Sociology in Hindi: – समाजशास्त्र क्या है? समाज शास्त्र में सामज के रीति-रिवाज और परम्पराओं को समझने का प्रयास किया जाता हैं ग्रेजुएशन के दौरान, जब स्टूडेंट्स पढने के लिए समाज शास्त्र को एक विषय के रूप में चुनते हैं
समाज शास्त्र का महत्व पढाई के साथ साथ समाज को समझने के लिए भी महत्वपूर्ण हैं अक्सर एग्जाम में स्टूडेंट्स से यह सवाल उत्तर लिखने के लिए पूछ लिए जातें है कि समाजशास्त्र की परिभाषा एवं विशेषताएं? या समाजशास्त्र की विशेषताएं?
समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए? ( Samajshastra Ko Paribhashit Kijiye? ), समाजशास्त्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए, समाजशास्त्र के प्रकार, समाजशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषा ( Sociology Kya Hota Hai ).
क्योकि इन सभी सवालों का उत्तर यह लेख देने में सक्षम हैं यही कारण है कि यह लेख उन स्टूडेंट्स के लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं जो ग्रेजुएशन में समाजशास्त्र पढ़ रहे हैं
चलिए अब हम यह जान लेते हैं कि समाजशास्त्र का विकास और समाजशास्त्र की परिभाषा क्या है?
समाजशास्त्र की उत्पत्ति और विकास
समाज शास्त्र की औपचारिक शुरुआत 1838 में हुई थी जब अगस्टे कॉम्टे ने फ्रांस में पहली बार अपनी पुस्तक पॉजिटिव फिलोसॉफी में समाज शास्त्र ( Sociology) शब्द का उपयोग किया था परन्तु इससे पहले भी समाजिक चिंतन होता रहा हैं
जिसको हम कई चरणों में विभाजित करते हैं समाज शास्त्र के विकास के बारे में एक कथन बहुत पोपुलर हैं जिसको रोबर्ट बीरस्टीड ने अपनी पुस्तक द सोशल आर्डर ( 1970 ) में दिया था कि
एक विषय के रूप में समाज शास्त्र का इतिहास नवीन हैं लेकिन इसका अतीत काफी प्राचीन है
समाज शास्त्र की उत्पत्ति और विकास को टी.बी बोटोमोर ने कुल चार चरणों में इसके विकास को समझाने का प्रयास किया हैं
- समाजशास्त्र की परिभाषा? समाजशास्त्र का अन्य सामाजिक विज्ञानों के साथ संबंध
- सामाजिक नीति क्या है? विशेषताएँ, निर्माण, कार्य
प्रथम चरण – इस प्रथम चरण में प्लेटो और अरस्तु ( सामाजिक विचारक ) हैं प्लेटो को प्रथम सामाजिक विचारक माना जाता है जिन्होंने अपनी पुस्तक द रिपब्लिक में नगरीय समुदायों के विभिन्न पक्षों का व्यवस्थित अध्ययन किया
उसके बाद प्लेटो के शिष्य अरस्तु ने अपनी पुस्तक एथिक्स एन्ड पॉलिटिक्स में राज्य, कानून समाज आदि विषयों का अध्ययन किया इनका एक कथन कहा था कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं | यह ग्रीक विचारकों के अध्ययन के अनुसार था
परन्तु अगर हम भारत में इस समय के दौरान ( वैदिक तथा महाकाव्य काल ) में भारत के ऋषियों-मुनियों ने सम्पूर्ण भारत का विचरण किया था तथा यहाँ के समस्याओं अथवा आवश्यकताओं का गहरा अध्ययन किया |
इस बात का उल्लेख उन्होंने संसार के सबसे प्राचीन तथा भारत के महान ग्रन्थ ऋग्वेद में किया और वेद, पुराण, महाभारत, रामायण, गीता, जैसे ग्रंथों से भारत में समाज शास्त्र की शुरुआत हुई
निष्कर्ष – इस पहले चरण के अनुसार समाज शास्त्र का पहला चरण धार्मिक होता हैं प्रत्येक घटना को भ्रम की नजरों से देखा जाता हैं
नोट – परन्तु समाज शास्त्र के विकास की प्रारंभिक अवस्था की शुरुआत को यूरोप से माना जाता है
दुसरा चरण – दुसरे चरण को छठी शताब्दी से 14वी शताब्दी तक का समय माना जाता हैं जिसमे अनेक दर्शन उभर कर आये इस दौर में धर्म के स्थान पर तर्क का विकास होने लगा इस काल के प्रमुख सामाजिक विचारक थॉमस एक्यूनास और दांते हैं
जिन्होंने इस काल के दौरान सामाजिक विचारों पर बहुत कुछ स्पष्टता के साथ लिखा हैं जिसमे धर्म के स्थान पर तर्क का उपयोग किया हैं और घटनाओं को तार्किक आधार पर समझने का प्रयास किया हैं
इन्होने प्राकृतिक विज्ञान के अध्ययन की विधियों का प्रयोग सामाजिक क्षेत्र में करने पर बल दिया हैं
निष्कर्ष – दुसरे चरण में कुछ कुछ धर्म के स्थान पर तर्क का प्रयोग होना शुरू हो गया था
तीसरा चरण – इस काल को हम पुर्नजागरणकाल के नाम से भी जानते हैं क्योकि इस समय से पहले लोग जैसा धार्मिक गुरुओं ने कह दिया वैसा ही करते थे परन्तु पुर्नजागरणकाल में धीरे धीरे वैज्ञानिक और वाणिज्य क्रांति का विकास हुआ
इस काल के दौरान, इन दोनों क्रांति ने परंपरागत सिद्धांत को हटाकर उनके स्थान पर नवीन वैज्ञानिक सिद्धांतों को लागू किया इस चरण में रूसों, हॉब्स और लॉक के द्वारा दिया गया सामाजिक संविदा का सिद्धांत सबसे महत्वपूर्ण रहा
थॉमस मूर ने अपनी पुस्तक यूटोपिया में उस समय की इंग्लैंड की सामाजिक परिस्थियों के बारे में चर्चा किया मॉन्टेसक्यू ने अपनी पुस्तक द स्पिरिट ऑफ लॉज ( 1748 ) में समाज पर पर्यावरण के द्वारा पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया हैं
एडम स्मिथ ने आर्थिक विचारों को प्रस्तुत किया और माल्थस ने जनसंख्या परिवर्तन का सिद्धांत ( 1799 ) में प्रस्तुत किया था
निष्कर्ष – पुरी दुनिया के लिए तीसरा चरण बहुत महत्त्वपूर्ण हैं क्योकि इस काल में तर्क को ओर अधिक सर्तकता के साथ प्रस्तुत किया
चौथा चरण – इस चौथे चरण की शुरुआत औद्योगिक क्रांति से होती हैं यह 1760 में इंग्लैंड में शुरू हुई थी जिसमे समाज के अंदर भौतिक परिवर्तन हुआ मतलब जो समाज पहले ग्रामीण समाज था वह धीरे धीरे नगरों में परिवर्तित होने लगा
क्योकि जहाँ कही उद्योग लगा उसके आस पास के क्षेत्र से लोग रहने लगे जिसके कारण उद्योग के आस पास एक औद्योगिक नगर विकसित हो गया अथार्थ पहले के समय में जो परम्परागत ग्रामीण समाज था वह नगरीय समाज में परिवर्तित हो गया
फिर दुसरी फ्रांसीसी क्रांति 1789 में हुई थी, जिसने समाज को वैचारिक रूप से परिवर्तित किया हैं क्योकि राजनीति पढने वाले स्टूडेंट्स को पता होगा कि इस क्रांति से पहले हमेशा राजाओं का शासन रहता था और
राजा को ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था लेकिन फ्रांसीसी क्रांति 1789 के बाद राजा को गद्दी से उतार दिया गया और प्रजातंत्र को शुरू किया गया इस फ्रांसीसी क्रांति 1789 का प्रमुख नारा था कि स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व |
इन दोनों क्रांति के आधार पर समाज में अत्यधिक परिवर्तन हुए और समाज में कई सालों से जो परंपरागत व्यवस्था चली आ रही थी वह भंग हुई और नवीन व्यवस्था को समझने के लिए एक ऐसे विषय की जरुरत महसूस हुई
जो इन सामाजिक घटनाओं का व्यवस्थित और क्रमबद्ध रूप से अध्ययन कर सकें साइमन ने सर्वप्रथम सामाजिक घटनाओं का व्यवस्थित अध्ययन करने का प्रयास किया वह एक ऐसा विज्ञान बनाना चाहते थे जो सामाजिक क्षेत्र के अंदर हो
उस समाज को साइमन ने सोशल बायोलॉजी का नाम दिया परन्तु साइमन के शिष्य अगस्टे कॉम्टे ( फ्रांसीसी विचारक ) ने अपने गुरु साइमन के विचारों को मूर्त रूप देने के लिए 19वी शताब्दी में एक नए विषय की शुरुआत की |
इस समाज के विज्ञान को सामाजिक भौतिकी ( Social Physics ) का नाम दिया गया परन्तु, उन्होंने देखा कि सामाजिक भौतिकी शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम एडोल्प क्वेटलेट कर चुके हैं
तब उन्होंने 1838 में इसका नाम बदलकर समाज शास्त्र रख दिया और यहाँ से समाज शास्त्र की शुरुआत हुई
परन्तु जॉन स्टुअर्ट मिल ने कहा कि इस विषय को इथोलॉजी नाम देना चाहिए इसको समाज शास्त्र नहीं कहना चाहिए क्योकि यह दो भाषाओँ की अवैध संतान हैं
नोट – अगस्टे कॉम्टे ( फ्रांसीसी विचारक ) को समाज शास्त्र का पिता कहा जाता है
समाज शास्त्र का औपचारिक विकास
हम यह जान चुके है कि समाज शास्त्र का विकास सर्वप्रथम फ्रांस में हुआ था उसके बाद 1843 में, इंग्लैंड के अंदर जे एस मिल ( जॉन स्टुअर्ट मिल ) ने समाज शास्त्र का परिचय करवाया
समाज शास्त्र पर सबसे पहली पुस्तक स्पेंसर ने द प्रिंसिपल ऑफ़ सोशियोलॉजी ( 1876 ) प्रकाशित हुई थी फिर 1883 में अमेरिका के अंदर लेस्टर वार्ड ने समाज शास्त्र विषय पर पुस्तक लिखी
परन्तु वर्ष 1876 में अमेरिका के येल विश्वविद्यालय एक स्वतंत्र विषय के रूप में इसका सर्वप्रथम अध्ययन समनर के द्वारा किया गया था 1892 में अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय में स्माल के द्वारा समाज शास्त्र का अध्यापन प्रारंभ करवाया
समाज शास्त्र का पहला प्रकाशन 1895 में अमेरिकन जर्नल ऑफ़ सोशियोलॉजी प्रकाशित हुआ और 1905 में अमेरिकन सोशियोलॉजिकल सोसाइटी का गठन किया गया
भारत में समाज शास्त्र की शुरुआत
भारत में समाज शास्त्र का औपचारिक रूप से विकास 1914 में हुआ जब बंबई विश्वविद्यालय ( 1914 ) में सर्वप्रथम समाज शास्त्र को एक विषय के रूप में पढ़ाया जाने लगा था
लेकिन भारत में सामाजिक चिंतन की शुरुआत वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत, गीता आदि में प्राचीन काल में ही शुरू हो गई थी मतलब पुराणों में प्राचीन भारतीय दर्शन की विस्तार से व्याख्या की गई हैं
इन ग्रंथों से पता चलता हैं कि प्राचीन भारत की समस्याओं, आवश्यकताओं, घटनाओं का गहरा अध्ययन किया हैं और वर्तमान समय में भारत समाज में मिलने वाली कई संस्थाओं की शुरुआत प्राचीन समय में ही हुई थी
इसमें वर्ण, आश्राम, धर्म, संस्कार, संयुक्त परिवार हैं उसके बाद चाणक्य की अर्थशास्त्र, मन स्मृति तथा शुक्रचार्य का नीति शास्त्र जैसे प्राचीन काल की परम्पराओं प्रथाओं, कानूनों पर भी सामाजिक चिंतन किया गया हैं
इस प्रकार स्पष्ट है कि वैदिक काल से ही भारत में समाज शास्त्र का आरंभ हो गया था
वर्ष 1919 में पैट्रिक गिड्स के द्वारा एक प्रथक समाज शास्त्र विभाग बनाया गया उस विभाग में 1924 में जी.एस. घूरिये को अध्यक्ष ( प्रथम अध्यक्ष ) बनाया गया था इसीलिए जी.एस. घूरिये को भारत में समाज शास्त्र का जनक कहा जाता हैं
बंबई विश्वविद्यालय ( 1914 ) में सर्वप्रथम समाज शास्त्र का एक विषय के रूप में अध्यापन प्रारंभ होने के बाद, 1917 में कलकत्ता विश्वविद्यालय और 1921 में लखनऊ विश्वविद्यालय में समाज शास्त्र का अध्यापन शुरू हुआ
उसके बाद धीरे धीरे आज भारत के लगभग सभी विश्वविद्यालयों में समाज शास्त्र का अध्यापन होता हैं
समाजशास्त्र क्या है? समाजशास्त्र की परिभाषा ( समाजशास्त्र किसे कहते हैं? ) – ( Sociology Kya Hai ) समाजशास्त्र का अर्थ?
समाज शास्त्र लैटिन भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना हैं Socio और Logos. Socio का अर्थ समाज होता हैं और Logos का अर्थ विज्ञान होता हैं अर्थों के मतलब से समझा जा सकता हैं कि यह समाज का विज्ञान हैं
मतलब यह विज्ञान समाज का वैज्ञानिक अध्ययन करता हैं जिसमे मनुष्य के आपसी सम्बन्ध, रीती-रिवाज, परम्पराओं, संस्थाओं आदि का अध्ययन किया जाता हैं क्योकि इसमें वैज्ञानिक पद्दति का उपयोग किया जाता हैं
इसीलिए इसको विज्ञान कहा जाता हैं समाज शास्त्र की परिभाषा को चार वर्ग में विभाजित किया जा सकता हैं
क्योकि समाज व्यक्तियों से बनता है और व्यक्ति बाद में समाज को निर्मित करते हैं मतलब व्यक्तियों के बीच में अंत: क्रिया होती हैं दो या दो से अधिक व्यक्ति एक दुसरे के साथ अंत: क्रिया करते हैं
जिससे उनके बीच में सामाजिक संबंध स्थापित होतें हैं समाजिक सम्बन्ध स्थापित होने के बाद जब दो या दो से अधिक व्यक्ति जुड़ते है तब वह सामाजिक समूह बन जाता है
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मतलब अंत: क्रिया, सामाजिक संबंध, सामाजिक समूह की व्यवस्था को हम समाज कहते हैं
- समाज का अध्ययन – वार्ड, गिडिंग्स, ओडम, गिस्बर्ट
- सामाजिक संबंधों का अध्ययन – मेकाईवर, क्यूबर, वानवीज, ग्रीन, आरनोल्ड रोज
- सामाजिक समूहों का अध्ययन – जॉनसन, फ्लेमिंग, बोगार्डस, नोब्स
- अंत: क्रियाओं का अध्ययन – गिलिन, गिन्सबर्ग, जार्ज सिमेल, हाबहाउस
समाज शास्त्र, अंत: क्रियाओं का अध्ययन
गिलिन – ने कहा कि मनुष्यों के सम्बन्ध से उत्पन्न अंत:क्रियाओं का अध्ययन हैं
गिन्सबर्ग – ने कहा कि समाजशास्त्र मानवीय अंत:क्रियाओं एंव अंत: संबंधों, उनकी दशाओं एंव परिणामों का अध्ययन हैं इसका लक्ष्य सामाजिक व्यवहार की व्याख्या करना हैं
जार्ज सिमेल – ने कहा कि समाजशास्त्र मानवीय अंत:संबंधों के स्वरूपों का अध्ययन हैं
मैक्स वेबर – ने कहा कि समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो सामाजिक क्रियाओं का विश्लेषणात्मक बोध कराने का प्रयत्न है या सामाजिक व्यवहार के सम्बन्ध में निर्वचनात्मक समझ प्राप्त करता हैं
समाज शास्त्र, समाज का अध्ययन
वार्ड – ने कहा कि समाजशास्त्र समाज का विज्ञान हैं
गिडिंग्स – ने कहा कि समाजशास्त्र समाज का वैज्ञानिक अध्ययन हैं
ओडम – ने कहा कि समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो समाज का अध्ययन करता हैं
किंग्सले डेविस – ने कहा कि समाजशास्त्र मानव व्यवहार का अध्ययन है
समाज शास्त्र, सामाजिक संबंधों का अध्ययन
मेकाईवर – ने कहा कि समाजशास्त्र सामाजिक संबंधो के विषय में हैं
वानवीज – ने कहा कि सामाजिक संबंध ही समाजशास्त्र की विषयवस्तु का एकमात्र आधार ( अध्ययन का केंद्र ) हैं
ग्रीन – ने कहा कि समाजशास्त्र मनुष्य के सभी सामाजिक संबंधो का सामान्यीकारण एंव संकलन करने वाला विज्ञान हैं
समाज शास्त्र, सामाजिक समूहों का अध्ययन
जॉनसन – ने कहा कि समाजशास्त्र सामाजिक समूहों का अध्ययन हैं
फ्लेमिंग – ने कहा कि समाजशास्त्र समूहों में लोगो का व्यवस्थित एंव वैज्ञानिक अध्ययन हैं
बोगार्डस – ने कहा कि समूहों के सदस्यों में सामाजिक संबंधों का अध्ययन समाजशास्त्र करता हैं
समाज शास्त्र की अन्य महत्वपूर्ण परिभाषाएं
किम्बाल यंग – समाजशास्त्र समूहों में मनुष्यों के व्यवहार का अध्ययन करता हैं
इमाइल दुर्खीम – ने अपनी पुस्तक द रूल्स ऑफ़ सोशियलॉजिकल मेथड ( 1895 ) में कहा कि समाजशास्त्र को सामूहिक प्रतिनिधानों/चेतना तथा सामाजिक तथ्यों का विज्ञान हैं समाजशास्त्र का सम्बन्ध सामाजिक संस्थाओं और प्रक्रियाओं से हैं
ऑर्गबर्न – ने कहा कि समाजशास्त्र मनुष्य के सामाजिक जीवन तथा उससे सम्बंधित सांस्कृतिक, प्राकृतिक पर्यावरण और समूह विषयक कारों के अध्ययन से सम्बंधित हैं
परेटो – ने अपनी पुस्तक माइंड एण्ड सोसाइटी में कहा कि समाज एक व्यवस्था हैं इस व्यवस्था के विभिन्न भाग आपस में जुड़े हुए परस्पर निर्भर हैं समाजशास्त्र एक अतार्किक क्रियाओं का अध्ययन करने वाला विज्ञान है
सी राइट मिल्स – ने कहा कि समाजशास्त्त्रीय परिकल्पना को आवश्यक आधार बताया है तथा समाजशास्त्र को शिल्प कहा है
अगस्टे कॉम्टे – ने कहा कि समाज शास्त्र सामाजिक व्यवस्था और प्रगति का विज्ञान हैं समाजशास्त्र के सम्बन्ध में कहा कि यही एकमात्र समाज का वास्तविक विज्ञान हैं तथा इसे समस्त सामाजिक “विज्ञानों की रानी” कहा |
इन्होने समाज को दो भागों में विभाजित किया था सामाजिक स्थैतिकी ( प्राचीन समाज ) और सामाजिक गतिकी ( आधुनिक समाज ) |
समाजशास्त्र का क्षेत्र/प्रकृति? Samajshastra Ki Prakriti ( Nature of Sociology )
समाज शास्त्र की प्रकृति के बारे में अनेक लेखकों ने कुछ शंकाएं पैदा की हैं कुछ समाज शास्त्र को विज्ञान मानते हैं और कुछ लेखक समाज शास्त्र के विज्ञान मानने से इन्कार करते हैं
मतलब यह एक विवाद रहा है कि समाज शास्त्र की प्रकृति वैज्ञानिक है या नहीं | कुछ विचारक यह मानते है कि विज्ञान – विज्ञान होता है वह शुद्ध विज्ञान हो या सामाजिक विज्ञान हो, क्योकि विज्ञान एक पद्दति है
जिस किसी भी विषय का अध्ययन वैज्ञानिक पद्दति के आधार पर किया जा सकता है वह विज्ञान हैं उसकी विषय वस्तु कुछ भी हो सकती हैं यहाँ दो कथन बहुत पोपुलर हैं –
स्टुअर्ट चेंज – विज्ञान का सम्बन्ध उसकी पद्दति से होता हैं, विषय सामग्री से नहीं
कार्ल पियर्सन – ने अपनी पुस्तक द Grammer ऑफ़ साइंस में लिखा हैं कि सभी विज्ञानों की एकता उनकी पद्दति में होती हैं, न कि उसकी विषय-वस्तु में जिसका हम अध्ययन करते हैं
परन्तु, इसके बारे में अच्छे से समझने के लिए हमें यह अच्छे से समझना होगा कि विज्ञान किसे कहते है?
विज्ञान का अर्थ – आमतौर पर जब हम विज्ञान के बारे में बात करते है तो केवल रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान को ही विज्ञान मानते हैं परन्तु यह विचार ठीक नहीं है क्योकि विज्ञान में हम उस सारी विषय सामग्री को शामिल कर लेते हैं
जो हमे वैज्ञानिक विधि के द्वारा प्राप्त होती हैं वास्तव में विज्ञान का विषय सामग्री से कोई सम्बन्ध नहीं हैं कोई भी विषय सामग्री विज्ञान हो सकती हैं यदि उसे वैज्ञानिक विधि से प्राप्त किया जा सकता हैं
इस प्रकार विज्ञान विधि वह होती हैं जिसमे एक समस्या लेकर, शोध करके सामग्री को इक्ठा करके, और परिणाम निकालकर देखे जाएं और उनकी जाँच की जाए | यदि कोई विषय सामग्री इन तरीकों का प्रयोग करती हैं तो उसे हम विज्ञान कह सकते हैं
वह पांच पॉइंट जिनके बाद हम किसी विषय को विज्ञान मान सकते है
- वह विषय जिसमे क्या हैं? का अध्ययन किया जाता है
- जो विषय भविष्यवाणी कर सकें
- जो विषय किसी कार्य के होने का कारण बताएं
- जिस विषय में वैज्ञानिक विधि का प्रयोग किया जाता हैं
- कोई विषय किसी खोज के तथ्य को प्रमाणित कर सकें
समाज शास्त्र विज्ञान के रूप में
कुछ विद्वान समाज शास्त्र को एक विज्ञान मानते है क्योकि
- समाज शास्त्र वैज्ञानिक विधि का प्रयोग करता हैं उदहारण के लिए, इतिहास को खोजना, तुलना करना, जाँच मेथड, खोज या प्रयोग विधि आदि |
- समाज शास्त्र प्राप्त तथ्यों के बीच कार्य कारणों के संबंध का पता लगाने के साथ – साथ यह क्यों और कैसे का भी पता लगाने का प्रयास करता है समाज शास्त्र में तथ्य के कारणों और परिणामो को भी पता किया जाता हैं
- समाज शास्त्र किसी भी प्राप्त सामाजिक तथ्यों को उसी रूप ( सत्य के साथ ) में प्रस्तुत करता हैं
- समाज शास्त्र में किसी तथ्य का निरक्षण बिना किसी भेदभाव के किया जाता हैं इस दौरान उसमे अपनी भावनाओं को आने नहीं दिया जाता हैं
- समाज शास्त्र के द्वारा भविष्यवाणी की जा सकती हैं क्योकि जब समाज शास्त्र किसी तथ्य के अध्ययन से, उसके परिणाम का विश्लेषण करता है वह उस परिणाम के आधार पर भविष्यवाणी कर सकता हैं इसके साथ साथ वह समाज में उत्पन्न समस्या का समाज पर प्रभाव और समाज की कठिनाईयों के बारे में भी बता सकता है
विज्ञान के रूप में समाज शास्त्र की सीमाएं
कुछ विद्वान समाज शास्त्र को विज्ञान नहीं मानते है क्योकि
- इसमें प्रयोगात्मक विधि का हमेशा उपयोग नही हो सकता हैं क्योकि इसकी विषय वस्तु मानव हैं जिसका अध्ययन प्रयोगशाला में नहीं किया जा सकता हैं
- समाज शास्त्र मानव संबंधों का अध्ययन करता हैं यह मानव सम्बन्ध हर स्थान पर अलग अलग होते है और इनमे हमेशा परिवर्तन आते रहते हैं इसके अनुसार भविष्यवाणी ठीक तरह से नहीं होती हैं जबकि प्राकृतिक विज्ञान में लगभग भविष्यवाणी सही मानी जाती हैं
- जब कोई व्यक्ति समाज शास्त्र में किसी रीती-रिवाज के बारे में अध्ययन कर रहा होता हैं तब वह व्यक्ति खुद किसी न किसी समाज के साथ संबंध रखता हैं वह अध्ययन करने के दुरन अपने भावों को उसमे ला सकता हैं
जिससे उसके अध्ययन में कुछ न कुछ गड़बड़ हो जाती है वह उसमे अपने विचार को पेश कर देता हैं इसीलिए इसमें निष्पक्षता की कमी होती हैं
- समाज शास्त्र के पास ऐसा कोई सिद्धांत नहीं है जो प्रत्येक समाज पर लागु किये जा सकें क्योकि समाज परिवर्तनशील हैं इसीलिए समाज में किसी जगह पर अधिक परिवर्तन हो जाता है किसी जगह पर परिवर्तन की गति धीमी होती है
जिसके कारण समाज शास्त्र का कोई सिद्धांत ( नियम ) सम्पूर्ण समाज पर लागु नहीं हो सकता हैं
समाजशास्त्र की वास्तविक प्रकृति
समाज शास्त्र की वास्तविक प्रकृति के बारे में रॉबर्ट बीरस्टीड ने अपनी पुस्तक द सोशल ऑर्डर में बताया हैं
- समाजशास्त्र एक विज्ञान हैं लेकिन यह एक प्राकृतिक विज्ञान नहीं है
- समाजशास्त्र एक व्यवाहरिक विज्ञान नहीं है यह एक विशुद्ध विज्ञान हैं
- समाजशास्त्र एक वास्तविक विज्ञान है यह एक आदर्शात्मक विज्ञान नहीं हैं
- समाजशास्त्र एक मूर्त विज्ञान नहीं यह एक अमूर्त विज्ञान हैं क्योकि इसको देखा नहीं जा सकता हैं
- समाजशास्त्र एक समान्य विज्ञान है यह कोई विशेष विज्ञान नहीं हैं
- समाजशास्त्र एक तार्किक एंव अनुभवसिद्ध विज्ञान हैं क्योकि इसके सिद्धांतों को अनुभव के आधार पर सिद्ध किया जा सकता हैं
समाजशास्त्र की विषय वस्तु की विवेचना कीजिए? ( समाजशास्त्र की विषय-वस्तु ) – समाजशास्त्र का अध्ययन क्षेत्र ( Scope )
समाज शास्त्र का अध्ययन क्षेत्र को लेकर विचारकों के अंदर दो मत हैं कुछ का मानना यह है कि समाजशास्त्र एक विशिष्ट विज्ञान हैं मतलब इसकी विषय वस्तु सम्पूर्ण समाज नहीं हैं जिस प्रकार अन्य विज्ञान समझ के किसी एक पक्ष का अध्ययन करते हैं
उसी प्रकार से समाज शास्त्र भी समझ के किन्ही विशेष पक्षों का अध्ययन करता हैं इसके विपरीत कुछ का मानना यह है कि समाज शास्त्र एक विशिष्ट विज्ञान नहीं हैं समाज शास्त्र एक सामान्य ( समन्वय ) विज्ञान हैं
मतलब सभी सामाजिक विज्ञानों के बीच में समन्वय स्थापित करने वाला विज्ञान है क्योकि सभी सामाजिक विज्ञानों समाज के किसी एक पक्ष का अध्ययन करते हैं उदहारण के लिए, राजनीति विज्ञान ( केवल राजनीति पक्ष का अध्ययन करता हैं )
स्वरूपात्मक संप्रदाय
स्वरूपात्मक संप्रदाय का मानना हैं कि समाज शास्त्र एक सामान्य विज्ञान नहीं हैं समाजशास्त्र भी अन्य विज्ञानों की तरह एक विशिष्ट विज्ञान हैं क्योकि जिस तरह अन्य विज्ञान केवल एक पक्ष का अध्ययन करते है
ठीक इसी प्रकार समाज शास्त्र भी सामाजिक संबंधों के स्वरूपों का अध्ययन करते हैं इस स्वरूपात्मक संप्रदाय के प्रतिपादक जार्ज सिमेल हैं परन्तु, इसके समर्थक में मैक्स वेबर, वीरकात, टॉनिज और वानविज |
सिमेल का मानना है कि समाज शास्त्र केवल सामाजिक संबंधों के विभिन्न स्वरूपों का अध्ययन करने वाला विज्ञान हैं
वानविज ने सहयोग, संघर्ष, प्रतिस्पर्धा आदि इस प्रकार के कुल 650 स्वरूपों का उल्लेख किया इनके अनुसार समाज शास्त्र एक विशुद्ध विज्ञान हैं जिसमें अन्य सामाजिक विज्ञानों की विषय वस्तु का मिश्रण नहीं हैं
समन्वयात्मक संप्रदाय
समन्वयात्मक संप्रदाय का मानना है कि यह कोई विशिष्ट विज्ञान नहीं हैं बल्कि यह समाज शास्त्र सभी सामाजिक विज्ञानों के बीच में समन्वय करने वाला विज्ञान हैं क्योकि यह अनेक सामाजिक विज्ञानों का मिश्रित रूप हैं
यह पुरे समाज का सामूहिक रूप से अध्ययन करता हैं इस विज्ञान की विषय वस्तु सम्पूर्ण समाज हैं केवल सामाजिक अंत:क्रियाओं के स्वरूपों का अध्ययन करना इसकी विषय वस्तु नहीं हैं
इस समन्वयात्मक संप्रदाय के प्रतिपादक गिन्सबर्ग हैं परन्तु, इसके समर्थक में सोरोकिन, दुर्खीम और हॉबहाउस हैं इन्होने उदहारण के तौर पर समाज शास्त्र की तुलना अपने शरीर से किया
कि जिस प्रकार मानव शरीर के अलग अलग अंग होते हैं उन सबका अलग अलग कार्य हैं परन्तु, यह कार्य तभी करेंगे जब यह सामूहिक रूप से कार्य करेंगे मतलब अगर हम हर अंग को अलग कर दें तो यह काम नहीं करेंगे
ठीक उसी प्रकार से अगर समाज शास्त्र की विषय वस्तु से उसके अंगों को अलग कर दिया जाए तो समाज शास्त्र नहीं बचेगा |
इसके लिए सोरोकिन ने एक N+ का सूत्र दिया था मतलब नीचे एक समीकरण को देखें
N+ का सूत्र
A-B-C-D-E-F, A-B-C-G-H-I, A-B-C-J-K-L
इस पहली समीकरण A-B-C-D-E-F में D-E-F समाज के किसी विशेष पक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं ठीक उसी प्रकार, दुसरी समीकरण A-B-C-G-H-I में G-H-I समाज के किसी विशेष पक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं
ठीक उसी प्रकार तीसरे समीकरण A-B-C-J-K-L में J-K-L समाज के किसी विशेष पक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं परन्तु इन तीनो में A-B-C कॉमन हैं हम कह सकते है कि यह समाज शास्त्र हैं और यह सभी तीनों समीकरण समाज शास्त्र के अंग हैं
दुर्खीम ने कहा कि समाज शास्त्र सामूहिक प्रतिनिधानों का विज्ञान हैं
समाजशास्त्र की विषय वस्तु का अन्य वर्गीकरण ( समाजशास्त्र की विषय वस्तु? )
समाज शास्त्र की विषय वस्तु को अलग अलग विचारकों ने अलग अलग प्रकार से समझाया है या वर्गीकरण किया हैं
अलेक्स इकल्स का वर्गीकरण
अलेक्स इकल्स ने अपनी पुस्तक व्हाट इज सोशियोलॉजी ( 1977 ) में समाज शास्त्र के अध्ययन क्षेत्र ( विषय क्षेत्र ) को निर्धारित करने के लिए तीन मार्गों को बताया हैं
- ऐतिहासिक मार्ग
- अनुभाविक मार्ग
- विश्लेषणात्मक मार्ग
ऐतिहासिक मार्ग – ऐतिहासिक रूप से मतलब समाज शास्त्र के जो प्रारंभिक विचारक थे उन्होंने समाजशास्त्र की विषय वस्तु को किस रूप से देखा हैं वह भी समाजशास्त्र की विषय वस्तु मानी जाएगी
अनुभाविक मार्ग – अनुभाविक रूप से मतलब वर्तमान में रिसर्च, आर्टिकल, पुस्तक के अंदर समाज शास्त्र की विषय वस्तु क्या है वह भी समाजशास्त्र की विषय वस्तु मानी जाएगी
विश्लेषणात्मक मार्ग – विश्लेषणात्मक रूप से मतलब समाजशास्त्र की इकाइयों, संस्था, सम्मितियों का विश्लेषण भी समाज शास्त्र की विषय वस्तु हैं
इमाईल दुर्खीम का वर्गीकरण
इमाईल दुर्खीम ने समाज शास्त्र की विषय वस्तु को तीन भागों में विभाजित किया हैं
- सामाजिक आकृति विज्ञान
- सामाजिक संरचना
- सामान्य समाज शास्त्र
सामाजिक आकृति विज्ञान – इसको हम प्रारूप भी बोल सकते हैं भौगोलिक पर्यावरण एंव समाज ( जनसंख्या ) की मध्य सम्बन्ध
सामाजिक संरचना – धर्म, आर्थिक, व्यवस्था आदि से सम्बंधित संरचना का अध्ययन
सामान्य समाज शास्त्र – सामाजिक तथ्यों के स्वरूप एंव प्रकारों का अध्ययन करना
गिन्सबर्ग का वर्गीकरण
गिन्सबर्ग ने समाज शास्त्र की विषय वस्तु को चार भागों में विभाजित किया हैं
- सामाजिक स्वरूपशास्त्र
- सामाजिक नियंत्रण
- सामाजिक प्रक्रियाएं
- सामाजिक व्याधिकी
सामाजिक स्वरूपशास्त्र – जनसंख्या, भौतिक पर्यावरण, सामाजिक संस्थाएं का अध्ययन करना
सामाजिक नियंत्रण – धर्म, कानून, नैतिकता, विश्वाश का अध्ययन करना
सामाजिक प्रक्रियाएं – सहयोग, संघर्ष, प्रतिस्पर्धा, अनुकूलन आदि का अध्ययन करना
सामाजिक व्याधिकी – अपराध, गरीबी, भ्रष्टाचार, विचलन का अध्ययन करना
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निष्कर्ष
समाजशास्त्र के लिए इस प्रथम लेख में हमने समाजशास्त्र के विकास, उत्पत्ति और अर्थ के ऊपर विशेष रूप से चर्चा किया हैं
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लेखक – नितिन सोनी
नमस्ते! मैं एनएस न्यूज़ ब्लॉग पर एक राइटर के रूप में शुरू से काम कर रहा हूँ वर्तमान समय में मुझे पॉलिटिक्स, मनोविज्ञान, न्यूज़ आर्टिकल, एजुकेशन, रिलेशनशिप, एंटरटेनमेंट जैसे अनेक विषयों की अच्छी जानकारी हैं जिसको मैं यहाँ स्वतंत्र रूप से शेयर करता रहता हूं मेरा लेख पढने के लिए धन्यवाद! प्रिय दुबारा जरुर आयें