Tulnatmak Rajniti Ka Arth: – तुलनात्मक राजनीति क्या है? इस डिजिटल युग वाली दुनिया में हर मनुष्य स्मार्ट बनता जा रहा है यही कारण है कि हर चीज की तुलना करना व्यक्ति को अच्छा लगता है
इसीतरह राजनीतिक विज्ञान के क्षेत्र में शासन, प्रशासन की तुलना करना, एक राजनीतिक व्यवस्था की दुसरी राजनीतिक व्यवस्था से तुलना करना होता है यह तुलनात्मक राजनीतिक विश्लेषण कहलाता है
एक मनुष्य सामाजिक प्राणी होने के साथ-साथ राजनीतिक प्राणी भी होता है क्योकि हर मनुष्य किसी न किसी देश ( राज्य ) में रहता है इस दौरान अपने लिए बेहतर शासन खोजने के लिए मनुष्य ने तुलना करना शुरू किया था
तुलना मानव स्वभाव का अंग होने के साथ उपयोगी अध्ययन का भी आधार मानी जाती है
दुनिया में अरस्तु ( प्रथम ) वह विचारक है जिन्होंने तुलनात्मक राजनीति के अंतर्गत व्यवस्थित ( Systematic ) तरीके से तुलना किया इसीलिए अरस्तु को तुलनात्मक राजनीति का पिता कहा जाता है
अक्सर एग्जाम में तुलनात्मक राजनीति क्या है इसकी प्रकृति एवं क्षेत्र के विषय पर प्रश्न पूछ लिया जाता है यह विषय अच्छे से समझने के लिए हम तुलनात्मक राजनीति की परिभाषा को पढ़ते हैं
तुलनात्मक राजनीति का विकास – तुलनात्मक राजनीति का महत्व ( Tulnatmak Rajniti Ki Paribhasha ).
राजनीतिक विज्ञान के क्षेत्र में यह कहना गलत नहीं होगा कि राजनीतिक विज्ञान में तुलना करने की शुरुआत अरस्तु के समय से हो गई थी जब अरस्तु ( Aristotle ) ने अपने समय में यह देखने के लिए कि सबसे अच्छा शासन कौन सा है?
लगभग 158 संविधानों की तुलना कर दी थी उस समय अरस्तु ( Aristotle ) का सवाल यह था कि कौन सी सरकार अच्छी है? राजतंत्र, लोकतंत्र या तानाशाही?
परन्तु प्लेटो और अरस्तु के समयकाल में तुलनात्मक राजनीतिक विश्लेषण को सिर्फ सरकार ( Government ) और राज्य या देश ( Country/State ) से जोड़कर देखा जाता था
इसीलिए प्राचीन समय में तुलनात्मक राजनीति वह कहलाती थी जिसमे सिर्फ सरकार और राज्य/देश का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता था प्राचीनकाल में कुछ विचारकों के विचार इस प्रकार है –
सिसरो ( Cicero ) – जितना अधिक कानून होगा, उतना कम न्याय होगा क्योकि अगर हमारे पास कानून अधिक हैं तब यहाँ जरुरी नहीं होता है कि हमें न्याय भी मिल जाएगा ( तुलना किया गया )
निकोलो मैकियावेली – ने राजा ( शासक ) की तुलना अनिरंकुशतंत्र से कर दी
मॉन्टेस्क्यू ( Montesquieu ) – ने शक्ति ( Power ) की तुलना किया उदहारण के लिए, वर्ष 1776 में जब अमेरिका आजाद हुआ तब वहाँ शक्ति विभाजन की तुलना किया था
जीन बोडिन ( Jean Bodin ) – अधिकतर यूरोपियन कंट्री या फ़्रांस में राजा बहुत अत्याचारी हुआ करते थें इसीलिए उनसे छुटकारा पाने का मुख्य शासन कौन सा होगा यह जानने के लिए जीन बोडिन ने फ़्रांस मे चल रहें
तानाशाही शासन के समय की तुलना प्रचीन राजाओं के साथ किया जिसमे यह पता चला है कि अधिकतर यूरोपियन कंट्री या फ़्रांस के अंदर मोर्डेन समय ( आधुनिक समय ) के दौरान कुछ राजा भी ऐसे हैं जो निरंकुशतंत्र ( तानाशाही ) में जुड़े हैं
तुलनात्मक राजनीति में राजनीति का क्या महत्त्व है?
तुलनात्मक राजनीति में राजनीति ( Politics ) शब्द का महत्त्व सबसे अधिक है परन्तु राजनीति क्या है? का कोई एक उत्तर नहीं हो सकता है क्योकि राजनीति किसे कहते है? सवाल के बहुत सारे उत्तर हैं
ऐसा कहा जाता है कि जहाँ पर निर्णय लेने की प्रक्रिया होती है वहाँ राजनीति होती है, जहाँ समस्या होती है वहाँ राजनीति होती है परन्तु राजनीति में लिया जाने वाला निर्णय सिर्फ एक व्यक्ति ने लिए नहीं बल्कि सभी लोगो के लिए होना चाहिए
मैक्स वेबर – ने राजनीति को उन लोगो को प्रभावित करने वाली कला बताया है जिनके हाथों में सत्ता निहित होती है
डेविड ईस्टन – राजनीति से मतलब उन संबंधों के समूह से होता है जिसके द्वारा सार्वजानिक निर्णय लिए जाते है अथवा सार्वजानिक नीतियों का निर्माण किया जाता है
तुलनात्मक राजनीति क्या है? तुलनात्मक राजनीति का अर्थ ( Tulnatmak Rajniti Ka Arth ) Comparative Politics in Hindi – Tulnatmak Rajniti Kya Hai.
हमारे आस-पास पुरी दुनिया में जो भी घटना घटित हो रही है उसको तुलनात्मक रूप में समझना तुलनात्मक राजनीतिक कहलाता है मतलब पूरी दुनिया के देशों का अध्ययन करना तुलनात्मक राजनीतिक कहलाता है
जिसमे संसद ( Parliament ), राजनीतिक दल ( Political Parties ), राजनीतिक ( Political ) या आर्थिक व्यवस्था ( Economic System ) में समानता/असमानताएं क्या है? इत्यादि की तुलना शामिल है
राजनीतिक विज्ञान में यह किसी एक चीज की तुलना नहीं करता है क्योकि इसका बहुत व्यापक क्षेत्र होता हैं
उदहारण के लिए, एक देश ने दुसरे देश पर हमला कर दिया, अमेरिका में वर्तमान राष्ट्रपति ट्रम्प और उनसे पिछले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने अपने-अपने कार्यकाल में क्या-क्या कार्य किए हैं
मतलब किस देश में किस नेता ने क्या कार्य किया है, किस तरह का कार्य किया है जो हमारे देश के लिए फायदेमंद हो सकता है, भूमंडलीकरण ( Globalization ) ने अधिकतर देशों की संप्रभुता पर ख़तरा पैदा कर दिया है
क्योकि विकसित देशो का यह मानना है कि विदेशी कंपनियों के आने से हमारे ऊपर उनका दबदबा बनता है इसीलिए इस भूमंडलीकरण ( Globalization ) के कारण हम अपनी स्वतंत्रता खो सकतें है?
कुछ अन्य उदहारण –
- ब्रिटिश प्रधानमंत्री व संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति की शक्तियों व भूमिका में तुलना करना
- अमेरिका की सीनेट तथा भारत की राज्यसभा में तुलना करना
- कनाडा तथा ऑस्ट्रेलिया के संविधानों की तुलना करना
- जनवादी चीन तथा पूर्ववर्ती सोवियत संघ ( USSR ) के साम्यवादी दलों के संगठन, स्थिति व भूमिका में तुलना करना
- भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ( NDA ) को पहली बार जीतने पर 282 सीटें मिली थी उसके बाद वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में ( NDA ) को 352 सीटें मिली यह कैसे हो गया तुलना करें?
तुलनात्मक राजनीति हमें इतिहास की तुलना करके वर्तमान में यह बताती है कि हमें भविष्य में क्या करना चाहिए?
उदहारण के लिए, हाल-फिलाल में कोरोना वायरस ( वर्ष 2019 से 20 तक ) फैला था उस दौरान हम याद कर सकतें है कि उससे पहले स्पेनिश फ्लू वायरस ( वर्ष 1918 से 1919 तक ) आया था उस दौरान भी करोड़ो लोगो की मृत्यु हुई थी
कोरोना वायरस को हमने देखा, समझा और उसकी तुलना पिछले वायरस से करके यह पता लगाया कि आने वाला समय ( भविष्य ) भी सुरक्षित नहीं हैं कभी भी हमारे बीच ऐसे वायरस या महामारी आ सकती है
जॉन ब्लोडेल – तुलनात्मक राजनीति समकालीन विश्व में राष्ट्रीय सरकारों के प्रतिरूपों का अध्ययन है
ई. ए फ्रीमेन – तुलनात्मक राजनीति कई प्रकार की सरकारों व विभिन्न राजनीतिक संस्थाओं का तुलनात्मक विश्लेषण है
मेहलर – तुलनात्मक राजनीति में राजनीति का तुलनात्मक अध्ययन शामिल है जिसे राजनीतिक प्रकरणों जिनमे शामिल है – राजनीतिक संस्थाएं ( विधायिका, राजनीतिक दल, राजनीतिक हित समूह ( NGO ) ),
राजनीतिक व्यवहार ( मतदान करना, राजनीतिक पेम्पलेट को पढ़ना, विरोध प्रदर्शन करना ), राजनीतिक विचारों ( मार्क्सवाद, उदारवाद, संकीर्णवाद ) के बीच समानता और विभिन्नता को खोजने का प्रयास किया जाता है
एम् जी स्मिथ – तुलनात्मक राजनीति, राजनीतिक संगठनों के प्रकार, उनके गुणों, संबंधों, विभिन्नताओं और परिवर्तन के तरीकों का अध्ययन होता है
डेविड वुड – राजनीति शास्त्र के क्षेत्र में तुलनात्मक शब्द का प्रयोग इस बात की ओर संकेत करता है कि तुलनात्मक राजनीति आधुनिक विश्व की राजनीति प्रणालियों का तुलनात्मक अध्ययन कर सिद्धांत निर्माण करता है और उनका परिक्षण करने के लिए समस्त राजनीति शास्त्र के प्रति उत्तरदायी है
एडवर्ड फ्रीमैन – तुलनात्मक राजनीति सरकार के अलग-अलग रूपों और विभिन्न राजनीतिक संस्थाओं का तुलनात्मक विश्लेषण है
जी. के रोबर्ट्स – तुलनात्मक सरकार या शासन का प्रयोग राज्यों, संस्थाओं और कार्यों से सम्बंधित कुछ समूहों ( राजनीतिक दल, दबाब समूह ) के अध्ययन के लिए उपयुक्त है, लेकिन तुलनात्मक राजनीति का क्षेत्र व्यापक है,
जिसमे तुलनात्मक शासन तथा गैर राजनीतिक संस्थाओं के राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन भी शामिल है
सारटोरी – का कहना है कि हम तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन नियंत्रण ( कण्ट्रोल ) करने के लिए करते है इनका यह मानना है कि जब हम एक सिस्टम को समझते है तब हम उसकी जड़ तक पहुँच पाते है, कारण समझ पाते है, समाधान निकल पाते है
एम् कर्टिस – तुलनात्मक राजनीति, राजनीतिक संस्थाओं और राजनीतिक व्यवहार की कार्य-प्रणाली में महत्वपूर्ण नियमितताओं, समानताओं और असमानताओं में तुलनात्मक अध्ययन से सम्बन्ध रखती है
तुलनात्मक राजनीति की प्रकृति ( Tulnatmak Rajniti Ki Prakriti ). Nature Of Comparative Politics.
तुलनात्मक राजनीति की प्रकृति को दो भागों में विभाजित कर दिया गया है कुछ विचारकों ने कहा कि तुलनात्मक राजनीति की प्रकृति लम्बात्मक है तथा कुछ विचारकों का यह कहना था कि तुलनात्मक राजनीति की प्रकृति क्षैतिज हैं
लम्बात्मक ( Prolonged ) – जब एक देश के अंदर कई ( विभिन्न ) तरह ( स्तरों ) की सरकारों का अध्ययन किया जाए इसकी प्रकृति लम्बात्मक ( Prolonged ) होती है
क्षैतिज ( Horizental ) – एक देश के अंदर अलग-अलग काल में कौन-कौन सी सरकारें रहीं है और उन्होंने क्या-क्या कार्य किया है सबसे अच्छा कार्य किसका है, किसका कार्य अच्छा नहीं है का अध्ययन किया जाता है
उदहारण के लिए, भारत के प्रधानमंत्री
- श्री जवाहर लाल नेहरू ( 1947-1964 )
- श्री लाल बहादुर शास्त्री ( 1964-1966 )
- श्री गुलजारी लाल नंदा ( 1966-1966 )
- श्री मोरारजी देसाई ( 1977-1979 )
- श्री चरण सिंह ( 1979-1980 )
- श्रीमती इंदिरा गांधी ( 1980-1984 )
- श्री राजीव गांधी ( 1984-1989 )
- श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ( 1989-1990 )
- श्री चन्द्र शेखर ( 1990-1991 )
- श्री पी. वी. नरसिंह राव ( 1991-1996 )
- श्री एच. डी. देवेगौड़ा ( 1996-1997 )
- श्री इंदर कुमार गुजराल ( 1997-1998 )
- श्री अटल बिहारी वाजपेयी ( 1998-2004 )
- डॉ. मनमोहन सिंह ( 2004-2014 )
- श्री नरेन्द्र मोदी ( 2014-अबतक )
तुलनात्मक राजनीति का क्षेत्र – तुलनात्मक राजनीति का विषय क्षेत्र ( Scope Of Comparative Politics. )
हमें पता होना चाहिए कि तुलनात्मक राजनीति का विषय क्षेत्र बहुत अधिक व्यापक है –
क़ानूनी अथवा संस्थागत दृष्टिकोण – हम हर लीगल चीज का अध्ययन करतें है उदहारण के लिए – क़ानूनी रूप से एक देश में संविधान की स्टडी करना, राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन करना,
व्यवहारवादी दृष्टिकोण – इसमें हम व्यवहार का अध्ययन करतें है उदहारण के लिए, दुसरे वर्ड वॉर के दौरान लोगो का व्यवहार कैसा रहा?
तुलनात्मक अध्ययन का महत्त्व ( उपयोगिता )
- तुलनात्मक विधि हमें राजनीतिक विकल्पों व संभावनाओं के ज्ञान के लिए प्रेरित व उत्साहित करती है यह बहुलता व विविधता को पहचानने में मदद करती है
- विभिन्न राष्ट्र तुलना द्वारा एक-दुसरे से बहुत कुछ सीख सकते है वे अपनी समस्याओं के समाधान के लिए दुसरे विचारो को ग्रहण कर सकते है या अपनी संस्थाओं को बेहतर बनाने के लिए ज्ञान की बहुलता में चुनाव कर सकतें है
- तुलनात्मक पद्दति के द्वारा कुछ निर्णायक परिणामों को दिया जा सकता है
तुलनात्मक अध्ययन की कठिनाईयाँ –
- यह अध्ययन बहुत बड़ा होने के कारण जटिल ( कठिन ) हो गया है
- तुलनात्मक शासन और राजनीति का अध्ययन करने वाले विचारकों को विभिन्न देशों की भाषाओं तथा उनकी संस्कृति को जानना जरुरी है अगर यह ज्ञान नहीं होगा तब हमें कठिनाई होगी क्योकि उनकी शब्दावली अधिक कठिन होती है
- आधुनिक युग की राजनीतिक व्यवस्थाएं और संस्थाएं परम्परागत संस्थाओं से अधिक जटिल ( कठिन ) हो गई है
- तुलनात्मक राजनीति को वैज्ञानिक रूप देने के लिए चिन्तक सर्वक्षण, प्रश्नावली तथा कंप्यूटरों के आकड़ें एकत्रित करते है इन आकड़ों पर आधारित सिद्धांत हमेशा स्थायी तथा सर्वमान्य नहीं हो सकते है क्योकि इनका अध्ययन क्षेत्र मानव व्यवहार है
- तुलनात्मक विश्लेषण के अंतर्गत अब केवल औपचारिक संस्थाओं ( विधानमंडल, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका ) का अध्ययन नहीं किया जाता है
बल्कि इसका अध्ययन भी होता है कि इन संस्थाओं पर आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा नैतिक परिस्थितियों का प्रभाव पड़ रहा है जिसके कारण तुलनात्मक राजनीति आसानी से स्पष्ट नहीं होती है
- तुलनात्मक राजनीतिक विश्लेषण में राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है परन्तु इसके सम्बन्ध में तथ्य सुगमता से उपलब्ध नहीं होते है
- तुलनात्मक राजनीति में निर्णय व नीतियों के निर्धारण में राजनीतिक संस्थाएं राजनीतिक व्यवहार और राजनीतिक मान्यताएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ये तीनों एक-दुसरे को प्रभावित करती है
विश्लेषक के लिए इन तीनों में सम्बन्ध स्थापित करने में कठिनाई होती है
तुलनात्मक राजनीति के उपागम ( Approaches ) –
तुलनात्मक राजनीति में अध्ययन करने के तरीकें या दृष्टिकोण को तुलनात्मक उपागम कहा जाता है तुलनात्मक राजनीति को दो तरह के उपागम में विभाजित किया जा सकता है
- परम्परागत उपागम ( Traditional Approaches )
- आधुनिक उपागम ( Modern Approaches )
परम्परागत उपागम ( Traditional Approaches )
परम्परागत उपागम के अंतर्गत तीन तरीकें है शुरुआत में अधितर विचारक पश्चिम यूरोप से हैं इसीलिए उन्होंने सबसे अधिक जोर पश्चिमी देशो के अध्ययन पर दिया है इसी कारण से परम्परागत उपागम की आलोचना की जाती है
मैक्रिडीज – यह दृष्टिकोण विदेशी सरकारों के अध्ययन तथा विस्तृत रूप से पश्चिम यूरोपीय प्रजातंत्रों अथवा यूरोप के राज्यों और इंग्लैंड से सम्बंधित था
परम्परागत उपागम की विशेषताएँ –
- मैक्रिडीज ने कहा था कि परम्परागत उपागम अतुलनात्मक है क्योकि इसमें तुलना करने के दौरान सभी पक्षों ( देशों ) को शामिल नहीं किया है
यह सिर्फ औपचारिक संगठनों पर ही जोर देता है जैसे – सरकार, संसद, कार्यपालिका, न्यायपालिका इत्यादि
- परम्परागत उपागम सिर्फ वर्णनात्मक होता है क्योकि इसमें क्यों हैं, कैसे हुआ हैं, इसका समाधान क्या होगा पर ध्यान नहीं दिया जाता है यहाँ सिर्फ कहाँ है, क्या हैं, कब है, कौन हैं पर ध्यान दिया जाता है
- यह प्रबंधात्मक हैं क्योकि इसने यूरोपीय देशो को अधिक महत्त्व देकर सिर्फ एक क्षेत्र में अपना प्रभुत्व कायम रखा है और इसने नॉन पोलिटिकल कारणों को शामिल नहीं किया है
- परम्परागत उपागम सिमित या संकुचित दृष्टिकोण होता है क्योकि इसके तुलनात्मक तरीकें में सिर्फ यूरोपीय देश, अमेरिका तक सिमित रहे है इसमें एशियन और अफ्रिकन देशों को शामिल नहीं किया गया था
- यह स्थिर या गतिहीन हैं क्योकि समय के साथ-साथ इसमें कोई बदलाव नहीं आया है
- परम्परागत उपागम औपचारिक-संस्थागत अध्ययन होता है
- यह अवैज्ञानिक अध्ययन करता है क्योकि इसमें जो अध्ययन किया गया है वह तकनीक या तथ्यों पर आधारित नहीं होता है यहाँ सिर्फ कल्पनाओं या पूर्वगृहों पर ध्यान दिया गया है
- परम्परागत उपागम में आदर्श या मानकीय अध्ययन पर अध्ययन किया जाता है मतलब यह पहले से यह मानकर चलते है कि अगर हम ऐसा करेंगे तो ऐसा हो जाएगा
- यह विशेष समस्या पर आधारित अध्ययन होता है उदहारण के लिए, लोकतंत्र, आर्थिक नियोजन, प्रतिनिधित्व इत्यादि
परम्परागत उपागम की आलोचना –
- यह अपने शासन की संस्थाओं तक ही सिमित रह गया है
ऑमंड-पॉवेल – परम्परागत उपागम का मुख्य जोर संस्थाओं, कानूनों, विधियों, राजनीतिक विचारों तथा विचारधारा पर ही रहा और उनके कार्य, अंत:क्रिया, व्यवहार व उपलब्धियों की उपेक्षा की गई
- इनका मानना है कि सबसे अच्छी लोकतान्त्रिक व्यवस्था ( टू पार्टी सिस्टम ) यूरोपीय देशो में हैं इनको यह नहीं देखना है कि एशिया और अफ्रीका में क्या है?
- इन्होने शासन की संस्थाओं का वर्णन तो कर दिया है परन्तु संस्थाओं के अलावा अन्य बातों को शामिल नहीं किया है
- दुसरे वर्ड वॉर के दौरान, व्यवहारिक क्रान्ति होने पर यह देखा गया कि लोगो ने वैज्ञानिक रूप से चीजों का अध्ययन करना शुरू कर दिया है जिसके बाद पता चला कि इसकी अप्रांसगिकता ( महत्त्व ) अब ख़तम हो चुकी है
- यह अंतर-अनुशासनात्मक नहीं हैं इसने किसी नए तरीकें को अपनाया ही नहीं है
- इसने सिर्फ राजनीतिक संस्थाओं का सैद्धांतिक अध्ययन किया हैं और यह सिर्फ नीति-निर्माण पर ध्यान देता है परन्तु समस्या का समाधान नहीं बताता है
परम्परागत उपागम के दृष्टिकोण/उपागम/प्रकार –
- ऐतिहासिक उपागम ( Historical Perspective )
- क़ानूनी-औपचारिक उपागम ( Legal-Formal Approach )
- संस्थात्मक उपागम ( Institutional Approach )
ऐतिहासिक उपागम ( Historical Perspective )
ऐतिहासिक उपागम – इसमें हम सिर्फ इतिहास का अध्ययन करतें है मतलब यहाँ तुलना का आधार ऐतिहासिक ( इतिहास ) है यह राजनीतिक संस्था, राजनीतिक व्यवस्था, संगठन, विधायिका, कार्यपालिका,
न्यायपालिका, संसद, सरकार इत्यादि की तुलना इतिहास के आधार पर करता है राजनीतिक में इतिहास राजनीतिक विज्ञान की जड़ होता है इसीलिए हमें राजनीतिक विज्ञान को अच्छे से समझने के लिए इतिहास को समझना ही होगा
सपोर्ट करने वालें विचारक – अरस्तु, मैकियावेली, मान्टेस्क्यु, हीगल, मार्क्सम मैक्स वेबर, बालटर बेजहॉट इत्यादि
व्यवहारवादी क्रांति के बाद इतिहास पर कम और मूल्यों पर अधिक जोर दिया गया हैं
क़ानूनी-औपचारिक उपागम ( Legal-Formal Approach )
क़ानूनी-औपचारिक उपागम – इसमें सिर्फ कानून पक्ष का अध्ययन होता है यह संविधान के आधार पर तुलना करता है और यह क़ानूनी के आधार पर संस्थाओं का पृथक्करण ( अलग-अलग ) करता है
इसमें सिर्फ क़ानूनी व्यवस्था का विश्लेषण किया जाता है न्यायिक संस्थाओं के संगठन अधिकारक्षेत्र और स्वतंत्रता को यह छोड़ देता है इसीलिए यह एक चिंता का विषय बन जाता है
सपोर्ट करने वालें विचारक – सिसरो, डायसी, वुडरो विल्सन, जेम्ब बाईस, के.सी, व्हीयर, हर्मन फाइनर, जेनिंग्स, अस्तिन, बैंथम, सर हेनरी मेन इत्यादि
संस्थात्मक उपागम ( Institutional Approach )
संस्थात्मक उपागम – इसमें सिर्फ संस्थाओं का अध्ययन किया जाता है मतलब यहाँ तुलना का आधार संस्था है जैसे – कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका, राजनीतिक दल, संगठन इत्यादि यह सिर्फ फॉर्मल चीजो का अध्ययन करता है
यह इनफॉर्मल चीजें जैसे – फॅमिली, शिक्षा, घर्म, जाति, आर्थिक, मतदान व्यवहार, विधयाकों के व्यवहार, न्यायधीशो के व्यवहार, अनौपचारिक संस्थाएं इत्यादि का अध्ययन नहीं करता है यह राजनीति के मार्ग में आने वाली बांधाओं को दूर करता है
उदहारण – संस्थात्मक उपागम कई कार्यों में हमारी मदद करता है –
- भारत और ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली को समझना
- भारत और अमेरिका के संघात्मक ढाँचे का अध्ययन करना
- वर्तमान संस्थाओं के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करना
- मुक्त समाजों के अध्ययन के लिए ही उपयुक्त है
आलोचना –
- यह सर्वाधिकारवादी ( जहाँ लोकतंत्र नहीं है ) के लिए यह सही नहीं है
- यह कठोर नियंत्रण रखता है और यह मुक्त समाज के लिए ही सही है
आधुनिक उपागम ( Modern Approaches )
वर्ष 1945 में वर्ड वॉर ख़तम होने के बाद लोगो के व्यवहार को देखने के लिए व्यवहारवादी क्रान्ति ( Behavioural Revolution ) हुई यहाँ तथ्यों पर जोर देने की बात होने लगी दुसरे वर्ड वॉर के बाद जब लोगो के मन में नए-नए विचार उत्पन्न हुए
तब उन्होंने यह सोचा कि परम्परागत उपागम नहीं बल्कि अब एक नया तरीका आना चाहिए उस नए तरीकें को आधुनिक उपागम का नाम दिया गया
जीन ब्लोंडेल के अनुसार जेम्स ब्रायस और लोवेल के द्वारा आधुनिक उपागम को शुरू किया गया इसीलिए आधुनिक उपागम मे जेम्स ब्रायस और लोवेल को तुलनात्मक राजनीति का संस्थापक कहा जाता है
तुलनात्मक राजनीति में आधुनिक उपागम ने परम्परागत उपागम की कमीयों ( यूरोपीय देशो पर फोकस करना, फॉर्मल संस्थाओं का अध्ययन करना, नॉन पोलिटिकल एरिया को छोड़ देना ) में सुधार किया
मतलब इसने यूरोपीय देशो के साथ-साथ एशियन, अफ्रीकन, साउथ अमेरिकन इत्यादि सभी देशो का अध्ययन किया और नॉन पोलिटिकल एरिया जैसे – दबाब समूह, NGO इत्यादि पर जोर दिया
इसके साथ-साथ इस उपागम ने राजनीति की सूक्ष्म प्रक्रियाओं पर भी जोर दिया जिसको लेकर इसने अपने अलग-अलग विचार दिए परम्परागत उपागम के बाद जब आधुनिक उपागम आया तब दुनिया भर के देशो में इसको पढ़ाया जाने लगा था
इसीलिए आधुनिक उपागम में सभी तरह की राजनीतिक व्यवस्थाओं की तुलना की जाती है इसके माध्यम से राजनीति आधुनिकीकरण हो गया, संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक पर जोर दिया गया और मार्क्सवादी-लेनिनवादी व्यवस्था पर फोकस किया गया
सपोर्ट करने वालें विचारक – फ्रेडरिक, ब्राइस, ऑमंड-पॉवेल, लुशियन पाई, सिडनी दर्वा, डेविड ऐप्टर, डेविड ईस्टन इत्यादि
आधुनिक उपागम की आवश्यकता –
हमने आधुनिक उपागम को क्यों अपनाया है इसके लिए निमंलिखित महत्वपूर्ण बातें है जिनको नीचे बताया गया है –
- परम्परागत उपागम की कमीयों को दूर करने के लिए तथा जटिल राजनीतिक परिस्थितियों के लिए
ऑमंड व पावेल ने बताया कि आधुनिक उपागम को अपनाने के कारण यह है –
- नए-नए देशो का उदय या प्रभुसत्तासंपन्न राष्ट्रों के उदय के कारण तुलना करने का तरिका भी नया होना चाहिए क्योकि अब हमें यूरोपीय देशो से हटकर अन्य देशो का भी अध्ययन करना है
- अंतर्राष्ट्रीय शक्ति का प्रभाव बढ़ता चला गया दुनिया दो तरीकों में विभाजित हो गई उदहारण के लिए, USSR और USA.
- गैर– राजनीतिक एरिया जिनको परम्परागत उपागम ने छोड़ दिया था उनका अध्ययन करने के लिए हमारे द्वारा आधुनिक उपागम को अपनाना बहुत जरुरी था
आधुनिक उपागम की विशेषताएँ –
- आधुनिक उपागम विश्लेषणात्मक एंव व्याख्यात्मक होता है मतलब यह चीजो का विश्लेषण और उनकी व्याख्या करता है
- यह अनुभववादी होता है क्योकि यह तथ्यों की बात करता है मतलब यह क्या होना चाहिए? नहीं बल्कि क्या हो रहा है? इसकी बात करता है इसका मुख्य कारण इसका व्यवहारवादी ( वैज्ञानिक ) क्रान्ति से पैदा होना है
- आधुनिक उपागम वैज्ञानिक व व्यवस्थित अध्ययन पर बात करता है
- आधुनिक उपागम का क्षेत्र व्यापक होता है क्योकि वर्तमान समय में बहुत सारे उपागम हैं नए-नए देशो के उदय के कारण इसका क्षेत्र भी बढ़ता चला गया है
- वर्तमान समय में आधुनिक उपागम के कारण इस विषय को दुनियाभर के देशो में पढ़ाया भी जा रहा है इसीलिए इसका अंतः अनुशासनात्मक अध्ययन होता है
- यह मूल्य सत्ता बनाम मूल्य सापेक्ष अध्ययन करता है तथ्यों के साथ-साथ कल्पनाओं का अध्ययन भी कर लेता है
- यह व्यवस्थामूलक अध्ययन करता है मतलब आधुनिक उपागम व्यवस्था के साथ अध्ययन करता है जिससे उनकी समस्याओं को बताया जा सकें
- आधुनिक उपागम संरचनात्मक कार्यात्मक अध्ययन पर जोर देता है मतलब यह चीजो का संरचनात्मक और कार्यात्मक पार्ट कवर करता है
- यह उपागम सिर्फ राजनीतिक नहीं बल्कि सामाजिक समस्याओं के अध्ययन पर भी जोर देता है
आधुनिक उपागम की आलोचना –
- आधुनिक उपागम के विषय-क्षेत्र व प्रकृति में जटिलता आ गई है क्योकि वर्तमान समय में दुनिया के अंदर अनेक उपागम आ चुके है इसीलिए तुलना करने में समस्या उत्पन्न होती है
- आज के समय में अनेक उपागमों का प्रचलन हो गया है
- हमें विकासशील देशों की राजनीतिक व्यवस्था को समझने या तुलना करने में सबसे बड़ी समस्या आती है कि हमें कौन सा तरीका अपनाना चाहिए? क्यों कि बहुत सारे नए-नए उपागम आ गए है
आधुनिक उपागम के दृष्टिकोण/उपागम/प्रकार –
- व्यवस्था/प्रणाली विश्लेषण उपागम ( System Analysis Approach )
- संरचात्मक-कार्यात्मक उपागम ( Structural-Functional Approach )
- मार्क्सवादी-लेनिनवादी उपागम ( Marxist-Leninst Approach )
व्यवस्था/प्रणाली विश्लेषण उपागम ( System Analysis Approach )
व्यवस्था/प्रणाली विश्लेषण उपागम – यह उपागम व्यवहारवादी विचारक ( डेविड ईस्टन ) के द्वारा लाया गया है यह राजनीतिक व्यवस्था विश्लेषण राजनीतिक व्यवस्था की धारणा पर आधारित है
वर्ष 1945 से पिछले समय में राजनीतिक व्यवस्था में राष्ट्र, सरकार या राज्य ( देश ) का अध्ययन किया जाता था परन्तु डेविड ईस्टन ने अन्य चीजों पर भी ध्यान दिया मुख्य रूप से राजनीतिक व्यवस्था को कवर करने पर फोकस किया है
जिसमें शासन की संरचनाओं, राजनीतिक प्रक्रियाओं, गैर-राजनीतिक तत्वों, राजनीतिक दलों, लोकमत, दबाब व हित समूह इत्यादि शामिल हैं मतलब इन सभी चीजों से मिलकर राजनीतिक व्यवस्था का निर्माण होता है
डेविड ईस्टन – किसी समाज में पारस्परिक क्रियाओं की ऐसी व्यवस्था को राजनीतिक व्यवस्था कहा जाता है जिससे उस समय में बाध्यकारी अथवा अधिकारपूर्ण नीति निर्धारित होती है
ऑमंड-पॉवेल – राजनीतिक व्यवस्था से इसके अंगो की अंतनिर्भरता और इसके पर्यवारण ( लोगो के आस-पास ) में किसी न किसी प्रकार की सीमा का बोध होता है
डेविड ईस्टन ने कुछ महत्वपूर्ण पॉइंट्स को समझाया है –
- न्यायसंगत शारीरिक उत्पीडन – कई बार राजनीतिक व्यवस्था के द्वारा जिन कानून और नियम को बनाया जाता है यह उन लोगो के लिए सजा हो सकती है जो ऐसे कार्य करतें है
जिससे हमारे देश की एकता और अखंडता को ख़तरा होता है उसके साथ न्याय के साथ शारीरिक उत्पीडन किया जाए
- मूल्यों का सत्तात्मक आवंटन – हम मूल्यों को एक जगह इकट्ठा नहीं करेंगे बल्कि इनको कई ( अलग-अलग ) जगह बाटेंगे
- अंगो की पारस्परिक अंतनिर्भरता – यह अंगो के अंतनिर्भर होने की बात करतें है
- सीमा का विचार – हम एक सीमा में रहतें है जिसके अंदर एक राजनीतिक संरचना कार्य करती है यह लोकतंत्र या राजतंत्र प्रणाली हो सकती है
राजनीतिक व्यवस्था की विशेषताएँ –
- इसमें राजनीतिक स्त्रोतों का असमान वितरण होता है
- यह राजनीतिक प्रभाव की खोज करती है
- इसमें राजनीतिक प्रभाव का असमान वितरण किया जाता है
- इसमें संघर्षपूर्ण उद्देश्यों का हल निकाला जाता है
- इससे औचित्यपूर्णता की प्राप्ति होती है और विचारधारा का विकास होता है
- इसमें अन्य राजनीतिक व्यवस्थाओं का प्रभाव होता है
आगत-निर्गत मॉडल ( Input-Output Model )
यह आगत-निर्गत उपागम डेविड ईस्टन के द्वारा दिया गया है जिसमे तीन संघटक ( Components ) दिए है
- निवेश ( Input )
- मांगो का रूपांतरण स्तर ( The Conversion Stage of Demands )
- निर्गत ( Output )
निवेश ( Input )
निवेश ( Input ) – समाज में बहुत सारे राजनीतिक दल, जनता, दबाब समूह, हित समूह, NGO इत्यादि हैं उनके द्वारा जो डिमांड ( माँग ) की जा रही है उससे माँग को लागु करने वाले पर प्रभाव पड़ता है
उदहारण – जब जनता प्रदर्शन या आंदोलन करती है तब उसका प्रभाव सरकार पर पड़ता है
यहाँ प्रभाव राजनीतिक व्यवस्था पर पड़ता है और यह माँगे जनकल्याण के लिए होती है इसीलिए सभी दबाब समूह, प्रभावों, मागों, संकटों, आन्दोलनों इत्यादि को निवेश कहा गया है निवेश को दो भाग में विभाजित कर दिया गया है
- मांगे ( Demands )
- समर्थन ( Support )
मांगे ( Demands ) – जनता की जो डिमांड है वह उनकी माँग होती है
समर्थन ( Support ) – लोग सरकार के द्वारा बनाये गए कानून या मूल्यों को स्वीकार करके उनका समर्थन करते है
मांगो का रूपांतरण स्तर ( The Conversion Stage of Demands )
मांगो का रूपांतरण स्तर – यहाँ मांगो का समूहिकरण किया जाता है जितना अधिक उनको जनसमर्थन मिला है उसके अनुसार ही सरकार निर्णय लेगी सरकार के द्वारा लिए गए निर्णय को ही निर्गत ( Output ) कहा जाता है
निर्गत ( Output )
निर्गत ( Output ) – सरकार के द्वारा लिए गए निर्णय को निर्गत ( Output ) कहा जाता है
संरचात्मक-कार्यात्मक उपागम ( Structural-Functional Approach )
संरचात्मक-कार्यात्मक उपागम – संरचनात्मक कार्यात्मक उपागम या दृष्टिकोण राजनीतिक विश्लेषण के लिए सिस्टम ( व्यवस्था ) विश्लेषण उपागम पर एक सुधार है क्योकि व्यवस्था विश्लेषण उपागम संरचनाओं के कार्यों पर विस्तृत जानकारी नहीं देता था
संरचनात्मक कार्यात्मक उपागम सर्वप्रथम सामाजिक मानव विज्ञानी रैडक्लिफ़ ब्राउन और मालिनोवस्की के द्वारा विकसित किया गया था इसको बाद में मेर्टन, टैल्कॉट पार्सन्स तथा लेवी के द्वारा अपनाया गया था
डेविड ईस्टन के इनपुट-आउटपुट मॉडल का प्रभाव संरचनात्मक कार्यात्मक उपागम पर पड़ा इसीलिए यह व्यवस्था विश्लेषण उपागम और संस्थागत उपागम को एकीकृत करता है इसमें ध्यान संरचनाओं से हटकर कार्यों पर केन्द्रित हो गया है
गेब्रियल आलमंड एंव कोलमैन – गेब्रियल आलमंड और कोलमैन ने राजनीतिक प्रणाली ( व्यवस्था ) की चार विशेषताओं को बताया है
- सभी राजनीतिक व्यवस्थाओं में राजनीतिक संरचनाएं होती है
- सभी राजनीतिक व्यवस्थाएं अलग-अलग संरचनाओं का उपयोग करके अलग-अलग सीमा तक कुछ कार्य निष्पादित करती है
- सभी राजनीतिक संरचनाएं बहु-कार्यात्मक होती है
- सभी राजनीतिक व्यवस्थाऍ मिश्रित प्रणालियाँ है
मार्क्सवादी-लेनिनवादी उपागम ( Marxist-Leninst Approach )
मार्क्सवादी-लेनिनवादी उपागम – मार्क्सवाद एक सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक दर्शन होता है जिसका नाम कार्ल मार्क्स के नाम पर रखा गया है यह पूंजीपतियों और मजदुर वर्ग के बीच संघर्ष पर केन्द्रित होता हैं
मार्क्सवादी दृष्टिकोण के अनुसार राजनीति की वास्तविक प्रकृति को उच्च संरचना से समझना होगा इसीलिए राज्य ( देश ) की अवधारणा इतिहास के विभिन्न चरणों के उत्पादन से सम्बंधित है
राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रति मार्क्सवादी दृष्टिकोण की विशेषताएँ –
- यह इस बात की वकालत करता है कि राजनीतिक जाँच ऐतिहासिक रूप से उन्मुख होनी चाहिए न कि सामाजिक समस्याओं और मुद्दों की समझ तक सीमित होनी चाहिए
- यह अर्थशास्त्र के साथ राजनीति के अध्ययन के संयोजन की वकालत करता है क्योकि राजनीति और अर्थशास्त्र के बीच अंतर से तर्क और तर्क की विकृति पैदा होती है
- यह विश्लेषण आर्थिक अभिविन्यास पर आधारित होता है
- यह राजनीति के एकीकृत और गतिशील विश्लेषण के लिए मार्क्सवादी द्वंद्वात्मक पद्धति को प्राथमिकता देता है
- यह राज्य ( देश ) को वर्ग विरोधाभासों का अपरिहार्य परिणाम मानता है
- राज्य ( देश ) एक वर्ग द्वारा दुसरे वर्ग पर शोषण और उत्पीडन का साधन है
मार्क्सवादी दृष्टिकोण की आलोचनाएँ –
- कार्ल पॉपर ने भी मार्क्स की सामाजिक इंजीनियरिंग को खतरनाक बताते हुए उसे नकार दिया और प्लेटो और हीगल के साथ मार्क्स को भी खुले समाज का दुश्मन माना है
- उसके अलावा मार्क्स ने राष्ट्रीयता, मित्रता, धर्म इत्यादि जैसे कारकों को नजरअंदाज करते हुए अर्थव्यवस्था को ही महत्वपूर्ण बना दिया है समाज मार्क्स द्वारा वर्णित से कही अधिक जटिल ( कठिन ) था
- साम्यवाद के पतन ने सिद्धांत और व्यवहार दोनों में मार्क्सवाद की गंभीर कमीयों को साबित कर दिया है
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FAQ
तुलनात्मक राजनीति का क्या अर्थ है?
हमारे आस-पास पुरी दुनिया में जो भी घटना घटित हो रही है उसको तुलनात्मक रूप में समझना तुलनात्मक राजनीतिक कहलाता है मतलब पूरी दुनिया के देशों का अध्ययन करना तुलनात्मक राजनीतिक कहलाता है
जिसमे संसद ( Parliament ), राजनीतिक दल ( Political Parties ), राजनीतिक ( Political ) या आर्थिक व्यवस्था ( Economic System ) में समानता/असमानताएं क्या है? इत्यादि की तुलना शामिल है
तुलनात्मक राजनीति के जनक कौन है? तुलनात्मक राजनीति का जन्मदाता कौन था?
दुनिया में अरस्तु ( प्रथम ) वह विचारक है जिन्होंने तुलनात्मक राजनीति के अंतर्गत व्यवस्थित ( Systematic ) तरीके से तुलना किया इसीलिए अरस्तु को तुलनात्मक राजनीति का पिता कहा जाता है
निष्कर्ष
यह लेख विशेष रूप से राजनीतिक विज्ञान पढने वाले स्टूडेंट्स के लिए शेयर किया गया है क्योकि तुलनात्मक राजनीति से एक प्रश्न एग्जाम में पूछा जाता है जिसका उत्तर इस लेख को पढ़कर दिया जा सकता है
मैं यह उम्मीद करता हूँ कि कंटेंट में दी गई इनफार्मेशन आपको पसंद आई होगी अपनी प्रतिक्रिया को कमेंट का उपयोग करके शेयर करने में संकोच ना करें अपने फ्रिड्स को यह लेख अधिक से अधिक शेयर करें
लेखक – नितिन सोनी
नमस्ते! मैं एनएस न्यूज़ ब्लॉग पर एक राइटर के रूप में शुरू से काम कर रहा हूँ वर्तमान समय में मुझे पॉलिटिक्स, मनोविज्ञान, न्यूज़ आर्टिकल, एजुकेशन, रिलेशनशिप, एंटरटेनमेंट जैसे अनेक विषयों की अच्छी जानकारी हैं जिसको मैं यहाँ स्वतंत्र रूप से शेयर करता रहता हूं मेरा लेख पढने के लिए धन्यवाद! प्रिय दुबारा जरुर आयें