकट करती हैं उत्तेजना के अभाव में वांछित प्रत्युत्तर एक प्राकृतिक अथवा सामान्य प्रत्युत्तर हैं

अनुबंधन सिद्धांत के दो रूप हैं

  1. प्राचीन अनुबंधन सिद्धांत ( Classical Conditioning Theory )
  2. नौमित्तिक अनुबंधन सिद्धांत ( Instrumental Conditioning Theory )

प्राचीन अनुबंधन सिद्धांत ( Classical Conditioning Theory )

प्राचीन अनुबंधन सिद्धांत का प्रतिपादक आई पी पैवलव ( I.P Pavlov ) के द्वारा किया गया था यह रूस के शरीरशास्त्री थें जिन्होंने 1904ई में अनुबंधन सिद्धांत का प्रतिपादक किया था इसके कारण इनको अनुबंधन का जनक कहा जाता हैं

कुछ अन्य नाम – सम्बद्ध प्रत्यावर्तन सिद्धांत, सम्बद्ध प्रतिक्रिया सिद्धांत, अनुबंधित प्रतिक्रिया सिद्धांत, अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धांत, क्लासिकी/शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत

( यह सभी नाम केवल इस सिद्धांत के हैं आसानी के लिए आप अंग्रेजी के शब्द Conditioned Response/ Conditioning को याद रख सकते है पैवलव ने अपने प्रयोग में कुत्ते का उपयोग किया हैं )

इनके सिद्धांत के अनुसार, जब कोई स्वाभाविक उद्दीपक प्राणी के सामने उपस्थित होता है तो वह उसके प्रति स्वाभाविक प्रतिक्रिया करता हैं मतलब सभी प्राणी एक जैसी प्रतिक्रिया करते है

उदहारण के लिए – गर्म बर्तन के छुते ही हाथ पीछे खीच लेना, भूखा होने पर भोजन देखकर मुंह में लार आना | लेकिन जब स्वाभाविक उद्दीपक के साथ कोई अन्य तटस्थ उद्दीपक ( जिसका संबंध उस स्थिति या परिस्थिति से नहीं हैं )

बार बार उपस्थित किया जाता है तो कुछ प्रयास करने के बाद ऐसा होता है कि जो स्वभाविक प्रतिक्रिया अभी तक स्वभाविक उद्दीपक के प्रति हो रही है वह उस तटस्थ उद्दीपक के प्रति उत्पन्न होने लगती हैं इस स्थिति को अनुबंधन कहते हैं

पैवलव का कुत्ते पर प्रयोग

पैवलव नेऑपरेशन द्वारा कुत्ते के जबड़े में एक रबड़ की नली इस प्रकार फिट कर दिया कि मुंह से निकलने वाली लार, नली से होकर बाहर आ जाती थी, इस प्रकार लार की एक बूंद के दसवें भाग का भी मापन किया जा सकता था

अब भोजन को देखकर मुँह में लार आना एक बहुत स्वाभाविक प्रतिक्रिया है इस परिस्थिति में भोजन एक स्वाभाविक उद्दीपक है जिसको देखकर लार आना या लार का स्राव होना एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है

यहाँ कुत्ता भूखा था और उस भूखे कुत्ते को भोजन देना था भूखे कुत्ते को भोजन देने से पूर्व घंटी बजाई जाती हैं जब यह प्रक्रिया कई बार दोहराई गयी कुछ प्रयासों के बाद घंटी बजते ही कुत्ते के मुँह से लार का स्राव होने लगा

क्योकि कुत्ते को जब बार बार घंटी बजने के बाद भोजन मिलता था तब उसके दिमाग में यह बात बैठ गई कि घंटी बजने के बाद ही मुझे भोजन मिलता हैं इस प्रकार कुत्ते ने भोजन के प्रति होने वाली प्रतिक्रिया को घंटी के साथ सम्बद्ध ( जुड़ ) कर लिया

इसको अच्छे से समझने के कुछ अंग्रेजी अर्थ को समझ लीजिए

  1. CS – Conditioned Stimulus ( अस्वाभाविक उद्दीपक )
  2. UCS – Unconditioned Stimulus ( स्वाभाविक उद्दीपक )
  3. CR – Conditioned Response ( अनुबंधन प्रतिक्रिया )
  4. UCR – Unconditioned Conditioned Response ( स्वाभाविक प्रतिक्रिया )

प्रथम ( पहले ) चरण ( Before Conditioning )

भोजन ( UCS ) ( स्वाभाविक उद्दीपक )  ———–  लार का स्राव ( UCR ) ( स्वाभाविक प्रतिक्रिया )

द्रितीय ( दुसरे ) चरण ( Before Conditioning )

नोट – इस प्रक्रिया को काई बार दोहराया गया था 

घंटी ( CS ) ( अस्वाभाविक उद्दीपक ) + भोजन ( UCS ) ( स्वाभाविक उद्दीपक )  ——  लार का स्राव ( UCR ) ( स्वाभाविक प्रतिक्रिया )

तृतीय ( तीसरे ) चरण ( After Conditioning )

घंटी ( CS ) ( अस्वाभाविक उद्दीपक )  ———–  लार का स्राव ( CR ) ( अनुबंधन प्रतिक्रिया )

सम्बद्ध प्रत्यावर्तन सिद्धांत का शैक्षिक महत्त्व ( प्राचीन अनुबंधन सिद्धांत )

  1. बच्चों में अच्छी आदतों के निर्माण में सहायक होता हैं
  2. छात्रों में अनुशासन स्थापित करने में इस सिद्धांत का उपयोग किया जाता हैं
  3. भय को दूर करने में यह सिद्धांत सहायक होता है
  4. समायोजन स्थापित करने में यह उपयोगी होता हैं
  5. बुरी आदतों को दूर करने में सहायक होता हैं
  6. पढने लिखने तथा वर्तनी ( Spelling ) सीखने में विशेष सहायक होता हैं मतलब बहुत महत्वपूर्ण होता हैं
  7. पुरस्कार तथा दण्ड व्यवस्था को लागू करने में सहायक होता हैं

प्राचीन अनुबंधन सिद्धांत की आलोचना

  1. यह सिद्धांत केवल सरल क्रियाओं के संदर्भ में लागू होता हैं जहाँ पर जटिल क्रियाएं आ जाती है वहां यह सिद्धांत काम नहीं करता हैं
  2. इस सिद्धांत में पुनरावृत्ति और अभ्यास पर अधिक बल दिया गया हैं
  3. इस सिद्धांत में व्यवहार को यांत्रिक रूप में मानता हैं मतलब इस सिद्धांत में प्राणी के द्वारा किया गया व्यवहार मशीनी ( यंत्र की तरह ) हैं
  4. अनुबंधन पर आधारित व्यवहार अस्थायी होता है क्योकि पुनर्बलन के अभाव में अनुकूलित व्यवहार स्वत: ही लुप्त हो जाता हैं मतलब कुछ प्रयास ऐसे किये जाए जिसमे कुत्ते को पुनर्बलन ( भोजन ) प्राप्त न हो,

तब कुछ प्रयासों के बाद कुत्ता घंटी की आवाज पर लार का स्राव करना छोड़ देगा क्योकि उसको यह पता लग जाएगा कि जब घंटी बजती हैं भोजन हमें नहीं मिलता हैं ऐसी स्थिति में उसके द्वारा सीखा गया व्यवहार लुप्त हो जाएगा

नौमित्तिक अनुबंधन सिद्धांत ( Instrumental Conditioning Theory )

नौमित्तिक अनुबंधन सिद्धांत का प्रतिपादक बी. एफ. स्किनर ( B.F Skinner ) ने किया था यह एक अमेरिकन थे इन्होने 1938ई में इस सिद्धांत का प्रतिपादक किया था

कुछ अन्य नाम – ( R-S Theory मतलब Response- Stimulus Theory ) अनुक्रिया-उद्दीपन सिद्धांत, क्रियाप्रसूत अनुबंधन सिद्धांत ( Operant Conditioning Theory ), सक्रिय अनुबंधन सिद्धांत, साधनात्मक अनुबंधन सिद्धांत

नौमित्तिक अनुबंधन का अर्थ

पुनर्बलन या पुरस्कार की प्राप्ति प्रयोज्य की अनुक्रियाओं पर निर्भर करती है प्रयोज्य की अनुक्रिया, पुनर्बलन ( Reinforcement )/पुरस्कार के लिए निमित्त ( कारण ) है जिसे नौमित्तिक अनुबंधन कहा जाता है

मतलब जब प्रयोज्य के द्वारा प्राणी जो अनुक्रिया करता हैं जब वह पुरस्कार प्राप्त के लिए कारण बन जाती हैं इस प्रकार के सीखने को नौमित्तिक अनुबंधन कहा जाता हैं

पुनर्बलन का मतलब कोई भी वह उद्दीपक जोकि किसी प्राणी को कोई कार्य करने के लिए बल ( Force ) करता हैं क्योकि उस कार्य को करने से पुरुस्कार प्राप्त होते हैं ऐसी स्थिति में हम उस कार्य को करने के प्रति बहुत अग्रेसिव रहते हैं मतलब उस कार्य को हम अधिक करते हैं

पुनर्बलन दो प्रकार का होता हैं

  1. सकारात्मक पुनर्बलन
  2. नकारात्मक पुनर्बलन

सकारात्मक पुनर्बलन – जोकि प्राणी को कोई कार्य करने करने को प्रेरित करता हैं मतलब अगर किसी बच्चे एक पाठ याद करने पर टॉफी दिया जाए तो वह उस काम को बार बार करता है

नकारात्मक पुनर्बलन – जोकि प्राणी को कोई कार्य करने करने से विमुख करता हैं मतलब प्राणी उस कार्य को करने से पीछे हटता है

कोई भी अनुक्रिया जो प्राणी कर रहा है वह दोबारा होगी या नहीं होगी यह उस बात पर निर्भर करता हैं कि उस के द्वारा किया गया व्यवहार या प्रतिक्रिया का क्या परिणाम मिला मतलब सकारात्मक परिणाम है या नकारात्मक परिणाम हैं

उदहारण के लिए, अगर कोई बच्चा चोरी करता हैं और उसे कोई व्यक्त बराबर श्रय देता हैं कि नहीं तुमने यह बहुत अच्छा काम किया हैं यह बच्चे के लिए एक सकारात्मक परिणाम हैं इस स्थिति में बच्चा चोरी करना भविष्य में जारी रखेगा

लेकिन अगर बच्चे के द्वारा चोरी करने पर उसको पहले बार में थोडा डाट दिया जाए या पिटाई कर दिया जाए तब यह उसके लिए एक नकारात्मक परिणाम हैं इस स्थिति में बच्चा भविष्य में उस कार्य मतलब चोरी को नहीं करेगा

स्किनर का चूहे का प्रयोग

स्किनर ने अपने प्रयोग में प्रयोज्य के रूप में एक चूहे को लिया था और स्किनर ने एक विशेष बॉक्स तैयार किया जिसे उन्होंने स्किनर बॉक्स ( Skinner Box ) का नाम दिया इस स्किनर बॉक्स में एक लीवर लगा हुआ था जिसको दबाने पर घंटी की आवाज होतीं थी

इस घंटी की आवाज के तुरंत बाद बॉक्स में रखी हुई ट्रे में भोजन गिरता था इस दौरान चूहा उस लीवर को दबाने के लिए पुरी तरह से स्वतंत्र था मतलब जब उसकी इच्छा होगी वह लीवर को दबाएगा जब उसकी इच्छा नहीं होगी वह लीवर को नहीं दबाएगा

इस दौरान चूहा भूख लगने पर बॉक्स में उथल – पुथल करता था चूहा इधर-उधर चक्कर लगाता रहा जिसके कारण उससे लीवर दब जाता था जिसके बाद उसको भोजन मिल जाता था

मतलब चूहा जितनी बार चाहता था वह लीवर दबाता था और जब भी चूहा लीवर को दबाता था उतनी बार घंटी की आवाज के साथ ट्रे में भोजन गिरता था अनेक प्रयासों के बाद, चूहा लीवर दबाकर भोजन प्राप्त करना सीख गया

नोट – यहाँ पर चूहे ने जो भी व्यवहार किया वह पुरुस्कार पाने के लिए कारण बना इसी को नौमित्तिक अनुबंधन कहा जाता हैं क्योकि इसमें प्राणी का व्यवहार पुरुस्कार पाने के लिए कारण होता हैं 

नौमित्तिक अनुबंधन के प्रकार

कोनॉस्क्री के अनुसार नौमित्तिक अनुबंधन चार प्रकार के होते हैं

  1. पुरुस्कार नौमित्तिक अनुबंधन
  2. परिहार नौमित्तिक अनुबंधन
  3. अकर्म नौमित्तिक अनुबंधन
  4. दंड नौमित्तिक अनुबंधन

पुरुस्कार नौमित्तिक अनुबंधन – यह अनुबंधन हमने स्किनर के चूहे के प्रयोग में देखा कि इसमें जो अनुबंधन होता हैं उसके व्यवहार ( प्रतिक्रिया ) के होने पर पुरुस्कार प्राप्त होता हैं प्रयोग में चूहा लीवर को दबाता था तब उसे भोजन मिल जाता था

परिहार नौमित्तिक अनुबंधन – इस प्रकार के अनुबंधन में प्राणी को पीड़ादायक उद्दीपकों से बचना होता हैं वाट्सन ने एक प्रयोग किया जिसमें एक कुत्ते को एक ऐसे कमरे में रखा गया जहाँ पर फर्श पर एक करंट प्रवाहित होता था

यह करंट हानिकारक नहीं था परन्तु उससे पैन ( दर्द ) होता था यहाँ कुत्ते को लाइट जलते ही या प्रकाश होते ही अपना अगला पैर उठाना होता था अगर कुत्ता अगला पैर उठा लेता था तब फ़र्श पर करंट नहीं छोड़ा जाता था

परन्तु, अगर कुत्ता अपने पैर नहीं उठाता था तब फर्श पर करंट छोड़ दिया जाता था इसीलिए इस प्रकार के अनुबंधन में प्राणी ( कुत्ते ) को पीड़ादायक उद्दीपकों ( करंट ) से बचने के लिए प्रतिक्रिया ( प्रकाश चलने पर अपना अगला पैर उठाना ) करनी थी

साधारण शब्दों में हम यह कह सकते है कि इस प्रकार के उद्दीपकों में पीड़ा पहुंचाने वाले उद्दीपकों से बचना सीखना होता हैं

अकर्म नौमित्तिक अनुबंधन – जिसमे प्राणी को किसी ख़ास अनुक्रिया को न करना सीखना होता हैं कोनॉस्क्री ने एक प्रयोग किया जिसमें उन्होंने कुत्ते को मेट्रोनॉम की आवाज पर पैर ना उठाना सीखाया

प्रयोग शुरू करने के दौरान, शुरुआत में उन्होंने मेट्रोनॉम की आवाज किया और कुत्ते का पैर खुद पकड़कर उठा दिया जब कुत्ते का पैर उठाया तब उसको भोजन नहीं दिया ऐसे अनेक प्रयासों के बाद कुत्ते ने मेट्रोनॉम की आवाज पर पैर ना उठाना सीख लिया

क्योकि जब वह अपने पैर नहीं उठाता था तब उसको भोजन दिया जाता था इस प्रयोग में कई बार ऐसा होने लगा कि मेट्रोनॉम की आवाज पर जब कोनॉस्क्री कुत्ते के पैर को खुद उठाने का प्रयास किया परन्तु तब वह कुत्ता उसका विरोध करता था

मतलब कुता गुस्सा करने लगता था क्योकि उसको पता था कि अगर उसका पैर उठा तब उसको भोजन नहीं मिलेगा

दंड नौमित्तिक अनुबंधन – जिसमे प्राणी के द्वारा कोई अनुक्रिया करने पर दंड दिया जाता है जिससे प्राणी के द्वारा उस कार्य को न किया जाए झूठ बोलने या गलती देने पर बच्चों की पिटाई करके उनकी इस अनुक्रिया को छुड़ाया जाना दंड नौमित्तिक अनुबंधन का उदहारण हैं

नौमित्तिक अनुबंधन का महत्त्व

  • नौमित्तिक अनुबंधन के कारण अवांछित व्यवहार ( गलत व्यवहार ) को नकारात्मक पुनर्बलन के द्वारा रोका जा सकता है मतलब बच्चे ने कोई गलत काम किया तब उसको दंड देकर या फिर पुरुस्कार न देकर

अवांछित व्यवहार ( गलत व्यवहार ) करने से रोका जा सकता हैं

  • वांछित व्यवहार ( सकारात्मक व्यवहार ) को सकारात्मक पुनर्बलन ( पुरुस्कार, प्रोत्साहन आदि ) से प्रेरित किया जा सकता हैं मतलब अगर बच्चे ने कोई अच्छा व्यवहार किया है तब उसको पुरुस्कार या प्रोत्साहन देकर,

बच्चे के द्वारा भविष्य में उस काम को बार बार करने के लिए प्रेरित किया जा सकता हैं

  • व्यवहार संबंधी विकारों के उपचार के लिए नौमित्तिक अनुबंधन को अपनाया जा सकता है
  • सभी व्यक्ति अपनी रीतियों परम्पराओं को सीखने में नौमित्तिक अनुबंधन का उपयोग करते हैं क्योकि जब व्यक्ति अपनी परम्पराओं के हिसाब से चलता है तब समाज में उसको सकारात्मक पुनर्बलन और

जब मनुष्य अपनी परम्पराओं से दूर हटता है तब उसको समाज में नकारात्मक पुनर्बलन मिलता हैं

नौमित्तिक अनुबंधन की आलोचना

  • इस सिद्धांत के आधार पर सभी प्रकार के सीखने की संतोषजनक व्याख्या नहीं की जा सकती हैं
  • यह सिद्धांत कृत्रिम परिस्थितियों में किए गए प्रयोगों पर आधारित हैं
  • नौमित्तिक अनुबंधन में प्रयोज्य एंव प्रयोग परिस्थिति दोनों पर ही प्रयोगकर्ता का नियंत्रण होना आवश्यक हैं वास्तविक जीवन में प्राणी इस प्रकार की नियंत्रित परिस्थितियों में नहीं सीखता हैं

अर्जित निस्सहायता या अधिगामित विवशता

सर्वप्रथम व्यवस्थित अध्ययन – सैलिगमैंन तथा मायर के द्वारा 1967 ई में किया गया था इन्होने अपने प्रयोग में देखा कि जब कोई प्राणी किसी अनियंत्रित विकर्षणात्मक परिस्थिति का सामना करता हैं तब उसके प्रारंभिक अनुभव,

उसके अंदर एक ऐसे विचार को उत्पन्न कर देते हैं जिससे उसके मन में यह भाव आता है कि वह कितनी भी कोशिश कर लें वह इस परिस्थिति को बदल नहीं सकता हैं ऐसी स्थिति में उसके अंदर एक विवशता की भावना उत्पन्न हो जाती है

फिर वह उस परिस्थिति को केवल बर्दाश करता रहता है मतलब उससे निकलने के बारे में वह सोच नहीं पाता हैं ऐसी विवशता को मनोविज्ञान की भाषा में अर्जित निस्सहायता या अधिगामित विवशता कहते है

इसके प्रयोग में कुत्ते को एक ऐसे कमरे में रखा गया था जहाँ बिजली का करंट प्रवाहित होता था परन्तु वह बिजली का करंट कुत्ते के लिए हानिकारक नहीं था लेकिन उस करंट से कुत्ता बैचैनी का अनुभव करता था क्योकि उस कमरे से निकलने का कोई रास्ता नहीं था

इसीलिए कुत्ता उस स्थिति से बच नहीं सकता था धीरे धीरे उस कुत्ते के मन में यह भाव आने लग गए कि मैं कुछ भी कर लू इस परिस्थिति से बाहर नहीं निकल सकता हूँ जिसके बाद वह कुत्ता उस फ़र्श पर बैठकर केवल उस करंट को बर्दाश करता रहता था 

यह स्थिति अर्जित निस्सहायता कहलाती है जिसमे प्राणी परिस्थिति से बचना चाहता है लेकिन दूर हटने का कोई रास्ता न होने के कारण उसके मन में यह विचार उत्पन्न हो जाता है कि मैं कुछ भी कर लू इस परिस्थिति से बाहर नहीं निकल सकता हूँ

इस अर्जित निस्सहायता के कारण प्राणी में प्रेरणा की कमी हो जाती हैं, जिसके कारण वह प्रयास करना छोड़ देता है

अगर वह कुछ सीखता भी हैं तब उसका ऋणात्मक प्रभाव पड़ता है और प्राणी में अवसाद के लक्षण प्रकट होते हैं और कई बार वह इस विवशता को स्थाई मान लेता है

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निष्कर्ष

यह लेख सीखने के विषय का दुसरा भाग हैं जिसमे मुख्य रूप से सीखने के सूझ एंव अनुबंधन के सिद्धांत के बारे में बाताया गया हैं परीक्षा के लिए यह महत्वपूर्ण सिद्धांत है क्योकि इससे सम्बंधित प्रशन एग्जाम में पूछ लिए जाते है 

मैं यह उम्मीद करता हूँ कि कंटेंट में दी गई इनफार्मेशन आपको पसंद आई होगी अपनी प्रतिक्रिया को कमेंट का उपयोग करके शेयर करने में संकोच ना करें अपने फ्रिड्स को यह लेख अधिक से अधिक शेयर करें

लेखक – नितिन सोनी 

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