Approach Meaning in Hindi: – संज्ञानात्मक दृष्टिकोण? मनोविज्ञान लोगों के मन और व्यवहार का अध्ययन हैं कई मनोवैज्ञानिकों ने मानव व्यवहार की रुचियों और व्याख्याओं के प्रति अलग अलग दृष्टिकोण को परिभाषित और प्रस्तुत किया हैं
अरस्तु से लेकर मनोविज्ञान की आधुनिक परिभाषा तक कोई एक दृष्टिकोण मानव व्यवहार और मानसिक प्रक्रियाओं को देखने के सही तरीके के रूप में सामने नहीं आया हैं हाँ हम यह नहीं कह सकते हैं कि यह उपागम गलत है या यह उपागम सही हैं
क्योकि कुछ परिस्थिति में व्यवहारवादी उपागम सही होगा और कुछ परिस्थिति ऐसी होती जहाँ संज्ञानात्मक उपागम सही होगा
पर्सनालिटी का अध्ययन करने के लिए मनोविज्ञान में मनोवैज्ञानिकों ने विभिन्न उपागम दिए हैं जिनमे से जैविक, मनोगतिक, व्यवहारवादी और संज्ञानात्मक के बारे में यहाँ पढ़ा जाएगा
क्योकि इन्टरनेट पर हजारों की संख्या में लोग यह लिखकर सर्च करते हैं कि व्यवहारवादी विचारधारा को समझाइए, Meaning Of Approach in Hindi, व्यवहारवाद का अर्थ एवं परिभाषा, Approach in Hindi Meaning, Hindi Meaning Of Approach,
नोट – कुमाऊँ यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम में केवल जैविक, मनोगतिक, व्यवहारवादी और संज्ञानात्मक उपागम दिए हैं इसीलिए यहाँ केवल इनके बारे में चर्चा किया गया हैं
चलिए अब हम मनोगतिक दृष्टिकोण को समझ लेते हैं
मनोगतिक दृष्टिकोण ( Psychodynamic Approach in Hindi )
मनोगतिक उपागम के प्रतिपादक सिगमंड फ्रायड ( Sigmund Freud ) एक चिकित्सक थे जिन्होंने अपना सिद्धांत चिकित्सक प्रैक्टिस के दौरान दिया था यह अपने क्लिनिक पर आने वाले शारीरिक और सांवेगिक समस्याओं से ग्रस्त मरीजो का उपचार,
सम्मोहन विधि ( Hypnosis Method ) का उपयोग करके करते थे
सम्मोहन विधि ( Hypnosis Method ) – एक ऐसी विधि होती है जिसमे मनुष्य को सम्मोहित करके उसको अचेतन अवस्था में लेकर जाया जाता है और मनुष्य अपने अचेतन में जो भी रहस्य ( बाते ) छुपे होते है उन बातो को उजागर ( बताता ) करता है
फ्रायड ने इस बात पर फोकस किया कि उनके अधिकतर मरीज अपनी समस्या के बारे में बात करने की जरुरत को महसूस करते थे ऐसा हर किसी मनुष्य के साथ होता है मैं, आप, सभी यह चाहते है कि अपनी बातों को किसी न किसी से शेयर करे
हमारी लाइफ में जब कोई समस्या या तनाव होता हैं जब हम यह चाहते है कि हम अपनी बात किसी न किसी मनुष्य से शेयर करे फ्रायड ने ध्यान दिया कि जब उनके मरीज अपनी समस्याओं के बारे में बता देते थे उसके बाद वह अच्छा महसूस करते थे
फ्रायड ने मन के आंतरिक प्रकार्य ( मस्तिष्क के इंटरनल फंक्शन ) को समझने के लिए मुक्त साहचर्य ( फ्री एसोसिएशन मेथड ), स्वप्न विश्लेषण ( Dream Analysis ) और त्रुटियों के विश्लेषण ( Analysis Of Errors ) का उपयोग किया
मुक्त साहचर्य ( फ्री एसोसिएशन मेथड ) – यह एक ऐसी विधि हैं जिसमे व्यक्ति अपने मन में स्थिति विचार, भावनाओ या जो वह सोच रहा है उनको बिल्कुल फ्री ( मुक्त ) होकर बताता हैं
विश्लेषण ( Dream Analysis ) – फ्रायड का यह मानना था कि हमारे अचेतन मन में जो भी विचार होते है वह हमे सपने के रूप में दिखाई देते हैं तो अगर हम जो भी सपने देखते हैं
उनका विश्लेषण करे तो हम अपने मस्तिष्क के आंतरिक प्रकार्य ( मस्तिष्क के इंटरनल फंक्शन ) को समझ सकते हैं
त्रुटियों के विश्लेषण ( Analysis Of Errors ) – रोजाना जीवन में हम बहुत सारी ऐसे गलतियाँ करते है जो हमारे लिखने, बोलने या अन्य एक्टिविटी से सम्बंधित होती हैं और इसका कारण हमारा अचेतन मन होता हैं
इसीलिए जब हम इन सभी त्रुटियों का विश्लेषण तब हम अचेतन के बारे में समझ पाते हैं
चेतना के स्तर ( Levels Of Consciousness )
फ्रायड ने अपने सिद्धांतों में सावेग द्वदं ( Emotion Conflict ) हैं, उनके सोर्सेस ( स्त्रोत ), रिजल्ट ( परिणाम ) क्या है और लोग उससे कैसे निपटते हैं इन तीनो चीजों पर विचार किया इनको समझने के लिए फ्रायड ने मानव मन के चेतना के तीन स्तर बताये हैं
सावेग द्वदं ( Emotion Conflict ) – द्वदं का अर्थ मानसिक संघर्ष होता हैं यह तब उत्त्पन्न होता है जब हमारे सामने दो अलग अलग लक्ष्य होते हैं और हम दोनों को प्राप्त करना चाहते है या दोनों से ही बचना चाहते हैं
यह दोनों लक्ष्य पॉजिटिव या नेगेटिव हो सकते है यहाँ पॉजिटिव लक्ष्य में मनुष्य दोनों को प्राप्त करना चाहता है लेकिन उसको केवल एक को चुनना होगा इसी तरह नेगेटिव लक्ष्य में मनुष्य दोनों से बचना चाहता है परन्तु उसको एक स्वीकार करना होगा
ऐसी स्थिति में हमारे मन में जो संघर्ष उत्पन्न होता हैं उसे द्वदं ( Conflict ) कहा जाता है
उदहारण के लिए, किसी बच्चे का एग्जाम हैं जिस दिन उसका एग्जाम हैं उसी दिन उसके भाई का विवाह हैं जो बहुत महत्वपूर्ण हैं अब यहाँ पर दोनों लक्ष्य ऐसे हैं जिनको वह हासिल करना चाहता है
परन्तु, यहाँ समस्या यह है कि उसको किसी एक लक्ष्य को छोड़ना होगा इस समय उसके मन में उत्त्पन्न संघर्ष द्वदं ( Conflict ) है
चेतना के तीन स्तर है
- चेतन ( Conscious )
- पूर्वचेतना/अवचेतन ( Preconscious )
- अचेतन ( Unconscious )
चेतन ( Conscious ) – इसमें वह सब चिंतन, भावनाएं और क्रियाएँ आती है जिनके प्रति लोग जागरूक रहते हैं मतलब मानव मन का वह स्तर जिसके बारे में मनुष्य जागरूक होता है उसे चेतन कहते हैं
पूर्वचेतना/अवचेतन ( Preconscious ) – इसमें वह मानसिक क्रियाएं आती हैं जिसके प्रति मनुष्य तब जागरूक हो पाता है जब मनुष्य उन पर सावधानी से ध्यान केंद्रित करता हैं वह पूर्वचेतना में आती हैं
अचेतन ( Unconscious ) – इसमें वह मानसिक क्रियाएं आती हैं जिनके प्रति मनुष्य जागरूक नहीं होते है मतलब मनुष्य को उनके बारे में पता ही नहीं होता है और इस तरह की मानसिक क्रियाएं हमारे अचेतन में अपने आप घटित होती रहती हैं
फ्रायड ने चेतन और पूर्वचेतन की तुलना में अचेतन को सबसे ज्यादा महत्त्व दिया है फ्रायड के अनुसार, जो हमारा अचेतन होता है वह मूल प्रवृत्ति और पाश्विक अंत नदों का भण्डार होता हैं अचेतन में वह सारी इच्छाएं और विचार आते हैं
मूल प्रवृत्ति – जो मनुष्य की जनजात प्रवृत्तियां होती हैं
पाश्विक अंत – जो हमारे अंदर एक एनिमल ड्राइव ( एक शैतान/जानवर ) होता हैं
जो कि चेतन से छुपे हुए होते हैं इसीलिए कहा जाता है कि मनुष्य इनके प्रति जागरूक नहीं होता हैं ऐसा इसीलिए होता है क्योकि इस तरह के डिजायर्स और विचार हैं जो अचेतन में होते हैं वह मनुष्य के चेतन में आ जाए
तब यह मनुष्य के अंदर मनोवैज्ञानिक द्वदों को उत्पन्न करते हैं इसीलिए मनुष्य द्वदं से बचा रहे इसीलिए ऐसे संभी विचार, इच्छाएं अचेतन में होती है और मनुष्य इनके प्रति जागरूक नहीं होता हैं
फ्रायड के अनुसार, अचेतन में जो इच्छाएं और विचार होते हैं वह अधिकतर सेक्सुअल डिजायर ( काम इच्छाओं ) से उत्त्पन्न होते हैं मनुष्य अपनी सेक्सुअल डिजायर ( काम इच्छाओं ) से सम्बंधित इच्छाओं या विचार को एक्सप्रेस नहीं कर सकते हैं
क्योकि यह सब सोशली एक्सेप्टेबल नहीं हैं मतलब समाज उसको स्वीकार नहीं करता हैं इसीलिए इस तरह की इच्छाओं का अचेतन में दमन कर दिया जाता हैं मनुष्य के अचेतन में जो विचार और इच्छाएं हैं उनको अभिव्यक्त करने के लिए या तो ऐसे तरीके खोजे जाते हैं
जो सामाजिक रूप से स्वीकार्य हो मतलब समाज उनको स्वीकार करता हो या फिर उनको अभिव्यक्त होने से बचाने के लिए हमारे मन में संघर्ष ( द्वदं ) चलता रहता है और अगर हम इस संघर्ष में असफल होते है
तो मनुष्य में विभिन्न प्रकार का असामान्य व्यवहार उत्त्पन्न होता हैं कुछ चीजों को हम भूल जाते हैं या कुछ चीजों का हम गलत उच्चारण करते हैं ( जबान का फिसल जाना ) या फिर लोग जोक्स क्रैक ( मजाक ) करते है या फिर सपनों का विश्लेषण जब किया जाता है
तब हम इन सभी के माध्यम से उसके अचेतन तक पहुच सकते हैं मतलब यह जान सकते है कि उसके अचेतन मन में कौन सी भावना, विचार हैं अचेतन का अध्ययन करने के लिए फ्रायड ने एक चिकित्सा प्रक्रिया को विकसित किया
जिसको मनोविश्लेषण ( Psychoanalysis ) कहते हैं मनोविश्लेषण चिकित्सा का लक्ष्य मुख्य रूप से अचेतन मन में दमित हो चुकी सामग्री को चेतना पर लाया जाए फ्रायड ने यह बात इसीलिए की क्योकि हमारे अचेतन में जो कुछ दमित होता हैं
उसको लेकर हमारे मन में मानसिक संघर्ष चलता रहता हैं और हम उसके बारे में जागरूक नहीं होते हैं परन्तु, मनोविश्लेषण चिकित्सा के कारण हम अचेतन में जो कुछ दमित सामग्री हैं उसको चेतना पर लाया जाता है,
जिससे लोग अपने बारे में जागरूक हो जाते हैं और समाकलन तरीके ( जब मनुष्य का व्यक्तित्व विघटित न हो ) से अपना जीवन व्यतीत कर सकते है
व्यवहारवादी दृष्टिकोण ( Behaviourist Approach in Hindi )
व्यवहारवादी उपागम व्यवहार की आंतरिक गतिकी ( चेतन, पूर्वचेतन और अचेतन ) को महत्त्व नहीं देता हैं क्योकि व्यवहारवादी व्यवहार को महत्त्व देता है और व्यवहार से उनका मतलब जो दिखाई देता है स्किनर व्यवहारवाद के समर्थक थें
आंतरिक गतिकी – मानव व्यवहार चेतन, पूर्वचेतन और अचेतन के बीच में गति करता रहता है जिसको व्यवहार की आंतरिक गतिकी कहा गया है
यह एक ऐसा तरिका होता है जिसमे हम मनुष्य के व्यवहार को समझते हैं मतलब यहाँ हम मानसिक प्रक्रियाओं को महत्त्व नहीं देते हैं मनुष्य के व्यवहार को Observe करते हैं व्यवहार उपागम इस बात पर जोर देता है कि हमे क्या दिख रहा है
जॉन ब्रॉडस वॉटसन ( अमेरिकन मनोवैज्ञानिक ) ने कहा कि मानव व्यवहार को देखने योग्य व्यवहार के माध्यम से मापा जा सकता है, न कि मन या चेतना के अध्ययन से,
जॉन ब्रॉडस वॉटसन ने ऐसा इसीलिए कहा था क्योकि हमे यह पता नहीं होता है कि चेतना और मन क्या है, न वह दिखाई देती हैं, न उसको मापा जा सकता है वॉटसन व्यवहारवाद उपागम को लेकर बहुत अधिक आत्मविश्वासी थे
उनका मानना था कि जो चीजे हम Observe करते हैं उनको देखकर, समझकर हम लोगो के व्यवहार को बदल सकते हैं मतलब जैसा चाहे वैसा बना सकते हैं यहाँ उन्होंने एक बात कही
मुझे एक दर्जन स्वस्थ शिशु दें और मैं उनको मुझे अपने पर्यावरण में रखने दें फिर बताये कि उनको क्या बनाना है चोर, वकील या डॉक्टर |
हम यह कह सकते हैं कि व्यवहारवादी ऐसे डाटा या प्रदतों पर विश्वाश करते हैं जिनको सिद्ध किया जा सकता है, जिनको हम Observe कर सकते हैं, जिनको हम माप सकते हैं
जबकि चेतन, पूर्वचेतन और अचेतन को Observe, सिद्ध या मापा नहीं जा सकता है व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक उद्दीपक अनुक्रिया संयोजन पर ध्यान देते हैं मतलब हमारे सामने जब कोई उद्दीपक आता है तो हम उसके प्रति अनुक्रिया ( रिस्पांस ) करते हैं
इन उद्दीपक और अनुक्रिया के संयोजन को सीखना और प्रबलन ( रिइन्फोर्समेंट ) पर बल देते हैं व्यवहारवाद के अनुसार, किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व को अगर सर्वोत्तम तरीके से समझना है
रिइन्फोर्समेंट – कोई भी क्रिया या उद्दीपक जिससे किसी रिस्पांस के होने की संभावना बढ़ जाती हैं उसे रिइन्फोर्समेंट कहा जाता है उदहारण के लिए, एक बच्चे को यह कहा गया कि अगर तुमने अपना रूम ( कमरा ) क्लीन किया तो हम तुम्हे घुमाने लेकर जायेंगे
तो घुमाने लेकर जाना एक तरह का रिइन्फोर्समेंट हैं जिससे बच्चा अपने रूम ( कमरा ) को साफ़ रखने का प्रयास करे
यहाँ हमे यह देखना होगा कि वह मनुष्य पर्यावरण के प्रति किस तरह की अनुक्रिया ( रिस्पांस ) करता है उसके आधार पर उस मनुष्य के व्यक्तित्व को सर्वोत्तम तरीके से समझा जा सकता है
उदहारण के लिए, एक छोटा बच्चा अपने माता पिता के साथ रहता था परन्तु जब वह स्कूल जाता है तो स्कूल में उसको एक नया वातावरण ( पर्यावरण ) मिलता है जिसमे बहुत सारी चीजे ऐसी होती है जो उस मनुष्य के लिए स्टिमसन का काम करती हैं
उनके प्रति मनुष्य जैसा रिस्पांस करता है उसके द्वारा, वह बहुत सारे नए व्यवहार सीखता है जिससे उसका कोई विकास होता है
व्यवहारवादी लोगो का कहना है कि व्यक्तित्व की संरचनात्मक इकाई अनुक्रिया हैं मनुष्य जो रिस्पांस करता हैं उससे मनुष्य की पर्सनालिटी का पता चलता है अनुक्रिया ( रिस्पांस ) एक व्यवहार हैं
क्योकि मनुष्य अपनी आवश्यकताओं को संतुष्ट करने के लिए रिस्पांस करता हैं
उदहारण के लिए, हम खाना क्यों खाते है? क्योकि हमे भूख लगी होती हैं यहाँ भूख हमारी आवश्यकता हैं उसको संतुष्ट करने के लिए हम जो व्यवहार या अनुक्रिया ( रिस्पांस ) करते है वह भोजन करना हैं परन्तु, मनुष्य भोजन के मामलें में बहुत चयनात्मक होते हैं
दुसरा उदहारण, बचपन में बच्चे बहुत सारी ऐसी सब्जियां होती है जिनको खाना पसंद नहीं करते है परन्तु, धीरे धीरे वह उनको खाना सीख लेते हैं ऐसा वह रिइन्फोर्समेंट के कारण करते हैं क्योकि जब बचपन में बच्चे के माता पिता,
उससे कहते है कि बेटा यह सब्जियां तुमको खानी चाहिए तो वह बच्चा जब उस सब्जी को थोड़ा सा टेस्ट करता है तब बच्चे के माता – पिता उसकी प्रशंसा करते हैं कहते है कि आप तो अच्छे बच्चे हो? तब उस समय बच्चा उस प्रशंसा को पाने के लिए,
सब्जी खाना सीख लेता है लेकिन बड़े होने पर बच्चा सब्जियां इसीलिए नहीं खाता है कि वह अपने माता – पिता को खुश करना चाहता है बल्कि वह इसीलिए खाता है क्योकि अब उसको सब्जियों का स्वाद अच्छा लगता है
जब हम उद्दीपक, अनुक्रिया और प्रबलन की बात करते है तो विभिन्न प्रकार के अधिगम सिद्धांत सीखने के सिद्धांत में इनका उपयोग किया गया है जैसे – प्राचीन अनुबंधन सिद्धांत ( पावलव के द्वारा ),
नैमित्तिक अनुबंधन सिद्धांत ( स्किनर के द्वारा ) और प्रेक्षणात्मक अधिगम सिद्धांत ( बंदूरा के द्वारा )
संज्ञानात्मक दृष्टिकोण ( Cognitive Approach in Hindi )
जब हम किसी मनुष्य के व्यवहार को उसके विचारों के आधार पर सोचना और समझना चाहते हैं तो वहां संज्ञात्मक उपागम हैं क्योकि संज्ञान एक मानसिक प्रक्रिया है जिसमे कोई इनफार्मेशन किस रूप में मनुष्य के दिमाग में प्राप्त, संसाधित,
स्थानांतरित, संग्रहित, पुनप्राप्त और उपयोग की जाती हैं वह संज्ञानात्मक उपागम है संज्ञानात्मक उपागम वर्ष 1960 के दौरान विकसित मानव व्यवहार की व्याख्या करने वाला एक नया विकसित क्षेत्र हैं जिसमे जॉर्ज मिलर,
जेरोम ब्रूनर और उलरिच नीसर का सबसे प्रमुख योगदान हैं मनोविज्ञान में संज्ञानात्मक उपागम एक प्रमुख शक्ति है संज्ञानात्मक मनोविज्ञान बुद्धि, विचार प्रक्रियाओं, सीखने, स्मृति, समस्या समाधान, धारणा, भाषा पर ध्यान केंद्रित होता हैं
जैविक दृष्टिकोण ( Biological Approach in Hindi )
यह एक ऐसा उपागम होता है जिसमे हम यह मानते है कि मनुष्य के व्यवहार और मानसिक प्रक्रिया में उसका शरीर शामिल होता है इसीलिए मानसिक प्रक्रिया के लिए शरीर बहुत महत्वपूर्ण होता है
क्योकि प्रत्येक मानव व्यवहार शरीर के भीतर होने वाले शारीरिक परिवर्तनों से जुड़ा होता हैं शरीर, व्यवहार और मानसिक प्रक्रियाओं के बीच कार्य सम्बन्ध जैविक उपागम का केंद्र बिंदु होता है सरल शब्दों में कहा जाए,
जैविक उपागम मनुष्य की मानसिक प्रक्रियाओं और व्यवहार का अध्ययन होता हैं क्योकि इसमें मानव का व्यवहार और पशु का व्यवहार शरीर में होने वाली घटना का एक प्रत्यक्ष रिजल्ट होता हैं
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निष्कर्ष
इस लेख में मनोविज्ञान के जैविक, मनोगतिक, व्यवहारवादी और संज्ञानात्मक दृष्टिकोण को समझाया गया हैं क्योकि कुमाऊँ यूनिवर्सिटी में बीए प्रथम वर्ष में यहं पाठ्यक्रम में शामिल हैं
मैं यह उम्मीद करता हूँ कि कंटेंट में दी गई इनफार्मेशन आपको पसंद आई होगी अपनी प्रतिक्रिया को कमेंट का उपयोग करके शेयर करने में संकोच ना करें अपने फ्रिड्स को यह लेख अधिक से अधिक शेयर करें
लेखक – नितिन सोनी
नमस्ते! मैं एनएस न्यूज़ ब्लॉग पर एक राइटर के रूप में शुरू से काम कर रहा हूँ वर्तमान समय में मुझे पॉलिटिक्स, मनोविज्ञान, न्यूज़ आर्टिकल, एजुकेशन, रिलेशनशिप, एंटरटेनमेंट जैसे अनेक विषयों की अच्छी जानकारी हैं जिसको मैं यहाँ स्वतंत्र रूप से शेयर करता रहता हूं मेरा लेख पढने के लिए धन्यवाद! प्रिय दुबारा जरुर आयें