Rajya Ki Utpatti Ke Siddhant: – राज्य की उत्पत्ति के सिद्धांत अक्सर हमसे एग्जाम के दौरान प्रशन पत्र में पूछ लिए जाते हैं पिछले लेखों में हमने बताया है कि राजनीतिक विज्ञान पढ़ते समय राज्य का मतलब देश से होता हैं
कहा जा सकता है कि किसी देश की उत्पत्ति ( निर्माण ) के सिद्धांत राज्य के निर्माण को प्रदर्शित करते है राज्य के निर्माण में संप्रभुता, भूमि, जनसख्या और सरकार इन चार तत्वों का होना बहुत महत्वपूर्ण होता हैं
राज्य के सिद्धांत को बिना राज्य का अर्थ समझे नहीं समझा जा सकता है इसीलिए राज्य की उत्पत्ति के सिद्धांत को समझने से पहले राज्य क्या होता हैं? को समझना होगा
राज्य से आप क्या समझते है?
राज्य सभी सामाजिक संस्थाओं में सबसे सार्वभौमिक और शक्तिशाली हैं राज्य एक प्राकृतिक संस्था हैं अरस्तु ने कहा कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी हैं और स्वभाव से वह एक राजनीतिक प्राणी हैं उनके लिए राज्य में रहना और मनुष्य होना एक समान था
मुख्य परिभाषा – व्यक्तियों का एक समुदाय जो स्थायी रूप से एक निश्चित भूभाग पर कब्जा करता है, क़ानूनी रूप से बाह्य नियंत्रण से स्वतंत्र होता हैं तथा जिसके पास एक संगठित सरकार होती हैं
जो अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर सभी व्यक्तियों और समूहों पर कानून बनाती हैं और उनका प्रशासन करती है उसे राज्य कहते हैं
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कुछ प्रमुख परिभाषाएं
अरस्तु ने राज्य को परिवारों और गांवों का संघ के रूप में परिभाषित किया है जिसका उद्देश्य एक परिपूर्ण और आत्मनिर्भर जीवन हैं मतलब इसका तात्पर्य एक सुखी और सम्मानजनक जीवन से है
वुडरों विल्सन – राज्य एक निश्चित क्षेत्र के भीतर कानून के लिए संगठित लोग हैं
लैसन – राज्य मनुष्यों का एक समुदाय है जिसके पास समस्त शक्ति के सर्वोच्च स्त्रोत के रूप में एक संगठित प्राधिकार होता है
राज्य के तत्व कितने होते है?
जब हम किसी राज्य के निर्माण विषय पर चर्चा करते है तब हमारे लिए उन सभी तत्वों के बारे में समझना जरुरी होता है जिनसे मिलकर राज्य का निर्माण होता हैं राज्य कुल चार तत्वों से मिलकर बनता हैं
- जनसंख्या
- क्षेत्र ( भूमि )
- सरकार
- संप्रभुता
जनसंख्या – एक निश्चित क्षेत्र में रहने वाले लोगो का एक बड़ा समूह जनसंख्या में शामिल रहता है
क्षेत्र ( भूमि ) – पृथ्वी की सतह पर निश्चित क्षेत्र, किसी राज्य के लिए भूमि कहलाता हैं जहाँ पर उस राज्य की जनसंख्या निवास करती है
सरकार – यह एक ऐसा राजनीतिक संगठन है जो राज्य का प्रशासन चलाता है इसके माध्यम से लोग अपनी सामूहिक इच्छा व्यक्त कर सकते है
संप्रभुता – राज्य आंतरिक रूप से सभी व्यक्तियों और संघों पर सर्वोच्च हैं और किसी भी अन्य बाहरी नियंत्रण से मुक्त हैं यह आंतरिक और बाह्य दोनों तरह से निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है
राज्य की उत्पत्ति के सिद्धांत ( राज्य की उत्पत्ति के सिद्धांतों की व्याख्या कीजिए )
राज्य की उत्पत्ति के कई सारे सिद्धांत है जिनके बारे मे नीचे बताया गया है राजनीतिक विज्ञान में स्टूडेंट इन सभी सिद्धांतों को पढ़ते हैं
- दैवीय सिद्धांत ( Divine Theory )
- सामाजिक समझौता सिद्धांत ( Social Contract Theory )
- विकासवादी सिद्धांत ( Evolutionary Theory )
- शक्ति सिद्धांत ( Force Theory )
- उदारवादी सिद्धांत ( Liberal Theory )
- मार्क्सवादी सिद्धांत
राज्य की उत्पत्ति के दैवीय सिद्धांत ( Divine Theory )
यह राज्य की उत्पत्ति का सबसे प्राचीन सिद्धांत हैं जिसका मानना है कि राज्य ईश्वर द्वारा स्थापित की गई एक दैवीय संस्था है
राज्य ईश्वर द्वारा बनाया गया था और इसके निर्माण में लोगो की कोई भूमिका नहीं थी राजा को ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था और लोगो पर उनका दैवीय अधिकार था
राज्य की उत्पत्ति के सामाजिक समझौता सिद्धांत ( सामाजिक अनुबंधन सिद्धांत ) – Social Contract Theory
राज्य लोगो के बीच हुए अनुबंध का परिणाम हैं लोगो और शासन के बीच एक अनुबंध होता है लोगो ने अपने अधिकारों की सुरक्षा के बदले में अपनी कुछ स्वतंत्रताएँ सत्ता और सौप दी हैं हाब्स, लॉक और रूसो सामाजिक अनुबंध सिद्धांत के मुख्य प्रतिपादक हैं
सरल शब्दों में, राज्य कोई दैवीय संस्था न होकर एक मानवीय संस्था है क्योकि राज्य का निर्माण व्यक्तियों द्वारा आपसी समझौते से हुआ है
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राज्य की उत्पत्ति के विकासवादी सिद्धांत ( Evolutionary Theory )
इस सिद्धांत के अनुसार, राज्य न तो कोई दैवीय संस्था है, न ही इसकी उत्पत्ति बल या युद्ध से हुई हैं तथा न ही यह व्यक्तियों की आपसी सहमति का परिणाम है मतलब राज्य कोई कृत्रिम संस्था नहीं बल्कि एक प्राकृतिक समुदाय है
बल सिद्धांत या शक्ति सिद्धांत ( Force Theory )
यह कमजोरों पर ताकतवर लोगो द्वारा जबरन अधीनता के परिणामस्वरूप आया दो समूह, एक में राज्य को एक शक्तिशाली इकाई के रूप में इस सिद्धांत का समर्थन किया और दुसरे समूह ने व्यक्ति की स्वतंत्रता पर जोर दिया हैं
राज्य की उत्पत्ति का कारण शक्ति है राज्य और शासन, शक्ति पर निर्भर हैं शक्ति का अर्थ बल प्रयोग से होता हैं क्योकि जब शक्ति संपन्न लोगो ने अपनी शक्ति से कमजोरों को अपने अधीन कर लिया तब राज्य की उत्पत्ति हुई
राज्य का उदारवादी सिद्धांत ( Liberal Theory )
उदारवादी सिद्धांत व्यक्तियों के विशेषाधिकारो और अधिकारों पर जोर देता है सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध व्यक्तियों के व्यक्तित्व और अधिकारों पर अंकुश लगाते है और उनके विकास को सीमित करते हैं इसीलिए यह सीमित राज्य की वकालत करता हैं
राज्य उदार है अगर वह व्यक्ति के व्यवहार, दृष्टिकोण और विचारों को स्वीकार करता है राज्य का उदारवादी सिद्धांत की कुछ विसेश्ताएं हैं
- राज्य को लोगो के प्रति जवाबदेह होना चाहिए और यह एक सीमित राज्य हैं
- उदारवादी राज्य सभी समूहों, लोगो के अधिकारों और स्वतंत्रता के प्रति जवाबदेह होता हैं
- यह व्यक्तियों के अधिकारों और स्वतंत्रता की वकालत करता हैं
- विभिन्न समूह और संगठन है और वे एक दुसरे के साथ सह-अस्तित्व में हैं
राज्य का मार्क्सवादी सिद्धांत
प्लेटो, अरस्तु आदि यूनानी दार्शनिकों की तरह मार्क्स भी राज्य को एक स्वाभाविक संगठन न मानकर उसे एक वर्गीय संगठन मानते हैं उनकी मान्यता है कि समाज में वर्गों की उत्पत्ति के साथ ही शासक वर्ग के हितों की रक्षा की आवश्यकता की पूर्ति के लिए राज्य का जन्म हुआ
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निष्कर्ष
राज्य की उत्पत्ति के सभी महत्वपूर्ण सिद्धांतों के बारे में सरल इनफार्मेशन विशेष रूप से स्टूडेंट की पढाई के लिए यहाँ शेयर की गई हैं
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लेखक – नितिन सोनी
नमस्ते! मैं एनएस न्यूज़ ब्लॉग पर एक राइटर के रूप में शुरू से काम कर रहा हूँ वर्तमान समय में मुझे पॉलिटिक्स, मनोविज्ञान, न्यूज़ आर्टिकल, एजुकेशन, रिलेशनशिप, एंटरटेनमेंट जैसे अनेक विषयों की अच्छी जानकारी हैं जिसको मैं यहाँ स्वतंत्र रूप से शेयर करता रहता हूं मेरा लेख पढने के लिए धन्यवाद! प्रिय दुबारा जरुर आयें