प्रेरणा का अर्थ, प्रकृति, प्रकार, विशेषताएं और महत्वपूर्ण सिद्धांत ( मोटिवेशन ) 2025 Best Guide

प्रेरणा का अर्थ, प्रकृति, प्रकार, विशेषताएं और महत्वपूर्ण सिद्धांत ( मोटिवेशन ) 2024

Motivation Meaning in Hindi: – प्रेरणा का अर्थ? लाइफ में हर किसी मनुष्य को मोटिवेशन की जरुरत होती है क्योकि किसी कार्य को करने या लाइफ में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मोटिवेशन मिलना बहुत महत्वपूर्ण होता हैं 

परन्तु कुछ लोगो को यह नहीं पता होगा कि मोटिवेशन को हिंदी भाषा में अभिप्रेरणा या प्रेरणा भी कहते हैं ग्रेजुएशन की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स से एग्जाम में किसी भी शब्द से प्रश्न पूछा जा सकता हैं 

अक्सर हमने देखा है कि एग्जाम में इस विषय से सम्बंधित कुछ इस तरह के प्रश्न पूछे जातें है कि अभिप्रेरण क्या है?, अभिप्रेरणा से आप क्या समझते हैं?, प्रेरणा क्या है?, मोटिवेशन क्या है? विशेषताएं लिखियें?

एग्जाम में डायरेक्ट मोटिवेशन क्या है? ( Motivation Kya Hai ) प्रश्न आने की संभावना कम होती है क्योकि प्रश्न को अलग नामों से घुमाकर पूछा जाता है अभिप्रेरणा की परिभाषा को समझने के लिए,

प्रेरणा का अर्थ, प्रकृति, प्रकार, विशेषताएं और महत्वपूर्ण सिद्धांत ( मोटिवेशन ) 2024

अलग अलग मनोवैज्ञानिक विचारक को पढ़ा जा सकता है क्योकि अनेक विचारकों ने मोटिवेशन की परिभाषा दी हैं परन्तु महत्वपूर्ण विचारकों ने दी प्रेरणा की परिभाषा को इस लेख में मेंशन किया गया हैं 

चलिए अब हम यह समझ लेते हैं कि मोटिवेशन का मतलब क्या होता हैं? ( Motivation Ka Matlab Kya Hota Hai ).

Meaning Of Motivation in Hindi? ( प्रेरणा का अर्थ या अभिप्रेरणा का अर्थ ) Abhiprerna Kya Hai?

Table of Contents

प्रेरणा शब्द अंग्रेजी भाषा के मोटिवेशन ( Motivation ) शब्द का हिंदी रूपांतरण हैं मोटिवेशन शब्द लैटिन भाषा के Motum से बना हैं, जिसका अर्थ गति प्रदान करना या शक्ति देना होता हैं

इस प्रकार प्रेरणा वह आंतरिक शक्ति या बल हैं जो प्राणी को कोई विशेष व्यवहार या क्रिया करने को बाध्य करती हैं मतलब प्रेरणा एक आंतरिक शक्ति हैं जो व्यक्ति को कार्य करने के लिए प्रेरित करती हैं सरल भाषा में प्रेरणा वह कारक हैं जो कार्य को गति प्रदान करता हैं 

कार्टर गुड – ने कहा कि प्रेरणा किसी कार्य को प्रारंभ करने, उसे जारी रखने एंव नियंत्रित करने की प्रक्रिया हैं

वुडवर्थ – ने कहा कि प्रेरणा व्यक्ति की वह अवस्था या तत्परता है, जो उसे किसी व्यवहार को करने के लिए या किन्ही उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए निर्देशित करती हैं

मैकडूगल – ने कहा कि प्रेरणा प्राणी की वे शारीरिक एंव मनोवैज्ञानिक दशाएं हैं जो उसे निश्चित मार्गों में कार्य करने के लिए निर्देशित करती हैं

गिल्फोर्ड – ने कहा कि प्रेरणा ऐसी दशा या कारक हैं जो क्रिया को प्रारंभ करने और बनाये रखने की ओर प्रवृत्त होती हैं

स्किनर – अभिप्रेरणा अधिगम का सर्वोच्च राजमार्ग है

प्रेरणा के प्रकार: जैविक और सामाजिक प्रेरणाएँ ( Abhiprerna Ke Prakar ).

मोटिवेशन दो प्रकार के होते हैं

  1. जन्मजात या आंतरिक अभिप्रेरणा ( Biogenic Motive )
  2. बाहय अभिप्रेरणा ( Sociogenic Motives )

Internal ( जन्मजात या आंतरिक अभिप्रेरणा )

इस प्रकार की अभिप्रेरणा प्राणी में जन्म के साथ ही उपस्थित रहती हैं और ये प्राथमिक या जैविक अभिप्रेरणाएँ भी कहलाती हैं इन अभिप्रेरणाओं में भूख, प्यास, काम, नींद और मल-मूत्र त्याग आता है

इन अभिप्रेरणाओं को ही सकरात्मक अभिप्रेरणा कहते है इस अभिप्रेरणा में बालक किसी भी कार्य को आंतरिक इच्छा से करता हैं उदहारण के लिए, कोई बच्चा मनोवैज्ञानिक बनने की इच्छा रखता हैं जिसके लिए वह खुद अंदर से प्रेरित हैं 

अन्य नाम –  प्राथमिक अभिप्रेरणा, जैविक अभिप्रेरणा, सकरात्मक अभिप्रेरणा |

External ( बाहय अभिप्रेरणा )

यह अभिप्रेरणा बच्चे के जन्म के समय उपस्थित नहीं होती है लेकिन व्यक्ति सामाजिक जीवन व्यतीत करने के लिए इन्हें समाज, परिवार, विद्यालय, समवयस्क समूहों से अर्जित करता हैं

उदहारण के लिए, कुछ बच्चो को यह कहा जाए कि अगर वह 90% से अधिक अंकों से 12वी पास करते है तब उनको एक अच्छा सा लैपटॉप दिया जाएगा ऐसी स्थिति में उन बच्चो को बाहय प्रेरणा मिलेगी

इन अभिप्रेरणाओं का सामाजिक महत्त्व होने के कारण ये सामाजिक अभिप्रेरणाएँ कहलाती हैं इनमे पुरुस्कार, दंड, निंदा, प्रशंसा, अनुमोदन आदि प्रमुख हैं

अन्य नाम – सामाजिक अभिप्रेरणा, नकारात्मक अभिप्रेरणा | 

Nature of Motivation ( प्रेरणा की प्रकृति )

  • मोटिवेशन उद्देश्यों के आधार पर निर्भर करता हैं
  • प्रेरणा एक आंतरिक प्रक्रिया हैं क्योकि यह केवल उस मनुष्य को महसूस होती हैं जिसके अंदर यह होती हैं बाहरी रूप से इसको देखा नहीं जा सकता हैं  मतलब यह मनुष्य के अंदर उत्पन्न होती हैं
  • प्रेरणा के लिए आवश्यकता जरुरी हैं क्योकि बिना आवश्यकता के प्रेरणा नहीं हो सकती हैं इसिलिय्र प्रेरणा आवश्यकता से प्रारंभ होती हैं मतलब यह मनुष्य की जरूरतों से उत्पन्न होती हैं
  • मोटिवेशन लक्ष्य को निर्देशित ( डायरेक्शन ) प्रदान करने का व्यवहार होता हैं इसीलिए यह मानव व्यवहार को प्रभावित करती हैं और लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक होती हैं
  • यह सन्तुष्टि से संबंधित होता है क्योकि अगर किसी व्यक्ति की सभी जरुरत पुरी होती है तब वह ज्यादा अच्छे से काम करेगा
  • प्रेरणा एक क्रमिक प्रक्रिया हैं क्योकि यह स्टेप बाई स्टेप चलती हैं उदहारण के लिए, कोई व्यक्ति किसी एग्जाम को क्लियर करने के लिए मोटिवेशन हुआ तब वह व्यक्ति स्टेप बाई स्टेप काम करगा पहले पाठ्यक्रम को समझेगा
  • अभिप्रेरणा साध्य नहीं साधन है क्योकि किसी मनुष्य को उसके लक्ष्य तक पहुंचाने का मार्ग ( साधन ) प्रेरणा होती हैं प्रेरणा व्यक्ति के लिए साध्य ( मंजिल ) नहीं होती हैं

प्रेरणा के कारक या सोपान

  1. आवश्यकता ( Need )
  2. चालाक/प्रणोद/अंतर्नोद ( Drive )
  3. प्रलोभन/ उद्दीपन ( Incentive )

आवश्यकता ( Need ) – प्राणी के शरीर में जब किसी चीज की कमी या अति हो जाती हैं तो उसे आवश्यकता कहते है मतलब आवश्यकता वह अवस्था है जब प्राणी के शरीर में कोई चीज कम हो जातीं है या कोई चीज ज्यादा हो जाती हैं

जैसे – हवा, भोजन, पानी, मलमूत्र त्याग आदि प्राणी की आवश्यकताएं हैं

चालाक/प्रणोद/अंतर्नोद ( Drive ) – आवश्यकता की उत्पत्ति से प्राणी में बेचैनी या तनाव होता हैं और प्राणी में सक्रियता दिखाई देती हैं इसी तनाव/बेचैनी या सक्रियता को चालक कहते हैं

जैसे – एक चालक जब किसी गाडी को चलाता है तब गाडी आगे बढ़ती हैं ठीक उसी तरह से यह चालाक प्राणी को उसके लक्ष्य के लिए एक्टिव करता हैं उदहारण के लिए, पानी की कमी से होंठ और गले का सूखना |

प्रलोभन/ उद्दीपन ( Incentive ) – वातावरण की वह वस्तु होती है जिससे प्राणी की आवश्यकता पुरी होती हैं यानी चालक की तृप्ति होती है उसे उद्दीपन/प्रलोभन कहते है

जैसे – एक प्यासे व्यक्ति के लिए पानी प्रलोभन हैं क्योकि उससे उसकी आवश्यकता की पूर्ति होती हैं

प्रेरणायुक्त व्यवहार के लक्षण ( विशेषताएं )

शक्ति संचालन – शक्ति संचालन अर्थात प्राणी का शक्तिवान हो जाना | जब भी व्यक्ति प्रेरणा में होता है तो उस अवस्था में प्राणी में कुछ शारीरिक व रासायनिक परिवर्तन होते है, जिससे प्राणी में अतिरिक्त शक्ति का संचालन होता हैं

उदहारण, परीक्षा के दिनों में स्टूडेंट बिना थके घंटों तक पढाई करते रहते है, जबकि सामान्य दिनों में उतना परिश्रम नहीं कर पाते

निरंतरता – प्रेरणायुक्त व्यवहार के जारी रहने को निरंतरता कहते है प्रेरणायुक्त व्यवहार उस समय तक निरंतर जारी रहता है जब तक कि लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो जाती हैं मतलब प्राणी तब तक प्रयास करता रहता है जब तक वह लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेता

उदहारण, एक भूखा प्राणी भोजन पाने के लिए तब तक प्रयास करता है जब तक भोजन मिल नहीं जाता |

परिवर्तनशीलता – लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्राणी एक ही व्यवहार को दोहराता नहीं रहता है बल्कि जब किसी एक उपाय या तरीके से लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती तो प्राणी लक्ष्य प्राप्त करने के लिए कोई अन्य तरिका अपनाता हैं

उदहारण, कैरियर बनाने वाला युवक अनेक तरकीबे लगाता है जैसे – दिन रात परिश्रम करता है, प्रतियोगिता में भाग लेता हैं सिफारिश लगवाता हैं रिश्वत देने का प्रयास भी करता हैं

चयनात्मकता – प्रेरित व्यक्ति विभिन्न वस्तुओं के बीच में से अधिक आवश्यक वस्तु का चयन करता हैं

उदहारण, प्यासा व्यक्ति अनेक पेय पदार्थों के बीच पानी का चयन करता हैं

लक्ष्य प्राप्त करने की बेचैनी – प्रेरित व्यक्ति में लक्ष्य प्राप्त करने की बेचैनी बनी रहती हैं ये बेचैनी तब तक बनी रहती हैं जब तक लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो जाती |

उदहारण, एक प्यासा व्यक्ति तब तक बेचैन रहता है जब तक उसे पानी न मिल जाए

लक्ष्य प्राप्ति के साथ बेचैनी का अंत – लक्ष्य प्राप्ति के साथ ही बेचैनी समाप्त हो जाती हैं मतलब जैसे ही लक्ष्य ( उद्देश्य ) प्राप्त हो जाता हैं वैसे ही उसकी बेचैनी समाप्त हो जाती हैं

उदहारण, परीक्षा अवधि में परीक्षार्थी बेचैन रहते है लेकिन जैसे ही परीक्षाएं समाप्त हो जाती है उनकी बेचैनी भी समाप्त हो जाती हैं

अभिप्रेरणा के सिद्धांत ( Theories Of Motivation )

  1. मैकडूगल का सिद्धांत ( McDougall’s Theory )
  2. मैस्लो का सिद्धांत ( Maslow’s Theory ) – आवश्यकता पदानुक्रम मॉडल
  3. सक्रियता का सिद्धांत ( Theory Of Activation )
  4. सुखवाद का सिद्धांत ( Theory Of Pleasure )
  5. प्रत्याशा सिद्धांत ( Expectancy Theory )
  6. संज्ञानात्मक सिद्धांत ( Congnitive Theory )

मैकडूगल का मूलप्रवृति सिद्धांत ( McDougall’s Theory )

इस सिद्धांत का प्रतिपादन विलियम मैकडूगल के द्वारा किया गया मैकडूगल ने प्रेरणा को मूल प्रवृत्तियों से सम्बुद्ध माना हैं मैकडूगल का मानना हैं कि मूल प्रवृत्तियां प्राणी के सभी व्यवहारों को संचालित करती हैं

मूल प्रवृत्तियाँ प्राणी का स्वाभाविक ( बिना सीखा हुआ ) व्यवहार होता हैं जब प्राणी जन्म लेता है तब उसमे यह मूल प्रवृत्तियाँ होती है और जब कोई ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होती है जहाँ व्यक्ति को अपना स्वाभाविक व्यवहार करना होता हैं

तो उसके द्वारा किया गया व्यवहार मूल प्रवृत्तियाँ कहलाता हैं मैकडूगल ने इसे एक उदहारण से स्पष्ट किया है कि जिस प्रकार इंजन को भाप की शक्ति से गति प्राप्त होती है उसी प्रकार सभी प्राणियों के व्यवहार भी मूल प्रवृत्तियों के कारण परिचालित होते है

मैकडूगल ने 14 मूल प्रवृत्तियाँ बताई हैं 

क्रम संख्या मूलप्रवृत्ति संवेग 
1

पलायन 

भय
2 युयुत्सा ( लड़ना )  क्रोध
3 निवृत्ति ( दूर हटना )   घृणा
4 पुत्र-कामना ( पुत्र की कामना करना )  वात्सल्य ( बच्चे के प्रति ममता )
5 शरणागत  करुणा
6 काम प्रवृत्ति  कामुकता
7 जिज्ञासा  आश्चर्य
8 दैल्य  आत्महीनता ( खुद को कम समझना )
9 आत्म गौरव ( खुद पर गर्व महसूस करना )   आत्म-अभिमान ( खुद पर अभिमान करना )
10 सामूहिकता ( समूह में रहना ) एकाकीपन ( अकेलापन )
11 भोजन अन्वेषण ( भोजन की तलाश करना )  भूख
12 संग्रह प्रवृत्ति स्वामित्व भाव ( अधिकार रखने की भावना )
13 रचना प्रवृत्ति  कृति भाव ( किसी वस्तु की रचना करना )
14

हास ( हँसी मजा ) 

आमोद ( प्रसन्नता )

 

मैस्लो का सिद्धांत ( Maslow’s Theory ) आवश्यकता पदानुक्रम विकास का सिद्धांत ( Need Hierarchy Theory )

इस सिद्धांत का प्रतिपादन मैस्लो के द्वारा किया गया था मैस्लो के अनुसार मनुष्य की आवश्यकताओं या प्रेरणाओं का विकास एक अनुक्रम में होता है मतलब एक सीढी के रूप में होता हैं

मैस्लो का आवश्यकता पिरामिड,

आत्मसिद्धि या आत्म-वास्तवीकरण की आवश्यकता

आत्मसम्मान की आवश्यकता

प्रेम तथा संबैद्धता की आवश्यकता

सुरक्षात्मक आवश्यकताएं

शारीरिक आवश्यकताएं

प्रेरणा का अर्थ, प्रकृति, प्रकार, विशेषताएं और महत्वपूर्ण सिद्धांत ( मोटिवेशन ) 2024

यह पिरामिड नीचे से ऊपर तक आवस्यकताओं को संतुष्ट करने की बात कहता हैं इसमें सबसे पहले प्राणी अपनी शारीरिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करता है यह शारीरिक आवश्यकताएं भूख, प्यास, नींद, काम आदि होती हैं

जब इनकी सन्तुष्टि हो जाती है तब प्राणी सुरक्षात्मक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि की बात सोचता है यह सुरक्षात्मक आवश्यकताएं जैसे – अपने शरीर की सुरक्षा, रोजगार की सुरक्षा,

स्वस्थ की सुरक्षा, अपनी संपत्ति और संसाधन की सुरक्षा, परिवार की सुरक्षा आदि

इन आवश्यकताओं के संतुष्ट होने पर प्राणी में प्रेम तथा संबैद्धता की आवश्यकता को संतुष्ट करता है इसके कारण व्यक्ति समूह, परिवार, मित्र ( दोस्त ) बनाता हैं और उनके साथ स्नेह और प्रेम की भावना रखता है

इस आवश्यकता के बाद आत्मसम्मान की आवश्यकता आती हैं आत्मसम्मान की आवश्यकता के अंदर व्यक्ति का स्वाभिमान, उसका आत्मविश्वाश, उपलब्धियां, दूसरों से सम्मान पाना आदि आते है

जब यह आवश्यकता संतुष्ट हो जाती हैं तब आत्मसिद्धि या आत्म-वास्तवीकरण की आवश्यकता आती है जिसमे अपनी क्षमताओं को समझ पाना, नैतिक से सम्बंधित आवश्यकताओं की पूर्ति करता हैं

सक्रियता का सिद्धांत ( Theory Of Activation )

इस सिद्धांत का प्रतिपादन फ्रीमैन तथा उनके सहयोगी मनोवैज्ञानिकों के द्वारा किया गया था इस सिद्धांत के अनुसार प्रेरित व्यवहार केन्द्रीय स्नायुमंडल की सक्रियता के कारण होता हैं मतलब सेंट्रल नर्वस सिस्टम जब सक्रिय होता है

तब उसके कारण प्रेरित व्यवहार होता हैं भिन्न भिन्न प्रकार के प्रेरित व्यवहारों को संपन्न होने के लिए केन्द्रीय स्नायु संस्थान की भिन्न भिन्न स्तर की सक्रियता आवश्यक होती हैं

प्रेरणा जहाँ एक और प्राणी को सक्रियता प्रदान करती हैं वहीं दुसरी ओर उसे दिशा भी प्रदान करती हैं मतलब प्राणी अगर सक्रिय होता है तो उसे किस दिशा में जाना हैं, उसे कौन सा कार्य करना हैं यह भी प्रेरणा के द्वारा उसे पता लगता हैं

सुखवाद का सिद्धांत ( Theory Of Pleasure )/ मनोविश्लेषण सिद्धांत (Psychoanalytic Theory )

इस सिद्धांत के प्रतिपादक फ्रायड हैं और इस सिद्धांत की मुख्य मान्यता यह है कि प्राणियों के सभी व्यवहार के पीछे सुख प्राप्त करने की इच्छा होती हैं मनुष्य सुख प्राप्त करना चाहता हैं और दुःख से बचना चाहता हैं

फ्रायड ने मूल प्रवृत्तियों के दो प्रकार बताएं है

  1. जीवन मूल प्रवृत्ति ( Life Instinct ) 
  2. मृत्यु मूल प्रवृत्ति ( Death Instinct )

जीवन मूल प्रवृत्ति ( Life Instinct ) / Eros

इसको Eros कहा गया हैं यह प्रेम और निर्माण से सम्बंधित हैं जीवन मूल प्रवृत्ति की अभिव्यक्ति रचनात्मक कार्यों के माध्यम से होती है उदहारण के लिए, संतोनोत्पत्ति, घर बनाना, विभिन्न वस्तुओं का निर्माण करना आदि

मृत्यु मूल प्रवृत्ति ( Death Instinct ) / Thanatos

जिसको फ्रायड ने Thanatos कहा हैं इस मृत्यु मूल प्रवृत्ति का संबंध घृणा से हैं इसकी अभिव्यक्ति विध्वंसकारी मतलब विनाशकारी कार्यों से होती हैं जैसे मारपीट, तोड़फोड़, हत्या, आत्महत्या आदि इसके अंदर आता है

फ्रायड का मानना है कि मूल प्रवृत्तियाँ जीवन  भर सक्रिय रहती हैं व्यक्ति के शरीर में जब असंतुलन उत्पन्न होता है तब वह मूल प्रवृत्तियाँ सक्रिय हो जाती हैं और संतुलन स्थापित हो जाने पर मूल प्रवृत्तियाँ शांत हो जाती है

प्रत्याशा सिद्धांत ( Expectancy Theory )/ प्रोत्साहन सिद्धांत ( Incentive Theory )

इस सिद्धांत का प्रतिपादन एटकिंसन और व्रूम के द्वारा किया गया था इस सिद्धांत के अनुसार अभिप्रेरित व्यवहार की उत्पत्ति में प्रोत्साहन या लक्ष्य का स्थान महत्वपूर्ण होता हैं

प्राणी का व्यवहार इस प्रत्याशा से निर्देशित होता हैं कि उस व्यवहार को करके जो भी उसका लक्ष्य हैं मतलब वांछित परिणाम उसे प्राप्त होगा

संज्ञानात्मक सिद्धांत ( Congnitive Theory )

इस सिद्धांत का प्रतिपादन टोलमैंलेविन के द्वारा किया गया था इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति के व्यवहार के पीछे मुख्य कारण संज्ञान होता हैं संज्ञान को व्यवहार का शक्ति स्त्रोत माना गया हैं

संज्ञान द्वारा व्यक्ति अपने लक्ष्य का चुनाव करता हैं और उसे प्राप्त करने के लिए विभिन्न व्यवहार करता है जब लक्ष्य प्राप्त हो जाता है तब प्राणी को संतोष का अनुभव होता हैं

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निष्कर्ष

प्रेरणा ( मोटिवेशन ) के इस आर्टिकल में प्रेरणा का अर्थ और परिभाषा, प्रकार, प्रकृति, कारक, विशेषताएँ और महत्वपूर्ण सिद्दांतों पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया हैं 

मैं यह उम्मीद करता हूँ कि कंटेंट में दी गई इनफार्मेशन आपको पसंद आई होगी अपनी प्रतिक्रिया को कमेंट का उपयोग करके शेयर करने में संकोच ना करें अपने फ्रिड्स को यह लेख अधिक से अधिक शेयर करें

लेखक – नितिन सोनी 

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